murti ka rahasy - 10 - last in Hindi Children Stories by रामगोपाल तिवारी (भावुक) books and stories PDF | मूर्ति का रहस्य - 10 - समाप्त

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मूर्ति का रहस्य - 10 - समाप्त

मूर्ति का रहस्य दस:

त्यागी और रामदास को मोहरों की तरफ ताकता देख, वहाँ से खिसकने के मनसूबे से रमजान और चंद्रावती तलघर से बाहर निकलने के लिये, सीढ़ियों की तरफ मुड़े। इसी समय उन्हे सीड़ियों पर कुछ पदचापें सुनाई पड़ीं।

विश्वनाथ त्यागी ने गरज कर कहा - ‘‘कोई नीचे आने की कोशिश न करना। अन्यथा उसका वही हाल होगा जो बड़े सेठ का हुआ है।’’

‘‘चुप वे ऽऽऽ, बड़ा चालाक बनता है, ये रामदास तो निरा मूर्ख है। जो तेरी बातों मे फँस गया। तूने तो उसे ही मार डाला होता। अब तुम सब मजा चखो।’’

यह कहते हुए किसी ने सीढ़ियों से तरल पदार्थ लुड़काना शुरू कर दिया। रमजान ने सूंघा - ‘‘ बाप रे, यह तो पेट्रोल की गंध है। अगर आग लग गई तो..।’’

मन ही मन डर गया रमजान।

रमजान और चंदा समझ गये, बुद्धि से काम लेना चाहिये। चंद्रावती ने विवेक चलाया - ‘‘ तुम लोग बड़े मूर्ख हो,हमें मार डालना चाहते हो। अरे! इतने खजाने से क्या होना है। बीजक से पता चला है कि यहाँ ऐसे अनेक खजाने दबे पड़े हैं।’’

रमजान ने आवाज दी - ‘‘आप लोग बिना हथियार के नीचे आकर इस खजाने को भर कर ले जाओ। त्यागी तुम अपना हित चाहते हो तो अपनी पिस्तौल चंदा को दे दो।’’

यह कहते हुए रमजान ने उसे आँखों के संकेत से बात मान लेने का इशारा किया।

विश्वनाथ त्यागी समझ गया, इस समय रमजान की बात मानने में ही हित है। यह सोच कर उसने पिस्तौल चंद्रावती की ओर बढ़ा दी।

ऊपर वाले यह देखकर समझ गये, नीच कोई खतरा नहीं है। वे सभी धम्म..धम्म..धम्म.. करते जल्दी जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे।

सभी देख रहे थे कि आने वाले मजदूर थे । चारों मजदूरों के चेहरे पर शैतान सा आकर बैठ गया है। आगे मूँछ वाला मजदूर था। वह सीढ़ियों पर खड़ा होकर कह रहा था -‘‘अरे! रमजान भाई, यही त्यागी सब का बौस है, इसे मत छोड़ना! यही महाराजा बदनसिंह बनने का नाटक कर रहा था । ’’

रमजान ने उन्हंे समझाया -‘‘ ये त्यागी मेरे कहने से मान गया है, आप लोग आराम से आकर इस धन को ले जा सकते हैं ।’’

मूँछ वाला बोला -‘‘ इस लड़की का भी हमें विश्वास नहीं है । इसके हाथ में पिस्तौल है... ।’’

चन्द्रावती बोली - ‘‘ हमें आपका ये धन नहीं चाहिए। आप लोग कहें तो हम पहले ऊपर चले जाते हैं और यह पिस्तौल तुम्हें दे देते हैं।’’

वही मूँछ वाला बोला -‘‘ न न आप लोग ऊपर न जायें, हम नीचे आ रहे हैं।’’

उस मँूछ बाले मजदूर के साथ वे तीनों मजदूर भी अपने-अपने सब्बलों को पटकते और घुँघरूओं को बजाते हुए नीचे आ गए ।

मूँछ वाले ने दाँये हाथ से अपनी बाँये तरफ की मँूछ ऐंठते हुए कहा ‘‘ये सारा धन हमारी मेहनत से मिला है। इस पर हमारा अधिकार हैं ।’’

विश्वनाथ त्यागी बोला ‘‘ यदि मैं यह योजना न बनाता तो क्या होता?... और हाँ मैं बेईमान नहीं हूँ , मैं तुम्हें ईमानदारी से इसमें से हिस्सा दे दूँगा ।’’

अचानक ही तेजी से आगे बढ़कर उस मँूछ बाले ने विश्वनाथ के चेहरे पर मुक्का जड ़दिया - ढिसुम!

