हे माँ नर्मदे!
हे माँ नर्मदे!
हम करते हैं
आपकी स्तुति और पूजा
सुबह और शाम
आप हैं हमारी
आन बान शान
बहता हुआ निष्कपट और निश्चल
निर्मल जल
देता है माँ की अनुभूति
चट्टानों को भेदकर
प्रवाहित होता हुआ जल
बनाता है साहस की प्रतिमूर्ति
जिसमें है श्रृद्धा, भक्ति और विश्वास
पूरी होती है उसकी हर आस
माँ के आंचल में
नहीं है
धर्म, जाति या संप्रदाय का भेदभाव,
नर्मदा के अंचल में है
सम्यता, संस्कृति और संस्कारों का प्रादुर्भाव,
माँ तेरे चरणों में
अर्पित है नमन बारंबार।
अनुभव
अनुभव अनमोल हैं
इनमें छुपे हैं
सफलता के सूत्र
अगली पीढ़ी के लिये
नया जीवन।
बुजुर्गों के अनुभव और
नई पीढ़ी की रचनात्मकता से
रखना है देश के विकास की नींव।
इन पर बनीं इमारत
होगी इतनी मजबूत कि उसका
कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे
ठण्ड गर्मी बरसात आंधी या भूकम्प।
अनुभवों को अतीत समझकर
मत करो तिरस्कृत
ये अनमोल हैं
इन्हें अंगीकार करो
इनसे मिलेगी
राष्ट्र को नई दिशा
समाज को सुखमय जीवन।
अहा जिन्दगी
मानव की चाहत
जीवन
सुख-शान्ति से व्यतीत हो
इसी तमन्ना को
भौतिकता में खोजता
समय को खो रहा है।
वह प्राप्त करना चाहता है
सुख, शान्ति और आनन्द
वह अनभिज्ञ है
सुख और शान्ति से
क्षणिक सुख से वह संतुष्ट होता नहीं
वह तो चिर-आनन्द में
लीन रहना चाहता है।
मनन और चिन्तन से उत्पन्न विचारों को
अन्तर्निहित करने से प्राप्त अनुभव ही
आनन्द की अनुभूति है
वह हमें
परम शान्ति एवं संतुष्टि की
राह दिखलाता है।
हमारी मनोकामनाएं नियंत्रित होकर
असीम सुख-शान्ति और
अद्भुत आनन्द में प्रस्फुटित होकर
मोक्ष की ओर अग्रसर करती हैं।
तुम करो इसे स्वीकार
सुख-शान्ति और आनन्द से
हो तुम्हारा साक्षात्कार।
पत्नी और प्रेमिका
धन नहीं
प्रेमिका नहीं,
प्रेमिका नहीं
धन की उपोगिता नहीं,
पत्नी पर धन खर्च होता है
प्रेमिका पर होता है धन कुर्बान,
पत्नी घर की रानी,
प्रेमिका दिल की महारानी
पत्नी देती है सात वचन
प्रेमिका देती है बोल-वचन
पत्नी होती है जीवन-साथी
प्रेमिका केवल धन की साथी
प्रेमिका से प्यार
पत्नी का तिरस्कार
आधुनिक परिदृश्य में
सभ्यता, संस्कृति और संस्कार
हो रहा है सभी का बहिष्कार
समाज में यह नहीं हो सकता स्वीकार
पत्नी में ही देखो
प्रेमिका को यार
इसी में मिलेगा
जीवन का सार।
सच्ची प्रगति
एक ही राह
एक ही दिशा
और एक ही उद्देश्य
मैं और तुम
चल रहे हैं
बढ़ रहे हैं
अलग-अलग
बनकर हमसफर
चलें यदि साथ-साथ
तो हम दो नहीं
वरन हो जाएंगे
एक और एक ग्यारह
रास्ता आसान हो जाएगा
और हमें मंजिल तक
आसानी से पहुंचाएगा।
विपत्तियां होंगी परास्त
और हवाएं भी
सिर को झुकाएंगी।
हमारा दृष्टिकोण हो मानवतावादी
धर्म और कर्म का आधार हो
मानवीयता
तब समाज से समाप्त हो जाएगा
अपराध
निर्मित होगा एक ऐसा वातावरण
जहां नहीं होगी अराजकता
नहीं होगा अलगाववाद
नहीं होगी अमीरी-गरीबी
नहीं होगा धार्मिक उन्माद
और नहीं होगा जातिवाद।
लेकिन हमारे राजनीतिज्ञ
ऐसा होने नहीं देंगे
मैं और तुम को हम बनकर
चलने नहीं देंगे
हमें छोड़ना होगा
राजनीति का साया
और अपनाना होगी
वसुधैव सः कौटुम्बकम् की छाया।
तभी हमारे कदमों को
मिल पाएगी दिशा और गति
तभी होगी हमारी सच्ची प्रगति।