अध्याय 14
आकाश में चंद्रमा दिख रहा था। आकाश में नवरत्नों को बिखेर दिया हो ऐसे नक्षत्र चमक रहे थे।
पेड़ के नीचे खटिए पर मोती लेटा था। ‘उन्होंने मुझे चाहा होगा पर मैंने कसम से उन्हें नहीं चाहा। देवी के मंदिर में गीता की शादी को रोकने के लिए पुलिस के साथ जब गया तब गीता ने जो बातें बोली उसे मैं भूल नहीं पा रहा ।’
उन्होंने मुझे चाहा होगा। परंतु कसम से मैंने उन्हें नहीं चाहा।
उसके मन के अंदर यही बात बार-बार गूंज रही थी ।
चाकू से वार किया जैसे दर्द हो रहा था।
इस घटना को घटे एक हफ्ता हो गया था।
उसके बाद भी वह उसे भूल नहीं पा रहा था।
दिल फट जाएगा जैसे लग रहा था।
मैं शादी को नहीं रोक पाया फिर भी गीता की शादी नहीं हुई। पर शादी हो ना सकी |
सात फेरे लिए बिना ही बाबूलाल हार्ट अटैक से मर गया।
वहां के आस-पास के गांव वाले इसी बारे में बात करते रहते थे।
"भैया उस लड़की की शादी रुक गई....."
पप्पू ने ही आकर मोती को यह बात बताई। गीता की शादी के रुक जाने से मोती को खुशी नहीं हुई।
बाबूलाल के मरने से क्या हुआ?
घासी लाल ,राम लाल जाने कितने बूढ़े, और नहीं होंगे क्या?
अबकी बार शादी रुक गई तो क्या हुआ ?
फिर से इस तरह ही बड़ी उम्र के बूढ़े को पकड़ कर मौसी गीता से उसकी शादी करवा देगी।
यही होने वाला है।
इसे कोई नहीं रोक सकता।
'इससे संबंधित व्यक्ति मुंह नहीं खोलें तो फिर हम क्या कर सकते हैं।
उसे बहुत बुरा लग रहा था।
ठीक से खाना भी नहीं खा पा रहा था।
बड़े बेमन से काम पर जा रहा था।
अर्द्ध रात्रि का समय हो रहा था। अभी तक उसे नींद नहीं आई। वह सो नहीं पा रहा था।
"रात के 12:00 बजने वाले हैं.. अंदर आ कर सो जाओ मोती।"
घर के अंदर से बाहर आकर उसकी अम्मा सविता ने बोला।
लड़के की वजह से उसने भी ठीक से खाना नहीं खाया।
वह भी नहीं सो पाई।
"तुम जाकर सो जाओ अम्मा"
"मैं सो नहीं पा रही हूं मोती।"
"क्यों अम्मा.."
"उस लड़की ने तुम्हारा इतना अपमान किया फिर भी तुम उसी के बारे में ही क्यों सोचते रहते हो... ऐसा मत करो मोती। उसके बारे में मत सोचो। उसने ही अपने सिर पर मिट्टी उठाकर डाल ली... उसे छोड़ो... उसे कुछ भी होने दो...."
"अपने मुंह से उस लड़की को बददुआ मत दो।" मोती बोला।
"मेरी कोशिश भले ही सफल न हुई... गीता की शादी तो नहीं हुई.... आखिर रुक ही गई। इससे आपको क्या पता लगता है.."
"मुझे कुछ नहीं लगता... मेरा जी जल रहा है... मेरे बेटे का जीवन ऐसे अधर झूल में लटक गया है सोच कर जी जल रहा है..."
"नहीं अम्मा... मुझे क्या लगता है पता है ?"
"क्या लगता है ?"
"गीता मेरे लिए ही पैदा हुई है ऐसा लगता है... तुम चाहे तो देखो... एक दिन वह लड़की मुझे ढूंढ कर जरूर आएगी..."
बड़े विश्वास के साथ उत्सुकता से मोती बोला।
"ऐसे आ जाएं तो तुमसे ज्यादा खुश मैं ही होऊंगी। अभी आ जा रे... आ कर सो जा..." ऐसा कहते हुए सविता ने उसके हाथ को पकड़ कर प्रेम से खींचा।
मनाली और कमला दोनों ही सचमुच में बहुत खुश हुई। राकेश हमेशा की तरह यंत्र जैसे ही व्यवहार कर रहे थे।
उनके लिए दुख भी वैसा ही था जैसे खुशी....
रितिका के डर के कारण उनमें किसी प्रकार की कोई संवेदना ही नहीं बची।
"मौसी मैं फिर से आभूषण के दुकान में काम पर जाती हूं।" गीता रोने वाली आवाज से अनुनय-विनय करने लगी।
"तू कहीं नहीं जाएगी | जो गाय हैं उनको खेत में ले जाकर चरा कर ले आ..."
