मानस के राम
भाग 46
राम तथा लक्ष्मण का नागपाश में बंधना
इंद्रजीत लक्ष्मण के आने की प्रतीक्षा कर रहा था। राम से विजय का आशीर्वाद प्राप्त कर लक्ष्मण युद्धभूमि में पहुँचे। उन्हें देखकर इंद्रजीत ने कहा,
"आज तुम्हारी मृत्यु तुम्हें युद्धभूमि में खींचकर लाई है। मैं तुमसे अपने भाई अतिकाय के वध का प्रतिशोध लेने आया हूँ।"
लक्ष्मण ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा,
"मैं भी अपने भ्राता का आशीर्वाद प्राप्त कर तुम्हारे अहंकार को अपने बाहुबल से चूर करने के लिए आया हूँ।"
"देखते हैं कि तुम मेरा अहंकार चूर करते हो या फिर तुम्हारे भ्राता को तुम्हारी मृत्यु पर शोक मनाना पड़ता है।"
लक्ष्मण ने हंसकर कहा,
"मैंने सुना था कि जब तुम्हारा जन्म हुआ था तब तुम्हारा रुदन मेघ की गर्जना के समान था। लेकिन लगता है कि तुम केवल गर्जना करने वाले मेघ ही हो। बरसना तुम्हारे वश में नहीं है।"
"मेरी गर्जना सुन चुके हो। अब मेरे बाणों की वर्षा का सामना करो।"
लक्ष्मण ने कहा,
"पहले मेरे इस बाण का सामना करो।"
यह कहकर लक्ष्मण ने बाण चलाया। इंद्रजीत ने उसे काट दिया। उसके बाद दोनों के बीच युद्ध आरंभ हो गया। इंद्रजीत अपने बाणों की वर्षा कर रहा था और लक्ष्मण अपनी बाणों से उसका जवाब दे रहे थे। दोनों योद्धा बराबर के थे। दोनों ही एक दूसरे को पराजित कर रहे थे पर कर नहीं पा रहे थे।
इंद्रजीत मायावी विद्या में निपुण था। सूर्यास्त के समय उसकी मायावी शक्तियां और अधिक प्रबल हो जाती थीं। सूर्यास्त निकट था। लक्ष्मण अभी तक इंद्रजीत को पराजित नहीं कर पाए थे। विभीषण को चिंता हो रही थी। वह राम के पास जाकर बोले,
"हे रघुकुल शिरोमणि राम विभीषण कई मायावी शक्तियों का स्वामी है। सूर्यास्त हो रहा है। अब उसकी शक्तियां कई गुना बढ़ जाएंगी। लक्ष्मण के लिए अकेले उसका सामना करना संभव नहीं है। अतः आप जाकर युद्ध में उनकी सहायता कीजिए।"
राम भी समझ रहे थे कि इंद्रजीत को हरा पाना कठिन कार्य है। अतः विभीषण की बात मानकर वह युद्धभूमि में चले गए।
इंद्रजीत सोचकर आया था कि वह लक्ष्मण को आसानी से पराजित कर देगा। किंतु उसे भी अनुभव हो गया था कि लक्ष्मण कोई साधारण योद्धा नहीं हैं। उसी समय राम ने भी युद्धभूमि में प्रवेश किया। उन्हें देखकर इंद्रजीत ने अपनी माया का प्रयोग किया।
वह रथ सहित आकाश में गया और अदृश्य हो गया। उसकी इस माया को देखकर लक्ष्मण को आश्चर्य हुआ। राम ने उन्हें समझाते हुए कहा,
