360 degree love - 9 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 9

Featured Books
  • ભીતરમન - 58

    અમારો આખો પરિવાર પોતપોતાના રૂમમાં ઊંઘવા માટે જતો રહ્યો હતો....

  • ખજાનો - 86

    " હા, તેને જોઈ શકાય છે. સામાન્ય રીતે રેડ કોલંબસ મંકી માનવ જા...

  • ફરે તે ફરફરે - 41

      "આજ ફિર જીનેકી તમન્ના હૈ ,આજ ફિર મરનેકા ઇરાદા હૈ "ખબર...

  • ભાગવત રહસ્ય - 119

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૯   વીરભદ્ર દક્ષના યજ્ઞ સ્થાને આવ્યો છે. મોટો...

  • પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21

    સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ...

Categories
Share

360 डिग्री वाला प्रेम - 9

९.

कुछ और काम… थोड़ा और पहचान

काम पर जुट गयी थी पूरी टीम. देव भी कम रूचि नहीं ले रहा था

बीच में थकान उतारने एक कॉफ़ी ब्रेक लिया गया. देव और आरव कुछ सामान लेने मार्किट गए और पीछे बातो का सिलसिला चल निकला उर्मिला जी बोली,

“अच्छा हुआ कि आरव को यहीं कॉलेज मिल गया था, उसे तो हॉस्टल में जाना पसंद ही नहीं. यूँ कहो कि वह हॉस्टल में रह ही नहीं पायेगा…”

उर्मिला जी शायद अपने बेटे की नाजुकता का बखान कर रही थी, पर आरिणी ने हंसकर कहा,

“आंटी, हमने तो पहली बार इतनी दूर ट्रेन में सफ़र किया था जब यहाँ एडमिशन लिया, लेकिन उसके बाद तो चेन्नई और पुणे आने-जाने में भी कोई दिक्कत नहीं हुई. सब पास ही लगता है! यह भूमि तो जब आई थी बहुत उदास रहती थी, और अब इसका यहाँ ज्यादा घर पर कम मन लगता है”,

 

यह बात उसने इस तरह कही कि उसके साथ ही भूमि भी खिलखिलाकर हंस पड़ी थी.

 

“वो तो ठीक है बेटा... पर अपने बच्चे हमेशा छोटे ही दिखते हैं मां-बाप को, चाहे जितने बड़े हो जाएँ!”, उर्मिला जी ने अपनी व्यथा को शब्द देने चाहे.

 

भूमि वर्तिका के साथ बातों में बिजी हो गई थी, और दोनों थोड़ी-थोड़ी देर में खिलखिलाए जा रही थी. इस उम्र में लड़कियों को यूँ भी बेवजह खिलखिलाने की बीमारी सी होती है, न जाने क्यूँ. उर्मिला जी आरिणी से घुलमिल गई थी. उसका बात करने का सलीका, मीठी आवाज, चेहरे के भाव, मासूमियत, और आकर्षक व्यक्तित्व…. सब दृष्टि से परफेक्ट दिखती थी वह. उस पर पढ़ाई में अव्वल होना. यानि सोने में सुहागा.

 

“बेटा, आपके घर में कौन-कौन हैं, पापा क्या करते हैं?”,

 

लगता था कि उर्मिला जी की उत्सुकता बढ़ने लगी थी आरिणी में.

 

“आंटी, घर में मेरे मम्मी-पापा के अलावा एक छोटा भाई और है, पापा अभी सहारनपुर में पॉवर कारपोरेशन में पोस्टेड हैं, वैसे हम लोग हरदोई के रहने वाले हैं.”

 

आरिणी ने बताया.

 

“अरे वाह, हम लोग भी तो बगल में संडीला के रहने वाले हैं. लो, आरव को पता भी नहीं कि आप और हम पडौसी हैं…”,

 

प्रसन्न होकर बोली उर्मिला जी.

 

फिर तो जाति, गोत्र और घर-कारोबार तक सारी बातें आरंभ हुई तो तब ही खत्म हुई जब देव और आरव लौट आये. हालांकि आरिणी कुछ अधिक नहीं जानती थी अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के विषय में क्यूंकि वे लोग हमेशा पापा के ट्रांस्फरेबल जॉब में शहर बदलते हुए ही बड़े हुए थे.

 

आरव की मम्मी और आरिणी में खूब छनी इन दिनों. वर्तिका भी बीच-बीच में आकर आरिणी को कुछ जोक सुना कर हंसाती रहती. इस तरह से न जाने कब पांच दिन बीत गये पता ही नहीं चला. प्रोजेक्ट लगभग तैयार हो गया था, बेहतर ढंग से. इस बीच कई बातें हुई. पहली, आरिणी जितनी बातें आरव से करती थी, उससे कई गुना वह उसकी मम्मी और बहन वर्तिका से करने लगी. खाने में भी कोई ना-नुकुर नहीं करती थी अब वह. कई बार तो किचेन में जाकर स्वयं चाय बना लाती सबके लिए. भूमि भी घर का खाना खूब पसंद कर रही थी और खुश थी. और देव…? उसका तो पूछिए ही नहीं. लगता था जीवन में पहली बार तृप्त होकर पेट भरा हो उसने इन दिनों में.

 

आज आखिरी दिन था उनके इस पड़ाव का. आरव गो-कार्ट को पेंट शॉप ले जा रहा था. आरिणी को भी साथ ले जाना चाहता था वह, क्यूंकि देव को मार्किट से होते हुए आना था, जिसमें विलम्ब हो सकता था. पर, आरिणी मम्मी से गप्पे लड़ा रही थी, और भूमि को वह नहीं ले जाना चाहता था. उधर मम्मी भी बोली,

 

“अरे, इसे क्यों ले जाना… खुद करो या किसी सर्वेंट को ले जाओ. ये लड़कियों के काम थोड़े ही हैं..”,

 

आरिणी ने भी हंस कर मम्मी का साथ दिया. आखिरकार आरव को ड्राइवर के साथ अकेले ही जाना पड़ा. जाते हुए बोला,

 

“अब देख लो, मम्मी का साथ चाहिए या प्रोजेक्ट में टॉप पर नाम…. नहीं जा रहे हो तो मेरा टॉप पर, और तुम्हारा लास्ट में ही लिखा जाएगा !”,

 

आरिणी को चिढाते हुए कहा उसने… पर आरिणी खिलखिलाती हुई थम्ब डाउन का इशारा कर आरव की मम्मी के साथ चिपक गई.

0000