बारह पन्ने
अतीत की शृंखला के
बचपन इंसान की ज़िंदगी का सबसे सुनहरा दौर जिसे शायद अंतिम साँस तक नही भुलाया जा सकता ।जीवन का सबसे स्वर्णिम काल ,चिंतारहित खेलना खाना ,बेपरवाह सी ज़िंदगी काश ! कोई ऐसा चमत्कार होता कि वो समय लौट आता । मैंने भी ऐसा ख़ूबसूरत सा बचपन जिया जो आज भी मेरी स्मृतियों का अनमोल ख़ज़ाना है ।उस काल को कुछ पन्नो में समेटना शायद असम्भव सा है पर कोशिश तो करूँगी ही अतीत की शृंखला से कुछ पल चुरा कर लाने का ।
ये बारह पन्ने किसी किताब के पन्नो पर लिखे अक्षर मात्र नहीं है ये बारह परिवार है बारह जिंदगियाँ है । एक विशाल घने वृक्ष की बारह डालियाँ है जिनके तले हमने अपना बचपन जिया है ,आज की पीढ़ी शायद ही इस भावना को समझ पाए पर हमने तो इन पलों को जिया है । ये वो अनमोल यादें है जो हमारी नसों में आज भी लहू बनकर दौड़ रही हैं ।जो आज भी हमारी धड़कनों में बसती है ।ये वो रिश्ते है जिनका कोई नाम नही है फिर भी ये रिश्ते दिल के क़रीब है बहुत क़रीब है ।इन्ही रिश्तों ने क़रीब साठ वर्षों से हम सबको एक मज़बूत डोर से आज भी बांध रखा है ।
मेरे खूबसूरत से शहर के दिल का एक प्यारा सा कोना ,जहाँ बसी है ये सुरनगरी ! जितना प्यारा नाम उतने ही प्यारे यहाँ के लोग । यहाँ कोई मिस्टर शर्मा या मिस्टर गुप्ता या मिस्टर जैन नहीं थे ,यहाँ तो रहते थे ;रंजू के पापा ,स्वीटी की मम्मी , नीलू के पापा आदि । अपने अपने सबसे बड़े बच्चे के माता पिता के नाम से पहचाने जाते थे यहाँ के लोग ! और बच्चों के लिए सब बड़े चाचा जी और चाची जी ! सब एक दूसरे से प्यार के रिश्तों की डोर से बंधे, कोई जाति बंधन नहीं , कोई ऊँच नीच का भेदभाव नहीं ।और संगठन ऐसा मानो एक बहुत बड़ा सा संयुक्त परिवार हो । जब इस जगह नए घर बने तो अलग अलग जगहों से लोग आए और आते ही सभी लोग एक दूसरे के साथ ऐसे घुल गए थे कि जैसे सदियों से वो एक परिवार का हिस्सा हो ।ऐसे मज़बूत बंधन में बंधे की यहाँ सुख हो या दुःख सब साँझा हो गया थे ।एक की आँख से टपका आँसू दूसरे के दिल का दर्द बन जाता था । पूरे साठ वर्ष बीत गए इस मोहल्ले को बसे ,सबको एक साथ रहते । आज उसी जगह तीसरी और चौथी पीढ़ी का भी वास है ।हमारे लिए तो वहाँ के हर घर की हर ईंट पर एक सुनहरी इबारत लिखी है , हमारा बचपन बसा है उनमे , हमारे लिए तो सुरनगरी मानो मंदिर है ।बचपन ना जाने कब का पीछे छूट गया आज हम सब बड़े हो गए ,दुनिया के ना जाने कितने कोनो में बिखर गए ।
वो काग़ज़ की किश्ती थी ,वो पानी का किनारा था
खेलने की मस्ती थी ,ये दिल भी आवारा था
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन कितना प्यारा था
अपनी अपनी जिंदगियों में ऐसे उलझ गए की कभी कभी ही जाना हो पाता है वहाँ पर मुझे तो उस जगह की कशिश खींचती रहती है ,अपने पास बुलाती रहती है ।और क्यूँ ना हो आख़िर मायका जो ठहरा हम लड़कियों का ।
तभी तो मन होता है कहूँ ,
रिश्ते पुराने होते है मायका पुराना नहीं होता
पुराने दोस्तों का साथ भी अनमोल होता है
यहाँ वहाँ बचपन के कतरे बिखरे होते है
जाने कितने अनमोल लम्हे बिखरे होते है
कही खिलखिलाहट कही आँसू नज़र आते है
ना जाने कितने खेले गए आँखो के सामने आ जाते है
दोस्तों के साथ बिताए कितने ही पल याद आ जाते है
बचपन का ग्लास कटोरी आज भी जैसे
माँ के खाने का स्वाद और बढ़ा देते है
अल्बम की तस्वीरों से ना जाने कितने क़िस्से याद आते है
बचपन के कभी ना लौट कर आने वाले सुनहरे दिन याद आ जाते है ।
तभी आज लगा आपको भी अपने बचपन की सुरम्य वादियों में ले चलूँ जहाँ ना जाने कितने क़िस्से मेरा इंतज़ार कर रहे है याद करने के लिए , ना जाने कितनी स्मृतियाँ तैयार हैं मेरा हाथ थामने के लिए .............