Dream to real journey - 5 in Hindi Science-Fiction by jagGu Parjapati ️ books and stories PDF | कल्पना से वास्तविकता तक। - 5

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कल्पना से वास्तविकता तक। - 5

कल्पना से वास्तविकता तक:--5

नोट:--
1.इस भाग को पूर्णतः समझने के लिए आप पीछे के सभी भाग अवश्य पढ़ लें।
2.यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है,तथा किसी भी वेज्ञानिक़ तथ्य की पुष्टि नहीं करती है। प्रयोग में लाए गए तथ्य हमारी कल्पना मात्र है।
धन्यवाद🙏।

अब आगे.....

नेत्रा मैक्सी को अपनी सहमति व्यक्त करती है, जिसमें कल्कि और यूवी भी उसका साथ देती हैं।
नेत्रा:" लेकिन इसके लिए मुझे क्या करना होगा सर??"
मैक्सी:" पहले तो सर नहीं अंकल कहो,इतने सालों से तरस गया हूं ,अपनों से अपनी सी बातें सुनने के लिए।" मुरझाए से चेहरे से नेत्रा की तरफ देखते हुए कहता है।
नेत्रा:" जी अंकल ,हम आपको अंकल ही कहेंगे ,हमने भी तो कभी किसी अपने को अपनापन दिखाते नहीं देखा है।"
मैक्सी:"बहुत अच्छे, क्या मैं तुम सबके नाम जान सकता हूं ??"
नेत्रा:" ओह सॉरी ,हम तो अपना परिचय देना ही भूल गए । मैं नेत्रा,और ये मेरी दोस्त कल्कि और यूवी उर्फ़ यश्वी है।"
मैक्सी:" ओके"
ग्रमील जो अब तक चुप चाप बैठा था, वो इशारों से मैक्सी को कुछ समझाता है। मैक्सी भी उसकी बात पर हामी भरता है और वो वहां से उठकर चला जाता है।
नेत्रा:" ये कहां गए ?"
मैक्सी:" कहीं नहीं ,वो किसी काम से गया है ,कुछ देर बाद तुमको लेने वापिस अा जाएगा ।"
नेत्रा:"ओके अंकल जी, तो अब आप बताइए अंकल कि हमें इसके लिए क्या करना होगा??"
मैक्सी की तरफ सवालिया निगाहों से देखते हुए पूछती है।
मैक्सी:"ज्यादा कुछ नहीं, तुम्हें बस यहां की प्रकृति को सिद्ध करना है कि तुम एक नासिन्न हो।"
नेत्रा:" मतलब?, हम आपकी बात को समझें नहीं!!"
मैक्सी:" देखो मैं समझाता हूं।अच्छा चलो ये बताओ,क्या तुम्हे भगवान का अर्थ पता है??"
नेत्रा:" भगवान का अर्थ ....." अपने दिमाग पर जोर देते हुए ख़ुद में ही बुदबुदाती है।
यूवी:" मुझे पता है।"
अचानक से यश्वी बीच में बोलती है।सब की निगाहें एक साथ यश्वी के चेहरे पर आकर रुक जाती हैं।यश्वी फिर से बोलना शुरू करती है।
"भगवान भूमि,गन, वायु,, और निर पांच तत्वों को साथ लेकर बनाया एक शब्द है।केवल इन पांच तत्वों के संगम मात्र से हम सम्पूर्ण जगत का निर्माण कर सकते हैं। मानव शरीर भी इन्हीं पंच तत्वों से मिलकर बना हुआ है।तभी तो हम सबको भगवान का ही एक अंश या रूप माना जाता है।"
मैक्सी:" बिल्कुल सही कहा,बस उसी तरह तुम ये समझ लो कि पृथ्वी के भगवान की तरह यहां भग्वानत का अस्तित्व है। जहां शब्द तरंगों के लिए निर्धारित है।यहां तरंगों को महत्व भी उन्हीं पांच तत्त्वों समान है।"
नेत्रा:" ओह अच्छा।"
मैक्सी:" जी,तो जब तुम पृथ्वी पर थी,तब तुममें पांच तत्वों की विशेषता श्रेष्ठ हो गई,और छ्ठा तत्व यानी तरंग का आभाव हो गया है।बस तुम्हे उसी को पूरा करना है।"
नेत्रा: और वो कैसे होगा अंकल?"
