Manas Ke Ram - 41 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मानस के राम (रामकथा) - 41

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मानस के राम (रामकथा) - 41





मानस के राम

भाग 41



मकराक्ष का वध


प्रहस्त की मृत्यु से एक बार फिर वानर सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई थी। राम ने अपने अनुज लक्ष्मण की प्रशंसा करते हुए कहा,
"लक्ष्मण प्रहस्त जैसे वीर का वध करके तुमने शत्रु पक्ष में हलचल मचा दी है। रावण के लिए अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार अत्यंत दुखदाई होगा।"
लक्ष्मण ने कहा,
"हाँ भ्राता श्री प्रहस्त निसंदेह ही एक वीर योद्धा था। उसकी मृत्यु का समाचार शत्रु पक्ष पर भारी पड़ेगा।"
जांबवंत ने सलाह दी,
"परंतु जिस प्रकार घायल शेर अधिक हिंसक हो जाता है। उसी प्रकार अपने पुत्र की मृत्यु से आहत रावण और अधिक उग्र हो गया होगा। हमें किसी बड़े आक्रमण के लिए तैयार रहना चाहिए।"
राम ने कहा,
"आपका परामर्श एकदम उचित है रीछ राज जांबवंत जी। हमको अब सतर्क रहने की आवश्यकता होगी।"
लक्ष्मण ने कहा,
"भ्राता श्री हम पूरी तरह से तैयार हैं। शत्रु पक्ष के हर आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देंगे।"

रावण के दरबार में सभी चिंतित थे। अपने पुत्र की मृत्यु से रावण बहुत अधिक आहत हुआ था। वह सोच रहा था कि आगे क्या किया जाए। तभी इंद्रजीत ने कहा,
"महाराज मैं अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए तड़प रहा हूँ। अतः आप मुझे आज्ञा दें कि मैं रणभूमि में जाकर अपने भाई के वध का प्रतिशोध ले सकूँ।"
इंद्रजीत की बात सुनकर खर का पुत्र मकराक्ष बोला,
"मेरे जैसे योद्धाओं के रहते हुए राक्षस सेना के प्रधान सेनापति का युद्ध में जाना उचित नहीं है। महाराज आप मुझे युद्ध में जाने की आज्ञा दीजिए। मेरे हृदय में भी प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही है। राम ने मेरे पिता खर तथा काका दूषण का वध किया था। मुझे अपने पिता और काका की मृत्यु का बदला लेना है। महाराज मैंने अपनी माता को वचन दिया है कि मैं राम का वध कर अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करूंँगा। आप मेरी क्षमता पर पूर्ण भरोसा रखें। मैं आपको निराश नहीं करूंँगा।"
मकराक्ष की बात सुनकर रावण ने कहा,
"मकराक्ष जाओ और अपने ह्रदय में धधकती प्रतिशोध की अग्नि में वानर सेना सहित उन दोनों भाइयों को जलाकर नष्ट कर दो।"

