Journey to the center of the earth - 21 in Hindi Adventure Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 21

Featured Books
Categories
Share

पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 21

चैप्टर 21

महासागर में।

अगले दिन तक हम अपनी सारी थकान भूल चुके थे। सबसे पहले तो मैं प्यासा नहीं महसूस कर रहा था और मेरे लिए ये ताज्जुब की बात थी। दरअसल पानी की जो पतली धारा बह रही थी वो मेरे पैरों को भिगो रही थी, इसलिए किसी शुष्कता का एहसास नहीं हुआ।
पेट भर कर हमने अच्छे से नाश्ता किया और वो पानी पिया जो हमने भरा था। मैं अपने आप को एकदम नया महसूस कर रहा था जो मौसाजी के साथ कहीं भी चलने के लिए तैयार हो। मैं सोचने लगा। जब मौसाजी जैसा दृढ़प्रतिज्ञ, हैन्स जैसा सेवक और मेरे जैसा सहायक है तो कोई सफल क्यों नहीं होगा? ऐसे बेहतरीन खयाल मुझे आ रहे थे। अगर अभी वापस स्नेफल्स जाने के लिए कहा जाता तो मैं बेझिझक मना कर देता।
लेकिन खुशकिस्मती से ऐसा कुछ नहीं होना था, हम सब नीचे उतरने की तैयारी कर रहे थे।
"अब हमें चलना चाहिए।" मैंने सबका ध्यान खींचते हुए कहा।
गुरुवार की सुबह 8 बजे से हमने अपना प्रस्थान शुरू किया था। ग्रेनाइट युक्त ये सुरंग इतने जटिल और घुमावदार थे कि हर कदम पर किसी भूलभुलैया से कम नहीं लगते थे। इनकी दिशा हालाँकि दक्षिणी पश्चिम के तरफ थी। मौसाजी कई बार रुककर कम्पास से देखकर दिशा की पुष्टि भी कर रहे थे।
ये गलियारा क्षैतिज होते हुए भी नीचे की तरफ जा रहा था और हर दो सौ बीस गज पर गहराई थी। पानी की धारा भी गुनगुनाते हुए हमारे कदमों के साथ थी। मुझे ऐसा लगा जैसे कोई परिचित से साया है जो नीचे जाने के लिए हमें रास्ता दिखा रहा है; मैंने उन बहते हुए पानी पर उँगलियों को भी थिरकया जैसे कोई जलपरी किसी संगीत के सहारे मचल रही हो। मेरी चंचलता किसी पौराणिक किरदार जैसी थी।
मौसाजी को इस बात की शिकायत थी कि ये रास्ते क्षैतिज ही क्यों हैं। उनके हिसाब से इस मार्ग से सफर लंबा होते हुए नीचे की तरफ नहीं जा रहा और वो ये सब किरणों के पड़ने के आधार पर कह रहे थे।
हमारे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था। हालाँकि अभी कुछ ही देर चले थे तो शिकायत करने का कोई औचित्य नहीं था।
हाँ ये ज़रूर था कि जैसे ढलान दिखते, पानी के धार में और हमारे कदमों में तेजी आ जाती।
वैसे, अभी तक मुझे कोई तकलीफ नहीं महसूस हुई थी। मैं पानी खोजने के उत्साह से अभी उभरा नहीं था।
उस दिन और उसके अगले दिन तक हम नीचे की सीध से ज़्यादा क्षैतिज मार्ग पर यात्रा कर रहे थे।
हमारे अनुमान से 10 जुलाई शुक्रवार शाम तक हम रिकिविक के दक्षिणी पूर्व से एक सौ बीस मील आगे होंगे और लगभग ढाई सौ फ़ीट नीचे। यहाँ हम सब अचानक से चकित रह गए थे।
हमारे पैरों के नीचे एक भयानक कुआँ था। मौसाजी इतने खुश हुए की ज़ोर-ज़ोर से ताली बजाने लगे क्योंकि उन्हें दिख रहा था कि ये एक सीध में है और काफी गहराई में भी।
"अरे वाह!" वो पूरे जोश में चिल्लाए; "ये हमें काफी दूर तक ले जाएगा। इसके बनावट को ध्यान से देखो, वाह।" वो चहके, "ये सीढ़ी डरावनी है।"
अभी तक हैन्स ने जिन रस्सियों को सम्भाले रखा था अब उन्हें इस्तेमाल करने वाला था जिससे कि कोई अप्रिय घटना ना हो। हमने नीचे उतरना शुरू कर दिया। यहाँ उतरना आसान नहीं था लेकिन मैंने पहले ही इतना ये कर लिया था कि ये मुझे आसान लगा।
ये कुआँ काफी संकरा था जैसे बड़े से ग्रेनाइट में कोई बड़ा छिद्र हो। साफ था कि लावा के ठंडे होने पर सिकुड़न से सीढ़ीनुमा मचान बने होंगे। मुझे इसमें संदेह नहीं था कि इस मार्ग ने स्नेफल्स के लिए किसी चिमनी की तरह काम नहीं किया होगा जब नीचे से सारी चीजें ऊपर की तरफ उल्टी होंगी। उस घुमावदार सर्पिल रास्ते से नीचे उतरते हुए मुझे आज के घरों में घुमावदार सीढ़ियों का ध्यान आ रहा था।
