Benzir - the dream of the shore - 24 in Hindi Moral Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 24

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बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 24

भाग - २४

खाना खाने के बाद हाथ-मुंह धोकर बाहर आते हुए मुन्ना ने कहा, 'कॉन्फिडेंस बढ़ाने का रास्ता मिल गया है।'

मैंने कहा, 'खाना खाते ही मिल गया।'

हाँ, मैं कह रहा था ना कि, भूखे पेट भजन भी नहीं होता।'

'कौन सा रास्ता है, बताओ।' डिस्पोजेबल बर्तन बटोरते हुए मैंने कहा।

'अरे मिस मॉडल जी, मुंह पर लगा खाना तो साफ करके आओ, जल्दी क्या है। अभी पूरी रात बाकी है।'

अपनी बात मुन्ना ने बड़ी अर्थ भरी नजरों से मुझे देखते हुए कहा और हल्के से आंख मार दी। उसका आशय समझने में मुझे देर नहीं । मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा, 'आती हूं। अभी देखती हूं तुम्हारे कॉन्फिडेंस बढ़ाने वाले रास्ते को।'

हाथ-मुंह धोकर तौलिए से पोंछते हुए, मैं भी मुन्ना के बगल में जाकर बैठ गई। वह बेड के सहारे पीठ टिकाए बैठा हुआ था। पैरों पर एक तकिया रख कर, उसी पर लैपटॉप खोले हुए था। यूट्यूब पर किसी फैशन शो का वीडियो चल रहा था। रैंप पर मेल-फीमेल दोनों ही मॉडल नेकेड ही मूव कर रहे थे। किसी के हाथ में छोटे से सजे-धजे कुत्ते की चेन थी, तो किसी के गले में केवल स्कॉर्फ, तो किसी के होठों में सिगार दबी हुई थी। सभी बिल्कुल नेकेड कैटवॉक कर रहे थे। जिन्हें देखकर मैंने कहा, 'ये क्या? तुम तो कॉन्फिडेंस का रास्ता ढूंढ रहे थे। यह क्या देख रहे हो मिस्टर मॉडल।'

'यही है कल के लिए कॉन्फिडेंस बढ़ाने का एकमात्र रास्ता।'

'मैं समझी नहीं तुम क्या कह रहे हो?'

'समझाता हूं, अभी तुमको पहाड़ी पर आदमी ढोने के बारे में बताया था कि, कैसे वह पत्थर रखकर चलते हैं। फिर उतार देते हैं। इससे उनके तन-मन को लगता है कि जिस आदमी को ढो रहे हैं उसका वजन हल्का हो गया है। और वह आसानी से ऊपर अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है। हम भी इसी सायक्लॉजी को अपनाएंगे। जिससे आसानी से अपनी मंजिल पर जा सकें। फैशन शो में हिस्सा लेते समय हम कहीं शर्म-संकोच से बैठ ना जाएं, बीच में ही रैंप से वापस ना आना पड़े। इसलिए इस ख़ास काम के लिए हमें तैयारी भी ख़ास ढंग से करनी है। और अभी ही करनी है, क्योंकि टाइम नहीं है। कल ही हमारे लिए एक तरह से निर्णय का दिन है। फाइनल है।'

'तो बताओ क्या करना है, मैं तो तैयार हूं हर कोशिश करने के लिए।'

'तो चलो, सारे कपड़े उतारो। मैं भी उतारता हूं।'

सुनते ही मैं चौंक कर बोली, 

'क्या ?'

