Life doesn't stop in Hindi Moral Stories by Neelima Tikku books and stories PDF | जिंदगी रुकती नहीं

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जिंदगी रुकती नहीं

अप्रेल माह का तीसरा शनिवार था, गर्मी अपना प्रचण्ड रूप धारण किये हुए थी। बाहर सूरज आग उगल रहा था और घर में वे बेटे पर बरस रही थीं, "कान खोल कर सुन ले, उस बंगाली लड़की से तेरा विवाह नहीं हो सकता, ये माँस-मछली खाने वाले लोग हैं और हम ठहरे कट्टर शाकाहारी...."

"बस इतनी सी बात?" बेटा रहस्यमय तरीके से मुस्कराया, "मुझे छ: साल हो गये मुम्बई में रहते हुए, अब मैं सब कुछ खाने लगा हूँ।"

"सब-कुछ?" क्या मतलब है तेरा?

"मतलब तुम खूब समझ रही हो माँ।"

उन्हें गहरा धक्का लगा, "यह क्या कह रहा है तू? हम ब्राह्मण हैं तूने इसका भी ख्याल नहीं किया?"

माँ की कूपमण्डूक बातें सुनकर बेटा खिसियाया, "माँ प्लीज़ ये दकियानूसी बातें रहने दो आप ताउम्र कुएं के मेंढ़क की तरह घर और ऑफिस तक ही सीमित रही हो। बाहर निकलकर देखोगी तो पता चलेगा कि अपने इस छोटे से शहर में भी लोगों की सोच कितनी बदल गयी है। मुम्बई जैसी जगह में रहकर सब कुछ खाना पड़ता है वर्ना आप दूसरे लोगों से मिक्स नहीं हो सकते, सम्बन्ध आगे नहीं बढ़ा सकते।"

बेटे की बात सुनकर वह हैरान थीं। उन्हें लगा कि अनपढ़ नाथी सही कह रही थी कि ये बंगाली लड़कियाँ काला जादू जानती हैं। तभी तो मेरे भोले-भाले बेटे को अपने बस में कर लिया है। उनके कहे को ब्रह्म वाक्य समझने वाला बेटा आज उनके हाथ से छूटा जा रहा है। उनके सामने मुँह सिए बैठे रहने वाले इस बेटे की गज भर की जुबान निकल आई है। माँ को यूँ सोच में डूबे देख बेटे ने उन्हें समझाते हुए कहा, "माँ हम दोनों एक ही प्रोफेशन में हैं, वह भी मल्टीनेशनल कम्पनी में काम कर रही है। अच्छे घर की लड़की है, हालात ने उसे अकेला कर दिया है। माता-पिता सड़क हादसे के शिकार हो गये और भैया-भाभी ने बड़ी चालाकी से उसे घर से बेदख़ल कर अपना पल्ला झाड़ लिया है। बेहद सरल-सहज और समझदार लड़की है। तुम्हारा बहुत ख्याल रखेगी। सबसे बड़ी बात ये है कि हमारे विचार बहुत मिलते-जुलते हैं।"

बेटे के आखिरी वाक्य को सुनकर वे और भी चिढ़ गईं। यही बेटा ये कहते ना थकता था कि माँ तुम्हारे हालात देखकर मैंने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय ले लिया है। कल तक जो बेटा माँ के विचारों से सहमत था वही अब परायी लड़की के विचारों में डूब गया है।

माँ की मन:स्थिति को भाँपता, उन्हें खुश करने के लिए उसने दाव खेला, "माँ सोचो ज़रा, उसके आगे-पीछे कोई नहीं है। हमेशा तुमसे दब कर ही रहेगी। हमेशा कहती है कि हम दोनों मिलकर माँ का ध्यान रखेंगे।"

बेटे की बातें सुनकर भी उनके बग़ावती तेवरों में कोई कमी नहीं आयी थी वे गुर्रायी, "तुम लाख उसकी तरफ़दारी करो ये विवाह नहीं हो सकता। मैं इतने वर्षों से स्वयं अपना ख्याल रखती आयी हूँ आगे भी रख लूँगी। मैंने तुम्हारे लिए एक शरीफ़ लड़की पसंद की है तुम्हारा विवाह उसी से होगा।"

"नहीं माँ, विवाह करूँगा तो केवल इसी लड़की से, छ: महीने से उसके साथ एक ही छत के नीचे रह रहा हूँ। उसे धोखा नहीं दे सकता।" बेटे की बात सुनकर वे आग बबूला हो उठी थी, उत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँची इधर-उधर देखतीं फलों की प्लेट पर रखे चाकू पर झपट पड़ी थीं, "तो ठीक है तू कर लेना उस चरित्रहीन लड़की से विवाह, छि: जो विवाह से पहले ही... लेकिन मेरे मरने के बाद ही..." कलाई की नस कटने से खून कर एक फव्वारा सा उठा और खून के लाल रंग ने बेटे के चेहरे का रंग पीला कर दिया था। अचानक हुए इस घटनाक्रम से उसके हाथ-पांव फूल गये थे। उन्हें तुरन्त अस्पताल ले जाया गया। वह सहम गया था और ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि उसकी माँ की जान बच जाये और उसे कुछ भी नहीं चाहिए निमिषा भी नहीं। ईश्वर ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली थी, माँ की जान बच गयी थी और वे अब खतरे से बाहर थीं। उन्हें सकुशल देखकर वह बेहद भावुक हो गया था, "माँ मुझे माफ कर दो, मैं तम्हारे सिर पर हाथ रखकर क़सम खाता हूँ कि मैं निमिषा से विवाह नहीं करूँगा ना ही उससे किसी तरह के सम्बन्ध रखूगा।तुम जिससे कहोगी उसी से विवाह करूँगा और तुम्हारा ख्याल रखने के लिए उसे तुम्हारे पास ही छोड़ दूंगा। तुम्हारे सिवाय मेरा इस दुनियाँ में और कोई नहीं है फिर कभी अपनी जान लेने की कोशिश मत करना।"

बेटे की भावुकता भरी बातें सुनकर उनके पीले पड़े मुख पर विजयी मुस्कान उभर आयी थी। उनका पुराना आज्ञाकारी बेटा जो लौट आया था। अब तक की ज़िन्दगी में उन्होंने यही तो किया था, सदा मनमानी की। उनकी मर्जी के खिलाफ़ जब भी कुछ हुआ उन्होंने साम-दाम-दण्ड-भेद से उसे अपने पक्ष में कर ही लिया था। अतीत के किस्से उनकी आँखों के समक्ष चहलकदमी करने लगे थे...

नवविवाहिता के कानों में एक सप्ताह बाद ही जेठानी द्वारा रहस्योद्घाटन हुआ था, "छोटी तू किस्मतवाली है, देवरजी ने तुझसे विवाह के लिए हाँ कर दी वर्ना तेरी जगह चपड़ासी रामदीन की लड़की प्रिया आ जाती। ससुरजी ने उसे अकेले में बुलाकर फर्जी केस में अन्दर करवाने की धमकी ना दी होती तो आज तू यहाँ राज नहीं कर रही होती।"

"क्या इनको यह सब मालूम है!" वह आग्नेय नेत्रों से जेठानी को देख रही थी, "अरे नहीं लल्ला को तो हमने हवा भी ना लगने दी। पिता के समझाने पर खुद प्रिया ने इनसे विवाह के लिए मना कर दिया था, तभी तो तुमसे विवाह की स्वीकृति भर दी, बिल्कुल निरपेक्ष भाव से और चतुर अम्माजी ने चट मंगनी पट ब्याह कर दिया।कसम से तुम भाग्यशाली हो मेरे समय में तो सासुजी ने दहेज की सूची पकड़ा दी थी और तुम्हें तो तीन कपड़ों में ही ब्याह लायीं। किस्मत अपनी-अपनी", कहती हाथ नचाती वे घर के काम में लग गई थीं।

उनके रोम-रोम में आग लग गयी थी वे अपने पति पर जबरन थोपी गईं थीं। ये सोचकर स्वाभिमान आहत हुआ था उनका। विवाह से पहले जिस लड़की को चाहते थे उसी से विवाह क्यों नहीं किया इसी बात को लेकर उन्होंने पति का जीना हराम कर दिया था। पति ने लाख विश्वास दिलाया कि किसी ने उनके खिलाफ़ कान भरे हैं वे किसी और से प्रेम नहीं करते थे लेकिन वे कुछ भी मानने को तैयार नहीं थी। तनाव के इस माहौल में उन्हें अहसास हुआ कि वो गर्भवती हैं पूरे घर में खुशियाँ छा गईं थीं। पति भी बेहद खुश थे। अपने ज़िद्दी स्वभाव के वशीभूत हो पति की ख़ुशी उन्हें रास नहीं आयी। डिलीवरी के लिए पीहर गयी वो बेटे के जन्म के बाद भी लौटकर ससुराल नहीं आयीं। पति ने उन्हें वापिस घर ले जाने के अनेक प्रयत्न किये लेकिन वे टस से मस नहीं हुई और अंततः दुखद परिणति के रूप में उनका विवाह विच्छेद ही हुआ।

आखिर उनके पति का भी पुनर्विवाह हो गया था वो भी जेठानी की छोटी बहिन से। हालांकि उनकी तथाकथित प्रेमिका प्रिया तब भी कुंआरी ही थी।जेठानी की चाल से अनभिज्ञ वे अपनी मूढ़ता में मग्न रहीं।

बेटी के असफल विवाह से दुखी उनकी माँ ज्यादा दिन जीवित नहीं रही। उनके जाने के बाद बेसहारा नाथी ही घर की देखभाल करती आ रही थी। अपने स्वाभावानुसार उन्होंने बेटे को कड़े अनुशासन में पाला था। बेटे की सहानुभूति पाने के लिए उन्होंने हमेशा तस्वीर का दूसरा पहलू ही उसके सामने रखा था। बेटा यही मानता था कि उसके पिता ने अपनी प्रेमिका के लिए उसकी माँ को त्याग दिया था। उसके वर्तमान-भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए दूसरा विवाह नहीं किया। माँ के त्याग तथा उनके असफल विवाह सम्बन्ध से भयाक्रांत होकर वह स्वयं भी आजीवन विवाह ना करने का फैसला कर बैठा था। किशोरावस्था से युवावस्था में क़दम रखता वह कभी-कभी माँ के कड़े अनुशासन से घबरा कर घर से कहीं दूर भाग जाना चाहता था लेकिन समय-समय पर माँ द्वारा अपने त्याग की सुनायी दास्तान उसकी सोच की दिशा को पुनः बदल देती और वो प्रण करता कि ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे माँ को दुख पहुँचे।

मुम्बई के प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज में जब उसका चयन हुआ तो वो बेहद ख़ुश था लेकिन माँ उसे मुम्बई भेजने में आनाकानी कर रही थी, तब पहली बार उसने माँ के सामने मुँह खोला था, "माँ इस कॉलेज में आसानी से चयन नहीं होता मेरे सभी दोस्त रह गये केवल मैं ही चुना गया हूँ। नहीं जाऊँगा तो एक बहुत बढ़िया अवसर से हाथ धो बैलूंगा। एक बार वहाँ से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लूँगा तो बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी से नौकरी के ऑफर मिलेंगे। तब मैं तुम्हारी नौकरी छुड़वा दूंगा तुम आराम करना माँ, बहुत तपस्या कर ली तुमने।"

बेटे की बात सुनकर उस वक्त वे पिघल गई थीं। उसके भविष्य के अन्दर उन्हें अपना सुखद भविष्य भी नज़र आ रहा था। यही सोचकर उसे जाने दिया।वार-त्यौहार बेटा ही उनसे मिलने आ जाता था वे कभी मम्बई नहीं गईं। फोन पर उससे बात होती रहती थी। वे अपनी नौकरी में रमी हुईं थीं। अपने दबंग स्वभाव की वजह से वे नातेरिश्तेदारों से अलग-थलग पड़ गई थीं। ना जाने क्यों उन्हें अकेले रहने में ही सुकून मिलता था।

गत दो वर्षों से बेटे की एक मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी लग गयी थी। इधर उनके साथ काम करती विधवा सहकर्मी की घरेलू किस्म की बेटी उन्हें पसंद आ गई थी।वे मन ही मन उसे अपनी बहू बनाने के ख़्वाब देखने लगीं थीं। देखी भाली लड़की है उनके क़ाबू में रहेगी। वे अक्सर बेटे से विवाह के लिए कहती रहतीं और बेटा उन्हें टालता रहता। आखिर अपनी बीमारी का बहाना बनाकर उन्होंने बेटे को कुछ दिनों के लिए बुलवा लिया था। माँ की बीमारी की खबर सुन वह भावुक हो गया था। उसे पता था कि विवाह की टालमटोल अब ज्यादा नहीं चल सकेगी इसीलिए निमिषा को माँ से मिलाने के लिए साथ ही ले आया था उसने सोचा था कि निमिषा की परिस्थितियाँ और उसकी भावनाओं को समझ कर माँ इस रिश्ते के लिए अपनी स्वीकृति दे देंगी। आखिर उसकी माँ हैं वह उन्हें मना ही लेगा लेकिन घर पर तो बेहद गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गई थी। माँ के इस कठोर कदम से वह सिहर उठा था। उसकी सारी योजना ताश के पत्तों की तरह ढह गई थी। निमिषा को फोन कर उसने इतना ही बताया था कि उसकी माँ बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती है।

घबरायी निमिषा अस्पताल पहुँच गयी थी। उस समय वह कुछ दवाइयाँ लेने बाहर गया हुआ था। अस्पताल में माँ के कमरे के बाहर ही निमिषा का सामना नाथी काकी से हुआ था। जिन्होंने उसे अन्दर जाने से रोक दिया था, "आप उनसे नहीं मिल सकती, आपकी वजह से ही वो लगभग मौत के मुँह में जा पहुंची थीं। अगर आप उनसे मिली तो वो दोबारा अपनी जान लेने की कोशिश कर सकती हैं। माँ को कुछ हो गया तो सौरभ भी जीवित नहीं रहेगा। आप पर दो हत्याओं का पाप चढ जायेगा। बुरा मत मानना बिना विवाह किए आप पराए युवक के साथ रह रही हैं, मालकिन आप से बेहद नफ़रत करती हैं। उन्होंने तो अपने बेटे के लिए लड़की पसंद कर रखी है। अब तो सौरभ ने भी इस रिश्ते के लिए हाँ कर दी हैं। आप यहाँ से चुपचाप चली जाओ। आप यहाँ आयी थीं, ये बात मैं किसी को नहीं बताऊँगी" कहती नाथी ने घृणा से अपने दोनों हाथ जोड़ दिए थे।

स्तब्ध-हताश निमिषा वापस होटल लौट गई थी। कुछ ही देर में सौरभ भी वहाँ पहुँच गया था। उसके चेहरे के हाथ-भाव बदले-बदले से लग रहे थे, "सुनो अभी माँ की तबियत ठीक नहीं है उनसे मिलना उचित नहीं है, तुम वापिस मुम्बई लौट जाओ मैंने तुम्हारी शाम छ: बजे की फ्लाइट बुक करवा दी है टिकिट की डिटेलस तुम्हें वाट्सएप पर भेज दी हैं।...."

"लेकिन सौरभ एक बार मुझे माँ से मिलवा तो देते।" उसके इस छोटे से वाक्य से मानो सौरभ पर पागलपन का दौरा सा पड़ गया था। वह उसे पकड़कर झिंझोड़ने लगा, "तुम क्या चाहती हो मैं भी माँ की तरह अपनी जान लेने की कोशिश करूँ?" बताओ कैसी मौत मरूँ मैं!? पंखे से लटक कर, जहर खाकर या माँ की तरह अपनी कलाई की नस काट कर।

"ये कैसी बात कर रहे हो सौरभ? मैं माँ के दुःख को समझती हूँ। उनसे मिलकर उन्हें आश्वस्त करना चाहती हूँ।"

सौरभ भड़क गया था और अब माँ की भाषा ही बोल रहा था,

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है", माँ एक चरित्रहीन लड़की की शक्ल भी नहीं देखना चाहती हैं।"

"चरित्रहीन?" ये तुम क्या कह रहे हो? तुम होश में नहीं हो।"

"नहीं, मैं अब तक होश में नहीं था लेकिन घर आकर होश में आ गया हूँ। माँ की नज़रों में बिना विवाह के किसी पराए युवक के साथ एक ही छत के नीचे रहने वाली युवती चरित्रहीन ही है। अब सोचता हूँ तो लगता है कि माँ जिस समाज में रह रही है वहाँ विवाह के बाद ही ऐसे सम्बन्ध मान्य होते हैं। इसमें उनका कोई कसूर नहीं है, शायद मैं ही तुम्हारे सान्निध्य में भटक गया था। तुम तो समझदार थीं तुम ही दृढ़ रहतीं...."

"क्या?" वह हैरत से उसे देख रही थी। कल तक आजीवन उसका साथ निभाने का वादा करता सामने बैठा प्रेमी युवक आज एक नितांत अजनबी के रूप में उसके सामने खडा था. "ये रिश्ता हमारी आपसी सहमति से बना था।"

वो उसे हिकारत भरी-नज़र से देख रहा था। "हाँ, लेकिन अगर तुम मना करती तो मैं कोई ज़बरदस्ती तो नहीं करता...." और कुछ सुनने की ताकत उसमें नहीं बची थी। उसने अपना बैग उठाया और सीधी एयरपोर्ट पहुँच गई थी। उसकी फ्लाइट छ: बजे की थी लेकिन वो तीन बजे ही एयरपोर्ट के अंदर थी।

दुःस्वप्न की तरह अचानक घटे इस घटनाक्रम से निमिषा जड़ सी हो गई थी। उस समय तो क्रोध और हताशा से भरी वह जोश में भरकर एयरपोर्ट आ गई थी लेकिन अब उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था।आँखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा था। नाथी काकी की बात से साफ़ ज़ाहिर था कि वो किसी और से विवाह करने जा रहा था। इसीलिए उसके चरित्र पर कीचड़ उछाल रहा था। उसका दिल डूबने लगा, जीवन इस मोड़ पर ले आएगा उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था। इस समय वह किसी ऐसे अपने की ज़रूरत महसूस कर रही थी जिसके कंधे पर सिर रखकर वह फूट-फूट कर रो सके। एक बार फिर वो इस दुनिया में नितांत अकेली हो गई थी तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। एक हल्की सी आशा की किरण जगी कि शायद सौरभ को अपनी गलती का एहसास हो गया और वो उसे ले जाने आया है लेकिन पीछे से आती आवाज़ किसी लड़की की थी, "अरे निमि तू यहाँ कैसे?"

सिर उठाकर देखा उसके स्कूल की सबसे प्यारी सखी शिल्पी मुस्कराती हुई सामने खड़ी थी। पूरे सात साल बाद उसे देखा था। उसे निहारती शिल्पी चहक रही थी, "ऐसे क्या देख रही है भई, क्या भूत देख लिया, शिल्पी ही हूँ और तू यहाँ कैसे!? कहाँ जा रही है ?"

वह अब भी अविश्वसनीय नज़रों से शिल्पी को ताक रही थी, "मुम्बई में नौकरी करती हूँ वहीं जा रही हूँ। 6 बजे की स्पाइसजेट की फ्लाइट से।"

"अरे वाह मैं भी उसी फ्लाइट से जा रही हूँ। चाची बीमार थी उन्हें देखने आयी थी। चाचा अस्पताल में व्यस्त थे इसीलिए मैं टाइम से पहले ही एयरपोर्ट आ गई।" अचानक उसे गौर से देखते हुए वो बोली, "क्या हुआ तेरे चेहरे पर इतनी हवाइयाँ क्यों उड़ रही है, सब ठीक तो है ना?"

