Apne-Apne Karagruh - 21 in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | अपने-अपने कारागृह - 21

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अपने-अपने कारागृह - 21

अपने-अपने कारागृह-21

अपने खालीपन को भरने के लिए अजय ने एक एन.जी.ओ. ज्वाइन कर लिया। एन.जी.ओ. के सदस्य एक गांव को गोद लेकर वहां स्वच्छता अभियान के साथ स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति भी गांव के लोगों में जागरूकता पैदा करने का प्रयास कर रहे थे । लोगों की अज्ञानता तथा असहयोग के कारण कार्य दुरुह अवश्य था पर मन में चाह हो,दुरूह को सरल बना देने की कामना हो, वहां सफलता अवश्य मिलती है । अपने प्रयास को सफलता प्रदान करने के लिए अजय और उनकी टीम के सदस्य सुबह ही निकल जाते थे तथा शाम तक ही घर लौटते थे । अजय को अपने पुराने रूप में पाकर उषा बेहद प्रसन्न थी ।

60 वर्ष की उम्र अधिक नहीं होती । वस्तुतः इस उम्र में जब एक व्यक्ति अपनी सारी पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त होकर निश्चिंत होकर, अपनी समस्त ऊर्जा के साथ अपने कार्य में संलग्न होना चाहता है तो उसे अवकाश प्राप्ति का पत्र पकड़ा दिया जाता है । जो शरीर और मस्तिष्क एक दिन पूर्व तक सक्रिय था वह अचानक दूसरे दिन से निष्क्रिय कैसे हो सकता है ? यह भी सच है कि प्रत्येक समाज के कुछ नियम और कानून होते हैं जिनका पालन करना आवश्यक है । वैसे भी अगर पुरानी पीढ़ी , नई पीढ़ी को जगह नहीं देगी तो सृष्टि का विकास कैसे होगा ? जीवन की हर अवस्था की अपनी प्राथमिकताएं हैं, आवश्यकताएं हैं ...जो इंसान इन्हें पहचान कर अपने कदम आगे बढ़ा लेता है वह कभी असंतुष्ट नहीं रहता । वैसे भी जीवन रूपी वृक्ष को अगर समयानुसार खाद पानी, उपलब्ध नहीं कराई गई तो वह असमय ही अपने पहचान खो बैठेगा । पहचान खोकर क्या आदमी जी पाएगा ? अवकाश प्राप्त का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आदमी निष्क्रिय होकर बैठ जाए ।

जब तक इंसान में शक्ति है , वह तन मन से स्वस्थ है तब तक उसे कुछ न कुछ अवश्य करते रहना चाहिए वरना वह दूसरों के लिए तो क्या स्वयं अपने लिए भी बोझ बनता जाएगा । कोई भी आत्मसम्मानी व्यक्ति ऐसा कभी नहीं चाहेगा ।

कॉल बेल की आवाज सुनकर उषा ने दरवाजा खोला । सामने शशि खड़ी थी,उषा ने शशि से कहा, ' आओ अंदर आओ ...।'

' क्या तुम्हें पता है आनंद और लीना के घर चोरी हो गई है ?'

' नहीं तो, कब चोरी हुई ? वह तो घर गए हुए थे ।'

' कल ही...घर के ताले को तोड़कर चोरी की गई है । सूचना मिलते ही वे लौट आए हैं ।'

' क्या ज्यादा नुकसान हो गया ?'

' पता नहीं, मैं उनके घर जा रही हूँ । क्या तुम भी चलोगी ?'

' मिलकर तो आना ही चाहिए । चलो वहीं से प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चले जाएंगे ।'

' ठीक है ।'

वे लीना के घर पहुँचे । लीना बहुत परेशान थी । वे दोनों समझ नहीं पा रही थीं कि कैसे बात करें ?

