Benzir - the dream of the shore - 27 in Hindi Moral Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 27

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बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 27

भाग - २७

उन्होंने स्थिति साफ करते हुए कहा, 'देखो तुम अभी मॉडलिंग की दुनिया की, भीतर की दुनिया जानती नहीं। जब जान जाओगी तो मुझे पूरा यकीन है कि उल्टे पांव भाग खड़ी होगी । तब कहीं तुम आत्मग्लानि का शिकार ना हो जाओ। खुद मैं भी बहुत ज्यादा नहीं जानता कि मॉडलिंग की दुनिया में क्या-क्या है। मगर जितना जानता हूं उससे तो परिचित करा ही सकता हूं। उतनी ही बातें काफी होंगी कि, तुम यह तय कर सको कि, तुम्हें क्या करना चाहिए।' उन्होंने कहा, 'देखो उस दिन तुमने जो मॉडलिंग की, उस हिसाब से तुम मॉडलिंग की दुनिया की जो तस्वीर समझ रही हो, वास्तव में वह सब उसके ऊपरी हिस्से की कहानी है, जो तुम्हें बहुत अच्छी लग रही है। वास्तविक मॉडलिंग तो वह है, जो यह कम्पनी तुमसे कराना चाहती है।'

मुझे बड़ी रहस्यमयी लगीं ये बातें। लेकिन मेरा जोश ठंडा नहीं हुआ था। मैंने कहा, 'तुम मेरे हिसाब से समझा सको तो समझाओ, सारी बातों का मतलब क्या है, असली दुनिया क्या है मॉडलिंग की।'

'देखो साफ-साफ मोटी-मोटी बात यह समझो कि, जैसे यहां मेकअप केवल औरतें ही कर रही थीं। तो बड़े स्तर पर जाकर ज्यादातर मेकअप आदमी करते हैं। एक ही फोटो यानी पोज के लिए बहुत से अटेम्ट करने होते हैं। क्योंकि जब-तक आर्ट डायरेक्टर के मनमाफिक फोटो या वीडियो नहीं बन जाती है, तब-तक वह बार-बार करवाता रहेगा। इसके अलावा कुछ शूटिंग इंडोर यानी स्टूडियो में, तो कुछ आउटडोर बाहर भी होती है। यह कैसा होगा ये उनके प्रोजेक्ट पर डिपेंड करता है। आउटडोर शूटिंग में जहां वो कहते हैं, वहां जाना पड़ता है।'

'तुम तो साथ में रहोगे ना।'

'पहले बाकी बातें भी समझ लो। ड्रेस कौन सी पहननी है, यह भी वही लोग ही तय करेंगे। तुम सिर्फ इतना कर सकती हो कि, वो जैसा-जैसा कहेंगे, आंख मूंद कर तुम्हें वही करते रहना है। कहेंगे पानी में भीगते हुए या नदी, समुद्र में उछल-कूद करना है या फिर जो कुछ भी कहेंगे करते रहना है। ये लोग पैसा यूं ही बैठे-बिठाए नहीं दे देते।'

मुन्ना की इस बात पर भी मैं बड़े जोश में थी। मैंने कहा, 'ये बताओ, इससे तो जगह-जगह जाने, घूमने-फिरने, मौज-मस्ती करने को तो मिलेगी ना। लगे हाथ काम, पैसा, खाना-पीना। इसमें तो मजा ही मजा आएगा।'

'हाँ, जब जगह-जगह जाएंगे तो यह सब तो होगा ही।'

'सुनो, जब पैसा, मौज-मजा सब है तो एक बार करते हैं ना। ज्यादा कुछ ऐसा-वैसा होगा तो छोड़ देंगे। कह देंगे कि नहीं करना।'

यह सुन कर मुन्ना हँसते हुए बोले, 'इस तरह नहीं होता कि, जब मन हुआ तब किया, नहीं हुआ तो मना कर दिया।'

'अरे कोई जबरदस्ती काम नहीं करा सकता न ।'

'ज़बरदस्ती नहीं, लेकिन ऐसी बड़ी-बड़ी कंपनियां एग्रीमेन्ट साइन करवाती हैं। और अगर बीच में तुम मना करोगी तो वह केस कर देंगे कि उनका तुम्हारे कारण इतना नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई तुम करो। इतना पैसा कहां से लाओगी। लेने के देने पड़ जाएंगे।'