चन्द्रावती चीखी -‘‘ तुम लोगों ने हाथापाई की तो मैं गोली मार दूँगी ।’’

सहसा विश्वनाथ त्यागी ने लपक कर चन्द्रावती के हाथ से पिस्तौल छीन ली और हाथ ऊंचा कर उसका ट्रेगर दबा दिया । उसमें से एक गोली निकली -‘‘धाँऽऽऽ य ’’

विश्वनाथ त्यागी नफरत भरी निगाह से रमजान और चंद्रावती को लक्ष्य बनाकर बोला -‘‘ सब चुपचाप खड़े रहो ।’’

विश्वनाथ को रमजान की ओर एकटक देखता पाकर यकायक मूंछ बाला विश्वनाथ पर झपटा, उसके तीनों साथियों ने उसका अनुसरण किया । कुछ देर तक गुत्थमागुत्था होने के बाद अब पिस्तौल मँूछ बाले के हाथ में थी ।

अब मँूछ वाला शान में तनते हुए बोला -‘‘इन तीनों को यहीं ठिकाने लगा देना चाहिए ।’’

मँूछ वाले का एक साथी मजदूर बोला -‘‘इस षोडश सुन्दरी को मत मारो। मुझे मेरे हिस्से का धन न देना। यह बड़े काम की चीज है।

रमजान बोला -‘‘ यह मेरी बहन है ।’’

उस मजदूर ने उत्तर दिया,‘‘ होगी ,अब यह मेरी लुगाई बनेगी।’’

ठीक इसी समय पंडित कैलाशनारायण शास्त्री और रामचरन ओझा दबे पाँव नीचे तलघर में आ पहँुचे।

सब चौंके , चन्द्रावती ने उनसे निवेदन किया -‘‘काका आप इन लोगो को समझाओ, अभी एक ही खजाना मिला है । आप लोग ऐसा करेंगे तो यहाँ जो और भी खजाने दबे पड़े है उन्हें कौन बतलायेगा ?

मँूछ वाला मजदूर अपने साथी पर क्रोध प्रकट करते हुए बोला -‘‘ अबे साले, बहन जी के बारे में तू ये कैसी बातें कर रहा है ! जानता नहीं. सब इन्हीं की बदौलत हमें इतना बड़ा खजाना मिला है।’’

रमजान बोला ‘‘अब आप लोग बातों में देर नहीं करे। पहले इस धन को भरलें । ’’

फिर तो सभी मोहरें भरने के लिये साधन ढूढ़ने लगे । कुछ ने अपने पेन्ट उतार लिये । पेन्ट के पाँवों तरफ वाले हिस्सों में गँाठें लगा ली और उनमें थैलों की तरह वे मोहरे भरने लगे ।

मँूछ बाले ने मँूछ ऐंठते हुए कहा-‘‘पहले इस धन को यहाँ सेेे ऊपर ले चलें ,बाद में मैं इसके हिस्से करूँगा।’’

विश्वनाथ त्यागी बोला, ‘‘हिस्से तो मैं करूँगा ’’

पंडित कैलाशनारायण शास्त्री बोले -‘‘मैं यहाँ के मंदिर का पुजारी हूँ, दान पुण्य के लिये इसमें से मंदिर का हिस्सा भी होना चाहिये।’’

मँूछ बाला गुर्राते हुये बोला -‘‘चल वे पंडित वाले, तू तो अपनी खैर मना कि हमने तुझे मारकर बुर्ज के नीचे नहीं फेंका ।’’

उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि साँप की फुफकार की तरह पुलिस की सीटियाँ गूंँजने लगीं ।

तलघर की सीड़ियों के ऊपरी दरवाजे पर दरोगा का भारी स्वर गूँज रहा था -‘‘सभी अपने-अपने हथियार फेंक दो और अपने हाथ ऊपर करके निकलो ,नहीं तो भून दिये जाओगे ।’’