'चौंक क्यों रही हो, यदि इस नेकेड फैशन शो के मॉडलों की तरह, हम अभी रिहर्सल कर लेंगे तो कल के फैशन शो में ड्रेस पहनकर रैंप पर चलने में हम दोनों को कोई हिचक नहीं होगी। हम दोनों सबसे ज्यादा कॉन्फिडेंस के साथ कैटवॉक कंप्लीट करेंगे। वहां हमारी सफलता हमारे लिए रास्ते खोल देगी। हम लोगों के पास इतने पैसे तो नहीं हैं कि, हम अपने प्रोडक्ट के लिए मॉडल हायर कर सकें। खुद करने से दो फायदे होंगे। एक तो पैसे की बचत होगी। दूसरे अगर अच्छी पोजीशन पर हिट कर गए तो हमारे प्रोडक्ट के लिए रास्ते खुल जायेंगे। हमें मीडिया में इस बात के लिए भी एक्स्ट्रा कवरेज मिलेगी कि कम्पनी ओनर ने अपने प्रोडक्ट के लिए खुद मॉडलिंग भी की। अपने प्रोडक्ट को प्रमोट किया। मॉडलिंग कर अन्य यूथ एन्टरप्रन्योर के लिए एक एग्जांपल सेट किया है। इसलिए चलो शुरू हो जाओ।'

इतना कह कर बेनज़ीर अचानक मुझसे मुखातिब हो बोलीं, 'आप सोच रहे होंगे कि, हम दोनों क्या-क्या मूर्खता करते रहते थे, लेकिन आप यकीन कीजिये, यहां तक हम ऐसे ही रास्ते तय करके पहुंचे हैं ।'

'नहीं मैं ऐसा बिलकुल नहीं सोच रहा, मैं यह सोच रहा हूँ कि दुनिया अपने लक्ष्य को पाने के लिए जिन रास्तों पर चल कर आगे बढ़ती है, उन रास्तों के बारे में आप दोनों सोचते ही नहीं, अपने लिए पहले आप रास्ता बनाते हैं, फिर उस पर आगे बढ़ते हैं। इस बिंदु पर एक बहुत बड़े कवि हुए हैं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, उनकी एक विख्यात कविता ''लीक पर वे चलें'' की चंद लाईनें याद आ रही हैं कि, ''लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं, हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।'' आप दोनों जैसे इस कविता को ही चरितार्थ करने में लगे हुए हैं।मैं यही सोच रहा था। '

मेरी बात पर बेनज़ीर ने मुस्कुराते हुए कहा, 'इतनी बड़ी-बड़ी बातें मेरी समझ में नहीं आतीं, उस समय मुन्ना से भी मैंने यही कहा, छोटी-छोटी बातें करो। इतनी बड़ी-बड़ी बातें हमारी समझ में नहीं आ रही हैं।'

'समझती क्यों नहीं। छोटी बातें, छोटी ही सोच रखेंगे तो हम छोटे ही रह जाएंगे। जैसी हमारी सोच रहेगी हम वैसे ही बनते चले जाएंगे। इतनी छोटी सी बात तुम क्यों नहीं समझ रही हो। तुमने जब बड़ा सोचा, आगे बढ़ने के लिए रास्ते ढूढ़ने, बनाने लगी, तो आज यहां तक पहुंच गई। तुमने जो नया सोचा, नई ड्रेसेज बनाई हैं, उन्हें दुनिया के सामने लाओगी भी तो तुम्हीं। देखो आगे बढ़ जाओगी तो दुनिया तुम्हें सैल्यूट करेगी, वरना कोई तुम्हें पूछेगा भी नहीं। तुम्हीं बताओ तुम क्या चाहती हो, इतना आगे बढ़ कर, यहां तक आकर, कुछ पाकर वापस चलना चाहती हो जिससे कि अपनी अम्मी को खुशी दे सको, या खाली हाथ चलकर मायूस करना चाहती हो। मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डाल रहा हूं। खुशी-खुशी तुम्हारी मर्जी हो तो करना, नहीं तो कोई बात नहीं।'

'मुझे बहुत-बहुत आगे बढ़ना है। अम्मी ने भी इसीलिए भेजा है। अच्छा चलो, पहले तुम करो, फिर मैं करूंगी।'

