चैप्टर 18
वो अनुचित मार्ग।
अगले दिन तड़के ही हमने शुरुआत कर दी थी। हम समय बर्बाद नहीं कर सकते थे। मेरे हिसाब से हमें पाँच दिन लगने थे वहाँ पहुँचने में जहाँ से या गलियारा बँटा हुआ था।
वापसी में हमें कितनी परेशानी होनी है इसका बखान मुश्किल है। मौसाजी ने अपनी सभी गलतियों को मानते हुए अपने गुस्से के कड़वे घूँट को पी लिया था। हैन्स के समर्पित और प्रशांत व्यवहार की वजह से मुझे दुःख और शिकायतें थीं। इसलिए उसकी बदकिस्मती पर मुझे कोई अफसोस नहीं हुआ।
लेकिन एक तसल्ली ज़रूर थी। इस मोड़ पर आकर हारने के मतलब है शायद इस पूरे सफर से आज़ादी।
जैसा कि मुझे अनुमान था, सफर के पहले ही दिन पीने के लिए पानी खत्म हो चुका था। तरल पेय में अब हमारे पास सिर्फ शयिदम का सहारा था, जो इतना नारकीय था कि गला जलने लगता था और मैं उसे देखना भी नहीं चाहता था। इस तापमान में मेरा दम घुटने लगा था। थकान से मेरे अंग लकवाग्रस्त जैसे हो चुके थे। कई बार मैं नीचे गिरने से बचा। तब जाकर दोनों रुके और मुझे सांत्वना और सहारा देने लगे। हालाँकि उस समय मैंने साफ देखा कि मौसाजी भी इस सफर के थकान और प्यास से लड़ रहे थे।
एक बार तो मुझे ये भी खयाल आया कि कहीं ये सब एक बुरा सपना ना हो।
आखिरकार, मंगलवार सात जुलाई को अपने हाथों और घुटनों के सहारे रेंगते, अधमरों की तरह कई घण्टों के बाद हम उस बिंदु पर पहुँचे जहाँ से ये बँटे हुए थे। वहाँ मैं इंसानी चिथड़े में किसी कटे हुए तना जैसा पड़ गया था। तब सुबह के दस बज रहे थे।
हैन्स और मौसाजी दीवार की टेक लेकर बिस्कुट चबा रहे थे और मेरे होठों पर बस कराहने की आवाज़ थी। फिर मैं एक गहरे तंद्रा में कहीं खो गया।
मुझे एहसास हुआ कि मौसाजी ने मुझे अपनी बाँहों का सहारा दिया है।
"बेचारा," मैंने उनको हमदर्दी में ये कहते सुना।
मैं उनके इस शब्द से गदगद था जिसमें मातृत्व की झलक थी। मैंने उनके बूढ़े हाथों पर अपनी हथेली को रखा और धीरे से सहलाया। वो बिना कुछ कहे बस मुझे दुलार से देखे जा रहे थे। उनकी आँखों में आंसू थे।
फिर मैंने उनको वो थैला उतारते हुए देखा जो उन्होंने अपने बगल में टाँग रखा था। जैसे उन्होंने उसे मेरे होठों से लगाया, मैं चकित था।
"पी लो मेरे बच्चे।" उन्होंने कहा।
कहीं मेरे कान तो नहीं बज रहे थे? मौसाजी कहीं पगला तो नहीं गए? मैं बेवकूफ की तरह उन्हें देख रहा था। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। मुझे इस भरोसे के टूटने का डर था।
"पियो।" उन्होंने फिर कहा।
मैन सही सुना है? इससे पहले की मैं कोई और सवाल करूँ, ये ज़रूर था कि उस एक बूँद ने मेरे होंठ और गले को तर कर दिया था। सिर्फ एक बूँद ने मेरी ज़िंदगी लौटा दी थी।
मैंने मौसाजी के हाथों को मजबूती से पकड़ कर आभार प्रकट किया। मैं बिल्कुल लाजवाब था।
"हाँ!" उन्होंने कहा, "एक घूँट वो भी आखरी! तुम सुन रहे हो मेरे बच्चे? सबसे आखरी बूँद। इसे मैंने सबसे कीमती चीज़ की तरह संभाल कर रखा था। कई बार मुझे इसका खयाल आया लेकिन मैंने इसे संभाले रखा। क्योंकि मुझे तुम्हारी चिंता थी।"
"मेरे प्यारे मौसाजी," मैं चहका और बड़े से आंसू मेरे गालों पर ढुलक गए।
