Benzir - the dream of the sea shore - 25 in Hindi Moral Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 25

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बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 25

भाग - २५

'लेकिन! जब निश्चिंत हो गई हो तो फिर मन में लेकिन क्यों बना हुआ है?'

'नहीं मेरा मतलब है कि तुम्हारे घर वाले हमारे रिश्ते को मान लेंगे, अगर ना माने तो, तब क्या होगा, तब तुम कहीं पीछे तो नहीं हट जाओगे ?'

'देखो मैंने घर वालों से पूछकर तुम्हें नहीं अपनाया, ठीक है। मैंने अपनी मर्जी से तुम्हें अपनाया। इसलिए अब किंतु-परंतु का कोई मतलब नहीं है। हमारे रिश्ते को मानेंगे तो ठीक है, नहीं तो अलग रहेंगे। अपनी दुनिया अलग बसायेंगे। इतनी सीधी सी, सामान्य सी बात को तुम अपनी परेशानी का कारण क्यों बनाए हुए हो।'

'डर लगता है, कि कहीं तुम्हारे घर वालों ने हंगामा बरपा कर दिया तो क्या होगा, और लोग भी तमाशा कर सकते हैं कि एक मुस्लिम को उन्होंने अपने बेटे की बीवी कैसे मान लिया।

मन के कोने में डर अम्मी को लेकर भी रहता है कि, कहीं उनके लिए इस रिश्ते को लेकर मैंने जो अंदाजा लगा रखा है, कहीं वह गलत ना हो। वह भी कोई हंगामा ना खड़ा कर दें। मेरे अनुमान पर वाकई पानी ना फेर दें। कहीं वह भी कयामत ना बरपा कर दें कि, हमारा मजहब एक नहीं है तो हम कैसे एक हो सकते हैं। कैसे रिश्ता कर सकते हैं। कहीं वह अपनी जान दे देने की बात करके मेरे लिए यह हालात न पैदा कर दें कि मुझे या मुन्ना में से किसी एक को चुन लो। तब मैं क्या करूंगी?'

'तुम्हें इस बात को लेकर भी किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है। किसी भी तरह की दुविधा की बात नहीं है। ऐसी बात हो तो बेहिचक अम्मी को चुनना।'

'क्या!'

'हाँ, मैं तुमसे बिना किसी हिचक कहता हूं कि, अम्मी को ही चुनना। क्योंकि इस उमर में तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत उन्हीं को है। तुम ही उनके बुढापे की लाठी हो। बिना तुम्हारे सहारे के वह जीवन की गाड़ी एक कदम भी नहीं बढ़ा पाएंगी। तुम्हारे साथ छोड़ने पर दुनिया तुम्हें स्वार्थी, बदतमीज कहेगी, और मुझे यह बिल्कुल सहन नहीं होगा कि दुनिया मेरी बीवी को ऐसा कुछ कहे।'

'तो तुम मुझे छोड़ दोगे?'

'इस जीवन में तो कभी नहीं ।'

मुन्ना ने मुझे बाहों में भर कर चूमते हुए कहा तो मैंने सवालिया निगाहों से उन्हें देखते हुए कहा, 'दोनों बातें एक साथ कैसे मुमकिन होंगी।'

'सुन जानेमन, पहली बात तो यह नौबत आएगी ही नहीं। तुम कह ही चुकी हो कि, तुम्हारी अम्मी ने अगर इतने दिनों के लिए भेज दिया है, तो कुछ तो ऐसा है, जिससे यह कह सकते हैं कि, वह हमारी खुशियों के बीच में नहीं आएंगी। हमें खुशी-खुशी जीवन में आगे बढ़ने देंगी। एक मिनट के लिए तुम्हारी आशंका अगर सच निकली भी तो यकीन करो कि, मुझे खुद पर भरोसा है कि, मैं उन्हें मना लूंगा। अपने घर वालों को भी। फिर कहता हूं कि तुम्हें इस बारे में अब कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं है। आओ अब सोते हैं, कल कुछ ज्यादा ही काम है, उसे करना भी है। लाइट ऑफ करूं क्या?'