मेरे इतना कहने पर जब मुन्ना ने नेकेड मॉडलों की तरह, नेकेड ही चलना शुरू किया तो मैं हंस-हंस कर लोटपोट होने लगी। इस पर मुन्ना ने मुझे छेड़ते हुए कहा, 'मुझ पर हंसने वाली हसीना-मरजीना अभी मैं भी तुम पर हंसूंगा।' लेकिन तमाम अवसरों पर वह मुझे, मेरे अनुमानों से अलग ही कुछ करते मिले। जब मैंने शुरू किया तो वह बिल्कुल नहीं हँसे।बल्कि खूब प्रोत्साहित किया। इसके बाद हम दोनों ने करीब एक घंटे तक रिहर्सल किया। जब मुन्ना को लगा कि रिहर्सल हो गई है, तो अचानक ही मुझको गोद में उठा कर बेड पर बैठा दिया। वह खुद भी मेरी बगल में बैठ कर बोले, 'तुमने वाकई बहुत अच्छी रिहर्सल की है। देखना कल तुम बड़ी-बड़ी मॉडलों को पीछे कर दोगी।'

'तुम भी तो रहोगे ना?'

' ये भी कोई पूछने वाली बात है। बिल्कुल रहूंगा। यह सोचो भी नहीं कि मैं नहीं रहूंगा।'

ठीक इसी समय मैंने बेनज़ीर को रोक कर पूछा कि, 'जब आप अकेले या मुन्ना के साथ बिताए ऐसे रोमांचक, एकांत क्षणों के बारे में बताना शुरू करती हैं, तो उसके पहले कुछ कैलकुलेशन करती हैं कि, कितना बताऊँ, कितना न बताऊँ। या फिर फ्री होकर कि, जो कुछ जैसा हुआ, वैसा ही पूरी ईमानदारी से बता देती हूं। क्या फ़र्क़ पड़ता है।'

'फ़र्क़ पड़ेगा या नहीं पड़ेगा, कैलकुलेशन जैसी बातें छोड़ दीजिए। रिहर्सल की बात जब चल रही थी, तभी मैं आपके चेहरे पर उभरते इस प्रश्न को पढ़ चुकी थी। आपके प्रश्न के साथ ही मेरा जवाब तैयार था, कि सच बोलने का प्रयास करने के अलावा और कुछ भी मेरे दिमाग में चल ही नहीं रहा है।'

' ओह, वाकई आप बहुत इंटेलीजेंट हैं, कुछ लोगों को, कुछ बातें ईश्वर पुरस्कारस्वरुप दे देता है, मुझे लगता है, आप ऐसे लोगों की ही श्रेणी में हैं।'

'जी शुक्रिया, देखिये तारीफ सच्ची ही करियेगा। तो बात आगे बढाऊँ।'

'मैं तारीफ नहीं, ह्रदय में जो बात उठी वो कह रहा हूँ।' यह कहते हुए मैंने हाथ के इशारे से कंटीन्यू करने को कहा तो वह बोलीं, 

'आगे मुन्ना ने कहा, 'अच्छा आओ, अब लैपटॉप पर देखते हैं कि, हमने कहां-कहां कितनी गलतियां की हैं। यह जानने के लिए मैंने मोबाइल की रिकॉर्डिंगऑन कर दी थी। तुम्हें मैंने इसलिए नहीं बताया कि, तब तुम नॉर्मल होकर तैयारी न कर पाती।'

उन्होंने मोबाइल का डाटा केबल लैपटॉप में अटैच कर दिया। वीडियो जब चला तो हम एक दूसरे की चाल, शरीर के अंगों के मूवमेंट को देखकर हंसते रहे। एक-दूसरे को छेड़ते रहे। बड़ी देर तक हंसी-ठिठोली के बाद हमने सोने की जरूरत महसूस की तो उन्होंने कहा, 'एक मिनट पहले यह वीडियो डिलीट कर दूं। कहीं धोखे से भी किसी के हाथ लग गया तो आफत आ जाएगी। मुझे अपनी तो कोई परवाह नहीं, लेकिन तुम्हारी चिंता किए बिना नहीं रह सकता।'

