मायके से विदा होते हुए अवनी संज्ञा शून्य सी हो गई थी।जैसे वो अपने होशोहवास में नहीं थी।आँसू थे कि रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।पति अखिल ने किसी तरह उसे संभाला
अवनी सारे रास्ते खामोश सी मूर्ति बनी बैठी रही।अखिल ने उससे कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन वो तो किसी और ही दुनिया में थी।वो अतीत की स्मृतियों में जैसे खो सी गई थी।अवनी दो भाइयों की इकलौती सबसे छोटी बहिन थी, इसलिये सबकी चहेती थी। उसे याद है जब उसका भाइयों से झगड़ा होता था, पापा उसी का पक्ष लेते थे और भाइयों को ही डाँटते थे।"तुम्हें शर्म नहीं आती छोटी बहिन को परेशान करते हुए"। मम्मी उससे कुछ काम करने को कहती तो कहते कि "तुम खुद कर लो उसको पढ़ने दो"। तो मम्मी झुँझला जाती और कहती "इसके साथ खुद चले जाना ससुराल काम करने के लिये"तो पापा हँसने लगते। उसके पापा ने उसके लिये हजारों सपने पाल रखे थे ।वो अवनी को डॉ बनाना चाहते थे लेकिन शायद अवनी की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी।अवनी पढ़ाई लिखाई में औसत ही रही ।लेकिन उसके पापा ने हार नहीं मानी उसके लिये एक से बढ़कर एक लड़के देखे ।कई लड़के तो उसके पापा को पसंद ही नहीं आते और जो आते उनके भाव बढ़े रहते ।इसी तरह दो तीन साल गुजर गए।अवनी की विवाह की उम्र हो चुकी थी, लेकिन अभी तक उसका रिश्ता कहीं तय नहीं हो पा रहा था।फिर पापा के एक दोस्त ने अखिल का रिश्ता बताया।अखिल सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और वह लोग गाँव के रहने वाले थे ।पापा को अखिल तो पसंद आ गया था लेकिन उनका गाँव का होना पसंद नहीं था।पापा का मानना था कि जब माँ बाप गाँव में रहते हैं तो अवनी को भी कभी न कभी गाँव जाना ही पड़ेगा।लेकिन मम्मी बोलीं इस तरह तो तुम लड़की को क्वारी ही रखोगे।सब में सभी गुण नहीं मिल सकते।और पापा को रिश्ते के लिये तैयार होना ही पड़ा ।अवनी और अखिल ने एकदूसरे को पसंद कर लिया और शुभ मुहूर्त में पहले सगाई और फिर शादी हो गई।उसे आज भी याद है, कैसे विदाई के वक्त उसके पापा आँखों में आँसू लिये हाथ जोड़े अखिल और उसके पापा से मिन्नतें कर रहे थे कि वो अवनी का ख्याल रखे।अवनी दुल्हन बनकर ससुराल आ गई ।अवनी के पापा ने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर दान दहेज दिया था लेकिन फिर भी उसके ससुराल वाले खुश नहीं हुए थे ।उन्हें अपने इंजीनियर बेटे के लिये कुछ अधिक ही ख्वाहिश थी।उन्होंने तीज त्योहारों पर अवनी को देने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन उसके ससुराल वालों को खुश नहीं कर सके थे। दो साल बाद अवनी एक बेटी की माँ भी बन गई थी। बड़ा भाई रोहित वो भी इंजीनियर था, की शादी तो पहले ही हो चुकी थी।उसके भी दो बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी, उसकी पत्नी आरुषि दिखने में बहुत संस्कारी लेकिन बहुत तेज थी। उसने अपनी मीठी मीठी बातों से अपने पति और सास ससुर को अपने वश में कर रखा था लेकिन अवनी को वह कुछ खास पसंद नहीं करती थी।वह साल छ महीने में ससुराल आती तो सबके साथ मीठी बनकर रहती तो सास ससुर सोचते कि बहुत अच्छी बहु मिली है।