सुमित विग
एक कमरे से दीपक की रौशनी बाहर निकल रही थी। उसी कमरे में एक कोने पर किताबों का ढेर जमा हुआ था। किताबें में कुछ साहित्यिक पुस्तकें, राजनीतिक पुस्तकें और कुछ धार्मिक पुस्तकें पड़ी थी। उस कमरे के दरवाजे पर एक कोट टंगा था मटमैला सा। छत पर नज़र जाती तो लगताकि बहुत समय से किसी ने इसे ठीक नहीं किया है और पानी टपक टपक कर खराब हो गयी है। वो कमरा धुल से भरा हुआ था ऐसा लगता था जैसे बहुत सालों बाद किसी ने उस कमरे को खोला हो। दीवार के कोनो में जाले लगे हुए थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो कमरा किसी से कुछ कहना चाहता हो, किसी से कोई सवाल करना चाहता हो। जैसे उस कमरे में आज भी कोई बातें सुनी जा सकती हो।वो कमरा बहुत सालों बाद खोला गया था। वहां पुस्तकों से अलग एक डायरी पड़ी थी। शायद आज तक उस डायरी को किसी ने खोला भी होगा? या केवल उस डायरी तक कोई पहुँचा ही होगा।
सुबह की खिलखिलाती धूप, चिड़ियों के चहकने की आवाजें, गाँव की मिटटीकी शुगंध, मंत्र्मुग्द करनें वाली हवा के बीच उस गाँव की गलियों में खेलते हुए बच्चे बहुत ही सुंदर लग रहे थे। गाँव के एक घर में बाहर बैठी एक महिला ज़ोर से पुकारती है “शामू ओ शामू”, वो महिला कमरे के अंदर जाती है और शामू को उठाने लगती है कहती है “शामू उठ ना बेटा, बहुत समय हो गया है देख अभी तेरे बाबा आतें ही होंगे फिर मत कहना कि वो गुस्सा करते हैं।” शामू की नींद तो टूट गयी पर आलस्य के कारण वो बिस्तर से ना उठा, और उसकी फिर आँख लग गयी। दरवाजे पर खटखटाहट हुई, शामू के बाबा आये था। शामू झट से उठा और दातुन करने लगा। शामू के बाबा अंदर आये, शामू को दातुन करना देख बोलने लगेकि आज भी देरी से उठे हो। तुम्हारा तो रोज़ का हो गया है विद्यालय जाते नहीं हो। रोज़ छुट्टी करके बैठ जाते हो। शामू ने उत्तर दिया बाबा क्यूँ परेशान होते हो। शामू के बाबा ने कहा सुनती हो शामू की माँ तुम्हारा लाडला क्या कह रहा है। इसे क्या पता पैसा कैसे कमाया जाता है। शामू के बाबा ने शामू से कहा “ देख बेटा मैं चाहता हूँ कि तुम हमारी तरह किसी जमींदार की ज़मीन पर हल जोतने का काम ना करे, इसीलिए हम कहते हैं कि पढ़ लिख ले तेरी कही शहर नौकरी लग जाएगी, वरना इस गाँव में क्या करोगे?” शामू ने बात को सुना और कहा “बाबा मैं कल से विद्यालय जाऊँगा”।
अगले दिन वो विद्यालय गया तो मास्टर जी ने पुछा “इतने दिनों से क्यूँ नहीं आ रहे हो?” शामू चुप रहा। उसकी चुप्पी देख मास्टर जी ने उसे डांटना शुरूकर दिया। मास्टर जी ने गुस्से में कहाँ “अगर तुम पढ़ोगे नहीं तो आगे क्या करोगे जिन्दगी में?” मास्टर जी की यह बाद शामू को जैसे चूबसी गयी। वो घर आकर सोचने लगा कि वो बड़ा होकर क्या बनेगा?, क्या करेंगा? शामू अगले दिन घर से तो विद्यालय के लिए निकला पर बैठ गया जाकर नदी के किनारे। वहाँ बैठकर शामू फिर वोहि बात को सोचने लगाकि वो जीवन में क्या करेगा। उसे ये सवाल ही परेशान कर रहा था कि वो “क्या