"अनुज लक्ष्मण इंद्रजीत बलशाली होने के साथ-साथ मायावी भी है। अतः उसके साथ युद्ध करते समय पूरी सावधानी रखनी होगी।"
अदृश्य होने के बाद इंद्रजीत ने विभिन्न प्रकार के शस्त्रों का प्रयोग करना आरंभ किया। उनके प्रहार से वानर सेना के सैनिकों को आहत करने लगा। युद्धभूमि में कोलाहल मच गया। कोई समझ ही नहीं पा रहा था कि प्रहार कहांँ से हो रहा है। राम तथा लक्ष्मण ने कमान संभाली। उन्होंने इंद्रजीत के द्वारा चलाए गए अस्त्रों को अपने बाणों से काटना आरंभ कर दिया।
इंद्रजीत ने उन दोनों पर बाण चलाने आरंभ कर दिए। राम तथा लक्ष्मण उसके प्रहार का उत्तर दे रहे थे। किंतु उसे पराजित नहीं कर पा रहे थे। अंत में इंद्रजीत ने अमोघ नागपाश शक्ति का प्रयोग किया। उस शक्ति ने राम तथा लक्ष्मण दोनों को ही अपने प्रभाव में ले लिया।
नागपाश में बंधे हुए राम तथा लक्ष्मण मूर्छित हो गए। वानर सेना में उदासी छा गई।
राम और लक्ष्मण को नागपाश में बांधकर इंद्रजीत अपनी विजय के नशे में डूबा हुआ युद्धभूमि से लौट गया। लंका के प्रवेशद्वार के भीतर घुसते ही 'राजकुमार इंद्रजीत की जय' के नाद के साथ उसका स्वागत हुआ। उसका रथ आगे बढ़ रहा था और मार्ग के दोनों ओर खड़े स्त्री व पुरुष उसकी वीरता की प्रशंसा करते हुए जयघोष कर रहे थे।
इंद्रजीत की सफलता के नारे रावण के महल तक पहुँच रहे थे। वह अपने पुत्र की सफलता पर गर्व से फूला नहीं समा रहा था। बड़ी ही उत्सुकता के साथ उसके महल में आने की राह देख रहा था।
इंद्रजीत ने रावण के महल में प्रवेश किया। अपने पिता के चरणस्पर्श करके उन्हें अपनी विजय का शुभ संदेश सुनाया। रावण ने उसे अपने वक्ष से लगाकर कहा,
"पुत्र तुमने आज मुझे बहुत बड़ी प्रसन्नता दी है। मुझे तुम पर गर्व है। मेरा आशिर्वाद है कि तुम्हारा यश सभी दिशाओं में फैले।"
इंद्रजीत ने गर्व के साथ कहा,
"पिताश्री आप अब जीत के लिए आश्वस्त हो जाइए। मैंने राम और उसके छोटे भाई लक्ष्मण को नागपाश में जकड़ दिया है। नागपाश के बंधन से मुक्त होने का उपाय केवल मृत्यु है।"
अपने पुत्र की बात सुनकर रावण और भी अधिक प्रसन्न हो गया।
हनुमान द्वारा पक्षीराज गरुड़ से सहायता मांगना
वानर सेना में शोक और निराशा की लहर छाई हुई थी। राम तथा लक्ष्मण को अचेत देखकर सभी दुखी थे।
सुग्रीव, जांबवंत, नल, नील और अंगद विभीषण के साथ मिलकर इस समस्या के निदान के लिए उपाय सोच रहे थे। अंगद ने कहा,
"विभीषण जी क्या इस नागपाश से मुक्ति मिलने का कोई भी उपाय नहीं है ?"
