Benzir - the dream of the shore - 26 in Hindi Moral Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 26

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बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 26

भाग - २६

मेरी बात पूरी होने से पहले ही मुन्ना ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और कहा, ' क्या मूर्खों जैसी बात कर रही हो, जान देने से बढ़ कर ना कोई कायरता है, ना मूर्खता। हमें हर हाल में, हर परिस्थितियों के पार जाकर जरूर जीतने की कोशिश करनी चाहिए। हर हाल में जीतना ही चाहिए। जीतने के अलावा और कुछ सीखना ही नहीं चाहिए। दिमाग में हारने की बात लानी ही नहीं चाहिए।'

'तुम सब ठीक कह रहे हो लेकिन।'

'लेकिन-वेकिन कुछ नहीं, दोबारा बोलना तो क्या अपने मन में यह बात सोचना भी नहीं। और सुनो, मेरी भी इतनी उम्र हो गई है। आदमी को समझने में अब मुझे शायद ही कहीं गलती हो। मुझे बीते कुछ महीनों से तुम जितनी बातें बताती आ रही हो, जिस तरह वह मुझसे बातें कर रही हैं। और जिस तरह पहले बाराबंकी फिर इतने दिनों के लिए यहां भेजा यह कोई मामूली बात नहीं है।

इन सारी बातों के पीछे उनके मन मैं कौन सी भावना चल रही है, उसकी आहट को समझने की मैंने बहुत कोशिश की है। और मैं गलती पर नहीं हूं। हमें कहीं से भी उनकी तरफ से कोई एतराज नहीं मिलेगा, हां थोड़ी-बहुत हिचकिचाहट हो सकती है। जो हम बातचीत करके दूर कर देंगे। मेरी समझ में जो अभी तक आया है वह यह कि, तुम्हारी अम्मी के मन में भी हमारी शादी की बातें हैं। उनके मन में यह कन्फ्यूजन होगा कि, कहीं मेरे घर वालों ने मना कर दिया तो क्या होगा? या पता नहीं वह जो सोच रही हैं वह सच है या उनका भ्रम है। यह भी सोचती होंगी कि मेरे साथ तुम्हारा भविष्य, तुम्हारा जीवन सुंदर है कि नहीं। लेकिन इन बातों की सच्चाई कैसे जाने-समझें यह नहीं समझ पा रही हैं। मैं उन्हें उनकी इस परेशानी से जल्दी से जल्दी मुक्ति दिलाना चाहता हूं। और तुम तो खुद ही यही सारे तर्क देकर पहले ही कह चुकी हो कि उनकी तरफ भी शायद ऐसा ही चल रहा । फिर इस समय ऐसा क्यों कह रही हो?'

'तो उन्हें इस उलझन से कैसे निकालोगे ?'

'बताया तो, तुम बात शुरू करो या मैं आकर कहूं। लेकिन तुम्हारा भविष्य, जीवन मेरे साथ कितना सुरक्षित है, इसका भरोसा तो उन्हें तुम ही दिला सकती हो। क्योंकि मेरे साथ तुम रहती हो, हर तरह की बातें तुम करती हो, उन बातों के आधार पर ही तुम उन्हें विश्वास दिला सकती हो कि सही क्या है ?'

'तुम, सही कह रहे हो, जब एक ना एक दिन बात करनी ही है, तो और समय बर्बाद करने से क्या फायदा। यहां से चलने के कुछ ही दिन बाद मैं बात उठाऊँगी। कहूंगी 'अम्मी तेरी-मेरी खुशी इसी में है।'

मैंने देखा कि मेरी बात से मुन्ना ने जैसे बड़ी राहत महसूस की है। लेकिन साथ ही कुछ सोच भी रहे हैं, तो मैंने पूछ लिया, 'इतना डूबकर क्या सोच रहे हो?' तो उन्होंने कहा, 'सोच यही रहा हूं कि, हम दोनों जैसा सोच रहे हैं, बात कहीं इसके उल्टी ना हो। कहीं तुम्हारी अम्मी या मेरे घर वाले ही धर्म की दीवार बीच में ना खड़ी कर दें। तब हमारे-तुम्हारे सामने इस दीवार को गिरा देने या उसे पार कर जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचेगा।'