करेगा”? वहाँ बैठे शामू को सुबह से दोपहर हो गयी थी। विद्यालय की छुट्टी हो गयी थी। मास्टर जी अक्सर उसी नदी के पास से ही अपने घर जाया करते थे। मास्टर जी ने दूरसे देखा कि शामू उस नदी के किनारे पर बैठा है। मास्टर जी उसके पास बैठ गए। मास्टर जी ने पुछा “शामू आज तुम विद्यालय क्यूँ नहीं आये” । शामू चुपचाप बैठा सोच रहा था। मास्टर जी ने पुछा “बेटा बताओ कुछ परेशानी है तो”। शामू ने कहा “मास्टर जी एक सवाल पूछूँ”? मास्टर जी ने कहा “पूछों क्या पूछना चाहते हो”? शामू ने कहा “मास्टर जी मैं आगे क्या करूंगा”? मास्टर जी ने शामू को समझाया “बेटा देख आगे का सोचेगा तो अभी जो वास्तव में समय चल रहा है उसे जी नहीं पायेगा। अभी तेरा काम है सिर्फ पढ़ाई करना और परीक्षाओं को पास करना, आगे की बाद में सोचना। कल से तुम विद्यालय में आना शुरू करो। मास्टर जी वहां से चले जातें है और शामू को भी घर जाने को कहते हैं।
अगले दिन से शामू फिरसे विद्यालय जाने लगा पर उसके मन में अभी भी यही बात चल रही थी कि तुम क्या करोगे? एक बार तो मास्टर जी से वो इस बारे में बातकर चूका था तो उसे पता था कि मास्टर जी फिर से उसे वोहीं बातें कहेंगे इसीलिए शामू ने इस प्रश्न को दुबारा विद्यालय में किसी से नहीं पुछा। जैसे-तैसे करके उसने अपनी 10वी कक्षा पास की। उसके माँ बाप इतने अमीर नहीं थे कि वो उसे आगे पढ़ा सकें इसीलिए शामू को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। अब उसके सामने फिर यही प्रश्न आकर खड़ा हो गया कि वो क्या करेगा? एक दिन सुबह उसे घर कुछ रिश्तेदार आये। शामू उन रिश्तेदारों के पास बैठ गया। बातें शुरू हुई और शामू से पुछा गयाकि “आज-कल क्या कर रहे हो”? शामू ने उत्तर देते हुए कहा कि कुछ नहीं। इतना सुनकर शामू से उसके एक रिश्तेदार ने कहाकि “आगे क्या करोगे”? इसी सवाल से ही तो शामू इतने समय से लड़ रहा है कि वो क्या करेगा। शामू को कोई उत्तर नहीं मिला तो शामू वहाँ से उठकर बाहर चला गया। कुछ समय बाद शामू के रिश्तेदार उसके घर से चले गए। शामू शाम के समय फिर उसी नदी के किनारे बैठा यही सोचता रहा कि वो क्या करेगा? शाम से रात हो गयी, माँ-बाप को चिंता होने लगी। शामू के माँ-बाप पुरे गाँव में शामू को ढूंढने लगे। गाँव के एक व्यक्ति ने बताया कि शामू नदी के किनारे बैठा है। माँ-बाप तुरंत उस जगह पहुँचे और शामू को घर ले गए। शामू के पिता ने शामू से पुछा “क्या हुआ है तुम्हे”? उसने अपने पिता को उत्तर नहीं दिया और कहा कुछ नहीं पिता जी अब आप सो जाओ।
शामू रात भर इसी बात को सोचता रहा। अगले दिन उसने एक डायरी उठाई और कुछ लिखने लगा। वो रोज़ उस डायरी में दिनभर कुछ लिखता रहता। उसके पिता ने कहा कि तुम सारा दिन क्या लिखते रहते हो, इससे तुम क्या होगा क्या करोगे? उस डायरी में शामू अपने दिनभर में होने वाली बातों को लिखता था। घर से बाहर किसी से मिलता तो लोग शामू से पूछते आगे क्या करोगे? इसी सवाल का उत्तर आजतक वो स्वम् नहीं ख़ोज सका था।