आहत स्वर में विभीषण ने कहा,
"युवराज अंगद नागपाश की शक्ति को तोड़ने का कोई उपाय नहीं है। यह शक्ति जिसे भी अपने बंधन में लेती है उसके प्राण लिए बिना नहीं छोड़ती है।"
जांबवंत ने उनकी बातों का समर्थन करते हुए कहा,
"यह बहुत ही शक्तिशाली पाश है। इसे ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया था। उन्होंने यह शक्ति महादेव को दे दी। इंद्रजीत की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने यह शक्ति उसे प्रदान कर दी।"
सुग्रीव ने परेशान होकर कहा,
"यदि समस्या होती है तो उसका निदान भी होता है। इस शक्ति से मुक्त होने का भी कोई ना कोई उपाय अवश्य निकलेगा। मारुति नंदन हनुमान ने स्वयं को एक बार इंद्रजीत की शक्ति से मुक्त करा था। वह अवश्य ही कोई उपाय निकाल सकते हैं।"
उनकी बात सुनकर अंगद ने कहा,
"किंतु इस विकट परिस्थिति में हनुमान कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। ना जाने कहांँ चले गए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इंद्रजीत उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर ले गया हो। क्योंकी अपने आराध्य श्रीराम के मूर्छित हो जाने के बाद भी उनका यहाँ ना होना असंभव सी बात लगती है।"
सुग्रीव ने आदेश दिया की गुप्तचर भेजकर पता करने का प्रयास किया जाए कि हनुमान को बंदी बनाकर लंका तो नहीं ले जाया गया है।
त्रिजटा ने अशोक वाटिका में सीता को जब यह समाचार सुनाया कि राम तथा लक्ष्मण इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर अचेत हो गए हैं तो वह व्याकुल हो गईं। देवी जगदम्बा से उन दोनों की सुरक्षा की प्रार्थना करने लगीं।
हनुमान ने जब अपने आराध्य राम और उनके अनुज लक्ष्मण को नागपाश में बंधे हुए देखा तो उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने सोचा कि नागपाश को केवल भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ ही काट सकते हैं। वह तुरंत पक्षीराज गरुड़ के पास पहुँचे। उनके साथ नारद मुनि भी थे। हनुमान ने गरुड़ से प्रार्थना की कि वह उनके साथ चलें और प्रभु श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण को नागपाश से मुक्ति दिलाएं।
गरुड़ ने कहा,
"भगवान विष्णु ही प्रभु राम के रूप में अवतरित हुए हैं। यह उनकी कोई लीला है कि उन्होंने नागपाश में बंधना स्वीकार किया। अन्यथा विश्व की ऐसी कोई भी शब्द नहीं है जो भगवान विष्णु को अपने बस में कर सके। मेरा उनकी लीला में उनकी आज्ञा के बिना इस प्रकार बाधा डालना ठीक नहीं है।"
"पक्षीराज उनकी लीला में एक अहम भूमिका निभाने का आपको अवसर प्राप्त हुआ है। अतः इस समय आज्ञा के लिए प्रतीक्षा ना कर आप प्रभु राम के प्राण बचाएं।"
नारद मुनि ने भी समझाते हुए कहा,
"पक्षीराज गरुड़ विपत्ति काल में सामान्य समय की मर्यादाएं लागू नहीं होती हैं। अतः आप बिना किसी संकोच के हनुमान जी के साथ जाकर प्रभु श्री राम के प्राणों की रक्षा करें।"
हनुमान ने कहा,
"प्रभु श्रीराम नागपाश में बंधे अचेत अवस्था में पड़े हैं। नाग हर एक क्षण उनके शरीर से प्राण खींच रहे हैं। अतः शीघ्र चलिए। यदि प्रभु राम को कुछ हो गया तो उनके धरती पर अवतार लेने का प्रयोजन ही खत्म हो जाएगा।"