मैक्सी:" ज्यादा तो मुझे भी नहीं पता है,लेकिन नसिन्न और यहां की प्रकृति पर अब तक के अध्ययन से मुझे जितना भी पता चला है वो मैं तुम्हे बता सकता हूं।तरंगों की शक्तियों को वापिस पाने के लिए तुम्हे तीन चरणों से गुजरना होगा। जिनमें से पहली तक पहुंचने का रास्ता तो यहां हर कोई जानता है,लेकिन उस से आगे क्या होता है कोई भी ठीक तरह से नहीं जानता।"
नेत्रा:"अंकल आप पहले का रास्ता तो बताइए वहां तक पहुंच गए तो आगे भी पहुंच जाएंगे।"
मैक्सी:" देखो जब तुम मेरे घर की तरफ अा रहे थे तब क्या तुमने दिन से रात होने की प्रक्रिया को देखा था?"
नेत्रा:" हां वो तो बहुत अजीब या शायद बहुत अलग थी,हम सब एक बार के लिए तो डर ही गए थे।"
मैक्सी:" कोई बात नहीं, जब मैंने पहली बार ये सब देखा था तो मैं भी डर गया था। लेकिन अब ये सब आम लगता है।
महत्वपूर्ण बात ये है कि जैसे दिन से रात हुई थी ठीक उसी प्रकार यहां रात से दिन भी होता है । तब फिर से ये सारे सूरज एक दिशा से चारों और फैल जातें हैं, यह एक सामान्य बात है। और इस ग्रह पर ऐसे केवल तीन पेड़ हैं,जो इस प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं।और हर पेड़ के कुछ निर्धारित सूरज है जो पूरा दिन अपने पेड़ के आस पास ही विचरण करते हैं।लेकिन इन सब में केवल एक सूरज ही ऐसा है जो आकार में इनसे थोड़ा ज्यादा बड़ा है ।वो पूरी विथरपि पर घूमता रहता है और एक तय समय के बाद इन तीनों पेड़ों से गुजरता है।"
" ओह।"
नेत्रा और कल्कि एक साथ हैरानी भरे भाव से अनायास ही बोलती है।मैक्सी उनकी तरफ एक बार रुककर देखते हैं और फिर से बोलना शुरू करते हैं।
मैक्सी:" इस पेड़ से गुजरने का समय में यहां के अनुसार अभी पूरे पांच दिन रहते हैं। इस पेड़ से गुजरने के बाद वो जिस भी दिशा में अपनी यात्रा शुरू करता है,तुम्हे ठीक उसी दिशा में जाना होगा। पीछा करते करते तुम अंत में एक झरने के पास पहुंच जाओगे,जिसके पीछे एक बड़ा सा जो देखने में लगभग सामान्य पहाड़ जैसा लगेगा। नसिन्न ऐसा मानते हैं कि उसकी गहराई में कुछ ऐसा है जिसपर अगर उस सूरज की रोशनी डाली जाएं तो उसमें से एक प्रकाश उसके चारों ओर फैलता हुआ प्रतीत होगा। तुम्हे उस प्रकाश की किरणे अपने हाथ में डाले हुए इस कंगन पर डालनी हैं। प्रकाश की एक छोटी सी किरण मात्र से ही इसके रंग में परिवर्तन होगा और ये खुद भी एक रोशनी चारों और बिखेरना शुरू कर देगा। उसी समय अगर तुम इसे छुओगी तब तुम पहले चरण से दूसरे चरण पर पहुंच जाओगी।उस से आगे क्या होगा कैसा होगा ये किसी को नहीं पता है। "
नेत्रा:" बिना कुछ भी जानकारी के हम ऐसे ही कहीं कैसे जा सकते हैं ??"
