१२.
अनुभूतियां-- कुछ स्नेह कुछ प्रेम
उर्मिला आरिणी को मन ही मन पसंद करने लगी थी, यह किसी से छिपा नहीं था. वर्तिका भी आरिणी में एक सहज अपनापन महसूस करती थी, पर आरव से जब भी चर्चा होती वह टाल जाता, कुछ नहीं था फिलहाल उसके दिमाग में, सिर्फ प्रोजेक्ट थी अभी.
“मम्मी, आरिणी भी कितना खुश होती है हम लोगों के साथ न ? आपने देखा शुरू में वह चुप-चुप सी रहती थी, पर समय बीतते-बीतते कितना खुश रहने लगी थी हम लोगों के साथ”,
वर्तिका ने बोला. आरिणी का व्यवहार और बात कहने का अंदाज वर्तिका को भी पसंद था.
“हाँ, वैसे भी कोई चार साल से लगातार घर से बाहर रहना कितना अकेलापंन दे जाता है? और उस पर लड़कियों के लिए तो जिंदगी और दूभर…”,
कहते हुए उर्मिला जी जैसे आरिणी की ही कल्पनाओं में खो गई. बोली,
“अच्छी है न? आरव और आरिणी…”,
कहकर एक सौम्य-सी मुस्कुराहट दी उन्होंने.
“सच मां… और क्या चाहिए भाई के लिए! परफेक्ट मैच… पर उसका मन भी टटोलना जरूरी है न!”,
वर्तिका ने अपनी राय रखी.
कहते हैं कि रिश्ते तो स्वर्ग में बनते हैं, और जोड़ियाँ तो पहले से बनी रहती हैं, बस उनका वैवाहिक संयोग उपयुक्त समय पर ही सम्भव हो पात़ा है. इस रिश्ते में भी दूर कहीं संयोग प्रबल था, ऐसा लग रहा था.
उधर, आरव तीनों को कार से छोड़ने जो गया तो पहले रास्ते में ही बॉयज हॉस्टल में देव को उतारकर नमन किया, फिर दोनों लड़कियों के हॉस्टल की तरफ का रुख लिया. हॉस्टल के गेट पर दोनों को उतारा, भूमि को थैंक्स बोला, पर उसने कहा,
“थैंक्स के हकदार तो तुम और तुम्हारी पूरी फॅमिली है आरव. तुम न होते तो अकेले देव तो प्रोजेक्ट को मटियामेट करके ही दम लेता.. ",
कहकर खिलखिलाई भूमि.
“अब इतना भी न बुरा बोलो उसको. वो न होता तो मुझे असिस्ट कौन करता प्रेजेंटेशन में. ये श्रीमान तो खड़े होने को तैयार ही नहीं थे जूरी के सामने”,
उलाहना खत्म नहीं हुआ था आरिणी का. बोली,
“...और यह बताओ अगर ज्यूरी मेम्बर जिद्द पर अड़ जाते कि तुम्हीं को करना होगा प्रेजेंटेशन या आंसर सेशन… तब क्या करते साहब ?”.
“अरे, हो गया ना अब. खत्म करो. ऐसे भी कोई तीर नहीं मार लिया तुमने. अगर दिन-रात लगकर मैंने प्रोजेक्ट में अपना सौ प्रतिशत न झोंका होता, तो तुम क्या प्रेजेंट करती. व्हाटसअप पर फ़ॉर्वर्डेड जोक्स और फ़ालतू के वीडियोज में ही टाइम पास करती रहती न …”,
कहकर उसने हाथ जोड़ लिए आरिणी को, पर तब तक “रुको… रुको" कहते हुए भूमिका दोनों के बीच में आ खडी हुई. बोली,
“युद्धविराम हो गया है अब… अगली मुलाक़ात तक…. शान्ति बनाएं रखें कृपया!”.
आरिणी ने एक बार आरव को घूरा, फिर भूमि को एक मंद मुस्कान दी, और चल पडी.
