Apne-Apne Karagruh - 27 in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | अपने-अपने कारागृह - 27

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अपने-अपने कारागृह - 27

अपने-अपने कारागृह-27

खुशनुमा यादें लिए उषा और अजय भारत अपने देश लौट आए थे । नंदिता ने मां -पापा की गोल्डन जुबली एनिवर्सरी पर ताज होटल में ग्रांड पार्टी का अरेंजमेंट कर रखा था । उषा ने 'परंपरा ' के सभीलोगों को बुलाने का आग्रह किया तो शैलेश, नंदिता के साथ मम्मा डैडी ने भी सहमति दे दी थी ।

मां-पापा की विवाह की वर्षगांठ वाले दिन दोपहर में पूजा थी । पूजा में सिर्फ घर के लोग ही सम्मिलित हुए । शाम को होटल में रिसेप्शन का आयोजन था । डैडी अपने गोल्डन ब्राउन सूट तथा मम्मा गोल्डन बॉर्डर की मेरून साड़ी में इस उम्र में भी बहुत ही खूबसूरत लग रही थीं । खास मेहमानों ने आना प्रारंभ ही किया था कि रंजना ' परंपरा' के सभी लोगों के साथ आ गई । नंदिता और शैलेश ने उन सभी का गर्मजोशी से स्वागत किया । इस आयोजन का हिस्सा बनने के कारण सबके चेहरे खुशी से ओतप्रोत थे ।

' आज लग रहा है कि हम भी समाज का अंग अंग हैं । थैंक्यू उषा ।' गीता सूरी ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा था ।

' दीदी, आपने इन सबके मन में एक नया जोश भरा है शायद आपको पता नहीं है कि यहां आने के लिए इनमें से कुछ लोगों ने नई ड्रेस बनवाई है तथा कुछ ने अपनी पुरानी ड्रेस को ड्राई क्लीनिंग कराकर आज के फंक्शन में आने की तैयारी की है । सच दीदी आपका यह प्रयास इनमें एक सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक हुआ है ।' रंजना ने कहा ।

' यही सोचकर मैंने इन सबको इस कार्यक्रम में बुलाया है । भविष्य में भी मैं ऐसे कार्यक्रम करने की कोशिश करूंगी । ' उषा ने रंजना से कहा ।

' एक्सक्यूज मी... ।' कहकर नंदिता ने उसे बुलाया तथा कहा,' दीदी, चलिए पहले रिंग सेरेमनी करवा दें । उसके पश्चात जयमाला का प्रोग्राम करा देते हैं ।'

' ठीक है चलो । रंजना प्लीज तुम सभी का ध्यान रखना ,कोई भी बिना खाए पिए यहां से ना जाए ।' उषा ने रंजना से कहा तथा नंदिता के साथ चली गई ।

' ओ.के . दीदी ।'

स्टेज पर नंदिता ममा की तरफ तथा उषा डैडी की तरफ खड़ी हुई । रिंग एक्सचेंज के पश्चात उषा और नंदिता ने उन दोनों को माला पकड़ाई तो वे नव युवाओं की तरह शर्मा उठे । ममा-पापा ने एक दूसरे को जयमाला पहनाई ।

आगंतुकों की ताली की गड़गड़ाहट के साथ कैमरे के फ्लैश चमचमा उठे । वीडियो फिल्म बन ही रही थी । शैलेश और अजय मेहमानों के स्वागत में लगे हुए थे । मम्मा- डैडी के कुछ मित्र तो ऐसे थे जो उनके विवाह में भी सम्मिलित हुए थे । उनमें से कुछ ने मम्मा -डैडी के साथ बिताए लम्हों को शब्दों में पिरोया तो चाहे अनचाहे ममा-पापा की आंखों में आंसू आ गए थे । प्रोग्राम बेहद सफल रहा था ।

प्रोग्राम देखकर अंजना और मयंक भी कह उठे , ' भाभी, अगले वर्ष आ रही अपने मम्मी पापा की गोल्डन जुबली वेडिंग एनिवर्सरी भी हम ऐसे ही धूमधाम से मनाएंगे ।'