मुन्ना की इस बात पर कुछ देर सोचने के बाद मैं बोली, 'ऐसा है पहले उनसे बात कर लेते हैं कि क्या-क्या करना है, ठीक होगा तो करेंगे साइन, नहीं हुआ तो नहीं करेंगे। मना कर देंगे।' मुन्ना जितना समझा सकते थे, उन्होंने उतना समझाया। लेकिन मैं एक बार बात कर ही लेना चाहती थी। पहली बार में ही रैंप पर सक्सेसफुली वॉक कर लेने से मेरा जोश सातवें आसमान पर था, मेरी जबरदस्त इच्छा के आगे मुन्ना को झुकना पड़ा।उन्होंने अगले दिन कम्पनी के आदमी से बात की। मैं भी साथ में थी।

बड़े विस्तार से सारी बात होने के बाद हम दोनों एक फिल्म देखने चले गए। शाम को लौटते वक्त उन्होंने मेरे मन को समझने के लिए फिर से मॉडलिंग वाली बात उठाई तो मैं असमंजस में दिखी। मगर फिर भी मेरा झुकाव इस तरफ था कि एक बार ट्राई कर लिया जाए। होटल पहुंचने तक वह मेरा असमंजस दूर नहीं कर सके।

रात खा-पी कर जब हम दोनों लेटे तब भी हमारी बातें चालू थीं। मेरी एक बात पर उन्होंने मेरे सिर को प्यार से सहलाते हुए कहा, 'मेरे मन की पूछ रही हो, तो साफ-साफ कहता हूं कि कम से कम मेरे जैसा आदमी यह कतई नहीं चाहेगा कि, उसकी बीवी को कोई दूसरा आदमी चाहे। मेकअप के लिए ही सही उसको छुए, देखे, उसकी फोटो, वीडियो को देख-देख कर दुनिया आहें भरे, गंदी निगाहों से देखे।

इन कम्पनी वालों का एग्रीमेंट साइन करने के बाद हम इनके हाथ की कठपुतली बनकर रह जाएंगे। बीच में एग्रीमेंट तोड़ेंगे, तो यह हमें कोर्ट तक खींच ले जाएंगे। यह कमजोर केस को भी अपने पैसे की ताकत से जीत ले जाते हैं। जबकि हम जीत कर भी बर्बाद हो जायेंगे। बार-बार की पेशी, वकील की फीस देते-देते हम सड़क पर आ जाएंगे। इसलिए मेरा कहना है कि मॉडलिंग की बात दिल से निकाल दो। जो बिजनेस कर रही हो उसी पर ध्यान दो।

मैं अपनी पूरी ताकत लगा दूंगा, उसमें जितना आगे बढो, उतना कम है। इतनी आगे जाओ कि दुनिया के मॉडल तुम्हारी कम्पनी के लिए मॉडलिंग करें, ना कि तुम। बाकी यही कहूंगा कि मेरा तुम पर कोई प्रेशर, या कोई विरोध नहीं है। इन सारी बातों के बाद भी अगर तुम इसी फील्ड में आगे बढ़ना चाहती हो, तो मेरा पूरा सहयोग तुम्हारे साथ है। हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं।'

वो अपनी बात कहते रहे, और मैं उनके सीने पर सिर रखकर लेटी कुछ सोचती रही। उनकी बातों को गहराई से समझने की कोशिश करती रही। और उसके हाथों की ऊंगलियां मेरे बालों में चहल-कदमी करती रहीं। फिर वह एकदम खामोश हो गए। उस ए.सी. रूम में ऐसी  घनघोर शांति छा गई कि, हम दोनों की सांसों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी।

आखिर एक लंबी खामोशी के बाद मैं बोली, 'तुम जो कह रहे हो वही सही है। इस फील्ड में जाने से पहले मुझे अपनी शर्मो-हया को जूती तले कुचलना होगा, तुम्हारी और अम्मी के जज्बातों को भी कुचलना होगा। अभी जितनी फोटो इंस्टाग्राम पर तुमने मर्दों, औरतों की दिखाई उनमें ना जाने कितने तो सारे कपड़े उतारे, अपनी शर्मगाहों को भी नुमाया किए हुए हैं। तुम्हारी ये बातें मेरे दिल में गहरे बस गई हैं कि, मैं अपना बिजनेस बड़ा करूं, इतना कि लोग मेरी कम्पनी के लिए मॉडलिंग करें ना कि मैं किसी के लिए मॉडलिंग करूं।'

मैं इतनी ही बात कह पाई थी कि एकदम चिंहुक कर झटके से उठ बैठी। मुन्ना के एक हाथ ने कुछ शैतानी कर दी थी। मैंने शैतानी करने वाले हाथ को कस कर पकड़ लिया और हंसती हुई बोली, 'तुम्हें बड़ी शैतानी सूझ रही है ना, अभी मैं तुम्हारी शैतानी निकालती हूं।'

यह कहते हुए मैं उनके ऊपर ही चढ़ बैठी, और फिर वहां शैतानियां बढ़ती ही चली गईं।'

'मतलब की शैतानियां दोनों ही तरफ से बराबर होती थीं। ये नहीं कह सकते कि केवल मुन्ना ही शैतानी करते थे।'

मेरी इस बात पर बेनज़ीर ने खिलखिला कर हंसते हुए जवाब दिया।

'आखिर मैं कम क्यों रहती?औरत हूँ, क्या सिर्फ इसलिए ?'

मैंने उनकी इस बात का जवाब देने के बजाए सीधे पूछा, 

'मॉडलिंग को लेकर आपका डिसीजन इस शैतानी में खो गया, या...।'

'देखिये हम शैतानियों में नहीं, काम में डूबे रहते थे। बीच-बीच में सांस लेने के लिए शैतानियां कर लिया करते थे। अगले दिन फोन पर ही कम्पनी को मना कर दिया और ट्रेन में रिजर्वेशन देखा तो रिजर्वेशन नहीं मिला। अब यहां रुकना समय बर्बाद करना था, तो हम बस से ही वापसी के लिए तैयार हुए। बड़ी मुश्किल से हमें एक बॉल्वो बस में टिकट मिल गई। रास्ते भर हमारी बिजनेस सहित तमाम बातों पर गुफ्तगू चलती रही। उसी में काशी में ही अपने बिजनेस को शिफ्ट करने का मुन्ना का प्लान भी सामने आया। हम दोनों को लगा कि, जो काम हमारा है, उसके लिए काशी, लखनऊ से कहीं ज्यादा मुफीद है।

हम रात करीब बारह बजे घर पहुंचे। सफर की थकान इतनी थी कि, हम अपने अपने घर वालों से ज्यादा बातचीत नहीं कर सके, तान-कर बेसुध सो गए। घर वाले भी नींद में ही थे। अम्मी दवा के असर के चलते कुछ ज्यादा ही नींद में थी।

अगले दिन मैं अपने समय पर उठी, तैयार हुई। और अम्मी को ढेर सारी बातें बताईं। लेकिन रैंप पर कैटवॉक से लेकर मुन्ना के साथ रोज घूमने, एक ही साथ एक ही कमरे में रुकने जैसी सारी बातें छुपाते हुए। अपने पुरस्कारों से लेकर बिजनेस की भी सारी बातें कीं। यह भी कहा कि, हमारा मन हो रहा है कि अब यह शहर छोड़कर कर काशी ही चलें। अपने काम-धंधे के हिसाब से वह ज्यादा मुफीद है। मेरी इस बात पर अम्मी मुझे एकटक देखती ही रह गईं तो मैंने पूछ लिया, 'ऐसे क्या देख रही हो अम्मी?'

'मैं देख रही हूं कि, हमारी बेंज़ी की उड़ान कितनी ऊंची होती जा रही है। वह बेंज़ी जो अभी कुछ दिन पहले तक घर के बाहर कदम रखती थी, तो उसके पांव लड़खड़ाते थे, मगर अब इतने ताकतवर हो गए हैं कि, कहीं भी, कितनी भी दूर चले जाते हैं। तुझे शुरू से ही कोई सही राह बताने वाला मिल गया होता तो अब-तक तू न जाने कितनी आगे निकल गई होती।' अम्मी से तमाम बातें करने के बाद मैं सेंटर चली गई। करीब दो हफ्ते बाहर रहने के कारण बहुत सा काम इकट्ठा हो गया था।

वहां मुन्ना ने बताया कि, 'सुबह-सुबह कम्पनी के एजेंट का फोन फिर आया था। वह समझाने की कोशिश कर रहा था कि, अगले कई प्रोजेक्ट के लिए जैसी फिगर वाली लड़की उनको चाहिए थी, उस हिसाब से तुम परफेक्ट हो। चाहें तो पांच साल के लिए एग्रीमेंट साइन कर लें। और तमाम बातें भी करता चला जा रहा था, लेकिन मैंने मना कर दिया।'

यह सुनकर मैंने कहा, 'अच्छा! मेरा बदन अच्छा है तो क्या उनकी कम्पनी का सामान बेचने के लिए है, उसे दुनिया को दिखाते फिरें। कैसी फालतू की बातें कर रहा था। सामान मर्दों का था और फोटो के लिए उनको बदन लड़किओं का चाहिए। देखने में एक नम्बर का कमीना लग रहा था। बातें तुमसे कर रहा था और उसकी निगाहें मेरे बदन में जगह-जगह घुसी जा रही थीं। कुत्ते की तरह जुबान लपलपा रही थी।'

'छोड़ो भी, भूल जाओ उसको। अपने काम पर ध्यान दो। यह डिज़ाइन देखो इस तरह की छः हज़ार कुर्तियों और पजामा का ऑर्डर है। तीन महीने में देना है। कर पाओगी?'

