360 degree love - 19 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 19

Featured Books
Categories
Share

360 डिग्री वाला प्रेम - 19

१९.

विवाह और आगे

कहते हैं समय और पैसा-- दोनों के पंख होते हैं. जब सोचते हैं कि समय यहीं रुक जाए, तो वह कुछ और गति से बढ़ने लगता है… कुलांचे मारने लगता है, यही हाल पैसे का भी है कितना भी बचाओ खर्च हो ही जाता है खैर… समय का चक्र है यह, हमेशा अपनी गति से चलता है. विवाह की तिथियाँ निकट आने लगीं. जुलाई का महीना था. प्रथम सप्ताह बीत चुका था, तृतीय सप्ताह में विवाह की तिथि थी. सब तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी थी.

आज १८ जुलाई थी. दोनों पक्षों की सुविधानुसार लखनऊ में ही विवाह की रस्में अदा की जानी निश्चित हुई थी. यह अनुभव सिंह के लिए भी उतना ही सहज था जितना राजेश के लिए. वह लोग चार दिन पहले ही लखनऊ आ चुके थे. लखनऊ के छावनी क्षेत्र स्थित एम बी क्लब में वैवाहिक रस्में होनी थीं. आरव और आरिणी के दोस्त भी इकट्ठे हुए थे. इससे शादी में एक अलग उत्साह भर उठा था. देव और भूमि ने अपनी उपस्थिति का सबको अहसास कराया. भूमि ने पूरे समय आरिणी का साथ बनाए रखा.

 

बेहतरीन व्यवस्थाओं के बीच विवाह सम्पन्न हुआ. देर रात तक रस्में चलती रही. मेहमानों की आवाजाही से एम बी क्लब का लॉन गुलजार रहा. सब कुछ उत्कृष्ट तरीके से दोनों पक्षों की ओर से संतोषजनक रूप से पूरा हुआ.

 

भोर में ही आरिणी की विदाई हुई.

 

विदाई-- यह शब्द ही खुद में कितना अवसाद लिए है. किसी सन्दर्भ में हो. अच्छा हो या बुरा हो-- यह शब्द हमें कहीं न कहीं टीस पहुंचा ही देता है. और फिर जब विदा होने वाला इंसान वह हो, जिसको माँ-बाप ने नाजों से पाला हो, पल-पल जिया हो उसका साथ, उसके जन्म से लेकर, बचपन के पल, और धीरे-धीरे बड़े होते, यौवन की दहलीज़ पर खड़े होकर स्वयं के लिए बेहतर रास्ता बनाने के प्रयासों में जूझते हुए पाया हो, तब इस शब्द से मन में जो भाव आते हैं, कुछ दुःख और कुछ अकल्पनीय सी… अनबूझी सी प्रसन्नता जो भविष्य में कहीं छिपी है, उसकी अनुभूति अद्भुत होती है. अभी ऐसा ही पल आ गया था.

 

आरिणी की सुन्दरता अभी भी वैसी ही थी… जैसी उसको स्टेज पर लाते समय थी, एक अप्सरा की तरह. वैसे भी वह खूबसूरत थी, नैसर्गिक रूप से. उस पर आज का मेकअप… जैसे सोने में सुहागा. वाकई में अप्रतिम लग रहा था उसका सौन्दर्य. भारी मन से उसके परिजनों ने गीतों के संग उसकी विदाई की औपचारिकता पूरी की. माधुरी जी की आँखों से तो आंसू झर-झर कर बह रहे थे, पर अनुभव सिंह उन्हें आँखों में ही रोके हुए थे, सप्रयास.

 

भोर के ही प्रहर में आरिणी का आगमन उसी मकान में हुआ, जिसमें वह उस परिवार के संग काफी दिन बिता चुकी थी. पर, अंतर था, उन दिनों का और अब का. तब वह मेहमान थी… औपचारिक आवाजाही थी वह. और अब.. अब वह इस परिवार का अटूट हिस्सा बन कर आई थी. अब यही उसका परिवार था. सदा के लिए इस परिवार की परम्पराओं का वाहक बनना था उसे. यही संस्कार दिए गये थे उसे और यही वैवाहिक मंत्रोच्चार के माध्यम से उसके मन में बिठाया गया था.

 

हालांकि कल से एक मिनट को भी झपकी नहीं ले पाई थी आरिणी, लेकिन जीवन के इस महत्त्वपूर्ण दिन उसकी आँखें भी स्वयं विवाह बंधन के कुछ अनछुए उत्साह खोज कर थकी नहीं थी मानो. आरव के घर पर भी तमाम मेहमानों का डेरा था. हरदोई के पैतृक घर से उसके ताऊ-चाचा के परिवार के सदस्य, स्वयं उर्मिला के परिजन और कुछ निकटस्थ मित्र तथा उनके परिजन. सवेरे के समय भी चहल-पहल का वातावरण बना था.

 

ऐसे समय में उर्मिला ने घोषणा की कि,

 

“अब लड़की को कोई सोने भी देगा? आप लोग भी आराम करो… थक गये होंगे सब, और इस नन्हीं जान का पीछा छोडो. अब यहीं रहना है इसे. बाद में जी भर कर बातें करना.”

 

और लड़कियों के झुण्ड ने खिलखिलाते हुए आरिणी को अकेला छोड़ दिया. ये सब अल्हड उम्र की लड़कियां आरव की रिश्ते-नातेदार थीं. उन सब को वर्तिका अपने साथ लिवा ले गई.

 

आज देवताओं की पूजा का दिन था. प्रातः ही यह परम्परागत पूजा होनी थी. इस पूजा के लिए राजेश प्रताप ने लखनऊ के प्रसिद्ध मनकामेश्वर मंदिर में व्यवस्था की हुई थी. ११.३० बजे का मुहूर्त था. सवेरे दस बजे से ही तैयारियां हो रही थी चलने के लिए, पर यूँ समझिये कि लगभग साढ़े ग्यारह बजे के बाद ही चलना हो पाया। नहीं, नई दुल्हन की तैयारियों के कारण नहीं, खुद आरव के विलम्ब के कारण. आरिणी से कहीं अधिक वह थका और नींद की गिरफ्त में था. लगता था कुछ अधिक ही नींद आ रहे थी आरव को. उनींदेपन में ही किसी तरह वह साथ गया… क्यूंकि उसके बिना संभव ही नहीं थी पूजा.

 

मनकामेश्वर मंदिर का रास्ता आरिणी और आरव के लिए जाना-पहचाना था. न जाने कितनी बार इस रास्ते पर वह अपनी फ्रेंड्स के साथ गुजरी होगी. दो बार आरव के साथ भी गई थी वह. और लखनऊ यूनिवर्सिटी से गोमती के किनारे से होते हुए जाना यूँ भी कितना खुशनुमा लगता है.

 

विधि-विधान से पूजा सम्पन्न हुई. आरिणी प्रसन्न थी. आरव तो अभी भी उनींदा था… लेकिन और सब लोग भी उतने ही उत्साहित थे, जितनी आरिणी दिखती थी. बड़ों के चरण स्पर्श कर आरिणी ने आशीर्वाद लिया और प्रसाद ग्रहण कर वह लोग घर की ओर वापिस लौट चले .

००००