'एक मिनट अम्मी से बात कर लूं। देखूं दवा खाई कि नहीं। दवा को लेकर बहुत लापरवाह हैं।' मैंने मोबाइल उठाते ही मुन्ना से एकदम शांत रहने के लिए कहा। फिर इत्मीनान से छः सात मिनट बात की। मेरा अनुमान सही था, वह रात वाली दवा भूले बैठी थीं। जब दवा खा ली तभी मैंने बात खत्म की और मोबाइल बेड के किनारे स्टूल पर रखते हुए कहा, 'अम्मी की इसी आदत से मुझे चिंता बनी रहती है। मन तो करता है कि, अब कहीं भी चलूं तो उन्हें साथ लेकर ही चलूं। अकेले छोड़ना ठीक नहीं है।'

'चिंता मत करो, मेरे घरवाले उनका पूरा ध्यान रख रहे हैं। तुम परेशान ना हो इसीलिए कल तुम्हें एक बात बताई नहीं।'

'क्या?'

'कल सुबह, जब भाई चाय-नाश्ता लेकर गया तो देखा कि उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। पूछने पर कहा, 'नहीं सब सही है। ऐसे ही थोड़ी सी उलझन है। कुछ देर में सही हो जाएगी ।' पर भाई नहीं माना, उसने अम्मा को बताया। अम्मा ने डॉक्टर बुलाकर उनका चेकअप करवाया। बीपी थोड़ा डिस्टर्ब था। दवा नहीं खाई थी। भाई दवा वगैरह खिलाकर लौटा। पूरे दिन में अम्मा दो-तीन बार गईं। इसलिए कोई चिंता करने की बात नहीं है। तुम वहां रहकर उनकी जितनी देखभाल कर सकती हो, उनकी उससे कम देखभाल नहीं हो रही है। अच्छा अब लाइट ऑफ करूँ ?'

'हाँ, करो, लेकिन कल की तरह शैतानी नहीं करना।'

'अच्छा, मैं शैतानी करता हूं।'

उन्होंने मुझे जकड़ते हुए कहा। 'हाँ, बहुत-बहुत शैतानी करते हो। रात-रात भर करते हो।' मैंने खिलखिलाते हुए कहा तो, मुझे फिर छेड़ते हुए पूछा, 'अच्छा, सच-सच बताना शैतानी में मजा तो खूब आता है ना? बोलो।' उसने कई बार पूछा। तो मैं बोली, 'हूँ..।'

फिर उन्हीं से लिपट गई। तो वह छेड़ते हुए बोले, 'तुमने बोला लाइट बंद करने पर शैतानी होती है। तो चलो आज लाइट बंद ही नहीं करते। शैतानी भी खूब जी भर कर करते हैं। देखें लाइट में शैतानी करने में ज्यादा मजा आता है कि, लाइट ऑफ करके ज्यादा मजा आता है।' उन्होंने बात पूरी करते ही जो हरकतें शुरू कीं, उससे मैं अफना कर बोली, ' नहीं लाइट ऑफ करो।' लेकिन वो नहीं माने तो, मैं भी उन्हीं जैसी हो गई।'

'आपकी इजाजत हो तो मैं एक बात कहना चाहता हूं।'

'इजाजत मांगने की ज़रूरत नहीं है।आप कहिए ना। बड़ी बात तो यह है कि, आप कुछ ज्यादा ही चुप रहते हैं।'

'जिससे ज्यादा सुन सकूं...। मैं यह कहना चाहता हूं कि, आप अपने ही जीवन के हर पहलू को इतना एन्जॉय करते हुए बता रही हैं, जैसे कि, कोई रोमांटिक उपन्यास पढ़ रही हों, जैसे अपने उतार-चढाव भरे अतीत को एन्जॉय कर रही हों ।'

'अब इतना तो डेप्थ में नहीं जा पाऊँगी। लेकिन अतीत में इतनी उदाशियां झेलीं हैं। इतने आंसू बहे हैं कि, अब वह दिन याद करके यकीन ही नहीं होता कि, ज़िंदगी ऐसे दौर से भी गुजरी है। आपने सही कहा, अपने अतीत की बात करके मुझे यही अहसास होता है, जैसे मैं  कोई कहानी पढ़ रही हूँ।'

