प्रकरण 19 : 26th जनवरी का भूकंप
26th जनवरी 2001 को गुजरात में जोरदार भूकंप आया था। उस भूकंप में लाखों लोग मर गए थे और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गई थी। भूकंप का केंद्र बिंदु कच्छ भुज में था और हमारे कुलदेवी का मंदिर भी भुज में आया हुआ है और उस दिन मेरा छोटा भाई वही पर था।
हमारा परिवार बड़ा है इसलिए कोई ना कोई वहां पर दर्शन के लिए आता जाता रहता है। इस बार मेरे छोटे भाई ने वहां पर जाने का फैसला किया। 25th तारीख को रात को 12:30 बजे की ट्रावैल्स से वह राजकोट से भुज के लिए रवाना हुआ।
26th जनवरी यानी अपना गणतंत्र दिन। उस दिन हम सभी लोगों ने सुबह जल्दी उठके साथ में ध्वज वंदन कार्यक्रम किया। बाद में हम सब लोग स्नान करने के लिए बाथरुम में गए, जब मैं बाथरुम में स्नान कर रहा था, तब अचानक बाजू के रोड में से बहुत ही बड़ा ट्रक निकला हो ऐसी आवाज आई और वो बढ़ती चली गई। मेरे कान बजने लगे, थोड़ी देर में कान बंद कर के नीचे झूक कर बैठ गया। लगभग 2 मिनट के बाद सब हिलना डुलना बंद हो गया, तब मैं बाथरूम से बाहर निकला और मैने देखा के हॉस्टल में अफरा-तफरी मची हुई थी। हॉस्टल के सिक्योरिटी गार्ड नटू बापा ने पहेले सब लोग सही सलामत है उसकी जांच की। हमारे ग्रुप में से मैं, चिका और भाविन हॉस्टल में था। सब जांच होने के बाद हम लोग शहर में देखने निकल पड़े की कहां-कहां और क्या-क्या नुकसान हुआ है। हमने टूटे-फूटे मकान देखें, रोते बिलखते लोग देखें, एक दूसरे को आश्वासन देते हुए लोग दिखे फिर हम लोग हॉस्टल में आए तो हमें पता चला कि सूरक्षा के कारणों से सब को हॉस्टल से अपने घर जाने के लिए छुट्टी दे दी गई थी।
मेरे पापा के बड़े भाई राजकोट में ही रहते थे इसलिए मैं उनके घर पर चला गया। हम लोग वहां पर भूकंप की बातें कर रहे थे और TV में न्यूज़ देख रहे थे, तभी रात को 8:00 बजे न्यूज़ में हमने देखा कि भूकंप का केंद्र बिंदु भूज के आसपास ही था। न्यूज़ सुनते ही हम सब के पैरों तले की जमीन खिसक गई क्योंकि मेरा छोटा भाई भूज में ही था। हमारी चिंता बढ़ने लगी, हम सभी जगह फोन ट्राई करने लगे थे लेकिन भूकंप की वजह से टेलीफोन के टावर ध्वस्त हो गए थे और कहीं भी फोन लग नहीं रहा था। जैसे-जैसे रात बीतती चली गई हमारी चिंताएं बढ़ने लग गई थी।
तभी रात को अचानक 10:30 बजे मेरा भाई वहां पर आ गया। हमारे खुशी का कोई ठिकाना ना रहा लेकिन उसकी हालत बहुत खराब थी उसके सीर पर पट्टी बंधी हुई थी वहां से खून बह रहा था। इतनी खराब हालत होने के बावजूद भी वह भूज से राजकोट आ गया था क्योंकि उसको हम लोगो की चिंता थी। उसकी यह यात्रा भी बड़ी रसप्रद थी।