मैक्सी:" बेटा मैंने तो तुम्हे पहले ही बताया था कि ये काम बहुत मुश्किल है। मैं तो बस तुम्हारी इतनी ही मदद कर पाऊंगा,आगे का सफर तुम्हे अकेले ही तय करना पड़ेगा।"
कल्कि:" एक मिनट अंकल!!,आप जो वो कह रहे थे कि एक झरना मिलेगा ,लेकिन ग्रमिल जी ने तो बताया था कि यहां पानी का क्रिकोडाइल बार्क ट्री के आलावा कोई सोर्स नहीं है।"
मैक्सी:" हां ,उसने बिल्कुल सही कहा था ,जिस झरने की मैं बात कर रहा हूं, वो झरना पानी का ही है या किसी और तरल पदार्थ का इस बात की पुष्टि अब तक भी नहीं हुई है। मैंने कोशिश भी की थी लेकिन उसके बारे में पता करने के लिए,लेकिन मैं असमर्थ रहा था।"
कल्कि:"लेकिन क्यूं? , मेरा मतलब आप तो साइंटिस्ट हैं,तो पानी को तो छूने मात्र से बता सकते हैं कि वह पानी है या कुछ और।।"
मैक्सी:" एग्जैक्टली ,सही कहा मैं छूकर बता सकता हूं लेकिन मैं उसको छू ही तो नहीं पाया था।"
यूवी:" क्या मतलब ?"
मैक्सी:" मतलब ये कि वो झरना उल्टी दिशा यानी नीचे से उपर की तरफ बहता है। वो भी बिल्कुल सीधी दिशा में ,और जो नीचे की धरती है उसपर उस तरल की एक बूंद भी नहीं मिल सकती है।"
कल्कि:" ओह माई गॉड,ऐसी जगह को तो एक बार हमें भी देखना ही पड़ेगा।"
मैक्सी:" नहीं तुम और ये ( यूवी की तरफ इशारा करते हुए) वहां इतनी आसानी से नहीं जा सकती हो।"
कल्कि:" लेकिन ऐसा क्यूं??"
मैक्सी:" क्यूंकि तुम इंसान हो और तरंगे बहुत स्ट्रॉन्ग होती है जो तुम्हे नुकसान भी पहुंचा सकती हैं।"
यूवी:" लेकिन आप भी तो वहां गए थे ,हो तो आप भी इंसान ही।"
मैक्सी:" तुम बिल्कुल सही बोल रही हो यूवी , मैं भी इंसान ही हूं,लेकिन जिस प्रकार धरती पर रहने से तरंगों का आभाव हो जाता है उसी तरह बहुत समय से यहां रहने से मुझपर तरंगों का असर भी हुआ है।
पर हां एक तरीका है। जिस से तुम वहां जा सकते हो।"
कल्कि:" तो बताइए ना अंकल,आप किस बात का इंतजार कर रहे हैं।"
मैक्सी:" नसिन्न एक स्पेशल तरीके का पेय पदार्थ हर शाम पीते हैं, जिसकी वजह से इनका तरंग तत्व सामान्य बना रहे। अगर तुम उसको तीन बार भी पी लोगी तब तुम में भी कुछ हद तक ये तत्व अा जाएगा।और बचा हुआ काम मायति कर ही देगी।मेरा मतलब एक प्रकार से थोड़ा बहुत खुद के शरीर के साथ ही समय बिताना, जिसको ये सब मायति बोलते हैं , या फिर तुम उसे एक प्रकार का योगा भी कह सकती हो वो करने से भी बहुत हद तक तुम वहां जाने के योग्य हो जाओगी। मेरे अंदर भी ये थोड़े बहुत बदलाव उसको पीने और योगा की की वजह से ही आए हैं।"
यूवी:" और वो योगा हम करेंगे कैसे ??"
मैक्सी:" ग्रमिल है ना ,वो सीखा देगा तुम दोनों को।"
कल्कि:" हां तो हम पी भी लेंगे और कर भी लेंगे , उस में क्या है?"
मैक्सी:" बेटा उस में ज्यादा कुछ नहीं है बस तुम्हारी त्वचा का रंग हल्का परिवर्तित हो सकता है।" चेहरे पर मजाकिया मुस्कान बिखेरते हुए कहते हैं।
यूवी:" कोई बात नहीं अंकल हमें उस से फर्क नहीं पड़ता लेकिन हम कहीं भी ना तो कभी अकेले गए हैं और ना अब नेत्रा को जाने देंगे।"
नेत्रा की तरफ देखते हुए कहती है मानो उस से भी अपनी कही बात पर नेत्रा की सहमति की मोहर लगवा रही हो। नेत्रा भी उसकी इस बात पर हल्का सा मुस्कुरा कर अपनी आंखें झपका देती है।
मैक्सी:" ओके बेटा जैसा तुम चाहो ,तो फिर शाम को तुम भी इन सबके साथ ही खाना खा लेना ,वरन तो तुम्हे ये सामान्य पानी ही देंगे।"
कल्कि:" अंकल यहां का खाना हमारे खाने योग्य तो है ना?"