अवनी की शादी के कुछ साल बाद रोहित की पोस्टिंग भी उसी शहर में हो गई, जहाँ अखिल और अवनी रहते थे।अवनी बहुत खुश ही कि अब उसका मायका ही उसके पास आ गया है।कुछ समय तो सब ठीक ठाक रहा लेकिन धीरे धीरे आरुषि का व्यवहार बदलने लगा। अब जब कभी अवनी उनके घर जाती, आरुषि के चेहरे पर सलवटें पड़ जातीं। अवनी कोई बच्ची तो नहीं थी जो समझ नहीं सकती थी।उसने अब भाई और भाभी के घर जाना बहुत कम कर दिया था।अब वह बुलाने पर ही उनके घर जाती थी।क्योंकि उचित आदर सत्कार न होने पर अखिल नाराज हो जाता था।और इस प्रकार अवनी को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता था।अब आरुषि ने अवनी के खिलाफ रोहित के कान भरने शुरू कर दिए।आरुषि तो पहले ही रोहित और अपने सास ससुर की आँखों में चढ़ी हुई थी। रोहित भी अपनी पत्नी की बातों में आकर अपनी बहिन की उपेक्षा करने लगा था।अब रोहित के भाई मयंक की भी शादी हो गई थी उसकी दवा की दुकान थी,वह अपने माता पिता के साथ ही रहता था उसके पिता समीर इंटर कॉलेज में लेक्टरर थे । अवनी अब जब कभी भी अपने पापा के पास आती उसके पापा सारे घर भर को सिर पर उठा लेते थे।खाने में ये बनेगा, नाश्ते में ये बनेगा, अवनी को ये पसंद है।खुद बाजार से ढेरों चीजें लाते। अपनी बेटी के प्रति इतने लगाव से कभी कभी उनकी छोटी बहु दिव्या चिढ़ जाती और मुँह बना लेती थी।लेकिन वह परवाह नहीं करती थी ।अवनी के मम्मी पापा ढेर सारे गिफ्ट देकर अवनी को विदा करते।इधर अवनी के बड़े भाई ने अवनी को बुलाना लगभग बंद कर दिया था।लेकिन अवनी हर पाँच छ महीने में अपने पापा के घर आ ही जाती थी।लेकिन तभी एक अनहोनी हो गई, उसके पापा स्कूटी से कहीं जा रहे थे कि उनका एक्सीडेंट हो गया, जान तो किसी तरह बच गई लेकिन वो हमेशा के लिये अपाहिज हो गए।अवनी और उसकी माँ के लिये ये हादसा अप्रत्याशित था।दोनों बहुत दुखी थीं, बड़ी बहु और बेटा तो कुछ दिन रहकर बापस चले गए थे ।अवनी भी अपने पापा को देखने आ ही जाती थी और फिर दो एक दिन रुककर चली जाती थी।अब सारा भार छोटे बहु और बेटे पर आ पड़ा था क्योंकि समीर और सौम्या के साथ ही रहते थे । अवनी की माँ सौम्या तो अपने पति समीर की तीमारदारी में लगी रहती, जिससे घर का सारा काम दिव्या को ही करना पड़ता ।जिससे दिव्या चिड़चिड़ाने लगी थी और पति पत्नी में खूब झगड़े होने लगे।रोज रोज के इन झगड़ों से तंग आकर सौम्या और समीर ने छोटे बेटे बहु को अलग कर दिया ।इसी तरह दो तीन साल गुजरे कि एक दुर्घटना हो गई।अवनी के पापा मिस्टर समीर को दिल का दौरा पड़ा और वह दुनिया से चल बसे।अवनी और उसकी माँ के तो दुख की सीमा ही नहीं थी ।आज उसके पापा की तेरहवीं थी।इतने लोगों के होते हुए भी उसे घर काटने को दौड़ रहा था ।वह पापा के अंतिम संस्कार के बाद से ही मायके में थी।आज मायके से विदा लेते समय अपनी माँ का सपाट चेहरा देखकर उसकी छाती फटी जा रही थी।हर बार विदा लेते वक्त पापा भी साथ होते थे ।पर इस बार नहीं थे, आज उसे बिना बाबुल के, बाबुल का ये घर बेगाना सा लग रहा था।वो सोच रही थी कि अब भी वह इस घर में उतने ही अधिकार से आकर रह पाएगी ,माँ तो अब खुद भाइयों के अधीन है।अवनी अपनी ही सोच में गुम थी कि अखिल की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई। "कहाँ खोई हुई हो मैडम? घर आ गया उतरो"।
वक्त का पहिया अपनी गति से चलता रहा अवनी का मायके जाना पहले से बहुत कम हो गया । क्योंकि बच्चे बड़े हो रहे थे और स्कूल जाने लगे थे।बड़ा भाई -भाभी जो उसी शहर में रहते थे,उससे ज्यादा वास्ता नहीं रखते थे।वहीं जब उसका मन नहीं मानता और अपने भतीजे भतीजी को देखने का मन करता तो, वह अपने भाई के घर हो आती।वहाँ पहुँचने पर उसकी भाभी बड़े अनमने भाव से उसका स्वागत करती।फिर धीरे धीरे उसने, उनके घर जाना बंद कर दिया।कुछ साल बाद उसके पति का स्थानांतरण दूसरे शहर में हो गया। यहाँ आकर वह खुश थी कि कम से कम अब इस बात का मलाल नहीं रहेगा कि एक ही शहर में रहते हुए भी भाई उससे कोई मतलब नहीं रखता।औरतें ताउम्र अपने मायके का मोह नहीं छोड़ पाती,चाहे बूढ़ी हो जायें।वक्त अपनी गति से चलता रहा ।अब उसकी माँ भी इस दुनिया में नहीं रही, बच्चे बाहर रहकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने लगे थे। इस बीच अवनी की उसके भाइयों ने कभी खबर नहीं ली।बड़े भाई की बेटी का भी रिश्ता पक्का हो गया।औपचारिकता वश ही सही शादी में उसको भी न्योता मिला। अखिल और अवनी भी शादी में गए कुछ देर रूककर बापस आ गये।
फिर कुछ साल बाद भतीजे की भी शादी हुई बहु अनन्या भी भतीजे आरव के साथ उसी दफ्तर में काम करती थी ।अवनी पहले की ही तरह कुछ देर के लिये भतीजे की शादी में भी शामिल हुई।क्योंकि अखिल का कहना था कि जिस प्रकार उन्होंने शादी का कार्ड भेजकर औपचारिकता निभाई है ,उसी प्रकार हम भी शादी में जाकर औपचारिकता निभायेंगे।लेकिन उसके बाद उनके घर जाना नहीं हुआ।अब आरव की शादी को एक साल हो गया था ।अनन्या और आरव की शादी की बर्षगाँठ थी ।घर में छोटा सा कार्यक्रम था, लोकल में लगभग सभी रिश्तेदार थे ।कार्यक्रम खत्म होने पर अनन्या ने आरव से पूछा "आरव तुम्हारी एक बुआ जी भी तो हैं,वो क्यों नहीं आईं ? आरव बोला "ये छोटा सा कार्यक्रम था इसलिये उन्हें बुलाया नहीं" "पर आरव सारे रिश्तेदार तो आये थे"अनन्या बोली । "पर वो तो इसी शहर में रहते हैं"आरव बोला।"लेकिन बुआ जी भी तो पास ही के शहर में रहती हैं" अनन्या के मुँह से निकला। अब आरव को बताना ही पड़ा "दरअसल बात यह है कि 'मम्मी' बुआजी को पसन्द नहीं करतीं क्योंकि किसी बात पर बुआ जी से एक बार उनकी अनबन हो गई थी ।तब से बुआजी कम ही आती जाती हैं,और मम्मी पापा भी उनके यहाँ नहीं जाते"।
फिर कुछ माह बाद, जब भी खुशी मायके आती है, अनन्या अपने मायके चली जाती है, साथ में आरव भी।और खुशी के घर भी बहुत ही कम जाते थे, दोनों।आज खुशी आने वाली थी,ये बात घर में सबको पता थी, फिर भी अनन्या ने अपने मायके का प्रोग्राम बना लिया ।जब आरुषि ने पूछा कि तुम हर बार ऐसा क्यों करते हो तो आरव तुरंत बोला "मम्मी आप तो हो न घर में "।तब आरुषि बोली "बेटा खुशी तुम्हारी बहिन है ,उसे कैसा लगता होगा, जब तुम दोनों घर में नहीं मिलते,उसका भी अपनी भाभी से मिलने उसके साथ समय व्यतीत करने को मन करता होगा"।