आरव गाडी में बैठने के लिए चला, और दोनों फ्रेंड्स लड़कियाँ हॉस्टल के छोटे गेट के भीतर झुककर प्रविष्ट होने लगी. भूमि आगे थी और आरिणी पीछे.
“आरिणी… आरिणी, एक मिनट!”
तभी आरव की आवाज सुनाई दी, शायद कुछ भूल गई थी वह. पता नहीं क्या...क्रॉस चेक करके पूछा,
“अब क्या हुआ?”
आरिणी वापिस आई, भूमि को उसकी कोई फ्रेंड मिल गई थी वह उससे गप्पें लड़ाने लगी थी.
“सुनो, आरिणी… इतनी मेहनत की... बंदा एक कॉफ़ी तो डिजर्व करता है टीम लीडर से … तो कल सीसीडी!”
आरिणी ने इधर उधर निगाहों से जायजा लिया और बोली,
“श्रीमान जी… हो गई आपकी बात ? जाइए अब आप...भूल ही जाइए कॉफ़ी!”,
और वह गेट की तरफ बढ़ने लगी. भूमि अभी भी अपनी फ्रेंड से उलझी थी, पर नज़रें इसी तरफ लगी थी.
शायद पक्का आश्वासन चाहता था आरव, इसलिए फिर दो कदम चलकर बोला,
“आज के लिए थोड़े ही कहा, एक दो दिन में...जब मन हो !”,
और रुक गया.
आरिणी ने कोई जवाब नहीं दिया और छोटे गेट में प्रविष्ट हो गई. आरव भी लौट चला. घर लौटते-लौटते आठ बज गए थे. आज काफी रिलैक्स था आरव. ऐसे ही देव, आरिणी और भूमि. नहीं उसकी मम्मी और बहन वर्तिका भी कम निश्चिन्त नहीं थे. कल सन्डे था और जी भर कर सोने का दिन आरव का. सोने लेटा तो नींद आँखों से रूठ कही दूर जा बैठी. आँखों में था तो बात-बात पर रूठ जाने वाला एक चेहरा जिसे रूठना कम बाल-हठ ज्यादा कह सकते थे. जाने क्यों बार-बार नजर मोबाइल पर जा रही थी. एक इंतजार सा-था जो नोटिफिकेशन की आवाज के साथ ही खत्म हुआ. काल का नोटिफिकेशन था, और यह आरिणी ही थी.
“विल वेट फॉर कॉफ़ी...ऐट पी एम, एट सीसीडी अलीगंज!”
“अहा … आर यू इनवाइटिंग मी फॉर डेट!”
“सुनो… दिल को खुश रखने को ख्याल अच्छा है…..!”,
आरिणी ने अप्रत्यक्ष रूप से सख्ती से कहा.
“सो, इज देयर समथिंग इम्पोर्टेन्ट?,
सकपका कर आरव बोला.
“ओह येस, वैरी इम्पोर्टेन्ट एंड अर्जेंट!”,
आरिणी ने कमांड दी.
“हम्म…. विल सी देन, आई विल बी देयर सर्विस… सिंस आई ऍम बिजी देयरअफ्टर” ,
आरव ने अपने स्टाइल में कहा.
“या.. आई नो, वैरी वेल हाऊ बिजी यू आर आरव!”
“सच है, इतना भी बिजी नहीं...अभी कर सकती हो बात…”,
आरव ने मायूसी से कहा, पर आरिणी ने बाय बोल कर कॉल डिसकनेक्ट कर दी.
थोड़ी प्रतीक्षा की आरव ने… शायद कोई मैसेज आये, पर फिर कुछ अभिनव-से स्वप्न और अनुभूति समेटे न जाने कब नींद के आगोश में चला गया.
सवेरे नाश्ते की टेबल पर मोबाइल के उस एक नोटिफिकेशन से आरव का मन खुश हो गया. लिखा था,
“ऐट 8.30 पी एम, सेम प्लेस”.
यह आरिणी थी. एकबारगी यकीन नहीं आया. पर यह सच था. वह आ रही थी उससे मिलने.
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