'तीन महीने में तो मुश्किल है, चार में कर लुंगी। और कारीगर लगाने पड़ेंगे। मगर यह ऑर्डर कहां से मिल गया, बताया क्यों नहीं कि ऐसा काम है।'

'बिज़नेस या कोई भी काम ऐसे ही किया जाता है। कुछ भी करते रहो, लेकिन ध्यान हमेशा अपने काम से एक मिनट को भी नहीं हटना चाहिए। समझी।'

इतना कहते हुए उन्होंने मेरी नाक पकड़ कर हिला दी, जैसे कि मैं कोई छोटी सी बच्ची हूं।

दो-तीन दिन के भीतर ही हम दोनों ने काम पटरी पर लाकर शादी के बारे में बात करने का पक्का इरादा किया। एक रात खाने-पीने के बाद अम्मी के साथ बैठी मैं टीवी देख रही थी। लेकिन मन मेरा निकाह की बात कैसे शुरू करें, इसी उधेड़-बुन में लगा हुआ था। अम्मी यूं तो आए दिन निकाह की बात उठाती रहती थीं। लेकिन जब से मैं बात आगे बढ़ाने की ठाने बैठी थी, तब से वह इस बारे में बात ही नहीं कर थीं। जैसे कि उनके ध्यान में निकाह की बात रह ही नहीं गई। इधर-उधर की तमाम बातें हो गईं लेकिन अम्मी निकाह को लेकर एक शब्द ना बोलीं। मायूस होकर मैं अपने कमरे में आ गई। मेरा मन काम में नहीं लग रहा था।

रोज की तरह मैं मुन्ना की वीडियो कॉल की इंतजार में थी। रोज से थोड़ा देर में कॉल आई भी। हमारी लंबी बातचीत और रोज की सारी कहानी-किस्से सब हुए। उसी समय हमने महसूस किया कि, अब रात में भी अलग-अलग रह पाना हमारे लिए मुमकिन नहीं है। हमें सोने के लिए भी एक दूसरे का साथ, सहारा चाहिए ही चाहिए। मेरी मायूसी को दूर करने की कोशिश में मुन्ना ने कहा, 'परेशान ना हो। आज नहीं तो कल बात करेंगे। जैसे इतना समय, वैसे ही कुछ और सही।'

बात खत्म करके जैसे ही मैंने सोने की सोची, वैसे ही मेरे दुश्मन ज़ाहिदा-रियाज़ की हमेशा की तरह आवाज सुनाई दी। मैंने मन ही मन कहा, बहुत दिन हो गया आज देखूं इनका क्या हाल है। जब उस पार देखा तो कुछ देर देखती ही रही। मन ही मन कहा यह दोनों कितना प्यार करते हैं। जब देखो प्यार ही करते रहते हैं, थकते ही नहीं। बेटा भी बड़ा हो गया है। यह भी नहीं सोचते कि, कहीं उठ गया तो क्या करेंगे, बेशर्म कहीं के। मैं तो अगर बच्चे हुए तो उन्हें दूसरे कमरे में करके ही कुछ करूंगी, ऐसी लापरवाही, बेशर्मी नहीं करूंगी।

तभी मेरे दिमाग में आया कि, कहीं अम्मी ने निकाह से मना कर दिया तो क्या होगा? तब तो मेरे सारे ख्वाब खाक हो जायेंगे। मैं पूरा जीवन बिना निकाह, बिना बच्चों के ही जाया कर दूंगी। क्या मेरा मुकद्दर यही है, या मुझे भी बहनों, भाइयों की तरह अम्मी के इंकार पर कदम बढ़ाना ही वाजिब रहेगा, या रब मेरी मदद कर। मुझे राह दिखाए मैं क्या करूं। उनके इनकार करने पर अपना जीवन, अपनी खुशी देखूं या अम्मी की इच्छा, उनकी खुशी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दूं राह दिखा, राह दिखा। उलझन इतनी बढ़ गई कि मैं घंटों बाद सो पाई ।