I am in your heart? - 9 in Hindi Love Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 9

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तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 9

अध्याय 9

तालाब के किनारे दोनों तरफ गड्ढे और पत्थर पड़े थे। कच्ची पगडंडी में हो कर चलना पड़ता था। वह भी नुकीली पत्थरों से भरा था। दस रुपये का टॉर्च लेकर गीता ने अपने हाथ में रखा। मेन रोड से उतर कर धीरे-धीरे तालाब के पगडंडी से चलना शुरू किया। उसके साथ कोई नहीं था।

कोई विपत्ति आए तो चिल्लाने पर भी कोई नहीं आ सकता था। वहां सियारों, लोमड़ियां आ जाती थी। उनके चिल्लाने की आवाज सुनाई देती थी। ज्यादातर लोग लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मिनी बस से सीधे ही गांव आ जाते थे। मिनी बस छूट जाए तो मेन रोड में उतरकर लोग यहां से पैदल आते। गीता ने पीछे की तरफ मोटर बाइक की आवाज सुनी।

मोटरसाइकिल में आने वाला सोनू पोस्टमैन था।

उसने गीता को देखकर मोटरसाइकिल को धीमा किया।

"क्यों  गीता.... इस समय अकेली जा रही हो? मिनी बस छूट गई क्या..?" बड़े अपनत्व से पूछा।

"नहीं.... मैं मेन रोड से उतर कर पैदल ही आती हूं...!"

"आभूषण की दुकान में काम करके देर हो जाती है क्या बच्ची ?"

"हां भैया..."

"ठीक है ठीक है.... मेरे बाइक पर बैठ जा मैं ले जाकर घर छोड़ता हूं..."

"नहीं भैया..." उसने जल्दी से मना किया।

"क्यों बच्ची ?"

"मौसी डांटेगी.... मैं पैदल ही आ जाऊंगी।"

"रितिका के जुबान से तो भूत-पिशाच सब डरते हैं...? तुम बिना डरे रह सकती हो क्या? पता नहीं तुम्हारा अच्छा दिन कब आएगा?" सोनू बड़े हमदर्दी के साथ बोले।

गीता बिना कुछ जवाब दिए चुपचाप चल रही थी।

"क्यो बेटी... मैं भी तेरे साथ बाइक को धकेलते हुए आऊं ?"

"मुझे कोई डर नहीं है.... आप जाइए भैया..."

गीता के साधारण बातचीत, और उसकी हिम्मत से सोनू आश्चर्यचकित हुआ।

उसके मना करने पर वह अपने मोटरसाइकिल को लेकर चला गया।

उस गांव में गीता को सब लोग पसंद करते थे।

गीता के बारे में सोच कर सब लोगों को दुख होता था ‌।

रितिका को देखकर रोने वाला बच्चा भी अपना मुंह बंद कर लेता।

उसकी ज़ुबान बहुत खराब और वह निष्ठुर महिला थी ।

गंदी-गंदी गाली देना।

रितिका के डर से गीता के बारे में कोई भी कुछ नहीं कहता। गीता तेज-तेज चलने लगी।

वह पसीने से तरबतर हो गई।

उसी समय गीता के पास एक बाइक आकर खड़ी हुई।

गीता घबराकर मुड़ कर देखी।

मोटरबाइक को एक किनारे पर खड़ा करके गीता के पास आकर मोती खड़ा हुआ।

अंधेरे में गीता उसको पहचान न पाई।

बदमाश ? लूटेरा ? कामुक ? यह कौन है?

उसका ह्रदय जोर-जोर से धड़कने लगा।

भाग जाऊं क्या? या चिल्लाऊं?

भागूं तो बच सकती हूं ? चिल्लाऊं तो कोई आएगा क्या ? गीता डर कर सोचने लगी।

"गीता” प्रेम से मोती ने बुलाया।

"आप कौन....?"

गुस्से और चिड़चिड़ाते हुए उसने पूछा। उसके आंखों में डर समाया था।

"ड्राइवर मोती आया हूं ! मुझे नहीं पहचाना गीता?"

"आप ? क्यों आए? कृपया यहां से चले जाइए..." करीब-करीब रोती सी आवाज में वह बोली।

"तुम्हें देखना है... बात करना है इसलिए आया।"

"मुझे क्यों देखना है ? मुझसे क्या बात करनी है?"

"बहुत बात करनी है।"

"बात करते हुए गीता के पीछे-पीछे चलने लगा।

"बात करने के लिए कुछ नहीं है।"

"है गीता मुझे समझो गीता।"

"उसी दिन पप्पू से मैंने कह दिया था ना ! मेरे मन में कुछ नहीं है। उसके बाद यह सब बंद कर देना चाहिए था ना? क्यों हमारे घर आना चाहिए? क्यों लड़की मांगना चाहिए? मैंने ही तुम्हें लड़की मांगने के लिए आने को भेजा था ऐसा मौसी को संदेह हुआ । जो पूछना नहीं चाहिए उन प्रश्नों को पूछ कर उससे क्या हुआ पता है? आपसे सामना ही ना हो इसीलिए मैं मिनी बस में नहीं आती। मैं अपने रास्ते पर जा रही हूं। आप मेरे पीछे इस तरह आ रहे हो... किसी ने देख लिया और जाकर मौसी को कह दिया तो क्या होगा पता है?