मैक्सी:" हां बिल्कुल,बल्कि ये खाना हमारी पृथ्वी के खाने से ज्यादा स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। तुम सब बिना किसी फिक्र के वीथरपी के नजारों का और यहां के खाने का आनंद लो, यहां कोई भी तुम्हे हानि पहुंचाना तो दूर पहुंचाने के बारे में सोचेंगे भी नहीं ।"
कल्कि:" ओके"
नेत्रा:" अंकल क्या हम सब आपके साथ रह सकते हैं??
वो क्या है ना उन सब के साथ थोड़ा डर सा लगता है।"
मैक्सी:" हा हा हा हा, अरे बेटा तुम्हे तो वैसे भी नहीं डरना चाहिए क्यूंकि तुम तो खुद उनका ही एक हिस्सा हो। और तुम सब की जानकारी के लिए मैं तुम सबको बता दूं कि जो उस समय ग्रमिल यहां से किसी काम के लिए गया था वो काम कुछ और नहीं बल्कि तुम सबके रहने की व्यवस्था हेतु ही गया था।"
नेत्रा:" क्या?? लेकिन क्यूं??..... हमारा मतलब इतना परेशान होने की क्या जरूरत है,आपका घर इतना बड़ा है हम आपके पास भी तो रह सकते थे।"
मैक्सी:" बेटा नासिन्न इंसानियत में, इंसानों से भी बहुत कदम आगे है। वो दूसरों के लिए खुद को भी खतरे में डाल लेते हैं। और ये जो ग्रमिल है ये तो कुछ ज्यादा ही अच्छा है।इसको लगा होगा कि तुम सबको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए,इसलिए तुम्हारे लिए एक अलग से घर की व्यवस्था करने चला गया था।"
कल्कि:" अंकल क्या आप भी इन सबकी भाषा नहीं समझ पाते हैं??"
मैक्सी:" नहीं,लेकिन अब तो इनके भावों से ही इनकी बात का अंदाजा हो जाता है।"
नेत्रा:" लेकिन मुझे तो इनकी भाषा हिन्दी ही लगती है।बहुत आसानी से हर बात समझ आती है।"
मैक्सी:" बेटा ये सब भी तुम्हारे इस कंगन की वजह से ही पॉसिबल है।"
नेत्रा:"हां ये भी हो सकता है।"
मैक्सी:"अच्छा अब चलो चलते है तुम्हारे घर की ओर।आज से ही तुम्हारे यहां के पांच दिन के सफर की शुरुआत करते हैं। वैसे भी रात के भोजन का समय भी हो गया है ना ,और मैं नहीं चाहता कि तुम सब पहले दिन भी खाने पर लेट पहुंचो।क्यूं सही कहा ना मैंने?" खड़े होते हुए कहता है।
"जी अंकल " तीनों एक साथ बोलते हुए मैक्सी अंकल के साथ ही खड़ी हो जाती हैं।
"गुड"
तीनों को साथ लेकर मैक्सी दरवाजे की दूसरी तरफ से घर के बाहर अा जाता है। बाहर का मौसम अब पहले से भी ज्यादा गहरा गया था। एक बार फिर से वहां का दृश्य उन सबको उसका मुरीद होने पर विवश कर देता है। इतनी सुंदरता एक साथ उन्होंने पहले कभी देखी भी तो नहीं थी। रात थी तो अंधेरी लेकिन तारें भी ऐसे जैसे किसी ने पूरे आसमान में जुगनू उड़ा दिए हो। ऊपर से वो गोल गोल चांद सूरज की तरह ही एक दूसरे के साथ खेलते हुए प्रतीत हो रहे थे। मैक्सी और नसिन्नओं द्वारा डाले गए वस्त्र भी रात में अपना अलग ही योगदान दे रहे थे।
