Do not wear defeat and fame in Hindi Philosophy by मंजरी शर्मा books and stories PDF | हार-जीत को प्रतिष्ठा का तमगा ना पहनाएं

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हार-जीत को प्रतिष्ठा का तमगा ना पहनाएं

आज महक के स्कूल में फैंसी ड्रेस कम्पटीशन था, बच्चे से लेकर हर अभिभावक ने खूब मेहनत की थी. कोई सब्ज़ी बना था तो कोई जानवर. नर्सरी में पड़ने वाली प्यारी सी महक को उसकी मम्मी ने स्मार्ट फ़ोन की ड्रेस पहनाई और कुछ लाइन तोते की तरह रटवा रटवा दी. महक के मम्मी-पापा ने छोटी सी बच्ची को कहा-की "तुम ही जीतोगी" और "तुम्हे ही पुरूस्कार" मिलेगा नन्ही -सी बच्ची बहुत खुश हो गई.

यही हाल और भी पेरेंट्स का था. हर बच्चा उत्साहित था और सभी माता-पिता चाह रहे थे कि उनका बच्चा ही जीते.

फैंसी ड्रेस कम्पटीशन स्टार्ट हुआ और रिजल्ट में केवल तीन ही बच्चों को पुरूस्कार मिला. महक समेत बाकी बच्चे मायूस होने लगे और कुछ तो रोने भी लगे. महक भी रोने लगी तो उसकी मम्मी ने बुरी तरह डांट दिया, नन्ही-सी महक का दिल ही टूट गया, आज तक वो किसी भी कम्पटीशन में भाग लेने से डरती है.

वहीँ स्कूल का बड़ा-सा मैदान; जहाँ लगभग तीस लड़के-लड़कियां रेस कम्पटीशन में भाग रहे थे, दीपू की तरह हर बचा केवल फर्स्ट आना चाहता था, कोई कम्पटीशन को एन्जॉय नहीं कर रहा था, दीपू के मम्मी-पापा और दोस्त उसका नाम पुकारकर "फर्स्ट" बोल रहे थे, और तालियां बजा रहे थे, और पेरेंट्स अपने अपने बच्चे का नाम पुकार रहे थे "और तेज" - "और तेज" के नारे लगा रहे थे. पुरूस्कार केवल फर्स्ट, सेकंड, और थर्ड को ही मिलना था. फोर्थ, फिफ्थ और बाकी बच्चे जिन्होंने भाग लिया था उनके लिए चंद प्रोत्साहन के शब्द भी न थे. दीपू भी उनमे से एक था; और तो और उसके माता-पिता ने भी यही कहा- अगली बार "जीत कर आना", लेकिन दीपू हारा तो था ही नहीं....

सृष्टि की दसवीं की परीक्षा थी, माता-पिता ने बोला की अगर 95% से ऊपर अंक लाओगी तो तुम्हे स्कूटी लेकर देंगे. लेकिन 90% आये तो क्या? क्या उसने इतने अंक लाने की मेहनत नहीं की???

बच्चे गीली मिटटी के सामान होते हैं, उन्हें शुरू से ही हार और जीत में ना उलझाए. उनका मन बहुत कोमल होता है और वे जीत को सही और हार को बुरा समझ बैठते है.

कई पेरेंट्स बच्चे में जोश फूंकने के प्रयास में "तुम ही जीतोगे" कहकर उसे बहुत उम्मीदें बंधा देते हैं.
जब बच्चे का सामना स्वयं से ज्यादा प्रतिभाशाली लोगो से होता है, तो वह स्वीकार नहीं कर पाता, उसका आत्मविश्वास खत्म हो जाता है. किसी भी प्रतियोगिता मे अव्वल आना सर्वश्रेष्ठ होने की कसौटी नहीं है.

बच्चों को सिखाये की उन्हें प्रतियोगिता में केवल हिस्सा लेना है, हारने और जीतने के लिया नहीं.

क्या हुआ... अगर तुम फर्स्ट या सेकंड नहीं आये तुमने मेहनत तो की है ना..; तुम केवल मेहनत करो और 100% अपना दो.

क्या हुआ... अगर तुम अच्छे अंक ना लाये, मैं तब भी तुम्हे स्कूटी दूंगा, बस तुम अपना बेस्ट करो .

एक्साम्स और कम्पटीशन में हिस्सा लेना ही तुम्हारी सबसे बड़ी उपलब्धि है. बच्चों को समझाएं ये सिर्फ जीतने के लिए नहीं अपने अंदर बैठे डर को बाहर निकलने के लिए है. इनमें छिपा होता है स्टेज फीयर से मुक्ति का राज, आत्मविश्वास बढ़ाने का राज, नई जानकारी हासिल करने की खुशी, शेयर करने का सुख और दूसरे लोगों से घुलने-मिलने की कोशिश .

हार और जीत को प्रतिष्ठा का तमगा ना पहनाएं.

अगर आपके बच्चे; बिना सर्टिफिकेट्स के, बिना मेडल्स पहने या बिना पुरूस्कार के आएं, तो भी उनका दिल से स्वागत करें.

अगर वे जीत जाएँ तो उन्हें शाबाशी दीजिये और हार जाये तो हौसला दीजिये; लेकिन दोनों ही स्तिथि में गले ज़रूर लगाएं.