"हाँ मेरे बच्चे, मुझे पता था कि जब तक तुम यहाँ पहुँचोगे, आधी जान निकल चुकी होगी इसलिए मैंने तुम्हारे लिए इस आखरी बूँद को बचा लिया था।"
"शुक्रिया," मैंने कहा; "तहेदिल से शुक्रिया।"
अब जबकि मेरी प्यास कुछ मिट चुकी थी तो मुझमें थोड़ी जान भी आ गयी थी। मेरे गले में जो शुष्की थी और होठों पर सूजन, सब सामान्य हो चुके थे। अब मैं बात कर सकता था।
"अब," मैंने कहा, "इसमें कोई दो राय नहीं कि हमें क्या करना है। पानी के बिना हम कुछ नहीं कर सकेंगे, इसलिए इस यात्रा को यहीं खत्म कर के हम वापस चलते हैं।"
जब मैं ये कह रहा था तो मौसाजी अपना सिर नीचे किये हर तरफ देख रहे थे लेकिन मुझसे नज़र नहीं मिला रहे थे।
"और हाँ," मैंने उत्तेजित होते हुए कहना जारी रखा, "हमें वापस स्नेफल्स पहुँचना चाहिए। भगवान हमें शक्ति दे कि हम फिर से उजला दिन देखें। और हम इसके शिखर पर पहुँचे।"
"वापस जाना चाहिए," मौसाजी ने खुद से कहा, "क्या सही में ऐसा करना चाहिए?"
"वापस जाना चाहिए, बिना एक पल बर्बाद किये," मैंने गिड़गिड़ाते हुई कहा।
कुछ देर के लिए उस अंधकूप में सन्नाटा छा गया।
"मेरे प्यारे हैरी," मौसाजी ने साफ लफ़्ज़ों में कहा, "क्या उन कुछ बूंदों ने तुममें साहस और ताकत नहीं दिया?"
"साहस!" मैं रो पड़ा।
"मैं देख रहा हूँ तुम पहले से ज़्यादा निराश हो और हताशा और नाउम्मीदी को मौका दे रहे हो।"
किस चीज़ का बना हुआ है ये आदमी और इसके इस दिमाग में ऐसा क्या भरा है!
"आप निराश नहीं हैं?"
"क्या! सफलता के पास पहुँचकर सब छोड़ दें?" उन्होंने कहा, "कभी नहीं, और ये प्रोफ़ेसर हार्डविग हर बार कहेगा।"
"तब तो हमें मान लेना चाहिए कि हम मरेंगे।" मैंने असहाय होते हुए कहा।
"नहीं, हैरी मेरे बच्चे, कभी नहीं। मुझे छोड़ दो, तुम जाओ, मैं तुम्हारी मौत कभी नहीं चाहूँगा। अपने साथ हैन्स को ले जाओ, मैं अकेले ही जाऊँगा।"
"आप हमें आपका साथ छोड़ देने के लिए कह रहे हैं?"
"मैं कह रहा हूँ, मुझे छोड़ दो। इस खतरनाक यात्रा को मैंने शुरू किया है। मैं इसके अंतिम तक जाऊँगा या फिर पृथ्वी पर कभी नहीं लौटूंगा। तुम जाओ हैरी, मैं फिर से कह रहा हूँ, जाओ।"
मौसाजी के आवाज़ में सख्ती थी। इससे पहले उनकी आवाज़ में नरमी थी लेकिन अब कठोरता थी। मैं उन्हें इस असंभव कार्य के लिए साहस जुटाते देख सकता था। मैं उन्हें इस कंदरा की गहराई में अकेला नहीं छोड़ना चाहता था लेकिन इन्द्रियाँ उड़ने के लिए उकसा रहीं थीं।
इस दौरान हैन्स उसी तरह शांत और चुप खड़ा था। वो भले दरकिनार जैसा था लेकिन उसे पता था कि हमारे बीच क्या बातें हो रहीं हैं। हमारे हावभाव से तो तय था कि दो अलग रास्ते हैं और दोनों कोशिश कर रहें हैं कि किसी एक के रास्ते सब चलें। लेकिन हैन्स को इन सब से कोई मतलब नहीं था कि किस रास्ते से ज़िन्दगी या मौत मिलेगी, वो तो चुपचाप और निर्विरोध नीचे जाने की यात्रा को स्वीकारना चाहता था।
