360 degree love - 14 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 14

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360 डिग्री वाला प्रेम - 14

१४.

बात यूँ ही बनती हैं

आज आरिणी को आरव के घर जाना था. उर्मिला कल शाम और फिर आज सवेरे ही कॉल करके याद दिला चुकी थी. वर्तिका की भी एक मिस्ड कॉल पडी थी जब वह बाथरूम में थी. आकर उसे फोन मिलाया तो वह भी जल्दी आने का अनुरोध कर रही थी. हाँ, आरव की कोई कॉल नहीं आई थी. पर यह कोई आश्चर्यजनक भी नहीं था. उसका व्यवहार कभी भी यू टर्न लेता था, और वह सिर्फ अपने काम में ही शिद्दत से खोता था. आरिणी को उसकी इस बात का बिलकुल भी बुरा नहीं लगता, बल्कि तब बुरा लगता जब वह खाली होता और उसके अनुसार बे-सिर पैर की बातें या हंसी-ठिठोली करने की कोशिश करता.

परीक्षाओं की तैयारी, म्यूजिक सेशंस और भरपूर नींद के बीच यह सप्ताह न जाने कब खत्म होने को जा रहा था, आरिणी को पता ही नहीं चला. जब पता चला तो समझा कि आरव के घर जाना है इस शनिवार को. उसकी मम्मी के अपनत्व से घर की यादें भी कुछ कम-सी हो चली थी. खुद की मम्मी उलाहना देती, ‘क्या लखनऊ में ही बसने का इरादा है… पढने तो बहुत लोग जाते हैं बाहर… और रहते भी हैं हॉस्टल में.. पर तुम जैसा बिजी कोई नहीं देखा!’

अब मम्मी को कौन समझाए. कितनी सारी बातें, कितनी जटिलताएं… हाँ, पापा को ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी, वह समझ सकते थे, और यह भी कि यूँ ही दिल लगाने नहीं जा रही थी वह किसी से. उसके सपनों का मोल समझते थे पापा, और यही बात उसे अच्छी लगती थी.

तैयार होते-होते आरिणी को ११.३० बज गये थे. उसने अपनी एक्टिवा स्टार्ट की और चल पडी. आधे घंटे के आसपास ही वह पहुँच गई आरव के घर. आज तो लॉन में अंकल, यानी आरव के पापा से भी मुलाक़ात हो गई. यूँ तो पहले भी वह उनसे मिली थी पर वह क्षणिक भेंट थी. आज वह ट्रैक सूट में घर पर थे, और पूरी छुट्टी के मूड में दिख रहे थे.

 

“आइये आरिणी, स्वागत है…”,

 

कहकर उठ खड़े हुए सिंह साब. यह देख पहले आरिणी थोडा असहज हुई, पर फिर दोनों हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुये नमस्ते की और जल्द ही अपने को सहज़ कर लिया. तब तक वर्तिका और उसकी मम्मी भी आ चुकी थी. उर्मिला ने हाथ पकड़ा आरिणी का और उसे सीने से लगा लिया.

 

अब सब लोग ड्राइंग रूम में आ गए थे. आरव घर पर नहीं था अभी. वह सदर के मार्किट तक गया हुआ था, कभी भी आ सकता था. बातें होने लगी. आज आरव के पिता भी सीधे संवाद स्थापित कर रहे थे आरिणी से. बोले,

 

“आरव की मम्मी तो इस घर में तुम्हारी सबसे बड़ी फैन हैं बेटा…, फिर वर्तिका और आरव...”,

 

“और आप…? अपना भी तो बताइये. आपने ही तो विशेष रूप से आज के लिए आरिणी को आमंत्रित किेया है न?”,

 

उर्मिला जी बोली तो आरिणी एक बार फिर कुछ असहज-सी हुई, पर हंस पड़ी.

 

“लो, आरव भी आ गया…”,

 

गाडी के हॉर्न की आवाज से खिड़की से झांक कर बोली उर्मिला. वर्तिका गेट खोलने चली गई. आरव हालांकि बाहर से आया था पर उसने भी एक मुस्कुराहट से स्वागत किया आरिणी का. आरिणी भी धीमे से मुस्कुरा रही थी.