'तुम अभी तो यही दुआ करो कि ऐसा ना हो। यदि हुआ तो हम यह रास्ता भी अपना लेंगे। हम इतने समझदार तो हैं ही, कि इस रास्ते पर चलकर भी अम्मी, अपने परिवार को सिर आंखों पर बिठाए रहेंगे। उनकी बार-बार सेवा करके उन्हें खुश कर लेंगे। हम अपनी मंजिल पा ही लेंगे।'

मेरी इस बात पर उन्होंने बड़े प्यार से मुझे बांहों में भर कर कहा, 'चलो खाना खाते हैं।'

खाने के बाद हम फिर फैशन शो की बातें करने लगे, मैंने बताया कि वहां मेरे साथ क्या-क्या हुआ, मैंने उनसे कहा कि, 'वहां रैंप पर जाने से पहले जब तुमने तैयार होने के लिए कहा तो मैंने सोचा कि, जैसे घर पर तैयार होते हैं, वैसे ही खुद तैयार होना होगा। हाथ-मुंह धोकर पाउडर-साउडर लगा लेंगे बस। जो कपड़े शो करने हैं, वह दो मिनट में पहन लेंगे। तुम वहां क्या बोलते हैं कि, ग्रीन रूम में छोड़ कर चल दिए, मैंने समझा किसी कोने में तैयार होना होगा, लेकिन जब-तक मैं कुछ समझूं तुम उस औरत से पता नहीं क्या बात कर चल दिए।'

'तुम बातों को समझो पहले, वहां घर में तैयार होने जैसा नहीं होता है। ऐसे शो में पूरी मेकअप टीम काम करती है। मॉडलों को कुछ नहीं करना होता, मेकअप वाले जो कहें, बस उन्हें उसी तरह करते रहना होता है।'

'मुझे क्या मालूम था, यह सब पहली बार देख रही थी। जिससे कह कर गए थे, वो दो मिनट बाद ही मेरा मेकअप करने लगी। काम बहुत बढियाँ और तेज़ कर रही थी। उसके साथ की बाकी औरतें भी ऐसी ही थीं। मैंने सोचा चार-छः सौ रूपये के लिए यह सब क्या-क्या कर रही हैं।'

'क्या-क्या कर रही थीं?'

'यह पूछो क्या नहीं कर रही थीं। कोई पैर-हाथ के नाखून ठीक कर रहा था, कोई नेल पॉलिश कर रहा था, तो कोई बाल संवारे चली जा रही थी। कोई भौहें, तो कोई पूरे हाथ को। सब कुछ। मेरी कोहनी, पैर देख कर वह पहलवान सी औरत बोली, 'आपने वैक्सनिंग नहीं करवाई।' मेरी कुछ समझ में ही नहीं आया कि, क्या पूछ रही है। दूसरी औरत मेरी हालत समझ गई कि, मैं कुछ समझ नहीं पायी तो उसने समझाया कि, 'ऐसे शो से पहले शरीर के रोएं क्रीम या शेविंग मशीन से साफ कराए जाते हैं। जिससे स्किन स्मूथ और ग्लोइंग लगे।' मैंने सोचा यह कौन सा तमाशा है।'

'तमाशा नहीं, यह सब करना पड़ता है। रैंप पर तेज़ लाइट, कैमरों के फ्लैश मैं सब-कुछ बहुत साफ-साफ दिखता है। देखने वालों को कुछ स्पेशल दिखे, फोटो अच्छी आए। इसलिए यह सब तैयारी करनी पड़ती है। ग्लैमर की दुनिया छोड़ो, आजकल तो घरेलू लड़कियां, औरतें भी सुन्दर दिखने के लिए रेगुलरली वैक्सनिंग कराती हैं या फिर खुद ही अपने आप घर पर ही कर लेती हैं।'

'कमाल है, मेकअप वालियों को इन सब कामों के लिए कितना पैसा मिल जाता है कि दूसरे के पैर से लेकर नाखून तक की साफ-सफाई करने लगती हैं।'

'अब मुझे ज्यादा तो पता नहीं है, लेकिन तुम्हें तैयार करने के लिए पांच हज़ार रुपये दिए थे।' 'क्या! पांच हज़ार रुपये।' मैं सुनकर एकदम चौंक गई।

