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चारों बच्चों की उपस्थिति बाबू ने पूरी की । डीन एकेडेमिक ने स्वीकार की । बच्चें परीक्षा में बैढे ।
विश्वविधालय में नये सत्र की ष्शुरूआत थी । छात्र चुनाव चाहते थे । प्रशासन सर्वसम्मत्ति से मेधावी छात्र को अध्यक्ष बनाना चाहता था कि रेगिंग के एक मामले में उक्त चारों होनहार छात्रों को पुलिस ढूढने आ पहुॅची । ईमानदारी की पुलिसिया परिभापा भी कुछ काम नहीं आई क्यांेकि मामला एक कन्या की रेगिंग से सम्बधित था ।
हुआ यो कि माधुरी विश्वविधालय जो कभी टीन-टप्पर की छोटी सी थड़ी हुआ करती थी,अब एक आलीशान सौ एकड ़का परिसर बन गई थी । नित नये कोर्स,नित नये दिमाग वाले प्रोफेसर,नित नये फैशन वाले छात्र और ग्लेमर,फैशन, माडल को अपनाने वाली नित नई छात्राएं ।
नये छात्र-छात्राओं की रैगिंग एक सामान्य प्रक्रिया की तरह देश-विदेश के कालेजों,विश्वविधालयों में एक नियमित अतिरिक्त क्रिया कलाप की तरह चलती थी, सो इस विश्वविधालय में भी चलती थी । लेकिन लम्बे चौड़े परिसर में लम्बे चौड़े लान थे । केन्द्रीय पुस्तकालय को छात्र आपस में सी . एल . याने लव पोइन्ट कहते थे । इस के आस पास सन्नाटा सा रहता था । पढ़ाकू- किताबी कीड़े साझ होते होते पुस्तकालय को छोड़ छाड़ कर चले जाते थे । साझ के झुरमुट में हास्टॅल में रहने वाले छात्र - छात्राएं विश्वविधालय के विशाल परिसर में घूमते - घामते मस्ती मारते रहते थे । जो भी नया छात्र - छात्रा नजर आ जाता उसे ‘ बॉस को सलाम करो । ’ के आदेश दिये जाते थे । ऐसी एक छात्रों के झुण्ड़ ने नई आई छात्रा को दूर से ही भांपा और कहा।
‘ ए छिपकली ! क्या अनारकली की तरह मटक - मटक कर चल रही है । ’ दीवार में चुनवा देगें ।
लड़की देखने में भोली - भाली थी,मगर विश्वविधालयों के माहोल से ष्शायद परिचित थी । बोल पड़ी ।
हे मेरे सलीम ! जरा अपने अब्बा हजूर ष्शहशाहं अकबर से तो इजजत ले लेते । ’
ये सुनना था कि लड़को को रेगिंग के सभी सूत्र याद हो गये । वे सूत्रों का मन ही मन पारायण करते हुए बोले - अब तुझे भगवान भी नहीं बचा सकता ।
लड़की को इस बात का गुमान भी नहीं था कि मजाक में कहीं गई यह बात गम्भीर हो जायेगी । मगर अब क्या हो सकता था सो चुप रहीं । परिस्थ्तिि को वह समझ गई थी । रेगिंग का फण्ड़ा ही डराने से ष्शुरू होता था । सो लडको ने उसे डराने,धमकाने का काम ष्शुरू कर दिया । उसे नाचने - गाने को कहा गया । लड़की ने कर दिया । उससे उल्टे - सीधे सवाल किये गये । लड़की ने सहन कर लिये । अब लड़कों को और भी ज्यादा गुस्सा आया । ष्शाम का समय था । बीयर पेट में थी । लड़की अकेली थी । विश्वविधालय में सन्नाटा था । हर तरफ से माहोल लड़को के लिए अनुकूल था । वे जो चाहे कर सकते थे । लड़की सकते में थी । चाह कर भी भाग नहीं सकती थी । चिल्लाने का कोई फायदा नहीं था ।
समय बीतता - जा रहा था । परिस्थितियां और बिगड़ रही थी । अचानक बीयर के बोझ तले दबे लड़के ने लड़की का हाथ पकड़ लिया और एक जोर दार झटका दिया ।
लड़की के मुख से चीख निकल गई । लड़के ने पकड़ और मजबूत कर दी । लड़की र्दद से दोहरी हो गई । अब तक लड़की टूट चुकी थी । उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था । वो माफी मांग रही थी । वे पानी भी देने को तैयार न थे । बात बिगडी तो बिगडती चली गई । लड़को ने लड़की के कपड़े फाड़ दिये । बलात्कार के प्रयास किये और रेगिंग के नाम पर परिचय के नाम पर घिनोना खेल खेल गये ।
लड़की कि किस्मत में कुछ सुधार आया कि उधर से एक स्थानीय चैनल की कैमरा टीम निकली । मामले को भॉपते में एक मिनट लगा । टीम ने लड़को के विजुलस ले लिये । लड़की की बदहवास ष्शकल कैमरे में कैद कर ली । और ब्रेकिंग न्यूज देने स्टुडियो में चले गये । चलते कार्य क्रम को रोक कर यह न्यूज दिखाई गई । फिर तो सभी चैनलों ने न्यूज - कैपसूल बनाकर पूरे एक सप्ताह तक राग अलापा । लड़की इस चैनल - चर्चा से ज्यादा धबरा गई और हास्टल के कमरे में दुपट्टे से फंदे में झूल गई । अब मामला चैनलों के हाथ से खिसक कर पुलिस - प्रशासन के हाथ में आ गया था । लड़को की शिनाख्त हो गई थी । ये लड़के वही थे जिम की उपस्थिति कम थी याने कल्लू मोची का लड़का,रजिस्टार ष्शुक्ला जी के सुपुत्र, नेताजी के कपूत तथा गुलकी बन्नों के दोहित्र ।
अब पुलिस इन को ढूढंने के प्रयास करने लग गई । लड़के भूमि गत हो गये । इनके बापों ने दौड़ भाग शुरू की । लेकिन लड़के पुलिस के हत्थे चढ़ गये । शाम को चारों बापो की मीटिगं ष्शुक्ला जी के यहां पर ष्शुरू हुई । उन्होंने बचाव के प्रयास ष्शुरू किये । लेकिन बात बनी नहीं ।
क्योंकि सभी जानते थे कि न्यायपालिका इन्साफ का मन्दिर है और न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बन्धी हुई है । अर्थात न्याय कुछ देख नहीं सकता है । वैसे भी नैसर्गिक न्याय का नियम है कि हजारो दोपी छूट जाये मगर किसी निर्दोप को सजा नहीं दी जानी चाहिये । वैसे भी मुकदमे बाजी एक महामारी की तरह है और यह एक राप्टीय ष्शौक है जो कालान्तर में जाकर ष्शोक हो जाता है । अदालते, जज,इजलास,वकील,गवाह,पेशकार,रीडर,पक्षकार,विपक्षी,मुद्धई आदि सैकड़ो ष्शब्द रोज हवा में घुलते रहते हैं ।
लाल फीतो में बंधी फाइले,दस्तावेज,दिवानी,फौजदारी, कागज, रसीद बयाने,मसौदा,नकल,स्टांम्प,पाइप पेपर,वकालतनामा,सम्मान,कुर्की,रजिस्टी,पुर्जा,सुलहनामा मिसल,रजिस्टार,पटवारी,पंच आदि ष्शब्दों के मकड़ जाल में न्याय फंस जाता है । ऐसे ही निरीह स्थिति में पुलिस की ओर से पब्लिक - प्रोसीक्यूटर ने चारों किशोरों को आत्महत्या के लिए उकसाने, रेगिंग करने तथा बलात्कार के प्रयास की विभिन्न धाराओं के साथ चारों केा कोर्ट में पेश कर दिया ।
पुलिस ने स्पप्ट कह दिया अभी इन युवाओं से और भी राज उगलवाये जाने है अतः इन्हे पुलिस रिमाण्ड दिया जाये । पुलिस रिमाण्ड के नाम से ही लड़कों की हवा खिसक गई । लड़कों के बापों ने अपने वकील की ओर देखा मगर वकील नीची गरदन किये चुपचाप बैठा रहा । सरकारी पक्ष को पूरा सुनने के बाद ही जज ने लड़कों की ओर देखा और बचाव पक्ष के वकील को बोलने का अवसर दिया ।
हजूर ! मी लार्ड ! ये बच्चे है । नादान है । अभी पढ़ते है । इन्हें क्षमादान दिया जाये । वैसे भी उस लड़की ने आत्महत्या की थी,जिसका कारण मीडिया में बदनामी थी ।
‘ सर ये सही नहीं है । लड़की इन लड़को की रेगिंग से तंग हो गई थी । इसी कारण उसने यह कठोर कदम उठाया । सरकारी वकील ने दलील दी । न्यायाधीश चुप रहे । फिर बोले ’
‘ इन चारों को एक सप्ताह के लिए न्यायिक हिरासत में रखा जावे ।
ष्शुक्लाजी,कल्लू,कम्पाउण्डर और नेताजी कुछ न कर सके ।
संायकाल ष्शुक्लाजी अपनी मेडम के साथ नेताजी से मिलने पहुॅंचे । वहीं कम्पाउण्डर और कल्लू भी मिल गये । गम्भीर परिस्थिति में गम्भीर चिन्तन - विचार होते है । इधर नेताजी ने अपने सुपुत्र को बचाने के प्रयास तेज कर दिये । ष्शुक्लाजी को देखकर बोले -
यार तुम्हे युनिवरसिटी में इसलिए लगवाया था कि हमारे ही बेटे को फंसवा दिया ।
‘ मैं क्या करता सर ! मुझे तो सूचना ही देरी से मिली । मेरा बेटा भी तो फंस गया है ।
‘ और फिर ये कम्पाउण्डर साहब के सपूत । ये वहां क्या कर रहे थे ? और कल्लू - तेरी ये हिम्मत ।
‘ हजूर माई बाप है । सौ जूते मार ले । मगर मेरे बेटे को कैसे भी बचा ले ।
‘ ठीक है कुछ करते है ?
तभी ष्शुक्लाइन बोल पड़ी
‘ ओर ये आजकल की लड़किया । इन्हें पता नहीं क्या हो गया है । वो ष्शाम को वहॉं क्या रोने गई थी ?
इस फैशन और टीवी चैनलों से सब कबाड़ा कर दिया है। हर चैनल पर इस मुकदमे के समाचार - विचार - वार्ता - गोप्ठियां,विश्लेपण आ रहे है ।
‘ इन पत्रकारों का कोई दीन,ईमान ही नहीं होता । सब कुछ सच-सच दिखा डालते है । ष्शुक्लाजी बोले ।
‘ ष्शुक्ला तुम चुप रहो । कुछ सोचने दो ।
‘ थोड़ी देर की चुप्पी के बाद नेताजी बोले -
इस लड़की के मां बाप को पकडो और उन्हे दे-दिलाकर मामला सुलटाओ । उससे कहों देखो लड़की तो वापस आयेगी नहीं पांच -दस लाख में काम हो सकता है ।
लेकिन क्या लड़की का बाप मान जायेगा ।
मानेगा क्यों नहीं गरीब है,लड़की मर गई है । चश्मदीद गवाह है नहीं । पुलिस - प्रोसीक्यूटर को भी समझा देंगे । और क्या ?
‘ यदि ऐसा हो जाये तो ठीक ही रहेगा ।
‘ ष्शुक्ला तुम लड़की के बाप के पास जाओ । कम्पाउण्डर को भी साथ ले जाना । हाथ पैर जोड़ना । साम -दाम - दण्ड - भेद से उसे मनाने की कोशिश करना । ’
जी अच्छा ! ’ और सुनो । कैसे भी कोर्ट से केस वापस लेले ।
अदालत के बाहर समझोता ही विकल्प है ।
कल्लू अब तक चुप था ।
हजुर मेरी हैसियत कुछ देने की नहीं है ।
तो चुप तो रह सकता है । तुम बस चुप रहो । बाकी हम देख लेंगे ।
अगली पेशी पर लड़की के बाप ने पुलिस के मार्फत केस उठा लिया । अदालत को ज्यादा परेशानी नहीं हुई । मुकदमा खतम । लड़के न्यायिक हिरासत से वापस आ गये । और उछलने -कूदने - खेलने लग गये । इस बार नेताजी ने भी काफी सावधानी से दांव खेला था,क्योकि चुनाव सर पर थे । कल्लू जैसा कार्यकर्ता मिल गया । मुसलमानों के वोट के लिए कम्पाउण्डर फिर फिट था और ष्शुक्लाजी ब्राहमणों के वोट दिलाने में माहिर थंे,नेताजी जीत के प्रति आश्वास्त थे, मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था ।
अचानक नेताजी को राजधानी से बुलावा आ गया । गठबन्धन सरकारों का यही दुर्भाग्य होता है,उन्हें स्वयं पता नहीं चलता कि यह विकलांग गठबन्धन कब तक चलेगा । जैसा कि नियम है सिजारे की हांडी हमेशा चौराहे पर फूटती है, और नेताजी राजधानी पहुॅचे तब तक हांडी फूट चुकी थी । जूतों में दाल बंट चुकी थी और सरकार अल्पमत में आ गई थी । सदन के अध्यक्ष ने बहुमत सिद्ध करने के निर्देश मुख्यमंत्री को दिये । मुुख्यमंत्री जानते थे कि बहुमत है ही नही ंतो सिद्ध कैसे करेंगे । तमाम जोड़ - तोड़ - अंकगणित और संख्या बल के सामने वे नतमस्तक थे । उन्हें आजकल में स्तीफा देना था,मगर कोशिश करने में क्या हर्ज है,अतः केबिनेट की बैठक बुलवा कर विधान सभा का आपातकालीन सत्र बुलाने का निर्णय ले लिया गया । हमारे कस्बे वाले नेताजी का उपयोग कुछ एम. एल. ए. को तोड़ने में किया जाना था । नेताजी ने अपने संभाग के एस. सी. एस. टी. ओ.बी. सी. व महिला एम. एल. ए. की एक मिटिंग बुलाई । पांच सितारा होटल में सर्वसुविधा युक्त इस मिटिंग के बाद सभी विधायको को एक रिसोर्ट में नजरबन्द कर दिया गया ताकि कोई इधर -उधर न हो । मगर विधायकों कौ कोन रोक सकता था। विपक्षी पार्टी ने मीडिया में हल्ला मचाया । विधायको को छोड़ा गया। खाने - पीने -उपहार आदि में लाखों का खर्चा आया । लेकिन एक फायदा हुआ जो कीमती नकद उपहार दिये गये उन्हे कैमरे में कैदकर लिया गया । इस सीडी के उपयोग से मुख्यमंत्री जी ने विधायको को बलेक मेल किया और सदन में विश्वास मत पर बड़े आत्मविश्वास के साथ भापण दिया । कुछ भापण का प्रभाव कुछ नेताजी की करामात सरकार एक वोट से बच गई । विधानसभा अध्यक्ष का यह वेाट सरकार को बचा गया । मुख्यमंत्री ने नेताजी की पीठ थपथपाई । नेताजी ने अपना टिकट का रोना रोया ।
‘ सर ! मेरा क्षेत्र तो परिसीमन में आ गया है ?अब मेरा क्या होगा ।
‘ होना - जाना क्या है ? किसी दूसरे क्षेत्र से प्रयास करना । ’
‘ अन्य क्षेत्र से जीतना मुश्किल है । ’
‘ जीत हार तो जीवन में लगी ही रहती है ?
‘ कोई और रास्ता बताईये । देखिये सरकार बचाने में मेरे लोगों के लाखों रूपये खर्च हो गये ।
‘ तो क्या हुआ ष्शराब लाबी और भूमाफियाओं ने आपके माध्यम से सरकार को करोड़ो का चूना लगाया है ।
‘ सर ! लेकिन मेरे राजनीतिक जीवन के लिए कुछ तो करें । मैं क्षेत्र में जाकर क्या मुंह दिखाउूंगाा ।
‘क्षेत्र तो परिसीमन में चला गया है। तुम एक काम करो ।
‘ कहिये ।
यदि अगले चुनाव में भी हम जीते तो तुम्हें राज्यसभा में भेजने की कोशिश करेगें । तब तक तुम संगठन में काम करो ।
‘ संगठन में तो पहले ही दूसरे गुट का कब्जा है ।
ते उस गुट को उखाडने की कोशिश करो । देखो हर पार्टी के अ्रन्दर कई पार्टियां होती है और ये कई पार्टियां मिलकर सत्ता या सगंठन को आपस में बांट लेती है ।
‘ मैं समझा नहीं ।
देखो इस राजनैतिक कूटनीति का बड़ा महत्व है । कांग्रेस में कई कंग्रेस भाजपा में कई भाजपा,कम्यूनिस्टो में कई पार्टियां,ये सब सत्ता और सगंठन के खेल है । इन्हे ख्ेालो । आनन्द करो मैं पार्टी अध्यक्ष व हाइकमाण्ड से बात करके तुम्हे पार्टी में कोई पद दिला दूगां । चुनाव का समय है सगंठन में अच्छे आदमियों की बड़ी जरूरत है ।
जैसा आप ठीक समझे । मगर बुर्जुग नेताओं के सामने मेरी क्या चलेगी ।
‘ चलेगी । हम नये,युवा,उत्साही लोगो को टिकट देने के प्रयास करेंगे । हम कोशिश करेंगे कि सत्तर पार के शिखर टूट जाये ।
‘ लेकिन ये लोग पार्टी को डुबा देने की हैसियत रखते हैं ।
‘ प्रजातन्त्र में जीत - हार चलती रहती है ।
न्ेाताजी ने मुख्यमंत्री जी के चरण स्पर्श किये । अन्दर जाकर भैाजी को प्रणाम किया और पारिश्रमिक स्वरूप अटैची लेकर वापस कस्बें में लौट आये । कस्बे में कल्लू मोची के लड़के ने चुनावी बिगुल परिसीमन के आधार पर बजा दिया था । उसे माधुरी विश्वविधालय के छात्रों,कर्मचारियों,अध्यापको,व जातिवादी समर्थन प्राप्त था । यह देख सुन कर नेताजी के पांव तले की जमीन खिसक गई ।
कल्लू पुत्र राजनीति में नया नया था । मगर युवा था । जोश था । तकरीर करने लग गया था । सुबह समाचार पत्र,सम्पादकीय व राजनीतिक विश्लेपण पढ़ कर बहस कर लेता था । पार्टी कार्यालय में चक्कर लगाता रहता था । पार्टी के स्थानीय अध्यक्ष की गोद में बैठने को तैयार था । विपक्षी दलों के वक्तव्यों के खिलाफ अपने वक्तव्य छपवाने लग गया था । सुबह समाचार पत्र में छपे वक्तव्य पढता,दोपहर में प्रेस नोट तैयार कर ष्शाम को छपने दे आओ । प्रेस - विज्ञप्ति के सहारे नेता बनना आसान था, कभी कदा कोई छोटा अखबार फोटो भी छाप देता था । कल्लू पुत्र राजनीति के दांव पेंच सीख रहा था । नेता पुत्र अब उसका अनुगामी बनने को तैयार था । नेताजी रूपी सूर्य अस्ताचल को जा रहा था । ष्शुक्ला जी का बेटा नाकारा था और लड़की के काण्ड़ में ष्शहीद हो गया था । कम्पाउण्ड़र का मुस्लिम बेटा अपने बाप के ठीये पर जमकर बैठने लग गया था ।
चुनाव के चक्कर और चुनावी चकत्लस ष्शुरू हो गई थी । कई राजनैतिक पार्टियों को उम्मीदवार नहीं मिल रहे थे । अन्य र्र्पिाटयों के पास एक - एक पद हेतु कई - कई उम्मीदवार थे । कुछ धूर्त उम्मीदवारो ने कई र्पािर्टयों से सम्पर्क साध रखा था । कांग्रेस से टिकट नहीं मिले तो भाजपा स ेले लेगे । दोनो मना कर दे तो तीसरे मोर्चे की ष्शरण में जाने को तैयार बैठे थे । कुल मिलाकर टिकट प्राप्त करना ही सिद्धान्त था । यहीं सिद्धान्तवादी राजनीति थी । सब तरफ से निराश,हताश कमजोर उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़ने को तैयार थे, ताकि कुछ चन्दा कर अगले चुनाव तक का चणा -चबैणा इकठ्ठा कर सके । चारों तरफ चुनावी बादल मण्डरा रहे थे । मानसून तो बिना बरसे चला गया था,मगर चुनावी मानसून की वर्पा होने की पूरी संभावना थी और राजनीति के नदी,नाले,तालाब,पोखर,झीलें,कुए,बावड़ियेा के भरने की संभावना उज्जवल थी।
समझदार बूढे राजनेता तेल और तेल की धार देख रहे थे । युवा उत्साही नेता सीधे लाल पट्टी व लाल बत्ती वाली गाड़ी देख रहे थे । सब सपने देख रहे थे । सपनों को पूरा करने के लिए रात रात भर जाग रहे थे । चुनावी बाढ़ की आंशकाएं बढ़ गई थी ।
