Lata sandhy-gruh - 11 - last part in Hindi Moral Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | लता सांध्य-गृह - 11 - अंतिम अध्याय

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

लता सांध्य-गृह - 11 - अंतिम अध्याय

पूर्व कथा जानने के लिए पिछले अध्याय अवश्य पढ़ें।

अंतिम अध्याय
-----------------
गतांक से आगे….
---------------
हमारे सांध्य-गृह के सभी सदस्य यहाँ स्वेच्छा से आए हुए हैं,अतः किसी के मन में कोई विशेष उदासी व्याप्त नहीं है।
हमें साथ रहते हुए लगभग चार साल व्यतीत हो चुके हैं।हम सभी एक दूसरे की आदतों को अच्छी तरह समझ गए हैं।हर माह एक दिन के लिए सभी मथुरा,वृंदावन जाते हैं, जो भगवद्दर्शन के साथ साथ पिकनिक भी हो जाता है।हर छः माह में एक बार दूसरे शहर या प्रदेश में तीर्थयात्रा हेतु जाते हैं।हां, जिसे यात्रा में परेशानी होती है ,या उस समय कोई व्याधि अधिक तकलीफदेह हो जाती है, उनके साथ एकाध लोग ध्यान रखने हेतु घर पर रह जाते हैं।
आजकल तो कम उम्र में ही लोग तमाम बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं, फिर हम सभी तो उम्रदराज हैं, किसी को डायबिटीज, किसी को ब्लड प्रेशर, गठिया, अस्थमा, हृदय रोग इत्यादि कुछ न कुछ तो रहता ही है।
माह के प्रथम सप्ताह में सभी अपना - अपना अंशदान सांध्य-गृह के अकाउंट में जमा कर देते हैं, उससे रहने, खाने,बिजली-पानी की व्यवस्था एवं सहायकों के वेतन का संचालन होता है।दो सहायक खाना बनाने के लिए, एक साफ-सफाई एवं एक अन्य कार्यों के लिए हैं।
अपनी औषधि का खर्च सभी अपना-अपना वहन करते हैं।किचन में शाकाहारी भोजन ही बनता है ,लेकिन यदि किसी को कुछ खाना है तो बाहर से मंगवा कर अपने कमरे में खा सकता है।
रविवार की शाम को ही पूरे सप्ताह के खाने-नाश्ते का निर्धारण सभी मिलकर कर लेते हैं।सभी के पसंद-नापसंद की लिस्ट हमने बना रखी है, जिससे ऐसा न हो कि किसी समय किसी के लिए सभी चीजें अरुचिकर बन जाएं।हमारी कोशिश रहती है कि खाना-नाश्ता सभी एक साथ करें।यदि कोई किसी कारण से बाद में करना चाहे तो किचन से स्वयं लेकर कर सकता है।
आजकल नीलेश की यात्राएं कुछ कम हो गई हैं, पिछले सात माह से घर पर ही है।आजकल वह शोभिता से गिटार बजाना सीख रहा है।दोनों लगभग हमउम्र से ही हैं, अतः उनकी आपस में अच्छी मित्रता हो गई है।नीलेश को कॉफी पीने का शौक है, अक्सर जब अपने लिए कॉफी बनाता है तो शोभिता के लिए भी बना लेता है और वे बालकनी या छत पर गप्पें मारते हुए कॉफी का आनंद लेते हैं, वैसे भी नीलेश के पास दुनिया भर की बातों का खजाना है,वहीं शोभिता उत्तम श्रेणी की श्रोता है, कभी मुस्कुरा कर, कभी गर्दन हिलाकर वह नीलेश की कथाएं सुनती रहती है।
नीलेश प्रेम भाव का अनुभव तो पूर्व में कर चुका था, लेकिन शोभिता तो जीवन के इस पहलू से सर्वथा अनजान थी।उसने अपने जीवन पुस्तक में प्रेम के अध्याय को जुड़ने ही नहीं दिया था।स्त्री-पुरूष के सहज आकर्षण से सर्वथा अनभिज्ञ थी, जो कुछ जानती थी सिर्फ कथा-कहानियों या सखियों से सुनी-सुनाई बातें थीं।स्वानुभव का आनंद ही अवर्णनीय होता है।उसे नीलेश से बातें करना, समय व्यतीत करना अत्यंत प्रिय लगने लगा था।नीलेश का साथ उसे स्वप्न सरीखा प्रतीत होता था, ऐसा सुंदर स्वप्न जिसे टूटने के भय से विगत जीवन में देखने का दुस्साहस उसने कभी नहीं किया था।
एक दिन शोभिता ने नीलेश से पूछा कि आप अभी भी उर्वशी से प्यार करते हैं क्या?