उसके सब्र का बांध टूट गया था और वह शिल्पी के कंधे पर सिर रखकर फूटफूट कर रो पड़ी। शिल्पी अचकचा गई थी, "क्या हुआ निमि इतनी परेशान क्यों हैं? वर्षों से हमारे बीच कोई सम्पर्क नहीं रहा। होता भी कैसे स्कूल की पढ़ाई पूरी करते ही पापा का ट्रांसफर जो हो गया था।" स्नेह से उसकी पीठ सहलाते हुए उसने उसे रोने दिया, कहते हैं आँसुओं का बह जाना ही मन की व्यथा को कम करता है। कुछ देर बाद उसे अपने से अलग किया, "तू बैठ मैं अभी आयी।" शीघ्र ही बगल में पानी की बोतल दबाए दोनों हाथों में कॉफी के गिलास थामे वो आ खड़ी हुई, "पहले पानी पी और फिर आराम से गर्म-गर्म कॉफी.... उसके बाद आराम से बात करेंगे।" कॉफी पीकर कुछ सामान्य हुई निमिषा के मुँह से उसके मम्मी-पापा की सड़क दुर्घटना में मौत, भाई-भाभी की चालाकियाँ और तब से लेकर अब तक की सारी घटनाओं को क्रमवार सुनती शिल्पी सिहर उठी थी। उसके कंधे थपथपाते हुए भावुकता से भरी बोली, “निमि तू ने अकेले रहकर बहुत कुछ सहा है, तू साहसी होने के साथ-साथ बेहद अच्छी और सरल है। तभी तो तेरी सरलता का फ़ायदा तेरे अपने भाई-भाभी ने उठाया और तुझसे ज़मीन-जायदाद के कागज़ों पर हस्ताक्षर करवा के दूध से मक्खी की तरह निकाल बाहर किया। रुपये-पैसे के सामने रिश्तों का खोखलापन दिल दहलाने वाला है। अपने एकाकीपन को दूर करने के लिए सौरभ ने भी तेरी सरलता का फ़ायदा उठाया है। निमि सच कहूँ तो आज जो कुछ भी तेरे साथ हुआ है इसमें तेरा कोई दोष नहीं है। परिस्थितियाँ ही ऐसी बनती चली गईं कि तू और वो एक-दूसरे के इतने निकट आ गये लेकिन ये भी एक कड़वा सच है निमि कि इस तरह के बेनामी रिश्तों का खामियाजा हम लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है। ज़रा सोच कि इस तरह की नकारात्मक सोच रखने वाले, पजेसिव माँ-बेटे के साथ तेरा कोई कानूनी सम्बन्ध नहीं बना और विवाह से पहले ही तुझे इनकी असलियत पता चल गई। ये शुकर मनाने की बात है। ये ग़म के नहीं ख़ुशी के पल है। तू पढ़ी-लिखी लड़की है और अपने पैरों पर खड़ी है। जिंदगी यहीं ख़त्म नहीं होती निमि, पिछली सभी बातों को बुरा सपना समझकर भूल जा। आगे बढ़ एक नई जिंदगी तेरी ओर बाहें फैलाए खड़ी है।"

"मुझे तो ये सोचकर आश्चर्य हो रहा है कि मैं भी पवई में रहती हूँ, फिर भी अभी तक हम आपस में कभी मिले क्यों नहीं । तेरे पास कमरे की दूसरी चाबी है, हम आज ही तेरा सामान वहाँ से ले आयेंगे। अब से तू मेरे साथ रहेगी।"

शिल्पी की बातें सुनकर निमिषा में नए उत्साह का संचार होने लगा था। अब वह बेहद हल्का महसूस कर रही थी। इंसान का मन स्थिर होता है तभी उसे तन का भी ख्याल आता है। अचानक ही उसे याद आया कि उसने सुबह से कुछ भी नहीं खाया है। बचपन की प्रिय सखी उसकी मनोदशा को भांप गयी थी, "सुन निमि मैंने आज सुबह से कुछ नहीं खाया है। प्लेन जाने में अभी दो घंटे बाकी हैं मैं कुछ खाने का सामान लेकर आती हूँ। तब तक तू अपने मोबाइल में सेव उस चरित्रवान लड़के का नम्बर ब्लॉक कर दे। साथ ही सदा के लिए उसे अपने दिल से डिलीट कर दे।" ।

निमिषा ने सौरभ के नम्बर को ब्लॉक करके चैन की साँस ली। थोड़ी ही देर में शिल्पी, सैंडविच और गर्मागर्म समोसे लेकर हाज़िर हो गईं थीं। भूख से बेहाल दोनों सहेलियाँ सब-कछ भलकर उन्हें खाने में मग्न हो गईं।

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