मैक्सी उन सबको अपने साथ साथ बीच में बने एक चोराकर जगह पर ले जाता है जहां दोनों तरफ शायद खाने के व्यंजन रखे हुए थे और बीच में सबके बैठने की व्यवस्था भी थी,जहां सब नासिन्न बैठे हुए थे। मैक्सी भी उन तीनों के साथ वहीं एक जगह बैठ जाता है। तभी ग्रमिल कहीं से उन सब के लिए हाथ में खाना लिए उनके सामने उपस्थित हो जाता है,और बहुत प्यार से उनकी तरफ देखता है मानो उनके खाना उसके हाथ से लेने का इंतजार कर रहा हो।
तभी मैक्सी उस से खाना लेकर उन तीनों को खाने के लिए बोलता है। तीनों भी बिना कुछ बोले खाना खाने लग जाती हैं।
यूवी:" यार कुछ भी कहो यहां का खाना बड़ा टेस्टी होता है।"
कल्कि:" हां वो तो है,भले ही समझ ना आए कि हम खा क्या रहें हैं लेकिन खाने में मज़ा आ जाता है।"
मैक्सी:" जब मैंने पहली बार यहां खाना खाया था तब मेरे भी सेम रिएक्शन थे खाने के बाद।" हंसते हुए बताता है।
नेत्रा:" अंकल इस जगह के बारे में ओर भी बताओ ना।"
मैक्सी:" धीरे धीरे सब पता चल जाएगा ,आज जितना बताया है वो भी आज के लिए बहुत ज्यादा है ,अब तुम सब अपने घर चलो और सोने की तैयारी करो। यूवी और कल्कि को तो कल से मायती प्रक्रिया भी तो शुरू करनी है।"
नेत्रा:" क्या मैं भी ये जो मायती है इसको कर सकती हूं अंकल??"
मैक्सी:" हां हां, क्यूं नहीं बेटा,बिल्कुल कर सकती हो। मैं ग्रमिल को बोल दूंगा ,वो तुम सबकी मदद कर देगा। अब के लिए तुम सब चलो ।"
मैक्सी ,ग्रमिल से उनके ठहरने की जगह का विवरण लेता है और उन सबको अपने साथ ही ग्रमिल के घर से तीन घर आगे बने घर में उन को ले जाता है।
मैक्सी:" तो ये रहा तुम्हारा घर,अब तुम सब आराम करो कल सुबह मिलते हैं ।सुबह ग्रमिल तुम्हे तुम्हारे घर के बाहर ही मिल जाएगा।"
घर के अंदर ले जाते हुए कहता है। फिर उन सबको उस घर के बारे में बताने के बाद मैक्सी भी अपने घर की ओर लौट जाता है।
मैक्सी के जाने के बाद वो सब एक बार फिर से पूरे घर को देखती है। वो भी बिल्कुल ग्रमिल के घर जैसा ही लग रहा था। शायद यहां बना हर घर अंदर से एक जैसा ही है। हर किनारे पर कमरा बना हुआ था , उपर छत तो नहीं थी लेकिन फिर भी एक परत को देखने से महसूस किया जा सकता था। बीच में बस एक उस बर्फ़ की कुर्सी के अलावा पूरा खाली ही था।
तीनों एक कमरे के अंदर जाती है जहां नीचे ही कुछ बिछा हुआ था,जो एक बेड के आकार का ही था, जब वो उसपर बैठती हैं तब वो सच में किसी मुलायम गद्देनुमा जगह पर बैठने का एहसास ही लग रहा था।तीनों को ही थोड़ा डर लग रहा था,तो वो मिलकर तय करती हैं ,कि वो एक साथ एक ही कमरे में सो जाएंगी।तीनों ही अपने अंदर चल रही मन की उधेड़बुन को सुलझाते उलझाते कब सो जाती है,उन्हें खुद भी पता नहीं चलता है।
