Journey to the center of the earth - 11 in Hindi Adventure Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 11

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 11

चैप्टर 11

स्नेफल्स की ओर।

लावा से बने मैदानी इलाकों पर तीस झोपड़ियों का ग्राम है स्टैपी, जहाँ ज्वालामुखी पहाड़ों के बीच से धूप की रोशनी छनकर आती है। इन मैदानी इलाकों के फैलाव के साथ हर कहीं अग्नि तत्व से बने पत्थरों का भी साम्राज्य है।
इन पत्थरों को असिताश्म कहते हैं जो बादामी रंग में आग्नेय तत्व के हैं। ये इतने भिन्न होते हैं कि इनका एक समान रूप देखना असम्भव लगता है। ऐसा लगता है जैसे, इन्सानों की तरह यहाँ भी प्रकृति ने ज्यामितीय औजारों से हर पत्थर को तराश दिया है। कहीं ढेरों पत्थर के अम्बार हैं, कहीं उन्ही से बने बड़े चट्टान, कहीं शुण्ड रूपी, तो कहीं शंकु के आकारों में। हर कहीं सरंचना इतनी सधी हुई है कि ना तो बेबीलोन की भव्यता और ना ही ग्रीस के चमत्कार यहाँ के प्राकृतिक निर्माण-कला की बराबरी कर सकते हैं।
मैंने आयरलैंड के विशाल बाँध और हेब्रीड्स (स्कॉटलैंड के पश्चिमी तट पर स्थित 500 द्वीपों का समूह) के फ़िंगल की गुफाओं के बारे में कई बार सुना था लेकिन असिताश्म के इस चमत्कारी निर्माण को आज अपनी आँखों से देख रहा था।
स्टैपी ने हमे इससे जता दिया था कि आगे और किन अद्वितीय और आकर्षक चीज़ों से सामना होना है।
इस प्रायद्वीप पर इन पत्थरों से तीस फ़ीट ऊँची प्राकृतिक दीवारें बनी थीं। ऊपर की तरफ जुड़े होने से तोरण का रूप लिए किसी छत जैसे प्रतीत होते थे। कहीं-कहीं कुछ खोह जैसे बने हुए थे जिससे नीचे की तरफ से समुद्र की लहरें झाग के रूप में ऊपर आते थे। किनारों पर तेज लहरों की वजह से असिताश्म के पुराने टुकड़े धुल कर ऐसे थे जैसे किसी प्राचीन गिरजाघरों के अवशेष हों, जिनपर समय ने अपनी काई छोड़ दी है।
हम सफर के अब आखरी मोड़ तक पहुँचने वाले थे। हैन्स ने जो सूझबूझ और फुर्ती दिखायी थी, उससे मैं प्रभावित था और खुशी भी थी कि ये हमारे साथ आगे तक जाएगा।
हम एक पादरी के घर के करीब जाकर रुके जहाँ एक बदसूरत सा आदमी अपने कमर पर चमड़े का पेटबन्द बाँधे घोड़े के पैर में नाल ठोक रहा था।
"सलामत रहें," हैन्स ने अपनी पारम्परिक भाषा में उनसे सम्पर्क किया।
"दिन मंगलमय हो!" उसने भी जवाब उसी अन्दाज़ में दिया।
"कयरकोहेरडे," हैन्स ने मुड़कर अपनी भाषा में उनको मौसाजी से मिलवाया।
"ये पादरी हैं," प्रोफ़ेसर ने बताया, "हैरी, इन्हें देखकर तो लगता है कि ये हर काम करते हैं।"
बातचीत के दौरान हैन्स ने सबका पूरा परिचय दिया और हमारे आने की वजह के बारे में बताया। पादरी ने अपने काम पूरा कर के एक तरफ जादुई इशारा किया और वहाँ से एक विशालकाय औरत निकली। वो छः फुट लम्बी किसी राक्षसी जैसी थी, हालाँकि वहाँ के लिए इतना लम्बा होना स्वाभाविक था।
मैं तो देखते ही डर गया था। क्योंकि मुझे उसी आइसलैंडिक गालों को चूमने वाली परम्परा का स्मरण हुआ। हालाँकि ये डर भी खत्म हो गया क्योंकि उसने आवभगत में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी।
अजनबियों के लिए जो घर था वो बहुत ही संकरा, गंदा और भ्रष्ट था, गिरजाघर के किसी कोने से भी बदतर। लेकिन हमारे पास कोई चारा नहीं था। पादरी को भी मेहमान नवाजी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। अभी दिन खत्म होने से पहले हमें, लोहार, मछुआरा, शिकारी, बढ़ई और पुरोहित से भी मिलना था। अच्छा यही हुआ था कि हम उनसे कार्य-दिवस में मिले थे क्योंकि उनको फायदा तो रविवार को ही होता होगा।