 

चाय आ गई थी. आरिणी के एक ओर उर्मिला जी, और दूसरी ओर वर्तिका बैठी थी, सामने आरव के पापा थे. आरव भी आकर मम्मी के पास बैठ गया. आरव के पिता राजेश सिंह ने आज वादा किया था कि वह इस रविवार को पूरा दिन घर पर रहेंगे और आरिणी को भी पूरा समय देंगे. पर, अचानक आई एक इमरजेंसी कॉल से उन्हें निकलना पडा. काम ही ऐसा था. रेलवे का काम कभी रुकता है क्या. और उस पर सेफ्टी इंजीनियरिंग डिवीज़न का हेड होना. तो, उनका जाना जरूरी हो गया. लंच करने का भी समय नहीं था. चालीस किलोमीटर दूर किसी ट्रेन की कुछ बोगियों के डीरेल होने की खबर थी.

 

‘देखता हूँ...अगर ज्यादा सीरियस नहीं हुआ मामला तो लौट आऊंगा जल्दी ही…”,

 

आरिणी को बोला उन्होंने. दरअसल वह स्वयं भी आरिणी के विषय में अक्सर घर में हो रही चर्चाओं से बहुत प्रभावित थे. उसे और ज्यादा जानने का मन था उनका भी. फिर, वह भी उसी जनपद से थे, जहाँ आरिणी के परिवार की जड़ें थी. सो, वह कुछ-कुछ अपनी पसंद देखते थे आरिणी में.

 

थोड़ा आरिणी भी समझती थी कि उर्मिला, वर्तिका और फिर राजेश सिंह का यह स्नेह कुछ सामान्य से अधिक था. और आरव… वह तो उसके अनुसार “अनप्रेडिक्टेबल” था ही. पर, वह किसी जल्दी में नहीं थी. उसने अपने करियर के लिए न जाने कितने सपने देखे थे, और अभी उन सपनों को पूरा होने में कुछ समय शेष था.

 

पर, लगता था उर्मिला जी को कुछ अधिक ही जल्दी थी इसलिए आज तो उन्होंने आरिणी की मम्मी से परिचय ले ही लिया, भले ही फोन पर. और उनको न्योता भी दे डाला, लखनऊ आने का. पूरे समय प्रशंसा ही करती रही वह आरिणी की. इतनी प्रशंसा कि कुछ गुण तो आज तक आरिणी को भी नहीं पता होंगे शायद अपने बारे मे.

 

आरिणी की पसंद और नापसंद भी पिछले एक हफ्ते में जान गई थी आरव की मम्मी. इसीलिये, आज लंच में सब चीज़ें उसकी मनपसंद की ही बनायी गयी थी. स्वीटकॉर्न सूप से लेकर मूंग की दाल का हलवा… और मिस्सी रोटी, भिन्डी-पालक पनीर. हाँ, दही-बड़े भी थे, पर वह जी पी ओ के पास वाले थे जो लखनऊ के प्रसिद्ध दही-बड़े थे, घर के बने नहीं. वह भी आरिणी के मनपसन्द थे.

 

दिन भर खूब बातें हुई सबकी. आखिरकार पांच बजते-बजते जाना हुआ आरिणी का. राजेश जी का मन था आने का, लेकिन वह चाह कर भी आ नहीं पाए. चलते समय उन्होंने एक काल जरूर की आरिणी को, और क्षमा मांगी.

 

आरव और वर्तिका दोनों छोड़ने गए आरिणी को उसके हॉस्टल. रास्ते में अपने मनपसंद कैफ़े-- अलीगंज के सी सी डी पर तीनों ने कॉफ़ी भी पी.

 

डीरेलमेंट की साइट से लौटते हुए आठ बज गये थे राजेश सिंह को. उनकी अजब स्थिति थी. सोचा था कि आज आराम करेंगे, कुछ बातें करेंगे घर पर और आरिणी को जानेंगे लेकिन नौकरी ही ऐसी थी कि जाना ही पड़ता था, अनचाहे से काम के लिए. किसी और को सौंप भी नहीं सकते थे वह जिम्मेदारी.

००००