'अच्छा, मेरी इतनी चिंता है।'

'अपने से भी ज्यादा।देखो मैं आदमी हूं। मेरा कुछ नहीं होगा। लेकिन यह जो अपना समाज है ना, यह लड़किओं को जीने नहीं देता। और मैं नहीं चाहता कि हमारे किसी काम के कारण तुम्हें जरा भी तकलीफ हो। तुम्हारी छोटी सी भी तकलीफ मुझे बहुत ज्यादा तकलीफ देगी, तुम्हारा मान-सम्मान, दुख-तकलीफ अब सब-कुछ मेरा है। इसलिए मुझे हर हाल में इन सबकी फिक्र करनी ही है।'

उनकी इस बात ने मुझे बहुत भावुक कर दिया। मैंने कहा, 'इतनी ही फिक्र है तो शादी करके घर क्यों नहीं ले चलते।'

'परेशान ना हो। बहुत जल्दी शादी भी करूंगा। बस तुम पीछे ना हटना। नहीं तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा।'

'तुम इतना भी नहीं समझ पाए इतने दिनों में। सब कुछ तुम्हें क्या इसीलिए मैंने सौंप दिया कि एक दिन पीछे हट जाऊं। मेरे जीते जी तो अब यह मुमकिन नहीं है कि, तुम से अलग होने की सोचूं भी।'

'अच्छा यह बताओ अगर शादी के लिए तुम्हारी अम्मी तैयार नहीं हुईं तो?'

'मैं उनकी तरफ से पूरी तरह निश्चिंत हूं। तुम समझ लो कि उन्होंने हां कह दी है। वह राजी हैं।'

'क्या कह रही हो तुम, तुमने पहले ही बात कर ली है।'

'ऐसा ही समझो।'

'अरे साफ-साफ बताओ तो मेरी जान, मुझे पहले क्यों नहीं बताया।'

मुन्ना ने मुझे एक हाथ से अपने और करीब करते हुए कहा, तो मैं बोली, 'ऐसा ही समझो ना। मुझे जरा भी शक-सुबह नहीं है। क्योंकि वह भी भीतर ही भीतर ऐसा ही सोच समझ रही होंगी। मन ही मन राजी ना होतीं तो पहले बाराबंकी और फिर यहां, इतनी दूर पन्द्रह दिनों के लिए ना भेजतीं। क्या उन्हें पता नहीं है कि, जवान लड़के के साथ जवान लड़की को पन्द्रह दिनों के लिए इतनी दूर भेजने का परिणाम क्या-क्या हो सकता है। जबकि यहां कोई भी देखने-सुनने वाला नहीं है। क्या इसका यह मतलब साफ-साफ नहीं निकल रहा है कि उनके मन में क्या कुछ है।'

'अरे मेरी जान तू इतनी स्मार्ट है, यह तो मैं सोच ही नहीं पाया था। बात यहां तक पहुंच गयी और मैं हवा-हवाई उड़ता ही रहा। समझ ही नहीं पाया।'

मुन्ना की बाहों में अपने को मैंने ढीला छोड़ते हुए कहा, 'एक मां को उसकी बेटी से ज्यादा अच्छी तरह कोई और नहीं समझ सकता। मेरी अम्मी ने, मेरी बहनों ने, सबने जितनी तकलीफें झेलीं हैं जीवन भर, उन्होंने ही अम्मी को इस हद तक सोचने के लिए तैयार किया है।'

'और तुम्हें भी।'