इस पर आरव बोला "मम्मी, बुआ जी का भी तो मन करता होगा कि वह अपने भाइयों, भतीजे, भतीजी से मिलने का, लेकिन आप लोगों ने भी तो उनके साथ कोई रिश्ता नहीं रखा और दादी जी के देहांत के बाद तो आप लोग उन्हें बिल्कुल ही भूल गए।आप और बुआ भी तो एक ही शहर में रहे थे सालों, लेकिन अजनबियों की तरह"।ऐसा कहकर दोनों घर से निकल गए ।उनके जाने के बाद आरुषि रुआँसी होकर रोहित से कहती है "सुना आपने क्या कह रहा था 'आरव'?" "क्या गलत कह रहा था,तुम्हारी बातों में आकर,मैंने भी तो अवनी के साथ कितना गलत किया,कभी बड़े भाई का फर्ज नहीं निभाया" रोहित बोला। "आप सही कह रहे हो मैंने बहुत बड़ी ग़लती की है,लेकिन अब में अपनी गलती सुधारूँगी ,में अवनी दीदी को मनाकर घर लाऊंगी,में सब कुछ सही करूँगी" ऐसा कहक़र आरुषि रोहित को लेकर अवनी के घर चल दी।अवनी के घर पंहुचकर उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी ।दरवाजा अवनी ने खोला द्वार पर अपने भैया-भाभी को खड़े देखकर उसके हर्ष की सीमा न रही ।उसके मुँह से निकला "भैया- भाभी" आप। "हाँ दीदी हम "।'आइए अंदर आइए' कहकर अवनी उन्हें अंदर लेकर आती है और उन्हें बैठक में बिठाकर चाय पानी का इंतजाम करती है।फिर जब सब बैठे होते हैं,अनन्या कहती है "हम अपने किये पर बहुत शर्मिदा हैं, दीदी ,हमने जो आपके साथ किया, वही आरव खुशी के साथ कर रहा है ,हमारा किया ही हमारे सामने आ रहा है,हो सके तो हमें क्षमा कर दो" ,ऐसा कहकर आरुषि ने हाथ जोड़ दिए।रोहित भी बोला "मुझे भी माफ करदे खुशी, मैंने भी कभी बड़े भाई का फर्ज नहीं निभाया"।अवनी जो अब तक ख़ामोश थी ,वह अपने भैया भाभी के गले लग गई । रोहित ने भी वहीं से अखिल से फ़ोन पर बात की और उन्हें अपने घर आने को कहा ।अखिल ने शाम में अवनी के साथ आने का वादा किया। 'आरुषि' अवनी को अपने साथ घर चलने की जिद करने लगी ।तब अवनी बोली"अखिल के आफिस से लौटने पर हम दोनों आएँगे"। अवनी से विदा लेकर आरुषि और रोहित घर पँहुचते हैं, तो देखते हैं, घर पर आरव, अनन्या और खुशी पहले से मौजूद हैं और सब लोग हँस रहे हैं, खिलखिला रहे हैं।उसने देखते ही कहा "अनन्या तुम तो अपने मायके गई थीं, इतनी जल्दी बापस आ गईं"।"में कहीं नहीं गई थी मम्मी जी" वो सब तो बस नाटक था, आपको और बुआ जी को मिलाने के लिये।लेकिन तुम तो हर बार भी तो यही करती थीं।हाँ, लेकिन हम खुशी दीदी के घर पहले जाते थे और उन्हें बताकर ही मायके जाती थी,वो भी हमारे नाटक का ही हिस्सा था।अनन्या आगे बोली "मम्मी जी, मेरे मामाजी भी पैसे के घमंड में आकर एक शहर में रहते हुए मम्मी को नहीं पूछते थे, जिससे मम्मी काफी दुखी रहती थीं ।मैंने उनकी तकलीफ देखी है,इसलिये में जानती हूँ, जब मायके वाले परायों जैसा व्यवहार करते हैं तो कितनी तकलीफ होती है"।इसके बाद खुशी बोली "मम्मी जी बुआ भी तो दादा दादी की लाडली थीं।मेरे लिये जैसे आप परेशान होतीं थीं, वैसे बुआ जी के लिये भी दादा दादी की आत्मा को भी तकलीफ होती होगी"।अब आरुषि बोली "आज मेरे बच्चों ने मेरी आँखें खोल दीं" फिर अनन्या की और मुखातिब होकर बोली "आज रात के खाने में क्या बना रही हो,आज तुम्हारे बुआ जी और फूफाजी आ रहे हैं।अनन्या और खुशी, हँसते-खिलखिलाते हुए रात के खाने की तैयारी करने किचन में चली जाती हैं।