360 degree love - 16 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 16

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360 डिग्री वाला प्रेम - 16

१६.

कुछ आगे भी

आज रविवार था. रविवार यानी आराम का दिन. पर भरोसा कुछ भी नहीं. न जाने कौन सा ऐसा काम आ पड़े, या कोई इमरजेंसी. फिर भी… रविवार सबके लिए एक राहत ही लेकर आता है. सप्ताह भर की गहमागहमी के बाद एक दिन तो आराम का होना ही चाहिए.

पर, कहाँ हो पाता है आराम गृहणी के लिए वही तो सबसे कठिन दिन होता है. जैसे परीक्षा हो हर सप्ताह उसकी. और परीक्षा लेने वाले कौन… निर्दयी बच्चे.... जिनकी फरमाइशें कभी पूरी नहीं होती. पति भी साथ में मिल जाएँ तो क्या कहना. शेफ़ के हाथों का बना खाना और लजीज डिश भी उनको पसंद नहीं आती. कहते,

“जो बात आपके हाथों में है… वह किसी और के हाथों में कहाँ… “,

और सारी झुंझलाहट खत्म, फिर से नई ऊर्जा भर जाती हो जैसे. इंस्टेंट. ग्लुकोज की तरह.

 

आज के दिन बच्चे भी देर तक सोते ही हैं. जगाने का मतलब नाकामयाबी. जाग भी गये तो घूम फिर कर फिर सो जायेंगे, कि कहीं सन्डे बेकार न चला जाए. चाय पीते समय फिर बात चली. इस बार स्वयं आरव के पिता ने रुचि दिखाई और आरिणी के पापा का फोन नंबर माँगा. उर्मिला जी से इस बार बोला भी उर्मिला ने कि रहने दो अभी…. आराम से कर लेना, अभी सुबह ही क्या फोन करना, पर राजेश सिंह को कोई बुराई नहीं नजर आई इस समय कॉल करने में. उनका दिन तो यूँ भी सवेरे साढ़े पांच बजे शुरू हो ही जाता था. अब जो इंसान जिस समय उठता है, उसको तो ऐसा ही लगता है कि इस समय पूरी दुनिया भी उसी की तरह ‘एक्टिव मोड’ में होगी.

 

कॉल पिक हो गई थी. वार्तालाप कुछ यूँ हुआ--

 

“अनुभव सिंह बोल रहे हैं?”

 

“जी हाँ, मैं अनुभव, और आप?”,

 

अनजानी आवाज और अनजाना नंबर देखकर उन्होंने जानना चाहा.

 

“सिंह साब, राजेश प्रताप सिंह हेयर...लखनऊ से, नमस्कार! आपकी बेटी आरिणी और मेरा बेटा एक साथ पढ़ते हैं. उससे ही चर्चा हुई तो आपका नंबर लिया. कैसे हैं आप?”

 

“ओह हाँ… जी सिंह साब. नमस्कार. मैं ठीक हूँ. धन्यवाद. आइये कभी..चर्चा होती है आरिणी से आप लोगों की.”

 

“जरूर… और आपका आना हो, तो आप आयें, नंबर सेव कर लीजियेगा. लखनऊ तो आप सरकारी काम से भी आते-जाते रहते होंगे”,

 

राजेश ने कहा.

 

“हाँ, आते तो हैं, पर सब अचानक होता है, कुछ भी प्लांड नहीं. वैसे शायद इसी हफ्ते आना हो, पर अभी कन्फर्म नहीं है.”

 

“अरे, तो आइयेगा न… कभी भी, अचानक आऐ तो क्या हुआ, घर है आपका यह भी. और हाँ, अगर इस बार आरिणी की मम्मी को भी लेते आयें तो और भी अच्छा रहेगा. नहीं तो हम लोगों को ही आना होगा, आपसे मिलने..”,

 

हँसते हुए बोले राजेश.

 

“जरूर, बिलकुल...आपका भी घर है यह. आयें. कभी भी. अगर लखनऊ का कार्यक्रम होता है तो बताता हूँ आपको”,

 

कहकर अनुभव सिंह ने नमस्कार किया.

 

उर्मिला सब सुन ही रही थी, बातों का सिलसिला शुरू होते देख प्रसन्न हो उठी. बोली,

 

“मुझे तो बहुत अच्छी लगती है वो… बस सब ठीक से हो जाए बात… अच्छी जोड़ी रहेगी दोनों की”.

 

“हाँ… जैसी तुम्हारी और मेरी!”,

 

कहकर राजेश ने उर्मिला की आँखों में झाँका.

 

“आप भी…”,

 

कहकर चाय के खाली कप उठाये और मुस्कुराती हुई चली गई उर्मिला.

 

प्रोजेक्ट का काम अच्छे से निपट जाने से आरव बहुत रिलैक्स था. परीक्षाओं की उसकी तैयारी हमेशा बेहतर होती थी, बस प्रैक्टिकल्स में ही मात खा जाता था वह. इस बार आरिणी के साथ हुए प्रोजेक्ट वर्क ने उसमें एक नया विश्वास जागृत कर दिया था. यह वह स्वयं भी महसूस करता था, और घर पर भी सब यह बदलाव देख रहे थे. वह भी मन से इस बात के लिए सहमत था कि आरिणी और उसका परफेक्ट मैच है.

००००