शामू कुछ काम नहीं करता था सारा दिन घर में ही रहता था।किसी ने शामू को कहा कि वो अपने पिता के साथ हल चलाने जाया करे, तो किसी ने कहा कि पढ़ लिख लेता है गाँव के लोगों की चिठियाँ ही पढ़ लियाकर। जितने मूह उतनी बातें। एक बार शामू की माँ के पास गाँव कि एक महिला बैठी थी उसने कहा “ऐसा करो शामू की माँ, शामू का विवाह कर दो तब शायद कोई काम कर ले। जब ज़िमेदारी पड़ेगी तभी तो कुछ करेगा”। महिला की उस बात शामू की माँ को अच्छी लगी। कुछ दिन बाद जब शामू के लिए लड़की देखने गए तो वहाँ लड़की के पिता ने पुछा “क्या करते हो”? शामू के पिता ने कहा “अभी तो कुछ नहीं करता, काम ढूढ़ने लगा हुआ है”। शामू से पुछा गया “क्यूँ भाई शामू क्या करोगे”? शामू खामोश बैठा रहा। लड़की वालों ने रिश्ते के लिए मना कर दिया। करते भी क्यूँ ना मना शामू कुछ कमाता तो है नहीं था।
शामू को उस दिन का बहुत बुरा लगा उसने फ़ैसला किया कि वो गाँव छोड़कर शहर चला जाएगा। शहर में शायद उसे अपने इस प्रश्न का उत्तर मिल जाये कि “वो क्या करेगा”? वो इस बारे में सोचही रहा था कि शहर में क्या करेगा, कैसे रहेगा उसे गाँव में काम मिल गया। गाँव में एक सरकारी दफ्तर का निर्माण होना था वहीं शामू को सामान के हिसाब-किताब करने का काम मिल गया। एक-दो महीने तो शामू ने वहां काम किया पर शायद समय को ये मंज़ूर नहीं था कि शामू नौकरी करे। शामू को वहां से निकल दिया क्यूंकि वहां एक शहर से लड़का आया था जिसे वहांकि सरकार ने नियुक्त किया था। शामू फिर बेरोज़र हो गया। जिसदिन शामू को निकला गया उसदिन घर आकर शामू कमरे में खुद को बंद करके बहुत रोया। अगले दिन सुबह शामू का झगड़ा उसके पिता से किसी बात को लेकर हो गया। शामू के पिता ने कह दिया “निकल जा मेरे घर से” । शामू उसी समय सामान लेकर वहां से निकल गया। शामू के पास कोई काम नहीं था उसके कुर्ते में सिर्फ 400 रुपय थे। उन 400 रुपय को लेकर वो शहर कि तरफ निकल गया। शामू के सामान में वो डायरी भी थी।
शामू बस से उतरा और शहर की भीड़ देखकर शामू हैरान था। शामू चाय पीने के लिए एक ढाबे में चला गया। शामू ने एक लड़के से चाय मांगी। जिस लड़के ने शामू को चाय दी उसने शामू को पहचान लिया। उसने शामू से पुछा भाई गाँव से शहर कैसे आये। शामू ने सब कुछ विस्तार से उसे बता दिया। वो लड़का शामू को अपने कमरे में ले गया। शाम हुए शामू रोज़कि तरह अपनी उस डायरी में कुछ लिखने लगा। उस लड़के ने शामू को खाना दिया। दोनों ने खाना खाया। वो लड़का तो सो गया पर शामू अपने आप से यही सवाल पूछने लगा कि वो आ तो गया है इस अनजान शहर में, पर यहाँ “क्या करेगा”? रात बहुत हो गयी थी सोचते सोचते ही शामू को नींद आगयी। अगले दिन सुबह वो लड़का तो अपने काम पर चला गया शामू उस कमरे में अकेला रह गया। शामू ने सोचा क्यूँ न बाज़ार घुमा जाए। शामू कमरे को ताला लगाकर बाज़ार घुमने निकल गया। शहर में शामू बाज़ार घूम रहा था वहीं दूसरी तरफ़ शामू के माँ-बाप शामू को गाँव में ख़ोज