अगली सुबह एक आवाज जो पूरे घर में एक गूंज पैदा कर रही थी, उसकी वजह से उन तीनों की आंख खुलती हैं, जब वो उठती है तब उन्हें लगता है जैसे कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा हो। नेत्रा उठ कर जब बाहर देखती है तब वहां ग्रमिल और उसके साथ एक और उसके जैसे ही नसिन्न के साथ खड़ा हुआ था।
ग्रमिल:" नेत्रा जी वो मैक्सी जी ने बताया था कि हमें अाप सब को मायती का अभ्यास कराना है।"
नेत्रा:" हां , हां हमें याद है ग्रमिल जी।"
ग्रमिल:" तो फिर आप सब हमारे साथ चलिए।"
नेत्रा:" रुको आप मैं यूवी और कल्कि को भी बुला कर लाती हूं।"
ग्रमिल:" जी कोई बात नही ,हम आपका यहीं इंतजार कर रहे हैं।"
थोड़ी देर बाद नेत्रा कल्कि और यूवी को लेकर बाहर अा जाती है।ग्रमिल सबको अपने साथ लेकर चलने लगता है। वो उसी रास्ते से उन सबको उस कस्बे से बाहर ले जाता है जिस रास्ते से उनको अंदर लेकर आता है। उनके वहां से बाहर निकलते ही फिर से वहां बस उस एक पत्थर के आलवा कुछ भी नहीं दिख रहा था।एक बार फिर पूरा कस्बा उन पीली रंग की तारों में समा चुका था। ग्रमिल उनको पेड़ो के बीच बने एक गोल आकार की जगह पर ले जाता है। जो थोड़ी ऊंचाई पर स्थित थी। आसमान का हर बदलता रंग और पेड़ों की हर बदलती आकृति को वहां से आसानी से महसूस किया जा सकता था।
ग्रमिल:"नेत्रा जी, ये मेरा दोस्त नित्य है। हम सब में सबसे अच्छी मायती नित्य ही करता है। ये मेरे साथ अभ्यास में आप सबकी मदद करेगा।"
नेत्रा:" अच्छा ,नमस्ते नित्य जी।"
दोनो हाथों को जोड़कर नित्य का अभिनंदन करते हुए कहती है। और कल्कि और यूवी से भी उसका परिचय करवाती है।वो दोनो भी हाथ जोड़कर उसको नमस्ते करती हैं।
नित्य वेशभूषा से देखने में बिल्कुल ग्रमिल जैसा ही था,लेकिन देखने में उनके चेहरा अलग था। एक तरफ जहां ग्रमिल का चेहरा थोड़ा लम्बा और एक दम शांत और गहराया हुआ था। वहीं दूसरी ओर नित्य के गोल चेहरे पर तीखी नाक के साथ फैले हुए होंठ मानो जैसे मुस्कुरा रहा हो ,उसके चंचल होने की तरफ इशारा कर रहे थे।
नित्य:" मेरा नाम नित्य है,ग्रमिल ने बता ही दिया कि मैं उसका बहुत अच्छा दोस्त हूं । और मायती तो मुझसे अच्छी किसी को आती ही नहीं है। मुझे आप सब बहुत अच्छे लगे। मुझे मालूम है कि आप सब को भी मैं बहुत अच्छा लगा होगा। क्यूं सही कहा ना मैंने??"
अपने दोनों हाथों को हवा में इधर उधर उड़ाते हुए नित्य एक सांस में सब कुछ बोल जाता है। ग्रमिल और नेत्रा को तो सब समझ अा जाता है लेकिन कल्कि और यूवी के पास उसके मुंह ताकने के आलावा कोई चारा दिख नहीं रहा था।
नेत्रा:" जी सही कहा आपने , हमें भी आप बहुत अच्छे लगे।"
कल्कि:" नेत्रा इतनी जल्दी जल्दी कौनसा डोरेमी गा रहे हैं ये ,हमें भी तो बता??"
नेत्रा:" कुछ नहीं बस अपनी तारीफ़ के पुल बांध रहा है।" उसके कान में फुसफुसाते हुए कहती है।
नित्य:" तो शुरू करते हैं।"
नेत्रा:" जी ,बिल्कुल जैसा आप चाहें।"

नित्य उनको एक तरह का योगा ही सीखा रहा था।अपने शरीर को हर तरह से तोड़ मरोड़ कर वो उनके सामने दिखा रहा था।,जैसा वो करता उसी को देख देख कर वो सब भी कर रहे थे,कुछ उनसे हो रहा था कुछ में वो गिर भी जाती थी। लेकिन हर बार संभालने के लिए नित्य या ग्रमील उनके साथ खड़े रहते थे।धीरे धीरे वो सब सीख भी रही थी। नित्य ने अपनी बातों तो ग्रमील ने अपने व्यवहार से तीनों को खुद से बांध लिया था। कल्कि, यूवी और ग्रमील,नित्य एक दूसरे की कही बात तो समझ नहीं पाते थे।लेकिन इशारों में बात समझना बखूबी जान गए थे वो सब।उनकी मदद के लिए वो हर समय उनके साथ ही खड़े रहते थे।थोड़े समय में ही उन तीनों की टोली में दो ओर अजनबी कब अपने से बनकर शामिल हो गए थे ये उनको खुद भी नहीं पता था। मायती और पेय को पीने से धीरे धीरे उन सबकी रंगत में भी बहुत हद तक असर देखने को मिल रहा था।
इसी प्रकार पांच दिन कब अतीत में चले गए मानो पता ही नहीं चला। आज वो ही दिन था जब सबसे बड़े सूरज को उनके कस्बे के पेड़ से गुजरना था।तीनों ही आज समय से पहले उठकर तैयार बैठी थी।लेकिन उनके साथ दो ओर थे जो पिछली पूरी रात सोए ही नहीं थे। उन सबने तय किया था कि वो पांचों साथ में जाएंगे ,सूरज के साथ,झरने के रास्ते को।नेत्रा,कल्कि और यूवी ने अपना अपना बैग पीठ पर टांग लिया था। जिसमें उन्होंने जो भी जरूरी लगा वो सब समान रखा हुआ था।
पांचों घर के बाहर पेड़ के बिल्कुल पास ही खड़े थे कि तभी कुछ देर बाद वहां के हर सामान्य से लगभग दस गुना अधिक बड़ा जो रात की वजह शीतल हो चुका था ,उस पेड़ से गुजरने लगता है।कुछ समय वहां ठहरने की वजह से उसका तेज बढ़ जाता है और दूसरी ओर से वो फिर से आकाश की तरफ बढ़ने लगता है।लेकिन को ना तो ज्यादा ऊंचाई पर था,और ना ही तेज चल रहा था,बिल्कुल सामान्य गति से वो एक दिशा में बढ़ने लगता है। वो सब भी उसके पीछे पीछे उसी दिशा में रास्ते को पीछे छोड़ते हुए अपने कदम आगे बढ़ाने लगते हैं।
कल्कि सबको हाथ पकड़ कर रोकती है,
कल्कि:"अपने ग्रुप एंथम को बिना बोले जाओगी क्या आज। या फिर नई दुनिया में आकर भूल ही गई हो।
नेत्रा:" उसको कैसे भूल सकते हैं।"
यूवी:" तो फिर चलो शुरू करते हैं ,किसका इंतजार है।"
जो तेरा जो मेरा वो सब हमारा ,
साथ हम तो हसीन हर नजारा ,
देख लो ए भीड़ के मुसाफ़िर..
हमारी दोस्ती का सफर है कितना प्यार ।।।।।।
तीनों फिर से एक साथ बोलती है,और फिर से अपने कदम सूरज की दिशा में बढ़ा देते हैं।
चलते चलते वो सब बहुत दूर निकल आते हैं।लेकिन इतना चलने के बाद भी उनमें से किसी को भी ना तो थकान ही महसूस हो रही थी ना ही भूख का कोई नमुनिशान था। शायद ये सब मायती की वजह से ही हो रहा था।उनको उस पेड़ जैसे तीन पेड़ मिलते हैं,वो सूरज हर पेड़ से गुजरता और फिर से उसी दिशा में आगे बढ़ने लगता।तीन रातें लगातार चलने के बाद, अंत में एक जगह से सूरज अपनी दिशा बदलने लगता है । वो सब बहुत गौर से उसको देख रहे थे।वो वहां से फिर से अपनी उल्टी दिशा में चलने लगता है।
वहां से वो पांचों बहुत आगे तक चलकर देखते हैं। उनका ध्यान जब एक तरफ जाता है,तब सब एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं,क्यूंकि उनके सामने ही वो उल्टा झरना बह रहा था।

to be continue......

प्यारे पाठकों अब आगे क्या नया होगा ये तो आप सबको अगले भाग में ही पता चलेगा।ये भाग आप सबको कैसा लगा हमें समीक्षा करके जरुर बताएं,आपकी समीक्षाओं का इंतजार रहेगा।☺️

jagGu parjapati ✍️☺️🥰☺️