दस्तक
मेरे स्मृति पटल पर
देंगी दस्तक
तुम्हारे साथ बीते हुए
लम्हों की मधुर यादें,
ये हैं धरोहर
मेरे अन्तरमन की
इनसे मिलेगा
कभी खुशी
कभी गम का अहसास
जो बनेगा इतिहास
यही बनेंगी सम्बल
दिखलाएंगी सही राह
मेरे मीत
मेरी प्रीत भी रहेगी
हमेशा तुम्हारे साथ
तुम्हारे हर सृजन में
बनकर मेरा अंश
यही रहेगी
मेरी और तुम्हारी
सफलता का आधार
जीवन में करेगी मार्गदर्शन
और देगी दिशा का ज्ञान।
ये न कभी खत्म हुई है
न कभी खत्म होगी।
आजीवन देती रहेंगी तुम्हारे साथ
सागर से भी गहरी है तुम्हारी गंभीरता और
आकाश से भी ऊँची हो तुम्हारी सफलताएं
तुम वहां, मैं यहां
बस यादों का ही है सहारा
कर रहा हूँ अलविदा,
खुदा हाफिज, नमस्कार!
शहर और सड़क
शहर की सड़क पर
उड़ते हुए धूल के गुबार ने
अट्टहास करते हुए
मुझसे कहा-
मैं हूँ तुम्हारी भूल का परिणाम
पहले मैं दबी रहती थी
तुम्हारे पैरों के नीचे सड़कों पर
पर आज मुस्कुरा रही हूँ
तुम्हारे माथे पर बैठकर
पहले तुम चला करते थे
निश्चिंतता के भाव से
शहर की प्यारी-प्यारी
सुन्दर व स्वच्छ सड़कों पर
पर आज तुम चल रहे हो
गड्ढों में सड़कों को ढूंढ़ते हुए
कदम-दर-कदम संभलते हुए
तुमने भूतकाल में
किया है मेरा बहुत तिरस्कार
मुझ पर किये हैं
अनगिनत अत्याचार
अब मैं
उन सब का बदला लूंगी
तुम्हारी सांसो के साथ
तुम्हारे फेफड़ो में जाकर बैठूंगी
तुम्हें उपहार में दूंगी
टी. बी., दमा और श्वास रोग
तुम सारा जीवन रहोगे परेशान
और खोजते रहोगे
अपने शहर की
स्वच्छ और सुन्दर सड़कों को।
आर्य-पथ
हम हैं उस पथिक के समान
जिसे कर्तव्य बोध है
पर नजर नहीं आता
सही रास्ता
अनेक रास्तों के बीच
हो जाते हैं दिग्भ्रमित।
इस भ्रम को तोड़कर
रात्रि की कालिमा को देखकर
स्वर्णिम प्रभात की ओर
गमन करने वाला ही
पाता है सुखद अनुभूति
और
सफल जीवन की संज्ञा।
हमें संकल्पित होना चाहिए कि
कितनी भी बाधाएँ आएँ
कभी नहीं होंगे
विचलित और निरुत्साहित।
जब आर्यपुत्र
मेहनत, लगन और सच्चाई से
जीवन में करता है संघर्ष
तब वह कभी नहीं होता
पराजित।
ऐसी जीवन-शैली ही
कहलाती है
जीने की कला
और प्रतिकूल समय मे
मार्गदर्शन कर
बन जाती है
जीवन-शिला।
बोझा
आज सुबह नाश्ते में
लड्डू, जलेबी और बादाम का हलुआ देखकर
मन बाग-बाग हो गया
इतना प्यारा नाश्ता देखकर
मैं पत्नी के प्यार में खो गया
मेरे स्वर में
उनके लिये बेहद प्यार आ गया
लेकिन
उनका जवाब सुनकर
मुझे चक्कर आ गया।
पड़ोसी का लड़का
कालेज के अंतिम वर्ष में
प्रथम श्रेणी में प्रथम आया था
इसी खुशी में मैंने अपनी प्लेट में
यह लड्डू पाया था।
यह तो तय था
उसे कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी
और फिर
जिन्दगी भर
चापलूसी ही करवाएगी।
दूसरे पड़ोसी की
लड़की थी अलबेली
उसके अनुत्तीर्ण होने पर
बांटी गई थी जलेबी।
उसे कर दिया गया था
महाविद्यालय से बाहर
इसीलिये खुश थे उसके
मदर और फादर।
वह रोज सिने तारिका बनकर
महाविद्यालय जाती थी
हर दिन उनके पास
नई-नई शिकायत आती थी
अब वे कर सकेंगे उसके पीले हाथ
और फिर तीर्थ यात्रा पर ?
चले जायेंगे बद्रीनाथ।
तीसरा था एक नेता का लड़का
पढ़ने-लिखने में था एकदम कड़का
बड़ी मुश्किल से निकल पाया था,
परीक्षा में थर्ड डिवीजन लाया था।
नेता जी खुशी जता रहे थे
लोगों को बता रहे थे
गांधी-डिवीजन में आया है
बड़ा उजला भविष्य लाया है
बहुत किस्मत वाला है
बहुत ऊँचा जाएगा
मैं तो केवल नेता हूँ
यह मंत्री बन जाएगा।
सबसे कह रहे थे
मांगो दुआ
सबको खिला रहे थे
बादाम का हलुआ।
मैं जैसे सो गया
अपने ही ख्यालों में खो गया
पहले जनता का बोझ
ढोता था गधा,
अब गधे का बोझ
ढोयेगी जनता।
लोकतंत्र का नया रूप नजर आएगा,
लोक अब इस तंत्र का बोझा उठायेगा।