रहे थे। शामू को बाज़ार घूमते हुए एक दुकान दिखी जिसपर लिखा था “काम करने वाले लड़के की जरूरत है”। शामू उस दुकान के अंदर चला गया। वहां उसने दुकानदार से बात की। उस दुकानदार ने कहा कि “तुम कल से आ जाना काम पर”। शामू बाज़ार घूमकर शाम को वापिस उसी कमरे में चला गया, उधर दूसरी तरफ़ गाँव में शाम तक माँ-बाप शामू को ख़ोजने के बाद वापिस घर लौट गए। वो लड़का जब काम से वापिस आया तब शामू ने उसे सारी बात बताई। दोनों ने रात का खाना खाया और शामू डायरी लिखने बैठ गया और वो लड़का सो गया।
अगले दिन शामू उसी दुकान पर काम करने के लिए गया। शामू वहां काम करने लगा और उस लड़के के साथ ही कमरे का किराया देकर रहने लगा। 1 महिना वहां काम करने के बाद शामू को अपने माँ-बाप की याद आने लग गए। उसने सोचा क्यूँ ना मालिक से बात करके वो 2 दिन घर लगा आये। उसने अपने मालिक से बात की, मालिक ने आज्ञा दे दी।अगले दिन ही शामू अपने गाँव पहुँच गया।शामू के पिता शामू को देखकर उसपर गुस्सा करने लगे पर शामू की माँ शामू को प्यार करने लगी और उसे घर के अंदर ले गयी। शामू ने माँ-बाप को बताया कि उसकी नौकरी लग गयी। 2 दिन माँ-बाप के यहाँ रहकर उसने सोचा कि क्यूँ ना एक दिन और माँ-बाप के साथ बिताया जाये। वो अगले दिन भी शहर वापिस नहीं गया। जब शहर वापिस गया तो दुकान के मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया। शामू उस कमरे में वापिस आया और सामान सजाने लगा तो उसने देखा कि उसकी डायरी घर ही रह गयी। शाम को जब वो लड़का वापिस आया उसे शामू ने सब बताया कि कैसे उसे उसके मालिक ने निकल दिया। उस लड़के ने शामू को कहा कि “अब क्या करोगे”? शामू के सामने दुबारा वही सवाल खड़ा हो गया था कि “वो क्या करेगा”?
अगले दिन उस लड़के ने कहा कि “शामू तुम मेरे साथ चलो और मेरे मालिक से मिलो”। शामू उस लड़के के साथ चला गया। उस लड़के ने अपने मालिक से बात की। उसके मालिक ने बताया कि यहाँ तो कोई काम नहीं पर दुसरे शहर में मेरे भाई के यहाँ लड़के की जरूरत है क्या ये वहां जा सकता है। शामू ने हाँ कर दी। शहर बहुत दूर था। लगभग 15 घन्टें का सफ़र तहकर शामू उस शहर में पहुँचा। सफ़र के दोरान शामू यही सोचता रहा कि वो जा तो रहा है, पर वहां क्या करेगा? शामू उस जगह पहुँच गया जहाँ का पता उस लड़के ने दिया था। इधर गाँव में महामारी फ़ैल गयी। शामू को वहां कुछ पता नहीं चला क्यूंकि उसने अपने माता-पिता को जो पता दिया था उस शहर से तो वो कहीं दूर किसी दुसरे शहर में आ गया था। गाँव से एक पत्र उस लड़के के कमरे पर आया उस लड़के ने देखा कि वो पत्र तो शामू के नाम का है। उस लड़के ने अपने मालिक से बात की। उसके मालिक ने वो पत्र उस लड़के से ले लिया और उसे काम करने को कहा। मालिक ने पत्र खोला और पढ़ लिया। पढ़ने के बाद उसने वो पत्र शामू के मालिक को भेज दिया। लगभग 1 महीने बाद शामू को वो पत्र मिला। शामू ने उस पत्र को खोला जब उसने उस पत्र को खोला तो उसकी आँखे भर आई। उस पत्र में लिखा था “शामू तुम्हारे माँ-बाप अब इस दुनिया में नहीं रहे। गाँव में एक महामारी फ़ैली थी जिसकी चपेट में आकर तुम्हारे माँ-बाप का स्वर्गवास हो गया है। अगर तुम आ सकते हो तो कल तक आ जाओ। तुम्हारा रामू काका”। रामू काका शामू का पड़ोसी था। शामू फुट-फुट कर रोने लगा।
माँ-बाप के जाने के बाद शामू का अब इस दुनिया में कोई नहीं रहा। शामू रात में सोचने लगा कि अब उसके माँ-बाप नहीं है वो क्या करेगा, कैसे अपने माँ-बाप के बिना जिंदगी व्यतीत करेगा। सुबह तो जैसे भी काम में बीत जाती पर शाम को जब शामू अपने कमरे में आता तो उसे अपने माँ-बाप की याद आ जाती। उसे हर तरफ उसके माता-पिता दिखाई देने लगते। हस्ते-बोलते देखाई देने लगते। शामू इस बात से बहुत परेशान हो गया था। एक रात तो उसके सर में बहुत दर्द होने लगा। वो पागल हो गया था। उसे फिर वोहि चहरे दिखाई देने लगे, वोहि बातें सुनाई देने लगी जो घर से भागने के समय सोचा करता था “ शामू तुम क्या करोगे? जीवन भर कुछ करोगे भी या नहीं” । शामू उस कमरे से बाहर निकला। वहां से भाग गया।रातभर भागने के बाद शामू किसी दुसरे शहर में पहुँच गया। शामू के पीछे पीछे रातभर वो आवाज़ें भी भागती रहीं। सुबह जब शामू काम पर नहीं आया तो मालिक ने किसी नौकर को शामू को बुलाने भेजा। उस नौकर ने बताया कि शामू अपने कमरे में नहीं है।
भीड़ जमने लगी। लोगों ने देखा कि कोई सड़क पर बिहोश पड़ा है। लोगों ने पुलिस को बुलाया। पुलिस वालों ने उस आदमी को उठाकर हस्पताल भिजवाया। हस्पताल में जब शामू को होश आया तो पुलिस वालों ने उससे कई सवाल किए कि तुम कौन हो? कहाँ के रहने वाले हो? आदि। शामू ने सब विस्तार से पुलिस वालों को बता दिया। शामू को हस्पताल से छुट्टी मिल गयी। अब वो फिर एक अनजान शहर में घुमने लगा और खुद से सवाल पूछने लगा “आ तो गए हो इस अनजान शहर में पर यहाँ करोगे क्या? कौन है यहाँ जो तुम्हे नौकरी देगा”? शामू फिर इसी बात को सोचने लगा। इसी तरह कई शहरों में शामू काम करता और फिर वहां से भाग जाता। शामू जहाँ भी काम करता कुछ समय बाद उसके सामने वोहि चेहरे और वो बातें घुमने लगती। शामू ने अपनी जिन्दगी के 30 साल ऐसे ही व्यतीत किये। एक दिन शामू के मन में आया क्यूँ ना वो वापिस अपने घर जाए। जिसे छोड़कर वो भाग गया था। और फिर शहर में आने के बाद सिर्फ एक बार अपने माता-पिता को मिलने गया था।
शामू समय से पहले ही बुढा हो गया था। उसके बाल बर्फ की चादर से सफ़ेद हो गए थे। शामू ने अपना एक झोला उठाया जिसमें दो-चार कपड़े थे और बैठ गया रेल-गाड़ी में शामू की जेब में फिर से 400 रुपय ही बचे थे बाकि सब कुछ ख़त्म हो गया था। जैसे-तैसे शामू अपने गाँव वापिस आया। शामू जब स्टेशन से उतरा तो उसने देखा गाँव का रंग ढंग सब बदल गया है। पक्की सड़के, पक्के मकान सब कुछ गाँव में बदल गया था। शामू झोला उठाए अपने घर की तरफ जाने लगा। शामू अपने घर के सामने आ खड़ा हुआ। उसने नज़र घुमाई तो देखा उसके घर के आस पास पक्के मकान थे बस उसका घर ही पुराना और कच्चा था। शामू ने अपने घर का दरवाज़ा खोला। अंदर धुल-मिटटी भरी हुई थी। शामू ने उस कमरे का दरवाज़ा खोला और एक तरफ पड़े हुए दीये को थोडा सा तेल डालकर जलाया को पिछले लगभग 30 सालों से वैसे का वैसे पड़ा था। शामू ने कमरे में नज़र घुमाई।