उसने हमे बताया कि वह भूज सुबह 5:30 बजे पहुंच गया था बाद में वह हमारे प्रमुख के घर जाकर थोड़ा आराम किया बाद में 8:00 बजे वो तैयार होकर मंदिर जाने के लिए निकला, रास्ते में उन्हें 8-10 लोग ओर मिल गये जो मंदिर ही जा रहा थे। उस समय भूज की गलियां बहुत ही छोटी थी और गलियों के आजू-बाजू ऊंची ऊंची दीवारे थी। उस गली में से मुश्किल से एक रिक्षा पसार हो सकती थी। उस समय भूज की गलियां भूतिया गली जैसी लगती थी। तभी अचानक 8:45 बजे भूकंप शुरू हो गया और आसपास का मलबा और दीवारें उन लोगों पर गिर गई और उसी मलबे में वो सब लोग दब गए। करीब 10:15 मिनट के बाद मेरे भाइ को होश आया और वह मलबे में से बाहर निकला। उसके सर से खून बह रहा था, हाथ में फैक्चर हो गया था और एक पैर भी काम नहीं कर रहा था फिर भी वो वहां से धीरे-धीरे निकला। बाहर निकलने के बाद उसने देखा कि सब जगह अफरा-तफरी मची हुई है। गलियों में मकान गिरे हुए थे, लोग चारों तरफ भाग रहे थे। वहां पर किसी का गैस का सिलेंडर लीक हो गया था और गलियों में पशु भी इधर उधर भाग रहे थे।
वहां से निकलने के बाद वह बस स्टैंड पहुंचा और उसी हालत में वह भूज कि बस में से अंजार पहुंचा। अंजार हॉस्पिटल में उसने प्राथमिक सारवार ली और फिर बस स्टैंड पहुंच गया। वहां से वह बस पकड़ के भचाऊ पहुंच गया। भचाऊ से आगे बसे नहीं जा रहे थी क्योंकि भूकंप की वजह से रोड का पूल टूट गया था फिर भी मेरे भाई ने हिम्मत नहीं हारी और एक ट्रक में बैठकर वह पुल तक पहुंच गया। ऐसे हालत में भी उसने चल के टूटे हुए पूल को पार किया। वहां से मेटाडोर में बैठकर वह मोरबी शहर तक पहुंचा। वहां से ट्रावैल्स में बैठकर राजकोट आया और वहां से रिक्शा में बैठकर मेरे पापा के बड़े भाई के घर पहुंचा। इस तरह सतत 14 घंटे बिना रुके, बिना थके वो भूज से राजकोट आ गया था। यह 26 जनवरी 2001 की एक दुखद यादें थी।
प्रकरण 20 : राजकोट के देवस्थान
पंचनाथ महादेव मंदिर
हमारे हॉस्टल के पास पंचनाथ महादेव का मंदिर आया हुआ था। हम लोग कभी सुबह की आरती में तो कभी शाम की आरती में शामिल होके दर्शन किया करते थे। पंचनाथ महादेव मंदिर बहुत ही भव्य और दिव्य है। उधर हम घंटों तक बैठा करते थे। मंदिर में त्यौहार को भव्य उत्सव होते थे, जिसमें हम लोग शामिल हुआ करते थे। हॉस्टल के लोग काम पर जाने से पहले वहां पर हर दिन दर्शन करने के लिए जाया करते थे। हॉस्टल के पिछले रास्ते में हनुमानजी की बरसों पुरानी देरी आई हुई थी। वहा भी लोग दर्शन करने के लिए जाया करते थे|
बालाजी हनुमानजी मंदिर
राजश्री थिएटर के पास बालाजी हनुमानजी का बहुत ही प्रख्यात मंदिर आया हुआ है। हर शनिवार को वहां पर बहुत ही भीड़ होती है। करीब 1 घंटे के बाद दर्शन का लाभ मिलता है। वहां पर बच्चों के लिए बटुक भोजन की व्यवस्थाए भी होती है। मंदिर में दान के लिए दाताए हमेशा तैयार रहते हैं। इस मंदिर का बहुत ही बड़ा महत्व है।
स्वामीनारायण मंदिर
भूपेंद्र रोड पर स्वामीनारायण का प्रख्यात मंदिर आया हुआ है। हमारे हॉस्टल के कन्वीनर उसी पंथ में से आते थे इसलिए उत्सव में वह हमें मंदिर में साथ लेकर जाते थे।
राजकोट के अन्य देवस्थानों में जागनाथ महादेव मंदिर, ईश्वरीया महादेव मंदिर, कालावड रोड स्थित स्वामीनारायण मंदिर, प्रेम मंदिर, दरबारगढ़ की हवेली, कुवावडा रोड पर स्थित सात हनुमानजी का मंदिर और अलग-अलग जगह पर स्थित हनुमानजी की देरिया है।
गांधीजी जहां पर पढे थे वह आलफ्रेंड हाईस्कूल और उसका घर "कबा गांधी का डेला" भी देखने लायक स्थल है।
क्रमश: