Rahashymayi tapu - 8 in Hindi Adventure Stories by Saroj Verma books and stories PDF | रहस्यमयी टापू--भाग (८)

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रहस्यमयी टापू--भाग (८)

रहस्यमयी टापू--भाग (८)

अब चलो सुनो आगे की कहानी, सुवर्ण ने मानिक चंद से कहा__
मैंने अपने जादू से चित्रलेखा को जलपरी और शंखनाद को पंक्षी का रूप तो दिया लेकिन चित्रलेखा जलपरी बनकर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी क्योंकि वो ज्यादा देर तक पानी से बाहर नहीं रह सकती थी, लेकिन शंखनाद तो मेरी जान के पीछे ही पड़ गया।।
मैं हमेशा उससे बचा बचा फिरने लगा, नीलकमल से भी तो कहीं दिनों तक मिलने नहीं जा सका,उस दौरान मैं ऐसे घने जंगलों में रहने लगा जहां सूरज की रोशनी भी नहीं जा सकती थी क्योंकि शंखनाद तो पंक्षी था तो वो मुझे कहीं से भी आकर ढूंढ सकता था और मैं खुद को उससे बचाने का प्रयास कर रहा था।
मुझे इतना ज़्यादा जादू भी नहीं आता कि मैं उससे जीत पाता, लेकिन इतना छुपने के बावजूद भी उसने मुझे एक दिन ढूंढ ही लिया, जैसे ही उसने मुझे देखा उसने मेरा पीछा करना शुरू कर दिया और मैं घने जंगलों की ओर भागा चला जा रहा था...भागा चला जा रहा था लेकिन फिर भी वो मेरे सामने आ पहुंचा, मैं उसके वार से खुद को बचाता रहा,बस उसने तो उस दिन मुझे मारने की जैसे ठान ही ली थीं, उसने मुझे बहुत चोट पहुंचाई, मैं लड़ते लड़ते थक चुका था चूंकि वो पंक्षी था तो किसी भी दिशा की ओर से आकर वो मुझ पर हमला करता,बाद में मुझमें उस का वार सहने की क्षमता नहीं रह गई और मैं घायल हो चुका था।।
लेकिन जब मुझे होश आया तो मुझसे एक बुजुर्ग ने पूछा__
अब, कैसे हो तुम?
मैंने कहा, ठीक लग रहा है।।
उन्होंने कहा,तुम अब से मेरी निगरानी में रहोगे।।
मैंने पूछा__ लेकिन क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं चाहता हूं,तुम सुरक्षित रहो।।
मैंने पूछा__लेकिन आप मेरा भला क्यो चाहने लगे,इसका कोई कारण।।
उन्होंने कहा __हां
मैंने पूछा__ क्यो?
उन्होंने कहा__ मैं अघोरनाथ, चित्रलेखा का पिता, मैं एक तांत्रिक हूं और तुम्हारी रक्षा के लिए नीलगिरी के महाराज यानि के तुम्हारे पिता ने मुझे नियुक्त किया है ताकि तुम्हारा हाल शुद्धोधन की तरह ना हो।।
मैंने पूछा_ लेकिन आप तो चित्रलेखा के पिता होकर,मेरी भलाई के बारे में क्यो सोचने लगे भला!!
वो बोले__ मेरी पुत्री बहुत बड़ी अपराधिनी है, उसने मेरी पत्नी की हत्या के साथ साथ और ना जाने कितने लोगों की हत्या की है,इसके लिए मैं उसे कभी क्षमा नहीं कर सकता और उसके किए की सजा उसे अवश्य मिलनी चाहिए।।
उसने अपनी विद्या का उपयोग गलत कामों के लिए किया है और ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, मैं भी तो एक तांत्रिक हूं लेकिन मैंने अपनी विद्या का उपयोग कभी भी ग़लत कामों में नहीं किया, इसलिए महाराज ने मुझे नियुक्त किया है और अब से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी होगी।।
और उसके बाद मैं ने अघोरनाथ से कुछ तंत्र विद्या सीखी, फिर एक दिन वो बोले, मुझे किसी जरूरी काम से जाना होगा और तुम्हे वहां अपने साथ नहीं ले जा सकता इसलिए मैं तुम्हें दो दिनों के लिए गुफा में क़ैद कर के जाऊंगा और वो चले गए, सुवर्ण बोला।।
लेकिन अघोरनाथ गए कहां?,मानिक चंद ने पूछा।।
मुझे भी नहीं पता, सुवर्ण बोला।।
तुमने अघोरनाथ पर भरोसा कैसे कर लिया,हो सकता है वो भी कोई साजिश रचने वाला हो तो,मानिक चंद ने कहा।।
अच्छा!! अभी ये सब छोड़ो,आधी रात होने को आई,अब थोड़ा विश्राम कर लें, बहुत थक चुका हूं मैं, सुवर्ण बोला।।
अच्छा ठीक है मित्र, जैसी तुम्हारी मंशा, मैं भी थक चुका हूं,अब तुम्हारी बातें सुनकर मेरा मन हल्का हो गया,अब शायद मैं भी चैन से सो सकूं और इतना कहकर मानिक गहरी निंद्रा में लीन हो गया।।