एक कमरे में दीपक की रौशनी बाहर निकल रही थी। उसी कमरे में एक कोने पर किताबों का ढेर जमा हुआ था। किताबें में कुछ साहित्यिक पुस्तकें, राजनीतिक पुस्तकें और कुछ धार्मिक पुस्तकें पड़ी थी। उस कमरे के दरवाजे पर एक कोट टंगा था मटमैला सा। छत पर नज़र जाती तो लगताकि बहुत समय से किसी ने इसे ठीक नहीं किया है और पानी टपक टपक कर खराब हो गयी है। वो कमरा धुल से भरा हुआ था ऐसा लगता था जैसे बहुत सालों बाद किसी ने उस कमरे को खोला हो। दीवार के कोनो में जाले लगे हुए थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो कमरा किसी से कुछ कहना चाहता हो, किसी से कोई सवाल करना चाहता हो। जैसे उस कमरे में आज भी कोई बातें सुनी जा सकती हो।वो कमरा बहुत सालों बाद खोला गया था। वहां पुस्तकों से अलग एक डायरी पड़ी थी। शायद आज तक उस डायरी को किसी ने खोला भी होगा? या केवल उस डायरी तक कोई पहुँचा ही होगा।
शामू ने उस डायरी को उठाया, कलम खोली और उस पर 30 साल में जो भी उसके साथ हुआ, सब लिख दिया। उन 30 साल की बातों को लिखने में उसे लगभग उसे 5 दिन का समय लगा। 5 दिन बाद जब उसने अपनी डायरी पूरी की, तो वोहि सवाल फिर दीवार बनकर उसके सामने खड़ा हो गया कि आगे की जिंदगी में वो “क्या करेगा”? शाम का समय था, शामू रात के भोजन का सामान लेने बाज़ार गया। सामना लेकर शामू कुछ समय के लिए अपने गाँव में बने एक बगीचे में जाकर बैठ गया। 30 साल पहले उस जगह खेत था, जहाँ अब बगीचा था। शामू ने देखा बगीचे में बच्चे खेल रहें हैं, लोग बगीचे में बैठकर ताज़ी-ठंडी हवा का आनंद ले रहे थे। तभी उसकी नज़र एक बच्चे पर पड़ी। मैले और फ़टे हुए कपड़े पहने वो बच्चा बगीचे में बैठे लोगों से खाने के लिए कुछ मांग रहा था। शामू को उस बच्चे पर दया आ गयी उसने अपने खाने के सामान में थोडा सा सामान उस बच्चे को दिया। जिसमें कुछ फल भी थे। बच्चा उन फलों को उसी समय खाने लगा। देखकर शामू को ऐसा लगा कि वो बच्चा बहुत दिनों से भूखा होगा।उस शाम शामू को उस बच्चे को खाना खिलाकर एक अद्भुत सुख का अनुभव हुआ। शामू को उस शाम अपने उस सवाल का उत्तर मिला कि “बाकि बची जिंदगी में वो क्या करेगा”? उस दिन शामू ने सोच लिया कि वो जो भी कमाएगा उसका कुछ हिस्सा गरीबों की मदद में लगाएगा। जो गरीब बच्चा पढ़ना चाहेगा उसे खुद पढ़ेगा। डायरी लिखने की उसकी आदत ने उसे एक लेखक बना दिया। अपनी लेखनी से कमाएँ पैसे उसने गरीब बच्चों के भोजन और पढ़ाई में लगाने शुरुकर दिए। ऐसे ही अब शामू की जिंदगी चलने लगी। अब शामू को वो चहरे भी नहीं दिखते थे और ना ही अब आवाज़ें सुनाई देतीं थी।
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