इस गरीब पादरी को तनख्वाह बहुत कम मिलती थी और चंदे का भी दशांश मिलता था। इसलिए वो हर काम करता था। हालाँकि हमें कुछ ही देर में पता चल गया कि मेजबान में प्रधानता वाले कोई गुण नहीं है।
मौसाजी को भी समझ में आ गया कि किससे पाला पड़ा था। वो एक बदतमीज और अव्यवहारिक मेजबान था। इसलिए उन्होंने तुरंत वहाँ से निकलकर आगे प्रस्थान करने के बारे में सोचा। उन्होंने थकान की परवाह करने के बजाय, पहाड़ों में समय बिताना ज़्यादा सही समझा।
स्टैपी पहुँचते ही अगले दिन का कार्यक्रम बन चुका था। घोड़ों के जगह पर, हैन्स ने तीन आइसलैंडर्स नियुक्त कर लिए थे जो हमारा सामान ढोने वाले थे। इन्हें हमारे साथ ज्वालामुखी विवर तक जाना होगा और हमें छोड़कर ये लौट जाएँगे। ये चलने से पहले ही तय हो चुका था।
इस दौरान मौसाजी ने हैन्स को अपना विश्वासपात्र मानकर समझा दिया कि ये उसका इरादा था कि उनकी खोज में वो अन्तिम तक शामिल रहे।
हैन्स ने ध्यान से सुना और सिर हिलाकर हामी भर दी। वहाँ तक जाना या इस सफर में कहीं या फिर भू-गर्भ में दफन हो जाना, उसके लिए सब बराबर था। मैं तो अब तक के सफर से काफी रोमांचित और खुश था और भविष्य की मुझे ज़रा भी चिंता नहीं थी क्योंकि अब मुझे इसके अंजाम तक पहुँचना था। क्या करना चाहिए? भाग कर जाऊँ? लेकिन अगर सही में मौसाजी को उनके हाल पर छोड़कर भागना होता तो मैं हैम्बर्ग में ही रह जाता, यहाँ स्नेफल्स के नीचे क्यों आता।
इन सब बातों के अलावा कुछ डरावने और भयानक खयाल भी आ रहे थे जो मुझ जैसे किसी भी कोमल हृदय वाले को डरा सकते थे।
"ये बात ध्यान देने लायक है," मैंने खुद से कहा, "हम सब स्नेफल्स के नीचे उतरेंगे, अच्छी बात है। हम उस खोह के सबसे नीचे उतरेंगे, ये भी उचित है। और लोगों ने भी इसे अंजाम दिया है।"
"इन सब बातें से इतर, अगर भू-गर्भीय मार्ग में हम भटके या सैकन्युज़ेम्म के बातें झूठी साबित हुई, फिर हम इस ज्वालामुखी के भूलभुलैया से कैसे निकलेंगे? हमारे पास अभी तक स्नेफल्स के मृत होने का कोई प्रमाण नहीं है। क्या सबूत है कि अभी हाल-फिलहाल में ज्वालामुखी नहीं फटे? क्या 1219 में एक बार फट जाने से दुबारा नहीं फटेगा?"
"अगर ज्वालामुखी फटा तो हमारा क्या होगा?"
इन सवालों से चिंतित, मैं कहीं चैन से सो नहीं सकता था क्योंकि सपने में भी शायद मैं ज्वालामुखी फटते ही देखता। जितना मैं ज़्यादा सोचता उतना ही खुद को किसी राख और धातुमल में दिखने के खयाल आते।
मुझे अब कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैंने तय किया कि मैं हर हाल में, मौसाजी को अपनी सारी चिंताएँ बता दूँगा, चाहे जिस भी तरीके से, भले ये मेरी कोई परिकल्पना ही क्यों ना हो।
मैं उनसे मिला और अपना सारा डर और उसकी वजह उनके सामने रखकर इत्मीनान से उनके जवाब का इंतजार करने लगा।
"मैं इस बारे में सोच रहा था।" उन्होंने बहुत ही शान्ति से कहा।
क्या मतलब है इनका? क्या अब इनको वजह मिल गयी है? क्या ये इस कार्यक्रम को यहीं रोकना चाहते हैं? इससे ज़्यादा खुशी की बात और क्या होगी।
हालाँकि मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मैं तो उनको बिना कष्ट पहुँचाए उनके जवाब के लिए उत्सुक था। कुछ देर बाद वो फिर बोले।
"मैं इस बारे में सोच रहा था।" उन्होंने कहना जारी रखा, "जबसे स्टैपी से हम चले हैं, मेरे दिमाग में भी तुम्हारे वाले सवाल हैं और इन सबको दरकिनार कर आगे बढ़ना अविवेकपूर्ण होगा।"
"मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ मौसाजी।" मैंने उम्मीद में खुशी को छुपाते हुए कहा।