नीलेश ने संजीदा होते हुए कहा कि हमने एक दूसरे को हृदय की गहराइयों से प्यार किया था लेकिन मेरी स्वछंद प्रवृत्ति ने बन्धन में बंधना स्वीकार नहीं किया, अतः हम स्वेच्छा से अपनी-अपनी राहों पर अग्रसर हो गए।उसने अपने परिवार की पसंद से घर बसा लिया और मैं आजाद परिंदा बन धरती की सीमाओं को नापता रह गया।सच कहूं, तो याद तो अक्सर आती है उसकी,परन्तु समय के साथ प्रेम भी धुंधला हो जाता है।मन दर्पण के समान होता है शायद, जो सामने होता है, वही दृष्टिगोचर होता है, इसीलिए रिश्तों में निकटता बनाए रखने के लिए मिलते;जुलते रहना चाहिए।
नीलेश ने शोभिता की तरफ देखकर पूछा,"क्या तुम भी सोचती हो कि प्यार पुनः नहीं हो सकता?मैं तो मानता हूं कि यदि प्रथम प्रेम असफल हो जाय,तो समय पुनः अवसर अवश्य प्रदान करता है।"
शोभिता ने जबाब दिया ,"कुछ व्यक्तिगत कारणों से मैं जीवन के इस अद्भुत अनुभव को नहीं प्राप्त कर सकी।"
अचानक नीलेश शोभिता के दोनों हाथों को अपनी हथेलियों में थामकर गम्भीर स्वर में बोला कि क्या तुम शेष जीवन के लिए मेरी जीवनसाथी बनना स्वीकार करोगी?
क्षण भर को तो शोभिता हतप्रभ रह गई, फिर तुरंत सम्हल कर बोली,"नीलेश यह मेरे लिए तो एक अनमोल उपहार होगा,परन्तु पहले मेरा वह व्यक्तिगत कारण जान लो,फिर कोई निर्णय लेना।"
"मुझे ज्ञात है, आकाश अंकल ने बताया था तुम्हारे अविवाहित रहने का कारण,इसके लिए मुझे क्षमा करना, कि मैंने तुम्हारी निजता का उल्लंघन किया।मैं 60 का होने वाला हूं, हमें बच्चे तो चाहिए नहीं।अब तो शेष जीवन किसी अपने के साथ व्यतीत करने की चाहत है।हम दोनों के जीवन में जो अभाव रहा है, उस रिक्ति को भरना है।अगर तुम साथ दोगी तो हमारे शेष बचे जीवन में स्नेह का एक टुकड़ा बादल भी इतनी बारिश कर देगा कि हम अपनी आखिरी सांस तृप्ति के साथ ले सकेंगे।"
शोभिता ने स्वीकृति देते हुए अपना सर नीलेश के कंधे पर टिका दिया।
एक सप्ताह पश्चात हमारे सांध्य-गृह में नीलेश-शोभिता के विवाह के वृहद उत्सव का आयोजन था।घर के आधे सदस्य कन्या पक्ष के,आधे वर पक्ष के।नीलेश की बहन भी आमंत्रित थी, वह बेहद प्रसन्न थी,अपने भाई के लिए, अत्यधिक विलम्ब से ही सही।विवाह का कार्यक्रम अंडर ग्राउंड हॉल में सम्पन्न हुआ।सभी सदस्यों ने मिलकर समस्त खर्च को वहन किया।दिवाकर जी ने अपनी पत्नी के साथ शोभिता का कन्यादान किया।
मैंने कान-नाक के जेवर, पायल,बिछिया तथा फेरों की साड़ी प्रदान किया, क्योंकि लता जी हर भांजी के विवाह में यह उपहार प्रदान करती थीं।
पास के ही एक खाली प्लॉट में हम सभी ने मिलकर पूरे मोहल्ले के लिए दावत की व्यवस्था की थी।
नीलेश ने तो पैसे देने की प्रार्थना की थी,जिसे सभी सदस्यों ने अस्वीकार कर दिया था।
विवाहोपरांत हमने नीलेश-शोभिता को अलग घर लेकर अपनी गृहस्थी बसाने का सुझाव दिया, जिसे दोनों ने नहीं माना।उनका कहना था कि आप सबने हमें बेटे-बेटी का स्थान प्रदान किया है, अतः अब यही हमारा परिवार है, हम सुख-दुःख सब आपके साथ ही रहकर बाटेंगे।बस अब शोभिता नीलेश की धर्मपत्नी बनकर उसके कमरे में शिफ्ट हो गई।
अब हम सभी उम्रदराज हैं, कब कौन संसार से विदा हो जाय,कोई नहीं जानता,यह तो नीयति चक्र है, अपनी गति से घूमता ही रहेगा।परन्तु मैं अपनी कथा का समापन सुखद करना चाहता हूं, अतः इसे नीलेश-शोभिता के विवाह के सुंदर, सुखद घटना के साथ समाप्त कर रहा हूँ।सभी का जीवन मंगलमय हो।
*********