मँूछ बाले के हाथ में पिस्तौल थी, उसने चन्द्रावली की कनपटी से पिस्तौल लगा दी और बोला -‘‘दरोगा जी इस लड़की की जिन्दगी चाहते हो तो हमें यहाँ से निकल जाने दो । अबे ओ ... ओ ... र म जा न तूँ इस लड़की के आगे आगे चल । ’’

रमजान को चन्द्रावती के आगे होना पड़ा , और वे सब धीरे धीरे सभँलते हुये सीढियों से चढकर लोहे के दरवाजे पर आ पहुँचे । बाहर पुलिस के साथ सेना की डेªस में नूर मोहम्मद खड़ा था । नूर मौहम्मद को देखकर तो सबके होश उड़ गये ।

नूर मोहम्मद ने आगे बढ़कर तत्परता से मँूछ वाले के हाथ से पिस्तौल छीन ली, और अपना एक जोरदार रहपट उसके गाल पर जड़ दिया । मूँछ वाला जमीन पर जा गिरा था और अब उसकी मँूछें धूल से सन रहीं थीं।

अपराधियों को पकड़ लिया गया। दारोगा ने आगे बढ़कर विश्वनाथ, रामदास, कैलाशनारायण और रामचरण ओझा को हथकडी पहना दी ।

खजाने पर नूर मोहम्मद और ग्राम पंचायत की देखरेख में शासन का कब्जा हो गया ।

नूर मौहम्मद कह रहा था - ‘‘वह तो बशीर भाई का भला हो । इन्होंने हमारे कैप्टन मिस्टर दास को फोन करके, मुझे समय पर रमजान के कारण यहाँ बुला लिया।’’

खून से लथपथ नारायण दास की लाश तहखाने से निकाली गई । उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया ।

पुलिस जीप में ठूंस कर अपराधियों को लेकर चली गई ।

गाँव के लोग और रमजान के विद्यालय के साथी राजेन्द्र, सुरेन्द्र, कृष्णा, ज्योति और वन्दना उनके स्वागत के लिए फूल मालाऐं ले आये और उन सबने रमजान और चन्द्रावती को फूल मालाओं से लाद दिया ।

यह देखकर नूर मोहम्मद ने रमजान और चन्द्रावती को अपने गले से लगा लिया । वे दोनों बच्चों को बड़ी देर तक थपथपाकर दुलार करते रहे । इस समय सेठ बैजनाथ के कहीं दर्शन नहीं हो रहे थे ।

दूसरे दिन अखवार के पृष्ठों में सबने पढ़ा-‘‘ दो वीर बालकों की बुद्धिमत्ता और हिम्मत की वजह से सरकारी धन चुराने वाले पकड़े गऐ। धन खोदने की योजना में सम्मिलित अपराधियों को जेल भेज दिया गया है ।’’ अखबार में रमजान और चन्दा के फोटो छपे और उनकी तारीफ में कसीदे पढ़े गये।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर देश के राष्ट्रपति द्वारा चन्द्रावती को वीर बालिका और रमजान को वीर बालक का सम्मान प्रदान किया गया । हाथी पर बैठाकर दोनों को गणतन्त्र दिवस की परेड में निकाला गया । दूरदर्शन पर परेड देख रहे सालवई गाँव के लोग भाव-विभोर होकर उन्हे हाथी पर बैठा देख रहे थे ।

कुछ दिनों बाद गाँव वालों को पता चला - सेठ रामदास को अपने भाई की हत्या के अपराध में फाँसी की सजा सुना दी गई है, तथा विश्वनाथ त्यागी को आजन्म करावास होगया हैं। पं. दीनदयाल शर्मा, पं. कैलाशनारायण शास्त्री तथा रामचरण ओझा को सरकारी अधिकार में आने वाले खजाने पर कब्जा करने के आरोप में तीन तीन बर्ष का करावास हुआ हैं।

तब से उस गाँव में कोई भी भूतों के अस्तित्व को नहीं मानता , और हर बच्चे के मन में ऐसे काम करने की तमन्ना रहती है, जिनसे उन्हें भी रमजान और चन्दा की तरह वीर बालक का पुरस्कार गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति महोदय के हाथों से मिल सके।

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