'हाँ पांच हज़ार। उसे दूसरी कम्पनी ने हायर किया हुआ था। मुझे जब पता लगा मेकअप वगैरह के बारे में, तो ऐन टाइम पर कोई रास्ता ना देख कर मैंने उसी से बात की। पहले तो मना कर दिया। बहुत कहने पर तैयार हुई तो दस हज़ार रुपये बोली। फिर बड़ी किचकिच के बाद पांच में तैयार हुई।'

'तुम एक बार पूछ तो लेते, बेवजह इतना पैसा बर्बाद किया। मैं खुद ही जितना हो सकता, उतना कर लेती। मालूम होता तो मैं मेकअप कतई ना कराती, भले ही रैंप पर जाने को मिलता या ना मिलता।'

'मेकअप का कोई सामान भी तो नहीं था। कहां से कर लेती? वैसे उसने क्या-क्या किया?' 'किया क्या, पहले बाल शैंपू किए, चेहरा साफ किया, फिर ड्रेस कौन सी पहननी है, और शरीर का कितना हिस्सा खुला रहेगा यह पूछा, इसके बाद तौलिए से इतना रगड़-रगड़ कर पोंछा कि, अभी तक जलन हो रही है।

लेकिन चेहरा बहुत संभाल कर, जैसे कोई मासूम से बच्चे को पोंछ रहा हो। फिर ड्रेस पहनने के लिए बोला, मैंने ड्रेस निकाली तो बोली, 'वाओ, वेरी नाइस।' मैं इतना अनुमान लगा पाई थी कि ड्रेस की तारीफ कर रही है। ड्रेस पहनने के लिए मैं इधर-उधर देखने लगी, वहां दर्जनों लड़कियां तैयार हो रही थीं। सबके सामने ही बदल रहीं थीं, मर्दों की तरह तौलिया लपेट कर। तो कोई तीन-चार लड़कियां दीवार बनकर खड़ी हो जातीं, उनकी ही आड़ में। उन्हें देखकर मैंने सोचा बेशर्म यह करने की भी क्या जरूरत है? वह चार लड़कियां तो सब कुछ देख ही रही हैं। यह सब देखकर मैंने सोचा यहां से भले ही खाली हाथ लौटना पड़े, लेकिन ऐसी बेशर्मी ना करूंगी। मुझे हिचकिचाता देखकर पहलवान बोली, 'यहाँ अलग कोई रूम तो है नहीं, चाहें तो वॉशरूम में चेंज कर लें।' ये बात मुझे सही लगी तो मैं वही चेंज करके आई। मुझे देख कर बोली, 'ब्यूटीफुल।' फिर बिना कुछ कहे ही मेरी ड्रेस भी ठीक करने लगी।

एक औरत की ओर देखकर बोली, 'वेरी नाइस, सो फोटोजेनिक फेस। इस ड्रेस में बहुत गॉर्जियस लगेंगी।'और तमाम बातें अंग्रेज़ी में किए जा रहीं थीं। मुझे उन सबका काम अच्छा लगा, लेकिन।'

'लेकिन? संकोच कैसा। बात को साफ-साफ बोला करो ना।'

'असल में वॉशरूम में ड्रेस चेंज कर ली। मैं अपनेे हिसाब से सब ठीक समझ रही थी। लेकिन वह उसे ठीक करने लगी। कभी पीछे पीठ में हाथ डालकर ठीक करती तो ऐसा लगता कि, जैसे मेरी पूरी पीठ खंगाल कर न जाने क्या ढूंढ रही है।

यही हाल पेट की तरफ था। ऊपर गर्दन की तरफ से सब ठीक कर लिया तो सामने खड़ी होकर मुझे ऊपर से नीचे तक देख कर बोली, 'आप अपने एसैट्स को जितना ज्यादा गॉर्जियस बनाएंगी, जजेस उतना ही ज्यादा इंप्रेस होंगे। ज्यादा मार्क्स मिलेंगे, तभी विनर बन पाएंगी।'

