360 degree love - 21 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 21

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360 डिग्री वाला प्रेम - 21

२१.

संदेह और असमंजसता का चक्र

एक बार फिर जाकर देखा आरिणी ने. कोई अंतर नहीं था… आरव एक अबोध शिशु की भाँति निद्रामग्न था. उसने कोशिश की जगाने की… लेकिन उसे नहीं जागना था, सो नहीं जागा.

आरव सोता रहा.. और घर की दिनचर्या यूँ ही चलती रही. तीसरे दिन दोपहर को आरव की नींद पूरी हुई. अब जाकर वह स्नान कर के बेहतर लग रहा था. उसे सहज देख कर आरिणी ने उससे साफ़ शब्दों मे पूछ लिया-

“शादी की रस्मों से ही इतना थक गए. शादी कैसे निभाओगे श्रीमान”,

आरिणी ने अपने चिर परिचित अंदाज में नाराज होते हुए कहा.

“श्रीमती जी, बंदा आपको अब शिकायत का कोई मौका नही देगा”,

आरव ने आरिणी की आँखों में झांकते हुए कहा.

 

लेकिन आरिणी कुछ चिंतित भी थी. बोली,

 

“आरव, तुम कुछ दवाई वगैरह तो नहीं ले रहे न?”

 

“अरे नहीं, कैसी बातें कर रही हो!”

 

आरव ने जवाब दिया, लेकिन साथ ही प्रतिप्रश्न भी कर दिया,

 

“ऐसा क्यों पूछ रही हो?”,

 

शायद उसे आरिणी से ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी.

 

“बस यूँ ही पूछा… चिंता होती है न, कोई तीन दिन तक कैसे सो सकता है… बस इसीलिये”,

 

आरिणी ने अपना पक्ष रखते हुए बात स्पष्ट की.

 

“ऐसा कुछ नहीं है… अब नींद तो नींद है, किसी को भी कभी भी अपनी गिरफ्त में ले सकती है… कोई जोर तो है नहीं उस पर मेरा!”,

 

आरव ने कहा और पास पड़े पेपर में अनावश्यक रूप से आँखें गड़ा ली, यह जाने-समझे बिना कि यह अखबार तीन दिन पुराना है, और उसे न्यूज़ पेपर पढने में कोई रुचि भी नहीं है. कैसे होते हैं लोग… आरिणी ने सोचा. ठीक से झूठ भी नहीं बोल पाते हैं. और बातें छिपाने में तो ऐसे माहिर कि जैसे कोई सही बात बता दी तो न जाने क्या तूफ़ान आ जाएगा.

 

अब आरव अगले प्रश्न पर झुंझला ही न जाए, और उठ खड़ा हो, इससे बेहतर वह स्वयं ही चली आई. आज उसे किचेन संभालनी थी. कुक आया नहीं था, और मम्मी जी की मदद करनी थी… बल्कि उसे ही देखना था पूरा लंच और डिनर. इसलिए सोचा, क्यों मूड खराब करना सुबह ही…!

 

बात हो गई थी मम्मी से. उन्होंने मुस्कुराते हुए हाँ बोल दिया आज किचेन संभालने के लिए. सो, सब कुछ भूल कर आरिणी तैयार हुई एक नये मोर्चे के लिए. यूँ तो उसको किचेन संभालने का कोई विशेष अनुभव नहीं था… पर हाँ, नई रेसिपी ट्राई करने की उत्सुकता अवश्य रहती. टीवी पर ‘खाना-खजाना’ और ‘फ़ूड-फ़ूड’ उसके पसंदीदा कार्यक्रम थे . लेकिन कितना देख पाती थी वो. अब तो यू ट्यूब का ही सहारा था.

 

दो घंटे की मशक्कत के बाद और वर्तिका की मदद से आरिणी ने शाही पनीर, दाल मखानी और एक मिक्स वेजिटेबल के साथ ही पाइनएप्पल रायता, फ्लेवरड राइस और मखाने की खीर बनाई थी. हाँ, स्वीट कॉर्न सूप… रशियन सलाद और पापड़ भी तैयार किया उसने. चपातियां बेलने में वह कमजोर थी… इसलिए वर्तिका की सलाह पर पूरियां बनाई गई. वर्तिका ने मन से मदद तो की ही लंच तैयार करने में, साथ में हंसी-मजाक से वातावरण भी हल्का-फुल्का बनाये रखा

 

सब प्रसन्न थे. राजेश प्रताप सिंह ने पहले ही प्रॉमिस किया था कि अगर सब ठीक रहा तो वह अवश्य ही लंच टाइम में घर आयेंगे, और अपने मजाकिया लहजे में… नई बहू को ‘उपकृत’ करेंगे. सो, वह आये, और सबने बैठ कर लंच किया. वाकई लंच अच्छा बना था. कोई भी आइटम ऐसा नहीं था जो स्वादिष्ट न हो. पर प्रशंसा करने में अगर टॉप ईनाम देना हो तो राजेश सिंह ही सबसे आगे थे.

 

आरिणी ने राहत की सांस ली. प्रसन्नता इस बात की थी कि राजेश सिंह और उर्मिला ने बहू के हाथों से पहला भोजन ग्रहण करने के रूप में उसे जो भेंट दी थी वह ‘तनिष्क ज्वेलर्स' से लिया गया एक स्वर्ण हार का सेट था… बेहद खूबसूरत… आरिणी को एक ही निगाह में ऐसा पसंद आया कि उसकी निगाहें ही नहीं हट पा रही थी. उसने राजेश सिंह और उर्मिला दोनों के चरणों को स्पर्श किया और बदले में स्नेह और आशीर्वाद पाया.

००००