हनुमान तथा नारद जी द्वारा समझाए जाने पर गरुड़ सहायता के लिए चलने को तैयार हो गए।
वानरों ने देखा कि आकाश से पक्षीराज गरुड़ के साथ हनुमान भी आ रहे हैं। हनुमान के साथ गरुड़ को देखकर वानरों में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी हनुमान की बुद्धिमत्ता की प्रशंशा करने लगे। वह जानते थे कि नागपाश को काटने में गरुड़ सहायक हो सकते हैं।
सुग्रीव ने आगे बढ़कर हनुमान का स्वागत करते हुए कहा,
"हे पवनपुत्र हनुमान आपकी बुद्धि की जितनी सराहना की जाए कम है।"
हनुमान ने कहा,
"प्रभु राम और उनके अनुज को अचेत देखकर मैं तुरंत पक्षीराज गरुड़ को बुलाने के लिए चला गया था। पक्षीराज गरुड़ ही नागपाश को काटने में सक्षम हो सकते हैं।"
हनुमान ने गरुड़ से प्रार्थना की कि वह नागपाश को काटकर प्रभु राम और उनके अनुज को मुक्त कराएं।
गरुड़ ने नागपाश को काट दिया। नागपाश के बंधन से मुक्त होते ही राम तथा लक्ष्मण अपनी मूर्छा से वापस आ गए।
वानर दल में एक बार पुनः खुशी की लहर दौड़ गई।
इंद्रजीत का पुनः रणभूमि में आना
रावण तथा इंद्रजीत इस बात को लेकर खुश थे कि अब राम तथा उनके भाई लक्ष्मण का अंत निश्चित है। किंतु उनके गुप्तचरों ने आकर सूचना दी कि पक्षीराज गरुड़ ने राम तथा लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त कर उनके प्राण बचा लिए हैं। यह सुनकर रावण एवं इंद्रजीत दोनों को ही बड़ा आश्चर्य हुआ। इंद्रजीत ने रावण से कहा,
"पिताश्री इस बार दोनों भाग्य से बच गए हैं। किंतु उनका भाग्य हर बार उनकी सहायता नहीं कर पाएगा। मैं पुनः युद्धभूमि में जाकर उन दोनों भाइयों को प्राण दंड देकर आऊँगा।"
अगले दिन इंद्रजीत पुनः युद्धभूमि में गया।
इंद्रजीत ने आते ही ललकारा,
"कहाँ हैं दोनों भाई। भाग्य से कल दोनों भाई नागपाश के बंधन से मुक्त हो गए। परंतु इस बार इंद्रजीत उनकी मृत्यु बनकर आया है।"
इंद्रजीत की इस ललकार का उत्तर देने के लिए हनुमान उसके सामने आए। वह इंद्रजीत के साथ युद्ध करने लगे। पहले इंद्रजीत ने अपनी तलवार से हनुमान की गदा का सामना किया। अपनी शक्ति से उसने हनुमान को गदा सहित पीछे ढकेल दिया। उसके बाद उसने बाण चलाया। हनुमान ने अपनी गदा से उसे रोकने का प्रयास किया। किंतु इस बार भी उन्हें पीछे हटना पड़ा।
इंद्रजीत ने एक बार फिर कहा,
"लगता है राम तथा लक्ष्मण नागपाश के प्रभाव से शक्तिहीन हो गए हैं। इसलिए यहाँ आने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। उनसे जाकर कहो यदि युद्ध करने का साहस ना बचा हो तो लंकापति रावण की शरण में आ जाएं। अन्यथा आकर युद्ध करें।"
अंगद ने जाकर राम तथा लक्ष्मण को इंद्रजीत का संदेश सुनाया। उसे सुनकर लक्ष्मण को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा,
"भ्राताश्री आप मुझे आज्ञा दीजिए। मैं जाकर अभिमानी इंद्रजीत का दंभ चूर करता हूँ।"
राम ने समझाया,
"लक्ष्मण इंद्रजीत का सामना करने के लिए उत्तेजित होने की नहीं बल्कि संयम की आवश्यकता है। वह मायावी शक्तियों का धनी है। उसका सामना संयम और धैर्य से करने की आवश्यकता है। तुम जाओ किंतु अपने क्रोध को नियंत्रण में रखना।"
राम ने सुग्रीव, हनुमान, अंगद को लक्ष्मण के साथ रहने का आदेश दिया।
लक्ष्मण इंद्रजीत से युद्ध करने के लिए युद्धभूमि में चले गए।