गीता को वह पहले से ज्यादा डांटने लगी। और ज्यादा गालियां देने लगी।
मेरी आंखों के सामने ही मत आ बोलती थी ।
ठीक से खाना ना देकर उसे परेशान करती थी ।
गीता किसी भी चीज पर ध्यान ना दे कर गाय और बकरियों को चराने के लिए ले जाने लगी।
"अरे रितिका। तुम कैसी हो... कहती हुई आई द्रौपदी।
"मैं मर गई हूं या जिंदा हूँ यहीं देखने आई है क्या....
गुस्से से सविता बोली ।
"तुम गुस्से से उबल रही होगी मुझे मालूम है... इसीलिए थोड़ा ठंडा करने के लिए आई हूं"
"दीदी क्या बोल रही हो ?"
"अपने गांव की ताई जो यहाँ की लड़कियों को बाहर ले जाकर धंधा कर रही है मालूम है ?"
"वह बात मेरे कानों में भी पडी थी... वह कपड़े का व्यापार करती है ऐसा बोला..."
"झूठ... अभी भी वह दो लठैत के साथ कार में आकर उतरी है... दो हफ्ते से यहां ठहरी हुई है। तीखे नाक नक्शे वाले लड़कियों को देखकर धंधे के लिए लेकर जाती है... तुम चाहो तो गीता को उनके साथ भेज दो। हाथ में पूरे तीस हजार पूरा देगी... वहां गीता उनका कितना साथ देती है उसके ऊपर निर्भर है। हर महीने तुम्हारे नाम से 6000 या 5000 पोस्ट ऑफिस के द्वारा भेज दिया जाएगा..."
रुपयों का नाम सुनते ही रितिका फट से उठ कर बैठ गई ।
"गीता इसके लिए मान जाएगी ?"
"उसको इसके बारे में मत बताओ। उसे वहां जाकर मालूम होने दो।"
"ताई के बारे में तो पूरे गांव को पता है। उसके साथ जाने वाली कोई भी लड़की अच्छी नहीं है। कोई भी लड़की सुरक्षित वापस नहीं आई.... पूछो तो कहती है वह किसी के साथ भाग गई.... गीता को इन कहानियों के बारे में पता है? उसके साथ जाने के लिए तो वह कभी नहीं मानेगी...."
"तुम्हें उसे मनाना होगा। उसे यहीं रख कर क्या अचार डालोगी ? फेरे पड़ने के पहले ही बाबूलाल मर गया। चारों तरफ बात फैल गई। अब कोई भी लड़का गीता से शादी नहीं करेगा.... एक दिन वह अपने आप उस ड्राइवर के साथ भाग जाएगी.... तब तुम क्या करोगी? इसीलिए तो बोल रही हूं... गीता को ताई को सौंप दो... आने वाले पैसों को हाथ आगे बढा कर ले लो... उसे लेकर जाना फिर उसकी जिम्मेदारी है। रात के समय लेकर चली जाएगी...."
रितिका ने द्रोपति की बात को आराम से सुना।
धूप में गाय को चराने गई गीता का गला सूखने से उसे प्यास लगी। पानी पीने के लिए घर आई। बरामदे में रितिका सोई थी। सामने दिखाई देने पर डांटेगी सोच पीछे की तरफ से घर के अंदर घुसी।
बिना आवाज के पानी लेकर पिया।
तभी द्रौपदी और रितिका की बातें उसने पूरी सुनी।
वह बुरी तरह से परेशान होने लगी।
उसे ताई के बारे में अच्छी तरह से पता था।
मीठी-मीठी बातें करती थी।
कभी-कभी ही गांव की तरफ आती थी।
रोबदार व्यक्तित्व। दो लठैत साथ में होते।
गरीब और लालची परिवार को छांट कर वहां की जवान लड़कियों को काम देने का कहकर लेकर जाती।
हर महीना सिर्फ रुपए ही आता।
ताई के साथ गई लड़कियां कभी वापस नहीं आती।
इसी गांव की, सोने जैसे प्यारी लड़की 16 साल की अपने परिवार के विपरीत परिस्थितियों के कारण उसे भेज दिया। जब वह वापस आई तो सिर्फ तीन महीने में उसे पहचान न सके ऐसी बदल गई थी फिर उसने आत्महत्या कर ली। यह बात पूरे गांव को मालूम थी।
उसके बाद ताई का आना बंद हो गया था।
अब फिर से आ गई ।
"ताई के पास मेरी मौसी मुझे भेज देगी क्या ?"
चुपचाप रोती हुई वहां से गीता चली गई।
बिल्कुल दया, ममता के बिना गीता को द्रोपदी से कहकर तीस हजार में गीता को ताई के हाथों बेच दिया।
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