मैं जिंदा आ-जा रही हूं आपको पसंद नहीं है?" कहकर वह बिलख-बिलख कर रोने लगी।

"गीता... मत रो.. मैं तुम्हारे लिए अपनी जान दे सकता हूं... तुम मुझे चाहिए... पूरी जिंदगी तुम्हें रानी बनाकर रखूंगा" बहुत प्रेम से मोती बोला।

गीता का रोना उसे बहुत बुरा लगा। उसके अंदर तक दर्द हुआ।

"नहीं... आप कुछ भी मत बोलिए।"

"गीता... तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकता... तुम्हारे सिवाए मैं किसी दूसरी लड़की के बारे में सोच भी नहीं सकता। तीन साल से तुम्हारे लिए ही सोच-सोच कर तड़पता रहता हूं। तुम्हारे बारे में मेरी अम्मा को बताया। उन्होंने तुम्हें अपनी बहू बनाने के लिए पूरे मन से तैयार हो गई। इसीलिए तुम्हारे घर पर लड़की मांगने हम आए। तुम्हारी मौसी ने हमें अपमानित करके घर से निकाला फिर भी मैं तुम्हें भूल नहीं सका! मुझे एक बात मालूम होना चाहिए तुमको ढूंढ कर मैं यहां आया हूं।"

"मैंने आपको आने के लिए नहीं कहा...

"यह मेरे जीवन का प्रश्न है गीता।"

"आप आपके जीवन के बारे में सोच रहे हैं... मैं अपने परिवार के बारे में सोच रही हूं।" गीता बोली।

"मैं आपसे प्रेम करूँ, आपके बारे में सोचूं, तो उससे मेरे परिवार को परेशानी होगी ? निष्ठुर मौसी के कारण, उनके दो बच्चे हुए हैं! परिवार की बड़ी लड़की मैं ही गलत रास्ते पर चलूं तो मेरी बहनों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा?"

गीता...!

मौसी ने ही इतने सालों से मुझे खिला-पीला कर बड़ा किया मेरे लिए वहीं मुख्य है। मेरी बहनों का भविष्य भी जरूरी है।"

"तुम कह रही हो वह ठीक है। न्याय संगत भी है।"

"फिर दूर चले जाइएगा।"

"तुम घरवालों को बताए बिना भाग जाओ तभी ना आपके परिवार का अपमान होगा। छोटी बहनों के भविष्य पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगेगा। तुमसे मैं रीति-रिवाज के साथ शादी करने की इच्छा रखता हूं। तुम्हारी मौसी इस पर राजी नहीं है तो मैं क्या कर सकता हूं? इसीलिए तुम्हें अकेले में मिलकर तुम्हारे इच्छा को जानने आया हूँ ।"

"भाग के चले जाएं ऐसा पूछने आए हो क्या ?"

"भागेंगे ऐसा नहीं पूछ रहा हूँ। तुम्हें मेरे साथ ले जाकर हमारी मां के सहमति से रिश्तेदारों के सामने शादी करूंगा । यही कहने आया।"

"प्राण भी चले जाएं पर यह नहीं होगा..."

"आखिर कब तक उस नर्क में ही रहोगी ?"

"उसे मैंने नर्क नहीं समझा.. मेरी मां का मंदिर है वह।"

"गीता मेरी बात को सुनो..."

"तुमसे इतनी देर मैंने बात की वही ज्यादा है। कोई हमें देखें उसके पहले यहाँ से चले जाओ।"

"तुम्हारा फैसला बताओ।"

"वह तो मैंने पहले बता दिया..."

"अब बोलो..."

"क्या बोलना है...? चिड़चिड़ाते हुए पूछा।

"तुम्हारे दिल में मैं हूं ?"

"नहीं है"

"झूठ बोल रही हो... डरकर बोल रही हो..."

"सच में मेरे मन में कुछ नहीं है...."

"गीता..."

"मुझसे बात नहीं किया जा रहा... चला भी नहीं जा रहा... थकावट लग रही है... आपसे रिक्वेस्ट कर रही हूं... मुझे छोड़ दीजिए... बड़ी थकी हुई सी बोली गीता..

"गीता..." परेशान हो गया मोती।

"चले जाइए.. आपके बराबर की कोई अच्छी लड़की देख कर शादी कर लीजिएगा..."

"चले जाओ बोलो... चला जाऊंगा.. परंतु दूसरी लड़की से शादी कर लो ऐसा मत बोलो.. वह अधिकार तुम्हें नहीं है... इस जन्म में मेरी शादी होगी तो सिर्फ तुमसे ही होगी... नहीं तो नहीं होगी...." भावनाओं में डूब कर मोती बोला ।

गीता ने किसी भी बात को नहीं सुना। तेज-तेज कदमों से चलने लगी।

"कितने भी साल हो जाएं मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा गीता... वह तेज आवाज में बोला।

मोती इसके बाद गीता के पीछे ना जाकर, अपनी मोटरसाइकिल को जहां खड़ा किया था उस और चलने लगा।

मेरे इतना अनुनय-विनय करने के बावजूद भी उसका हृदय नहीं बदला।

जो कुछ बात करना था सब कुछ कर लिया। जो होना है होने दो कहता हुआ बाइक को किक मारा।

इस जगह।

इस रात में

स्वयं उसके रास्ते को रोककर बात करने से कितनी बड़ी विपत्ति आ सकती है इसके बारे में मोती को महसूस नहीं हुआ।

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