अब उसे कैसे समझाऊँ कि मेरे दिल और दिमाग में क्या है। अभी तक के मेरे हावभाव, गिड़गिड़ाहट, कराहना और सारे दर्द से उस निष्ठुर को समझ जाना चाहिए था। अगर उसे समझ में आता और फर्क पड़ता तो मैं उसे मार्ग में आने वाले अनगिनत खतरों के बारे में बताता जिसके बारे में वो अनजान था। इसी बहाने शायद प्रोफ़ेसर को भी मना लेंगे। बुरी से बुरी हालत में भी कम से कम स्नेफल्स लौटने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
मैं चुपचाप हैन्स की तरफ मुड़ा और उसके हाथ थाम लिए। उसमें कोई हरकत नहीं था। मैंने ऊपर जाने वाले रास्ते की ओर इशारा किया। उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा। उसे मेरे थके और हाँफते हुए अनुमोदन से मेरी पीड़ा को समझ जाना चाहिए था। लेकिन उसने सिर हिलाकर और मौसाजी की तरफ इशारा किया।
"मालिक।" उसने कहा।
हर भाषा में इस शब्द का मतलब एक ही है।
"ये मालिक!" मैं डर से चीखना चाहता था, "ये पागल! नहीं। मैं बता रहा हूँ ये हमारी जिंदगी का मालिक नहीं है; हमें तुरंत भागना चाहिए। और इसे भी साथ लेकर निकलना चाहिए, तुम सुन रहे हो? मैंने क्या कहा, समझे?"
मैंने पहले ही बताया कि हैन्स के हाथ को मैंने पकड़ रखा था।मैंने उसे उठाने की भी कोशिश की। मैंने उसको ज़बरदस्ती चलने के लिए भी उकसाया लेकिन वो ज़रा भी नहीं हिला। अब मौसाजी ने हस्तक्षेप किया।
"मेरे प्यारे हैरी, शांत हो जाओ," उन्होंने कहा। "तुम्हें मेरे इस अनुयायी रूपी सेवक से कुछ नहीं मिलेगा, इसलिए ध्यान से सुनो जो मैं कह रहा हूँ।"
मैन अपने हाथ बांध लिए और मौसाजी से नज़र मिलाने लगा।
"सिर्फ पानी की कमी," उन्होंने कहा, "इस सफर में हमारा सबसे बड़ा अवरोधक है। ये सच है कि अभी जिस गलियारे से हम निकले हैं वहाँ एक बूँद पानी नहीं मिला। अगर भाग्यशाली रहे तो हमें शायद पश्चिमी सुरंग में सफलता मिले।"
पूरे अविश्वास से ना में सिर हिलाना ही मेरा एकमात्र जवाब था।
"पूरी बात सुनो।" प्रोफ़ेसर ने अपने चिर-परिचित व्याख्याता अंदाज़ में कहा, जब तुम बेहोश या अवचेतन से पड़े थे तब मैंने दूसरे गलियारे के खोजबीन में लगा हुआ था। मैंने पता लगा लिया है कि ये दूसरा गलियारा नीचे की तरफ जाता है और कुछ ही देर में हम वहाँ पहुँचेंगे जहाँ पुराने ग्रेनाइट बने थे। वहाँ निस्संदेह हमें पानी का स्रोत मिलेगा। पत्थरों की दशा देखकर, एक हिसाब से और सहजता से इसकी पुष्टि की जा सकती है। अभी, मैं बस सभी से एक ही विनती करना चाहता हूँ। जब क्रिस्टोफर कोलम्बस ने अपने खोज के लिए, अपने साथियों से तीन दिन माँगा, उन्होंने हर हाल में उसका साथ दिया और एक नई दुनिया के खोज में सफल हुए। अब यहाँ मैं क्रिस्टोफर कोलम्बस की तरह तुम सब से बस एक दिन माँग रहा हूँ। अगर दिन खत्म होने तक हमें पानी का स्रोत नहीं मिलता है तो मैं वादा करता हूँ कि इस यात्रा को त्यागकर वापस पृथ्वी की सतह पर लौट जाएँगे।
भले मैं निराश और चिढ़ा हुआ था लेकिन मुझे पता था कि मौसाजी ने कितनी मेहनत से ये विनती की है और वो भी इन शब्दों में। ऐसे हालात में और क्या होगा?
"ठीक है।" मैंने कहा, "आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा और भगवान सबको इसकी ताकत दे। लेकिन जब तक हमें पानी नहीं मिलेगा, हमारा समय बर्बाद होता जाएगा, इसलिए बिना समय बिताय हमें आगे बढ़ना चाहिए।"