रात का गहरा अंधेरा,ऊपर से घना जंगल,तरह तरह के पंक्षियों का कर्कश शोर,आग भी बुझने को थीं क्योंकि लकड़ियां जल चुकी थीं केवल कोयलें ही सुलग रहे थे और उनसे ही हल्की रोशनी थी, तभी एकाएक मानिक चंद को ऐसा लगा कि कोई उसका गला घोंट रहा है, अचानक उसने अपनी आंखें खोली और गला घोंटने वाले को देखने का प्रयास करने लगा लेकिन इतना अंधेरा था वो कुछ देख नहीं पा रहा था, बड़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो खुद को छुड़ाने में कामयाब रहा, छूटते ही जंगल में भागना शुरू कर दिया,वो बार बार पीछे मुड़कर देख रहा था लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था,सूखे पत्तों में किसी के कदमों की आहट आ रही थी,बस ऐसा लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है।।
वो भागते जा रहा था...भागते जा रहा था लेकिन वो शक्ति उसे दिख नहीं रही थीं,बस मानिक को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,वो भाग भागकर थक चुका था लेकिन वो शक्ति उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।।
वो भागते भागते किसी पेड़ के टूटे हुए तने से टकराकर गिर पड़ा,अब तो उस शक्ति ने उसे हवा में उछाल दिया, वो मुंह के बल आकर जमीन पर फिर से गिर पड़ा, उसके माथे पर बहुत गहरी चोट लग चुकी थीं और बहुत खून बह रहा था, वो पूरी हिम्मत लगाकर खड़ा हुआ तो उस शक्ति ने चाकू से उसके सीने पर वार किया लेकिन उसी समय किसी ने धक्का देकर उसे धकेल दिया जिससे चाकू का वार खाली चला गया।।
उसे धक्का देने वाले व्यक्ति ने उसी समय कुछ मंत्र पढ़ें और वो शक्ति हवा में गायब हो गई।।
उस व्यक्ति ने मानिक चंद को सहारा देकर खड़ा किया और पूछा__
ठीक हो, ज्यादा चोट तो नहीं लगी।।
मानिक चंद उन्हें हैरानी के साथ देखते हुए बोला__
मैं ठीक हूं, बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो समय पर आकर आपने मेरी जान बचाई।।
मुझे मालूम था कि शंखनाद ऐसी कोई हरकत जरूर करेगा इसलिए मैं उसे गुफा में क़ैद करके गया था, पता नहीं गुफा से उसे किसने आज़ाद कर दिया,वो व्यक्ति बोला।।
जी, मैंने उसे आजाद किया लेकिन वो तो सुवर्ण था,मानिक चंद फिर हैरान होकर पूछा।।
तुम्हें किसने कहा कि वो शंखनाद नहीं सुवर्ण था,उस व्यक्ति ने मानिक चंद से पूछा।।
मुझे तो उसने खुद बताया कि वो सुवर्ण है और जो उस घर में रह रही हैं वो नीलकमल हैं,जो समुद्र तट पर जलपरी मिली थी वो चित्रलेखा थीं,जो समुद्र तट में पंक्षी था वो शंखनाद है,मानिक चंद एक सांस में सब कह गया।।
अच्छा तो ये बात है, उसने तुम्हें गुमराह करने की कोशिश की,उस व्यक्ति ने कहा।।
लेकिन महाशय!! आखिर आप कौन हैं? मेरा तो सर चकरा रहा हैं,हर बार किसी ना किसी के मिलने पर नई कहानी,अब आप भी सच बोल रहे हैं या झूठ, मैं ये कैसे मानूं,मानिक चंद खींज कर बोला।।
मैं अघोरनाथ हूं,उस व्यक्ति ने कहा।।
अच्छा तो आप ही चित्रलेखा के पिता हैं,मानिक चंद बोला।।
हां, मैं ही उसका अभागा बाप हूं जिसकी इतनी क्रूर बेटी हैं, मैं जिंदगी भर लोगों की भलाई करता रहा और मेरी बेटी ने तो इन्सानियत की हद ही पार कर दी, अघोरनाथ बोला।।
अब, मैं कैसे मान लूं कि आप सच बोल रहे हैं,मानिक चंद ने कहा।।
हां,तुम बिल्कुल सही कह रहे हो,ये तिलिस्म से भरा टापू हैं यहां एक बार जो आ गया वो वापस नहीं जा सकता क्योंकि शंखनाद सबके हृदय निकाल कर अपना जीवन बढ़ाने वाला तरल बनाता है और इस काम में उसका पूरा पूरा सहयोग मेरी बेटी चित्रलेखा करती है, अघोरनाथ बोला।।
इसलिए तो मुझे संदेह हो रहा कि आप सच में अघोरनाथ ही हैं,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,ये लो परिमाण, नीलगिरी राज्य के राजा का पत्र, उन्होंने मुझे अपने छोटे बेटे सुवर्ण की रक्षा के लिए नियुक्त किया है, अघोरनाथ ने पत्र,मानिक चंद के हाथ में सौंपते हुए कहा।।
मानिक चंद ने वो पत्र पढ़ा और बोला___
मानिक चंद बोला, परंतु आप यहां से कहां गए थे,शंखनाद को उस गुफा में कैद़ करके।।

क्रमशः____
सरोज वर्मा___
सर्वाधिकार सुरक्षित___