Feel of love in Hindi Love Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | एहसास इश्क़ के

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एहसास इश्क़ के

तुझसे नाराज नही ज़िन्दगी हैरान हूँ मैं ..हैरान हूँ मैं ..!मासूम फिल्म का ये गाना मुझे अक्सर उसकी याद दिला देता है जिसके लिए कभी मैं इस जहां के कायदे कानून को लांघ गयी थी।और एक वो जो जिसने मुझे अपनी प्राथमिकता पर रखा।मैं सबके लिये प्रियम्बदा लेकिन उसके लिए प्रिया सिर्फ प्रिया।अब आप सोच रहे होंगे कि मैं अपने इन शब्दो में बार बार किसका जिक्र कर रही हूँ।मैं जिक्र कर रही हूँ प्रेम में डूबे हुए तीन व्यक्तियों का।जिनका प्रेम पावन भी था और पवित्र भी।आइये आप सब को सुनाती हूँ मैं प्यार की एक ऐसी कहानी जो अधूरी होकर भी पूरी है।
करीब पांच वर्ष पहले की बात है मैंने यानी प्रिया ने स्कूल की चहारदीवारियों से निकल कर कॉलेज की खूबसूरत दुनिया में नया नया ही प्रवेश किया था।सब कुछ नया नया ही तो था मेरे लिए।नयी जगह, नये दोस्त,नये अध्यापक नया माहौल कोई रोक टोक नही जब जितना मन हो अध्ययन करो नही करना है तो बाद में भी कर सकते हो।इसी नयी दुनिया में मैं टकराई थी उससे .. कार्तिक से!कार्तिक आहा!ये नाम जुबां पर आते ही आज फिर मेरे होठों पर मुस्कुराहट आ गयी।जितना प्यारा नाम उतना ही प्यारा व्यक्तित्व।पांच फुट दस इंच का एक युवा भूरी भूरी आँखे और हल्के सुनहरे से बाल जो वो हाथो से अक्सर सेट करता रहता था।जब पहली बार देखा था मैंने उसे तब भी वो बालो में हाथ फेरते हुए ही दिखा था।कॉलेज का पहला दिन और बेहद खुशमिजाज और स्वभाव से बातूनी मैं चारो ओर देखते हुए क्लास रूम की ओर जा रही थी और वो नोटिस बोर्ड पर लगे नोटिस को पढ़ते हुए बालो पर हाथ फेरते हुए बुदबुदाता जा रहा था।न जाने क्यों मुझे उसका यूँ बुदबुदाना बेहद पसंद आया और मैं क्लास रूम पूछने के लिए उसकी ओर बढ़ चली।