रिटर्न गिफ्ट में मम्मा डैडी की ओर से राम और सीता जी की मूर्ति दी गई । सभी मेहमान प्रसन्न मन से शुभकामनाएं देते हुए गए थे ।

विदा के समय कविता ने कहा, ' उषा अगले महीने 10 तारीख को शिखा का विवाह है । कार्ड मैं बाद में दूंगी किन्तु तुम्हे पहले से बता रही हूँ जिससे उस दिन तुम अपना कोई अन्य कार्यक्रम ना रख लो ।'

' बधाई कविता । बहुत खुशी की बात है । मैं तो कहती ही थी , चिंता मत करो, जब समय आएगा सब हो जाएगा । शिखा है ही इतनी प्यारी जिस घर जाएगी ,उसे स्वर्ग बना देगी । सच बहुत अच्छी खुशखबरी सुनाई है तुमने कविता । बेटी का विवाह हो और हम न आएं, ऐसा हो ही नहीं सकता । ' उषा ने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा था ।

शिखा के विवाह को लेकर कविता काफी दिनों से परेशान थी । शिखा गुणी है, जॉब भी अच्छा है पर उसका छोटा कद उसके विवाह में बाधक बना हुआ था पर यह भी निर्विवाद सत्य है कि इस दुनिया में गुणों की कद्र करने वाले भी होते हैं । कविता की बात ने उसकी इस धारणा को पुष्ट किया था ।

*********

दूसरे दिन उषा परंपरा गई । एक डायरी में उसने ' परंपरा ' के हर सदस्य से पूछकर उनके जन्मदिन की तिथि लिखी तथा जो युगल थे उनकी जन्मतिथि के साथ विवाह की वर्षगांठ की तारीख भी लिखी । कुछ ने उसके द्वारा चलाये अभियान तथा उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए बुझे मन से कहा कि अपना तो कोई नहीं है अतः अब इस सब की क्या आवश्यकता है ?

उषा ने कुछ उत्तर नहीं दिया क्योंकि वह उन्हें सरप्राइज देना चाहती थी । मनीषा का जन्मदिन अगले हफ्ते ही था । उसने रंजना से मिलकर उसका जन्मदिन मनाने का फैसला किया । अगस्त महीने की 8 तारीख को सायं 4:00 बजे वह केक लेकर गई । साथ ही प्रत्येक सदस्य के लिए नाश्ते के पैकेट भी उसने पैक करा लिए थे । रंजना ने सभी सदस्यों को डायनिंग हॉल में बुलाया । डाइनिंग टेबल पर केक देखकर सभी हैरान थे ।

उषा मनीषा के पास गई तथा उसका हाथ पकड़ कर डाइनिंग टेबल तक ले गई । उसके हाथ में चाकू देकर उषा ने सबको संबोधित करते हुए कहा, ' आज हम हमारी सखी मनीषा का जन्मदिन बनाने के लिए इस हाल में एकत्रित हुए हैं । आप सभी से अनुरोध है कि आप सब इन्हें जी भर कर शुभकामनाएं दीजिए ।'

मनीषा के केक काटने के साथ ही ' हैप्पी बर्थडे मनीषा ' के स्वर से हॉल गुंजायमान हो उठा । इसी के साथ ही अजय ने कई फोटो खींच ली थीं ।

' थैंक्यू दीदी, आज आपने हमें परिवार का एहसास करा दिया है ।' कहते हुए मनीषा की आंखें भर आई थीं ।

मनीषा के साथ परंपरा के अन्य मित्र भी उसकी इस सदाशयता से बेहद प्रसन्न थे तथा उसकी प्रशंसा कर रहे थे ।

उषा ने सोच लिया था कि अब वह नित्य ही कुछ घंटे परंपरा में बिताया करेगी । खुशी तो उसे इस बात की थी कि अजय भी उसके साथ परंपरा आने लगे । उषा जहां महिलाओं की समस्याएं सुलझाती, वहीं अजय पुरुषों की । इसके साथ ही उषा ने कढ़ाई ,बुनाई के प्रति भी महिलाओं में रुचि जागृत करने का प्रयत्न किया । इस काम में उसका सहयोग सीमा ने दिया था । वह कढ़ाई, बुनाई में पारंगत थी । उसका मानना था कि लोग अगर अपनी-अपनी रुचियों में व्यस्त रहें तो मस्तिष्क व्यर्थ इधर-उधर नहीं भटकेगा ।