अब वह पूरी बात हिंदी में कर रही थी। बात पूरी करते-करते छातियों को ऊपर की ओर उठाते हुए बोली, 'परफेक्ट।' उसके कहने पर शीशे में देखा तो उसे शुक्रिया बोले बिना नहीं रह सकी। उसने आगे-पीछे, दाएं-बाएं करके सब-कुछ ऐसे जमाया कि लाख गुना ज्यादा अच्छे लगने लगे।'

'क्यों, उसने ऐसा क्या कर दिया था, जो तुम खुद नहीं कर पा रही थी।'

'उसने भीतरी कपड़े को ऊपर खींच कर, फिर दो-तीन जगह सेफ्टी पिन लगा कर, ऐसे फिट किया कि छातियां एकदम ऊपर को उठी हुई ऐसी दिखने लगीं, जैसे कि सोलह-अट्ठारह की उम्र में हूं। मैंने सोचा जो भी हो पहलवान में काबिलियत तो है ही।'

'काबिलियत तो तुम्हारी है। तुम हर एंगल से खूबसूरत हो, तभी तो वह तुम्हें संवार सकी। खूबसूरती ही ना होती तो किसे संवारती, खुद को।'

यह कहते हुए मुन्ना ने पलक झपकते ही एक खूबसूरत सी शैतानी कर दी। जिससे मैं शर्मा कर उनकी ही बाहों में सिमट गई।'

बाकी बचे दिनों को हम दोनों ने अपने-अपने बिजनेस को और आगे बढ़ाने के लिए नये रास्तों को तलाशने में लगा दिया। जितने रास्ते तलाशे जा सकते थे, उतने हमने तलाशे। हमें कई रास्ते दिखने लगे, लेकिन सब में पैसे ज्यादा लगने थे। रिस्क फैक्टर ज्यादा हाई था। लेकिन हम यह तय कर चुके थे कि, हमें मोर रिस्क, मोर गेन के सिद्धांत पर ही आगे बढ़ना है। साथ ही काम करने के वर्तमान तरीके से बाहर निकलना है। मुन्ना ने अपने विचारों और रणनीति में परिवर्तन को लेकर धीरे-धीरे मुझे समझाना शुरू किया। मगर कार्यक्रम समापन समारोह के ठीक आधे घंटे पहले हमारे सामने एक बड़ी अजीब स्थिति पैदा हो गई।

दिल्ली बेस्ड एक एड कम्पनी का सीनियर व्यक्ति हमारे पास, साथ काम करने का ऑफर लेकर उपस्थित हुआ। यह हम दोनों की सोच से परे की बात थी। कम से कम मेरे लिए तो थी ही। उस व्यक्ति ने अपने एक एड प्रोजेक्ट के लिए मॉडलिंग का ऑफर दिया। उसने प्रोजेक्ट को लेकर जो डिस्कस किया, उसमें मुख्य काम मेरे लिए ही था। मुन्ना ने पता नहीं क्या सोच कर उसे तुरन्त कोई जवाब नहीं दिया। उससे सोच कर बताने का समय ले लिया। कहा कि, 'हमें थोड़ा समय दीजिए, हम आपको अपना डिसीजन कल बताएंगे।' उस व्यक्ति ने जाते-जाते अपना सेल नंबर दिया और मुन्ना का ले लिया। उसकी सारी बातें करीब-करीब अंग्रेज़ी में थीं। इसलिए मेरी समझ में कुछ नहीं आया था।

वैसे तो मुन्ना ने काशी से वापसी कार्यक्रम समापन वाले ही दिन करने का तय किया था। लेकिन इस कम्पनी के ऑफर ने हमें दो दिन के लिए रोक लिया। हम बड़े असमंजस में थे। क्योंकि पैसा हमारी उम्मीदों से भी ज्यादा ऑफर किया गया था। दूसरे वह प्रोजेक्ट का कुछ हिस्सा उसी समय शूट करना चाहते थे, जो काशी के कई पुराने मंदिरों और घाटों पर होना था, प्रोजेक्ट्स का बाकी बड़ा हिस्सा दो हफ्ते बाद अन्य शहरों में शूट होना था। मुन्ना से इस ऑफर को जब मैं समझ गई, तो उसे मैं लगे हाथ कर लेना चाहती थी। लेकिन मुन्ना यह सोचकर असमंजस में थे कि इस फील्ड में आगे बढ़ा जाए कि नहीं।