उनकी आंखों में प्रश्न देख कर लीना ने कहा,' जाने से 2 दिन पूर्व ही हम एक विवाह में गए थे । विवाह में पहनने के लिए मैंने कुछ जेवरात निकलवाए थे । दूसरे दिन अचानक ससुर जी का फोन आ गया कि तुम्हारी मां की तबीयत खराब है , वह बार-बार तुम्हारा ही नाम ले रही हैं, तुम आ जाओ । अचानक जाने के कारण हम जेवर लॉकर में नहीं रख पाए और यह हादसा हो गया ...बैठे-बिठाए 45 लाख का नुकसान हो गया । इंटरलॉक नहीं टूटा तो चोरों ने दीवार ही तोड़ दी । घर के मुख्य दरवाजे के साथ मास्टर बेडरूम के दरवाजे को भी काटने के साथ गोदरेज की अलमारी को भी काट दिया । जो गया वह तो गया ही, उन लोगों ने हमारी अलमारी भी बेकार कर दी । विवाह के पश्चात यह हमारी पहली शॉपिंग थी ।' कहते हुए लीना की आंखों में आँसू छलक आए थे ।

'तुम भी व्यर्थ परेशान होती हो । जो चला गया, सोचो वह हमारा था ही नहीं । अगर हमारा होता, तो वह जाता ही नहीं । अलमारी और आ जाएगी । चोर सामान ही तो ले गया है, हमारा भाग्य तो नहीं ।' आनंद जी ने सहज स्वर में कहा था ।

फोन आने पर आनंद जी उठ कर चले गए ।

' भाई साहब ठीक कह रहे हैं लीना । पुलिस में एफ.आई,आर. लिखवा ही दी है । अगर सामान को मिलना होगा तो मिल ही जाएगा। जब इंसान चला जाता है तब इंसान सब्र कर लेता है तो यह सब तो भौतिक वस्तुएं हैं । ' शशि ने लीना को समझाते हुए कहा था ।

' तुम ठीक कह रही हो शशि पर मन है कि मानता ही नहीं है ।'

' मन तो नहीं मानेगा पर मनाना तो पड़ेगा ही ...अब तुम्हारी सास कैसी हैं ?' अभी तक चुपचाप बैठी उषा ने पूछा था ।

' पहले से ठीक हैं ।'

' शुभ समाचार है । बड़ों का साया सिर पर रहता है तो पूरा घर यूनाइटेड रहता है ।'

' तुम ठीक कह रही हो उषा, पिताजी के फोन करते ही इनके दोनों भाई भी पहुंच गए थे । हम सबको देख कर हफ्ते भर से ठीक से खा पी न पाने के कारण अस्पताल में भर्ती माँ जी के चेहरे की रंगत ही बदल गई थी ।' कहते हुए लीना के चेहरे पर खुशी छा गई थी ।

' जीवन के यही कुछ पल जहां संतोष दे जाते हैं वहीं जीवन को सफल भी बनाते हैं ।'

' सही कहा उषा... हम सबको देखकर मां जी के चेहरे पर तो संतोष था ही, पिताजी की प्रसन्नता भी देखने लायक थी । मां के घर आते ही उत्सव का माहौल बन गया था पर इसी बीच इस खबर के आने से रंग में भंग पड़ गया और हमें उल्टे पैर लौटना पड़ा ।' कहते हुए लीना के चेहरे पर उदासी छा गई थी ।'

' बस अच्छा अच्छा सोचो ,अच्छा ही होगा ।' शशि ने कहा ।

' आई होप सो ...अच्छा मैं चाय बनाती हूँ ।' लीना ने कहा ।

' चाय फिर पिएंगे लीना, क्लास का समय हो रहा है हम चलते हैं ।' उषा ने इजाजत मांगी थी ।

' कैसी चल रही हैं आपकी क्लास ?'

बहुत अच्छी, 40 लोग हो गए हैं । दो ग्रुप में पढ़ाई की व्यवस्था की है ।'

' अगर मैं भी जुड़ना चाहूँ ।'

' हमें बेहद प्रसन्नता होगी ।' उषा ने कहा ।

सुधा आदेश

क्रमशः