हर महीने ही किसी न किसी का जन्मदिन पड़ता था । कभी-कभी महीने में दो भी पड़ जाते थे । बिना उत्सव के ही उत्सव मन जाता । परंपरा में अब होली, दिवाली ,लोढ़ी, बैसाखी, पोंगल, क्रिसमस जैसे पर्व भी मनाने की परम्परा उषा ने प्रारम्भ कर दी है । इन पर्वों पर सबका उत्साह देखते ही बनता था । इन सब कार्य विधियों से वे सभी मन से भी परस्पर जुड़ने लगे थे । यही कारण था कि अब सभी परंपरा वासी अपने अतीत को भूल कर खुश रहने का प्रयास करने लगे थे ।

हर पर्व पर सबकी भागेदारी देखकर उषा को लगता कि हमारे देश को अनेकता में एकता का देश यूँ ही नहीं कहा जाता । चाहे हमारे पर्व, रीतिरिवाज अलग हों, भाषा अलग हो पर हम सब एक ही रंग...प्रेम के रंग में रंगे हैं । यही हम भारतीयों की सच्चाई है ।

अजय को भी परंपरा आना अच्छा लगने लगा था । डॉ रमाकांत को उन्होंने परंपरा का विजिटिंग डॉक्टर बनने के लिए तैयार कर लिया । वह सी.एम.ओ. रहे थे । यद्यपि वह पिछले 4 वर्षों से रिटायर्ड लाइफ जी रहे थे पर उनका अनुभव और जान पहचान परंपरा के सभी सदस्यों के लिए अत्यंत मायने रखती थी ।

परंपरा के सभी सदस्यों को बाहरी दुनिया से जान पहचान कराने के लिए अजय ने परंपरा को एक डेक्सटॉप गिफ्ट में दिया । उनका मानना था कि आज के युग में हर इंसान को कंप्यूटर फ्रेंडली होना चाहिए । उन्हें आश्चर्य हुआ जब पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कंप्यूटर सीखने की इच्छा जाहिर की । जिन्होंने सीखना चाहा उनको अजय ने सिखाया भी । कभी-कभी तो उनका पूरा दिन परंपरा में ही बीत जाता था ।

अजय को यह जानकर अच्छा लगा कि परंपरा के कई सदस्य कंप्यूटर पर विभिन्न अखबारों से अपडेट रहने के साथ फेसबुक पर भी सक्रिय रहने लगे हैं । कुछ ने तो स्मार्ट फ़ोन भी खरीद लिए थे । उनको उषा और अजय ने यूज़ करना सिखाया । सच तो यह था कि किसी को पैसों की कमी नहीं थी अपनों की बेरुखी ने उन्हें तोड़ दिया था । कंप्यूटर तथा स्मार्ट फोन के कारण बाहरी दुनिया से जुड़ने के कारण उनकी मानसिकता में भी परिवर्तन आ रहा था ।

एक दिन उषा के परंपरा पहुंचते ही कृष्णा ने कहा, ' दीदी कल मैंने अपनी बहू प्रतिभा को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी उसने उसे एक्सेप्ट कर लिया तथा लिखा मां जी आप कैसी हैं ? उसके साथ संवाद स्थापित होना सुकून दे गया है शायद इसी माध्यम के द्वारा हम एक दूसरे के दिल में जगह बना सकें ।'

उस दिन रंजना ने भी कहा, ' दीदी आपके तथा अजय भाई के आने से परंपरा को नया जीवन मिल गया है सदा मुरझाए जीवनाविमुख ओठों पर मुस्कान खिली देखकर अनोखा संतोष मिलने लगा है । परंपरा में अविश्वसनीय परिवर्तन देखकर दिव्यांशु सर भी आपसे मिलना चाह रहे हैं । '

' हम भी उनसे मिलने के लिए उत्सुक हैं । '

' ओ.के. उषा जी मैं मीटिंग फिक्स कराती हूँ ।'

सुधा आदेश

क्रमशः