"करीब छः सौ सालों से स्नेफल्स खामोश है और अभी तक कि चुप्पी का मतलब ये भी नहीं है कि ये बोलेगा नहीं। ज्वालामुखी के फटने से पहले असाधारण हलचल होते हैं। मैंने बहुत ध्यान से यहाँ के निवासियों को देखा, यहाँ की मिट्टी को परखा और मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से बताना चाहूँगा कि अभी ऐसा कुछ नहीं होगा।"
मैं उनकी सकारात्मक बातें सुनकर अवाक था।
"तुम्हें मेरी बातों पर संदेह है," मौसाजी ने कहा, "आओ मेरे साथ।"
मैंने आदरपूर्वक वही किया।
जब हम उस गिरजाघर से चले थे तो मौसाजी ने असिताश्म पत्थरों वाली सड़क को चुना था, जहाँ दूर तक समुद्र नहीं थे। फिर हम ऐसे जगह पर थे जहाँ की ज़मीन ज्वालामुखी के अवशेषों से भरी पड़ी थी। ऐसा लगता था जैसे पूरी धरती असिताश्म, ग्रेनाइट, लावा और अन्य अवशेषों से ही बनी है।
बहुत से ऐसे छिद्र थे जिनमें से भाप निकल रहे थे। ये भाप, ज़मीन से निकलते गर्म फव्वारों के होते हैं जिन्हें आइसलैंडिक भाषा में "रेकीर" कहते हैं और इन्हीं के रवैये से ज्वालामुखी के फटने के आभास होता है। उनपर ध्यान देते ही मेरे डर में इजाफा हुआ। मैं और ज़्यादा उत्सुक हो गया जब मौसाजी ने बुलाकर दिखाया।
"हैरी, मेरे बच्चे, ये धुएँ देख रहे हो?"
"जी, हाँ।"
"जब तक ये दिख रहे हैं, ज्वालामुखी की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
"ये कैसे सम्भव है?"
"ये बात हमेशा याद रखना," प्रोफ़ेसर ने बात जारी रखा, "जब ज्वालामुखी फटने के करीब होगा, ये भाप की गति तेज होते हुए गायब हो जाते हैं क्योंकि जैसे-जैसे हवाओं में दबाव बढ़ता है, ये भाप नीचे दबती जाएँगी और नीचे का ताप जब बढ़ने लगेगा तब ज्वालामुखी के फटने के आसार होते हैं। जब तक ये दिख रहे हैं, तब तक सब ठीक है।"
"लेकिन..."
"बस, बहुत हुआ मेरे बच्चे। जब विज्ञान ने सबकुछ पहले से समझा दिया है तो हमें उसे आदरपूर्वक मानना चाहिए।"
मैं निराश मन से सिर झुकाकर वापस अपने कमरे में आ गया। मौसाजी ने अपने तर्क से मुझे पराजित कर दिया था। जबकि मुझे अब भी यकीन था कि भले सैकन्युज़ेम्म ने कितना भी कहा हो लेकिन इसके खोह में इतना ताप होगा कि नीचे उतरने के बाद हम ज़्यादा दूर नहीं जा पाएँगे।
सारी रात मैंने कलेजे पर पत्थर रखे हुए काटा और सपने में अनसुने और अनदेखे प्रताड़ना के बाद किसी धूमकेतु की तरह अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहा था।
अगले दिन 23वें जून को, हैन्स अपने नियुक्त किए हुए तीन साथियों और सारे सामान, औजार के साथ गिरजाघर की तरफ इंतज़ार कर रहा था। हैन्स, जिसने हर सावधानी का खयाल रखा था, उसने हमारे सामानों में अलग से बैग में पीने के लिए पानी का इंतजाम कर दिया था जिससे हम आराम से आठ दिन गुज़ार सकते थे।
सुबह नौ बजे हम सब तैयार थे। पादरी और उनकी पत्नी या नौकरानी भी हमारी विदाई के लिए दरवाजे पर खड़े थे। ऐसा लगा शायद ये अब आइसलैंडिक व्यवहार के तौर पर अंतिम सलाम के रूप में गालों को चूमें। लेकिन इसके बजाय उन्होंने भुगतान के लिए पर्चा पकड़ा दिया जिसमें उन्होंने इस्तेमाल हुए चीजों का दाम लगाया था, उस घटिया भद्दे कमरे का भी जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। इन जोड़ो ने अपनी अव्यवहारिक
अव्यवस्था का दाम किसी आलीशान मेहमान नवाजी जैसा लगाया था।
मौसाजी ने बिना मोल-भाव किए उनको उनकी कीमत दे दी। जिस इंसान ने तय कर लिया है कि वो अपना सफर भू-गर्भ में गुज़ारेगा, वो चंद सिक्कों के लिए अपना समय बर्बाद नहीं करेगा।
ये मामला सलटते ही हैन्स ने चलने का इशारा किया और कुछ ही देर बाद हमने स्टैपी से विदा ले ली।