ऐसे ही अवसर पर कल्लू पुत्र ने कुछ आर्थिक संयोजन हेतु एक विराट - विशाल पुस्तक मेले का आयोजन एक स्थानीय अखबार को मीडिया पार्टनर बनाकर कर डाला । एक स्थानीय चेनल को चेनल पार्टनर बना दिया । कल्लू पुत्र का किताबों से कोई लगाव नहीं था । स्मारिका, स्टाल,बेच बाच कर राशि एकत्रित करना ही उसका उधेश्य था । उसने स्टाल बेचे । खाने -पीने के स्टाल्स सबसे पहले और सबसे मंहगे बिके । पुस्तक प्रकाशकों,विक्रेताओं ने ज्यादा रूचि नहीं ली । मगर स्थानीय पुस्तकालयों द्वारा थोक खरीद की संभावना दिखने पर वे भी आये । स्टाल लग गये । निर्धारित समय पर पुस्तक मेला खुल गया । बुद्धिजीवियों ने भी मेले में आने में कमी नहीं रखी । पुस्तके खूब थी । मगर पुस्तको के विपय अलग थे। साहित्य के बजाय केरियर,कुकरी,प्रबन्धन,कम्यूटर आदि से बाजार अटा पड़ा था । कुछ स्टाल्स पापड़,बड़ी,मंगोड़ी,अचार,चाय,नमकीन,तिलपट्टी आदि की थी,और उनपर बड़ी भारी भीड़ थी । लेाग बाग घर जाते समय पुस्तकों के बजाय ये ही चीजे खरीद रहे थे । खाने पीने के स्टालो पर भी बड़ी भारी भीड़ थी । पानी पूरी,दहीबड़े,कचौडी,छोले - भटूरे के बीच बेचारी किताब को कौन पूछता ?
पुस्तके न के बराबर बिकी । बहुत सारे प्रकाशक घाटे में रहे । जो गोप्ठियॉं,सेमिनार,आदि हुए उनमें से गजल,पुस्तकों की फैशन परेड़ आदि में बड़ी धूम रहीं । ड़ंास कार्यक्रमों से पुस्तक मेले की सफलता आंकी गई । पुस्तकों के संसार में समोसेा, दहीबड़ो का योग दान अविस्मरणीय रहा । मगर कल्लू पुत्र कमजोर नहीं था । वो भावी नेता था । नेताजी का रोंद कर आगे जाना चाहता था । अतः उसने सरकारी खरीद की घोपणा करवा दी । प्रकाशकों,विक्रेताओं की बांछे खिल गई । एक ही पुस्तक कई प्रकाशको -विक्रेताओं ने सबमिट कर दी । निर्णय लेना मुश्किल हो गया । जो पुस्तक मेले में दस प्रतिशत कमीशन पर मिल रही थी वो ही पुस्तक बाहर बाजार में पचास प्रतिशत कमीशन पर उपलब्ध थी । कुछ बड़े प्रकाशक अधिकतम् मूल्य पर पुस्तक बेचना चाहते थे, सरकारी खरीद में घोटालों की संभावनाएं बहुत बढ़ गई थी ।
पुस्तक क्रय समिति और पुस्तक चयन समिति बनी,मगर निर्णय लेने में सफल नहीं हुई । लेकिन आखिरी दिन सब ठीक - ठाक हो गया क्योंकि सभी पुस्तक विक्रताओं के यहॉ से सरकार ने कम से कम एक पुस्तक अवश्य खरीद ली । विरोध की गुंजाईश ही समाप्त हो गई । सब खुश । सब का खर्चा - पानी निकल गया । पुस्तक लेखक खुश । प्रकाशक खुश । पुस्तकालय - अध्यक्ष खुश । क्रय समिति खुश । पुस्तक चयन समिति खुश क्योंकि सब का मुंह बन्द । लेकिन जिन लेखकों की कम पुस्तके क्रय हुई वे भला कैसे चुप रहते, लेखक संगठनो के नाम पर अखबार बाजी हुई । इसी प्रकार जिन प्रकाशकों को ज्यादा लाभ मिला,छोटे प्रकाशको ने उन्हें लपेटा,लेकिन धीरे धीरे सब ष्शान्त हो गया । लोग सब भूल गये उन्हे केवल फैशन परेड में पुस्तक हाथ में लेकर रैम्प पर चलती कन्याओं के ठुमके याद रहे ।
पुस्तक संस्कृति का ष्शायद यह अन्तिम अध्याय था ।