हमें हर पौन घण्टे पर रुककर अपने अपने पैरों को आराम देना पड़ रहा था। हमारी पिंडलियों में दर्द हो रहा था। इसलिए फिर हम ऊँचे चट्टानों पर पैर लटका कर बैठ गए और पेट भर कर खाया और पानी पिया; उस पानी ने हमारा साथ अभी भी नहीं छोड़ा था।
यहाँ ये बताना जरूरी है कि इस जिज्ञासु छिद्र में हैन्स का नहर एक झरने का रूप ले चुका था। वो शांत था और हमारे लिए पर्याप्त भी। वैसे भी हमें पता था कि जैसे ही ढलान में बदलाव होगा, इसकी रफ्तार में भी उसी के अनुपात में बदलाव आएगा। इसे देखते हुए मुझे मौसाजी के गुस्से, अधीरता का ध्यान आया और जब शांति से बह रहा था तब अपने आइसलैंडर के सौम्यता का ध्यान था।
पिछले दोनों दिन, छः और सात जुलाई को हम सर्पिल सीढ़ियों में ही घूमते रहे जिसने हमें समुद्र तल से बीस मील नीचे ला दिया था। लेकिन आठ तारीख को दोपहर बारह बजे इसके ढलान का रूप बदल चुका था, पहले से आसान और दक्षिणी पूर्व की तरफ मुड़ रहा था।
अब मार्ग काफी आसान हो चुका था लेकिन भयानक तरीके से उतना ही उबाऊ भी हो चुका था। अब वापस से कुछ भी बदलना मुमकिन नहीं था। अब इस दौरान तो किसी भी मैदान और पहाड़ों के दर्शन नहीं होने थे। आगे बढ़ते हुए मुझे ऐसा ही लग रहा था।
पंद्रह को बुधवार तक हम एक्कीस मील और नीचे उतर चुके थे जो स्नेफल्स की चोटी से डेढ़ सौ फीट नीचे था। और सच कहा जाय तो हम बहुत थके थे लेकिन हमारे शरीर ने अभी तक सब अच्छे से सहा था। दवाई संबंधित बक्सों को खोलने की नौबत नहीं आयी थी।
मौसाजी बहुत ध्यान से हर घण्टे कम्पास, मैनोमीटर और थर्मामीटर से बतायी हुई चीज़ों को नोट कर रहे थे जो वो अपने दार्शनिक और वैज्ञानिक दस्तावेजों में शामिल कर रहे थे। इसलिए उनको हर परिस्थितियों का पता रहता था। हालाँकि जब उन्होंने बताया कि हम अपनी शुरुआती बिंदु से डेढ़ सौ फीट नीचे हैं तो मैं अपना उत्साह दबा नहीं पाया।
"अब क्या हो गया?" मौसाजी ने पूछा।
"कुछ खास नहीं, बस मेरे दिमाग मे एक बात आयी है।" मेरा जवाब था।
"अच्छा, तो फिर बताओ मेरे बच्चे।"
"अगर मेरा अनुमान सही है तो मुझे लगता है हम अब आइसलैंड में नहीं हैं।"
"ऐसा क्यों लगता है?"
"हम आसानी से देख सकते हैं।" मैंने जवाब दिया और तुरंत एक मानचित्र और कम्पास निकाला।
"ये देखिये," मैंने बारीकी से हिसाब लगाकर कहा, "मैं ग़लत नहीं हूँ। हम पोर्टलैंड के टुकड़े से काफी पीछे की तरफ हैं; और जो दक्षिणी पूर्व की तरफ हम बढ़ रहें हैं वो हमें समुद्र में ले जाएगा।"
"समुद्र के अंदर!" मौसाजी ने उत्साहित होकर अपने हाथों को सहलाते हुए कहा।
"हाँ!" मैंने कहा, "कोई संदेह नहीं कि अभी समुद्र हमारे ऊपर बह रहा हो।"
"अच्छा! मेरे बच्चे, इससे ज़्यादा प्राकृतिक और क्या होगा! क्या तुम्हें नहीं पता कि न्यू कैसल के पड़ोस में जो कोयले की खदान है वो समुद्र के अंदर है?"
इसमें कोई दो राय नहीं कि मौसाजी के लिए वो बातें मामूली नहीं थीं लेकिन मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। जबकि इस बारे में जब भी कोई चर्चा होगी तो ये बात अहमियत रखती है कि क्या आइसलैंड के मैदान और पहाड़ भी इसी तरह हमारे सिर के ऊपर या अटलांटिक महासागर के ऊपर निलंबित थे? सारे सवाल ग्रेनाइट के छत की मजबूती के भरोसे टिके थे जो हमारे ऊपर थे। हालाँकि अब मैं समझ पा रहा था कि कहाँ समतल और ढलान मार्ग हैं और दक्षिणी पूर्व की दिशा से होते हुए हमें पृथ्वी के उस अनंत गहराई में जाना है।
तीन दिन बाद, जुलाई के अट्ठारहवें दिन शनिवार को हम एक विशाल और चित्रमय गुफा में पहुँचे। यहाँ मौसाजी ने हैन्स को तयशुदा मूल्य दिए और फैसला लिया गया अब अगले दिन तक आराम करें।