'हाँ, मेरे लिए भी हालात ने बड़ा किरदार निभाया है, और सबसे बड़े किरदार तो तुम हो, तुम्हारे काम, तुम्हारी दरियादिली, एक प्यारे इंसान होने, इन सबके नाते मैं तुम्हारी तरफ खिंचती हुई चली आ रही थी। पता नहीं क्यों तुम्हें देखकर ही, तुम्हारा ख्याल आते ही मुझे लगता कि दुनिया में एक तुम्हीं ऐसे अच्छे, भले इंसान हो जिस पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सकता है। दुनिया की हर लड़की तुम पर आंख मूंदकर भरोसा कर सकती है। तुम्हारी नेकनीयती मुझे हर पल तुम्हारे करीब लाती जा रही थी।

यह बात कोई आज की नहीं है। जब तुम मोहल्ले में उधम, पतंगबाजी, बवालबाजी करते, तो मैं अंदर खिड़की की सुराखों से तुम्हें देख लिया करती थी। तुम मुहल्ले के खुराफाती लड़कों में गिने जाते थे। लेकिन जब रिजल्ट का टाइम आता तो तुम पढ़ने में भी सबसे आगे रहते थे। तब कई दिन तुम्हारी बातें सुनती थी। वह सब सुन कर मेरा भी मन होता था कि मैं भी स्कूल जाऊं, पढूं-लिखूँ । मेरे बारे में भी लोग बातें करें। मगर अपनी हालत सोचकर मन मसोस कर रह जाती थी।

मन करता की दीवार पर मारकर अपना सिर फोड़ लूं, मर जाऊं। भेड़-बकरियों से भी बदतर हालत है। वह भी दड़बे से बाहर निकाली जाती हैं कि उनको भी धूप हवा मिले। मगर एक हमारी किस्मत है, हमारे घर की जाहिलियत ने हमें जानवरों से भी बदतर, इतना कुचल कर रखा था कि हमें बोलना, कुछ कहना भी नहीं आता था। क्या कहें, अपने बारे में, कुछ नहीं समझ पाती थी।

हम इंसान होकर भी जानवरों की तरह रहते चले आ रहे थे। मगर हालात ने ऐसा पलटा मारा कि सब कुछ बदल गया। बदल क्या गया कि सब कुछ खत्म हो गया। दर्जनभर लोगों के परिवार में दो ही लोग बचे हैं। अम्मी की भी हालत ऐसी है कि, सोच कर ही कलेजा मुंह को आ जाता है। रुह कांप उठती है कि, अम्मी को कुछ हो गया तो मैं अकेली रह जाऊँगी। इतनी बड़ी दुनिया में कैसे कटेगी मेरी ज़िंदगी।'

यह कहते-कहते मैं बहुत भावुक हो गई। आंखें भर आईं थीं। अचानक ही मैं अपने भविष्य को लेकर बहुत डर गई। इतना कि मैं कंपकंपी महसूस करने लगी। मुझे अब-तक ध्यान से सुन रहे मुन्ना ने कहा, ' यह क्या अचानक तुम बहकी-बहकी बातें करने लगी। उन्हें कुछ नहीं होगा। अरे एक से एक अच्छे-अच्छे डॉक्टर हैं। उनका ट्रीटमेंट कराने, देखभाल करने के लिए तुम और मैं हूं। ऐसे ही हो जाएगा उन्हें कुछ।'

मुन्ना की बातों ने मुझको अभिभूत कर दिया। मैं आश्चर्य-मिश्रित खुशी से भरी एकटक उन्हें देखती रही तो उन्होंने कहा, 'ऐसे क्या देख रही हो। मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है क्या?' 'पूरा और पक्का विश्वास है। आज तक तुमने ऐसा कुछ किया ही नहीं जिससे तुम्हारी किसी बात पर यकीन ना करने के बारे में सोच भी सकूं। ऐसा मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकती। सच कह रही हूं कि, तुम्हारी बात सुनकर अम्मी की सेहत को लेकर मेरी फिक्र एकदम खत्म हो गई है। मैं उनकी तरफ से बिल्कुल निश्चिंत हो गई हूं। लेकिन..।'