'जब आदमी अपने हाथों, अपनी किस्मत लिखने लगता है, तो उसके जीवन की किताब में उदासियां, आंसू किसी पन्ने में नहीं होते।'

मेरी इस बात पर वह हल्के से हंस कर कुछ देर चुप रहीं। फिर बोलीं, 'अगला पूरा दिन हमारा बहुत थकान भरा रहा और थोड़ा राहतकारी भी, क्योंकि हम दोनों की रिहर्सल काम आ गई थी। रैंप पर हम दोनों ने प्रोफेशनल, नॉन-प्रोफेशनल दोनों तरह के मॉडलों के साथ काम किया। मुझे मेरे लुक और कुछ अलग ही अंदाज के साथ शुरू की गई वॉक ने जजों की नजर के साथ-साथ दर्शकों के बीच भी काफी ख़ास बना दिया। हालांकि मुझे मेरे वॉक के लिए तीसरा और मेरी ड्रेस के लिए दूसरा स्थान मिला। लेकिन अव्वल आईं मॉडलों के मुकाबले मेरी उपलब्धि इस मामले में ज्यादा थी कि, मैं अत्यंत कट्टरवादी सोच वाले परिवार से नाम मात्र को पढी-लिखी ऐसी लड़की थी, जिसका मॉडलिंग की दुनिया से कोई नाता-रिश्ता कभी ख्वाबों में भी था ही नहीं। कभी रैंप पर वॉक करेगी, इस बारे में कुछ घंटे पहले तक उसने सोचा भी नहीं था। जिस बात को मैं मुन्ना के दिमाग की खुराफात समझ रही थी वास्तव में वही निर्णायक और उपलब्धि लाने वाला कदम रहा।

मुझे पुरस्कार देते समय जब एनाउंसर ने संक्षिप्त डिटेल बताई कि, ड्रेस की डिज़ाइन से लेकर उसकी स्टिचिंग तक मॉडल ने खुद की है, और रैंप पर इसके पहले चलना तो क्या उन्होंने सोचा तक नहीं था, तो काफी देर तक तालियां बजती रहीं। मुन्ना को भी पुरस्कार मिला। एक अच्छे वॉक के लिए और दूसरा गुड फिजिक के लिए। अपने पुरस्कारों के साथ हम दोनों लौटे तो खुश थे। लेकिन मॉडलिंग में मिली सफलता से ज्यादा खुश इस बात के लिए थे कि, बिजनेस के लिए भी रास्ते और ज्यादा खुल गए थे।

वापस होटल आकर मुन्ना ने कहा, 'मुझे यह तो यकीन था कि तुम रैंप पर घबराओगी नहीं, अपना वॉक पूरा कर लोगी l लेकिन तुम कमर को जिस तरह लोच देकर बलखाती हुई चली, उससे लोग तो लोग, मैं खुद आश्चर्य में पड़ गया। मेरे मन में आया कि, हो ना हो तुम घर में फैशन शो के बहुत से वीडियोस देखती रही हो, बड़ी बारीकी से अपने दिलो-दिमाग में सब कुछ बैठा कर रखा हुआ है। लेकिन तुम कह रही हो कि, मोबाइल पर कभी-कभार ही देखती हो। इस हिसाब से तो तुम्हें फर्स्ट प्राइज मिलना चाहिए था।'

'सच।'

'और क्या, वहां किसी को यह भी पता नहीं था कि, तुम क्या थीं? कैसे यहां तक पहुंची हो। सब तुम्हारी तारीफ कर रहे थे। खासतौर से जब तुम्हारी हल्के ख़म के साथ कमर लचकती थी, तो लोग बोल रहे थे कि, बाकी तो ऐसे स्टेप ले ही नहीं पा रही हैं।'

मैं मुन्ना के सीने पर सिर रखे लेटी, उनकी एक हथेली को पकड़े, उसकी उंगलियों से खेल रही थी। उनकी बात सुनते ही मैं एक झटके से उठ बैठी। और उन पर झुकते हुए पूछा, सच कह रहे हो, मजाक तो नहीं कर रहे हो ना।'

'सही कह रहा हूं विश्वास करो।'