जब मकराक्ष रणभूमि में पहुँचा तो एक भयंकर कोलाहल उत्पन्न हुआ। उसे सुनकर वानर सेना को लगा कि शायद स्वयं लंकेश युद्ध करने के लिए आ गया है। लक्ष्मण ने विभीषण के पास जाकर कहा,
"अपने पुत्र प्रहस्त की मृत्यु का बदला लेने के लिए लगता है स्वयं रावण युद्धभूमि में आ गया है।"
विभीषण ने ध्यान से देखकर कहा,
"नहीं यह लंकेश नहीं है। यह तो जनस्थान के राजा खर का पुत्र मकराक्ष है।"
"कोई बात नहीं। जिस प्रकार इसके पिता को यमलोक पहुँचाया है इसे भी पहुंँचा देंगे।"
युद्धभूमि में आते ही मकराक्ष ने ललकारते हुए कहा,
"कहाँ है राम ? उससे कहो कि मेरे समक्ष आकर मुझसे युद्ध करे।"
उसकी ललकार सुनकर लक्ष्मण ने आगे बढ़कर कहा,
"उनसे युद्ध करने से पहले तुम्हें मुझसे युद्ध करना होगा।"
"मैं तुमसे युद्ध करने के लिए नहीं आया हूँ। इस रणभूमि में मैं अपनी माता को दिए गए वचन का पालन करने के लिए आया हूंँ। मैंने अपनी माता को वचन दिया है कि मैं राम का शीश काटकर। उसकी खोपड़ी में जल भरकर अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करूंँगा। अतः तुम लौट जाओ और अपने भाई राम को युद्ध करने के लिए भेजो।"
"मेरे भ्राता का शीश काटने से पहले तुम्हें मेरा शीश काटना होगा। पहले मुझसे युद्ध करो। मुझे पराजित करने के बाद मेरे भ्राता राम से युद्ध करने के बारे में सोचना।"
लक्ष्मण ने मकराक्ष को युद्ध के लिए ललकारा। तभी वहाँ राम वहाँ आ गए। वह बोले,
"लक्ष्मण यदि इस वीर योद्धा ने मुझे युद्ध की चुनौती दी है तो मैं ही इसके साथ युद्ध करूंँगा।"
यह कहकर राम ने मकराक्ष से कहा,
"मैं तुम्हारे साथ युद्ध करने के लिए तैयार हूँ। यह मेरा वचन है कि यदि तुमने मुझे युद्ध में पराजित कर दिया तो तुम्हें मेरा शीश काटकर ले जाने का अधिकार है।"
राम ने वहांँ उपस्थित विभीषण, अंगद और लक्ष्मण से कहा,
"आप सब मेरे इस वचन के साक्षी हैं। मेरी मृत्यु के बाद आप लोगों को यह सुनिश्चित करना है कि मेरा दिया हुआ वचन बेकार ना जाए। क्योंकी रघुकुल की यही रीत है कि हर परिस्थिति में अपना वचन निभाया जाए।"
मकराक्ष ने कहा,
"एक बात और है। यह युद्ध सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच होगा। किसी और योद्धा को इसके बीच में आने का अधिकार नहीं है।"
राम ने उसे वचन दिया कि कोई और योद्धा उनके बीच नहीं आएगा। राम ने उसे प्रथम आक्रमण का अधिकार दिया। मकराक्ष ने बाण चलाया। राम ने उसे काट दिया। मकराक्ष राम पर बाणों का प्रहार कर रहा था। राम उसके बाणों को आसानी से काट देते थे। मकराक्ष ने बहुत प्रयास किया किंतु राम को पराजित नहीं कर पा रहा था। राम ने उसके रथ को तोड़ दिया। एक बाण उसकी भुजा में लगा। उससे रक्त बहने लगा।
जब वह सीधे तरह से राम का सामना नहीं कर पाया तो उसने माया का सहारा लिया। मकराक्ष ने अपने कई प्रतिरूप बना लिए। अपने विभिन्न प्रतिरूपों से वह भिन्न-भिन्न अस्त्रों के जरिए राम पर आक्रमण करने लगा। राम उसके आक्रमण का उत्तर दे रहे थे। किंतु उन्हें यह नहीं समझ आ रहा था कि इतने सारे प्रतिरूपों में से मकराक्ष का वास्तविक रूप कौन सा है। उन्हें कठिनाई में देखकर विभीषण ने आगे आकर कहा,
"आप भ्रमित ना हों। मायावी रूपों पर प्रहार होने से उनसे कोई रक्त नहीं निकलेगा। रक्त केवल वास्तविक रुप से ही निकलेगा।"
राम ने ध्यान से देखा। मकराक्ष के कई रूपों में से केवल एक रूप की भुजा से रक्त निकल रहा था। राम ने बाण का संधान कर मकराक्ष के वास्तविक रूप पर चलाया। वह भूमि पर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
वानर सेना श्री राम की जय के नारे लगाने लगी। राम ने उन्हें शांत कराने के बाद सुग्रीव से कहा,
"महाराज सुग्रीव आप इस योद्धा के शव को पूरे सम्मान के साथ रावण के पास पहुँचा दें।‌ यह एक वीर होने के साथ-साथ मातृ भक्त भी था। ‌अपनी माता को दिए गए वचन के लिए इसने अपने प्राणों का बलिदान दिया है।"