उसके पास पहुंची और उसकी ओर देखते हुए उससे बोली साइंस प्रथम वर्ष के लिए लेक्चर रूम कहां है?मेरी आवाज सुन उसने मेरी ओर देखा और बोला मैं भी वहीं जा रहा हूँ मेरे साथ चल सकती हो।उसकी बात सुन मैं खुशी से बोली बहुत बढ़िया मैं प्रियम्बदा।आज कॉलेज में मेरा पहला दिन है।तो उसने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया मैं कार्तिक!लेकिन मेरा पहला नही दूसरा दिन है।ये उसके व्यक्तित्व का पहला प्रभाव पड़ा था मुझ पर।उस दिन लेक्चर रूम तक साथ चले गये वो कुछ कदम कब हमेशा साथ रहने की ख्वाहिश बन गये मुझे पता तक नही चला।यूँ ही रोज मैं आती और उससे बातें करते हुए लेक्चर रूम तक पहुंचती।सिलसिला बन गया था।देखते ही देखते मेरे मन में उसके लिए दोस्ती से इतर भावनाये उमड़ने लगी।उसका साथ कब मुझे अच्छा लगने लगा कब वो मेरे लिए एक सहपाठी न होकर हमराही बन गया कुछ खबर नही हुई।धीरे धीरे एक वर्ष व्यतीत हो गया इस एक वर्ष में न उसने कुछ कहा और न ही मैंने पहल की।कॉलेज के नये सत्र में फिर से नये छात्रों के दाखिले का सिलसिला कॉलेज में शुरू हुआ जिसमें वो दोनो आये जिनमे से एक ने मुझे प्रेम का अर्थ सिखलाया।चहक घुंघरेले बालो वाली गोरे रंग की मध्यम कद की लड़की और राघव शांत सा चुप रहने वाला गंभीर प्रकृति का लड़का! दोनो साइंस के ही छात्र यानी हमारे जूनियर थे।
कार्तिक की मुलाकात चहक से हुई और उसे पहली नजर में ही चहक से प्रेम हो गया।मेरे लिए ये खबर किसी विस्फोट से कम कहां थी।जिस दिन कार्तिक ने मुझे बताया उस दिन छुप छुप कर बहुत रोयी थी मैं।कॉलेज भी नही गयी थी।पूरे दिन अपने कमरे से बाहर तक नही निकली थी।दूसरे दिन कॉलेज जाने पर कार्तिक ने मुझसे कॉलेज न आने का कारण पूछा तो मैंने उसे ये कहकर टाल दिया कि घर पर जरूरी काम आ गया और वो मान गया।सिलसिला आगे बढ़ा और एक दिन कार्तिक ने चहक से अपने प्रेम का इजहार किया अब भला कॉलेज के एक खूबसूरत नौजवान के प्रेम प्रस्ताव को कोई युवा कन्या कैसे मना करती चहक ने भी नही किया।कार्तिक और चहक की प्रेम कहानी शुरू हो गयी साथ ही शुरू हुई मेरे यानी प्रिया और राघव के एकतरफा इश्क की अनकही दास्तां।मुझे कार्तिक से प्रेम था तो वहीं राघव को मुझसे।और दोनो में एकसमान बात ये भी थी कि दोनो में से किसी ने कभी इजहार तक नही किया।
कार्तिक को चहक के साथ खुश देख मैं भी खुश रहती और अपना ध्यान पढ़ाई में लगाती।कभी कॉलेज में गार्डन में बैठ कर पढ़ाई करती तो कब धूप सिर पर आ गयी पता ही नही चलता क्योंकि राघव कब अपनी किताब ले मेरे और सूरज की किरणों के बीच में आ खड़ा होता मुझे पता ही नही चलता।कभी जब पानी की बॉटल में पानी खत्म हो जाता और मैं पढ़ाई डिस्टर्ब न हो इस कारण पानी लेने नही जाती और जब ये बात भूल कर बॉटल हाथ में पकड़ती तो वो खाली बॉटल कब भरी हुई मिलती मुझे तनिक भी एहसास नही होता था।भूख लगने पर जब अपना बेग टटोलती तो कभी चिप्स के पैकेट तो कभी चॉकलेट कभी कुछ कभी कुछ पाती थी।कभी कभी जब ट्यूशन से लौटने में देर हो जाती तो मेरे ऑटो के पीछे एक बाइक हमेशा दौड़ते हुए देखती।लेकिन उस बाइक पर होता कौन था ये कभी पता ही नही चलता था मुझे।ये सब कार्य राघव बिना मुझे जताये,मुझे एहसास दिलाये चुपचाप करता।इस केयरिंग को दोस्ती समझ मैं उससे कुछ नही कहती।गुजरते वक्त के साथ मुझे एहसास हुआ कि राघव की ये परवाह सिर्फ दोस्ती न होकर उससे कहीं अधिक है।मैंने उससे इस बारे में बात की तो वो बोला, प्रिया जी!मैंने कोई भी उम्मीद लेकर आपसे प्रेम नही किया।प्रेम एक भावना है कोई व्यापार नही है जो आप करोगे तब मैं करूँगा।आप नही करोगे तो मैं भी नही करूँगा।नही, ये तो वो भाव है जो निरंतर बढ़ता ही रहता है।मैं कभी भी आप पर कोई अधिकार नही दिखाऊंगा।बस इसी तरह जीवन पर्यन्त बिन किसी स्वार्थ के आपसे प्रेम करता रहूंगा।उसकी बात सुन कर मुझे एहसास हुआ कि वास्तव में प्रेम क्या है।उस दिन से मैंने अपने हृदय में भरी कार्तिक के लिए बेशुमार भावनाओ का दमन न कर उसे जीना शुरू किया। मैं कार्तिक के लिए वैसा कुछ नही करती जो राघव मेरे लिए किया करता मैं तो बस उसके और चहक के बीच में झड़प को दूर कर कभी कभी मध्यस्थ का कार्य करती।कार्तिक और चहक को एक दूसरे का सरप्राइज देना है कह उन्हें बिन बताये डेट पर भेज देती।ईमानदारी से कहूँ ये मेरे लिये बहुत मुश्किल होता।लेकिन फिर भी मैं कोशिश जरूर करती कार्तिक के लिए उसकी परेशानियां कम करने की।धीरे धीरे समय गुजरता गया और एक दिन वो मेरी जिंदगी में आया जिसके बारे में मैं कभी कल्पना नही कर सकती।कोहरे वाले एक दिन डेट पर जाते हुए एक दुर्घटना में कार्तिक और चहक हमेशा के लिए इस जहां से चले गये।वो दिन मेरे जीवन का सबसे लम्बा दिन था।जिसका एक एक क्षण मेरे लिए एक युग में समान व्यतीत हुआ।उसके पीछे उसके परिवार में रह गये उसकी मां और उसके पिता।इकलौती संतान था कार्तिक उनकी।उनका दर्द उनकी तकलीफ मुझसे नही देखी गयी।और मैंने बड़ी ही कठोरता से एक निर्णय लिया।आजीवन अविवाहित रह उसके माता पिता के साथ रह एक बेटी की तरह उनका ध्यान रखने का निर्णय।मेरे इस निर्णय को सुन कर मेरे परिवार के सभी सदस्यो ने पुरजोर विरोध किया।लेकिन कार्तिक के प्रति मेरा एकतरफा प्रेम मेरी शक्ति बना और उसके माता पिता को मनाने में मेरा साथी बना और मैं कार्तिक की यादों के साथ उसके प्रति अपने एकतरफा प्रेम के साथ उसके घर में रहने लगी।यहां भी एक बार फिर राघव ने मेरा साथ दिया और कार्तिक के मां पापा के विवाह के लिए बार बार कहने पर उसने आगे आ कर मेरा हाथ थाम मुझे मेरी एकतरफा मोहब्बत के साथ स्वीकार किया वहीं मैंने उसे उसके पूर्ण समर्पण के साथ स्वीकार किया।आपके इस त्याग के लिए मैं कार्तिक की प्रिया और तुम्हारी पत्नी हृदय से आभारी हूँ।प्रेम का सही अर्थ मैंने आपसे ही तो सीखा है।धन्यवाद राघव, डायरी में लिखे इन शब्दो को पढ़ते पढ़ते राघव की आंखों में खुशी के आंसू आ जाते है और वो कहता है एकतरफा है तो क्या हुआ प्रिया हमारे बीच इश्क़ तो है।वो इश्क जो अधूरा होकर भी पूर्ण है।

समाप्त