मैं फिर उन्हीं के सीने पर सिर रखकर लेट गई। मेरा मुंह मुन्ना की तरफ था। मैंने बड़े प्यार स्नेह से देखते हुए कहा, 'यह सब तुमने किया है। मैं तो घर केअंधेरे कोने में पड़ी एक बेकार चीज की तरह थी। जिसकी ना कोई अहमियत थी, ना कोई उसे पूछने वाला था, ना कोई रास्ता दिखाने वाला था।

अम्मी भी बेचारी जितना हुनर उनके पास था, वह सब सिखाती गईं। जितना रास्ता दिखा सकती थीं, वह दिखा दिया। और फिर बोलीं, 'बेंज़ी, अब तू अपना रास्ता खुद बना। अपने हिसाब से आगे बढ़। मैं जीवन भर तेरे साथ ना चला पाऊँगी । अब तू खुद अपनी खुद-मुख्तार बन। मेरी तो अर्जी कब की परवरदिगार के पास लग चुकी है। न जाने कब बुलावा आ जाए। तुझे ठीक से अपना रास्ता तय करते देख लूं, तो मुझे कुछ राहत मिले। एक बात का तो कयामत तक मलाल रहेगा कि, जीते जी तेरा निकाह नहीं कर पाई। तुझे इतनी बड़ी जालिम दुनिया में अकेला ही छोड़कर चल दी।'

जब-तब बराबर कहती रहती हैं, 'बेंज़ी, मुकद्दर अगर कभी किसी भले इंसान को सामने ला खड़ा करे, तो उसे ठुकराना नहीं, निकाह कर लेना। अकेले ज़िंदगी कैसे कटेगी, अपनों का तो हाल देख ही रही हो कि, पराए से भी ज्यादा पराए हो गए हैं। कौन कहां है, यह तक पता नहीं है, तो तुझे कहां कोई पूछेगा।'

अम्मी भाई-बहनों को याद करके उन सबके बेगानेपन से बहुत दुखी रहती हैं। आए दिन रोती हैं। बेंज़ी, बेंज़ी बस यही कहकर रोती हैं।' बात पूरी करते-करते मैं खुद ही सुबकने लगी तो उन्होंने मेरा सिर सहलाते हुए कहा, 'रोने की जरूरत नहीं है। थकने-हारने से काम नहीं चलेगा। आज ही नहीं, हमेशा ही इस दुनिया में वही आराम से रह पाया है, जिसने हिम्मत नहीं हारी, डटा रहा, अपने हाथों अपनी किस्मत लिखी। हार मान लेने वाले को यह दुनिया जीने नहीं देती।'

मुझे चुप कराने के बाद वह बोले, 'तुम्हें और तुम्हारी अम्मी को इस बात का डर रहता है कि, अगर उन्हें कुछ हो गया तो फिर तुम्हारा क्या होगा? तुम दुनिया में अकेली कैसे रहोगी? क्या तुम्हें मेरी बात पर भरोसा नहीं है कि, मैंने तुम्हें जीवन भर के लिए अपनाया है। रस्मों-रिवाज भले ही हमने पूरे नहीं किये हैं, लेकिन हम पति-पत्नी तो हैं ही। आज नहीं तो कल बच्चे भी पैदा करेंगे, पैरेंट्स भी बनेंगे।'

'मुझे यकीन है, क्योंकि मैं सब जानती हूं, लेकिन अम्मी को तो यह सब पता नहीं है ना, कि हम पति-पत्नी बन चुके हैं। इसलिए वह परेशान रहती हैं।'

मेरी बात सुनकर, कुछ देर सोचने के बाद मुन्ना ने कहा, 'सुनो यहां से चलने के बाद एक-दो दिन आराम करेंगे। उसके बाद अपनी अम्मी से शादी की बात चलाना। उन्हें समझाना, कहना कि, उनकी सारी चिंता दूर हो जाएगी कि, उनके बाद तुम्हारा क्या होगा?'

'मैं पहले ही यह सोचे हुए हूं। लेकिन डरती हूं कि, कहीं उन्होंने मना कर दिया तो क्या होगा, तब मैं क्या करूंगी, अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती और अम्मी को भी छोड़ नहीं पाऊँगी । ऐसे में मेरे सामने मरने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचेगा।'