रावण का स्वयं रण में जाना

जब मकराक्ष का शव रावण के पास पहुँचा तो एक और योद्धा के बलिदान से रावण को इतना समझ आ गया कि जिन्हें वह साधारण नर और वानर समझ रहा था वह वास्तव में कुशल योद्धा हैं। किंतु अब युद्ध आरंभ हो चुका था। अब युद्धभूमि में या तो शत्रु के प्राण लेने थे या स्वयं के प्राण गंवाने थे। रावण ने कहा,
"मकराक्ष अपने पिता की भांति एक वीर योद्धा था। इसने रणभूमि में जो बलिदान दिया है वह व्यर्थ नहीं जाएगा। अब मैं स्वयं युद्धभूमि में जाकर इस युद्ध का अंत करूँगा। अब इस युद्ध का परिणाम हमारे पक्ष में होगा।"
रावण ने आदेश दिया कि उसके युद्धभूमि में जाने की तैयारी की जाए। तभी सेनापति अकंपन ने कहा,
"क्षमा चाहता हूँ महाराज। किंतु मेरे अनुसार आपके रण में जाने का यह उचित समय नहीं है।"
रावण ने पूँछा,
"ऐसा क्यों ?"
अकंपन ने कहा,
"महाराज नीति के अनुसार जब तक सेना में वीर योद्धा तथा सेनापति मौजूद हों तब तक राजा को स्वयं रण में नहीं उतरना चाहिए। सेना नायकों की क्षति से राज्य को उतनी हानि नहीं पहुँचती है। किंतु राजा की पराजय का अर्थ सारे राज्य की पराजय से होता है।"
अकंपन की बात सुनकर रावण क्रोध में बोला,
"तुम्हारा अर्थ है कि हम युद्ध में पराजित हो जाएंगे। शत्रु पक्ष को मिली तुच्छ विजय हमारे लोगों में भय का संचार कर रही है। शत्रु पक्ष फूला नहीं समा रहा है। अतः हमारा जाना आवश्यक है। हम युद्ध को जीतकर उनके अहंकार का मर्दन करेंगे। लंका वासियों के ह्रदय से निराधार शंका को दूर कर देंगे।"
रावण जब युद्धभूमि की तरफ बढ़ा तब रणभेरियों की आवाज़ से आसमान भी थर्रा उठा। 'जय लंकेश' का उद्घोष ने दशों दिशाओं को गुंजायमान कर दिया।
रणभूमि में पहुँचकर रावण ने गर्जना करते हुए ललकारा,
"राम...हम स्वयं तुम्हारी युद्ध करने की इच्छा को पूरा करने के लिए आए हैं। अब तक छोटी छोटी जीत पर तुम बहुत प्रसन्न हो रहे थे। पर अब हम तुम्हें तुम्हारा स्थान बताने के लिए आए हैं। तुम जैसा दीपक अब तक सूर्य को आँख दिखाने की कोशिश कर रहा था। मेरी शक्ति की आंधी में वह दीपक बुझ जाएगा।"
रावण की ललकार सुनकर सुग्रीव और लक्ष्मण आगे बढ़कर आए। सुग्रीव ने कहा,
"लगता है तुम्हारी सेना के सभी वीर मारे गए हैं। इसलिए तुम्हें युद्ध करने आना पड़ा। लेकिन श्री राम से युद्ध करने से पहले मेरी शक्ति का भी अनुमान कर लो।"
रावण ज़ोर से हंसा,
"उस दिन मल्लयुद्ध को छोड़कर भाग जाने वाला कायर हमें अपनी शक्ति दिखाएगा। उस राम से कहो कि तुम जैसे कायर पुरुषों के पीछे ना छिपे। सामने आकर हमसे युद्ध करे।"
रावण की बात सुनकर लक्ष्मण ने कहा,
"छल से एक स्त्री का हरण करने वाला एक कायर दूसरों को कायर कह रहा है।"
सुग्रीव ने कहा,
"तुम्हें उस दिन धूल नहीं चटा सका। आज तुम्हारी इच्छा पूरी कर देता हूँ।"
सुग्रीव ने रावण पर हमला किया। वह उसके रथ पर चढ़ गए। रावण पर वार किया। रावण ने उसके वार का सामना किया। लेकिन रावण सावधान था। उसने सुग्रीव पर प्रहार किया। सुग्रीव उसके वार को सह नहीं पाए। वह अचेत होकर भूमि पर गिर गए। रावण ने उनके प्राण लेने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाया। लेकिन लक्ष्मण ने आगे बढ़कर उसे रोका,
"कैसे योद्धा हो तुम ? तुमको यह भी नहीं पता कि युद्धभूमि में अचेत पर वार नहीं करते।"
"युद्ध में सिर्फ हार जीत मायने रखती है। फिर भी तुम कहते हो तो इसे छोड़ देता हूँ।"
यह कहकर रावण ने अपने बाण का लक्ष्य लक्ष्मण की तरफ कर दिया। वह बोला,
"तुम तो अचेत नहीं हो। लो संभालो मेरा बाण।"
रावण ने बाण छोड़ दिया। लक्ष्मण ने भी बाण चलाकर उसे काट दिया। दोनों के बीच धनुष से युद्ध होने लगा।
लक्ष्मण तथा रावण के बीच भयंकर युद्ध हो रहा था। जांबवंत ने राम से कहा,
"हे प्रभु आप ही उस रावण का सामना करें। वह बहुत शक्तिशाली है। उसका सामना आपके अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता है।"

लक्ष्मण रावण के बाणों का सामना कर रहे थे। परंतु रावण उन पर भारी पड़ रहा था। तभी रावण ने एक ऐसा बाण चलाया जिससे लक्ष्मण मूर्छित हो गए।