Independence - 16 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | आजादी - 16

Featured Books
  • ભીતરમન - 59

    મુક્તારના જીવનમાં મારે લીધે આવેલ બદલાવ વિશે જાણીને હું ખુબ ખ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 121

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૧   ધર્મ -પ્રકરણ પછી હવે -અર્થ -પ્રકરણ ચાલુ થા...

  • કૃતજ્ઞતા

      આ એ દિવસોની વાત છે જ્યારે માનવતા હજી જીવતી હતી. એક ગામમાં...

  • નિતુ - પ્રકરણ 53

    નિતુ : ૫૩ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુને કૃતિ સાથે વાત કરવાની જરૂર લાગી...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 13

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

Categories
Share

आजादी - 16



विनोद स्नानादि से निबट कर हॉल में पहुंचा तब तक घडी की सुई दस बजे दिखा रही थी । काफी देर तक बडबडाने के बाद विनोद की माँ खामोश हुयी थीं और कल्पना के बार बार आग्रह करने पर दोनों अभी अभी नाश्ता करके बैठे थे । विनोद कोे देखते ही उनके चेहरे पर नाराजगी के भाव गहरे हो गए थे । विनोद के लिए व्यंग्य के बाण हाजीर थे ” तो सुबह हो गयी बेटा ? ”
अब विनोद क्या जवाब देता ? किसी भी हाल में बड़ों का सम्मान करना उसका धर्म जो था । चेहरे पर मुस्कराहट लाते हुए बाबूजी और फिर माँ के चरण स्पर्श करते हुए उसने धीरे से जवाब दिया ” बाबूजी ! रात भर तो हम लोग जागते ही रहे थे । पता नहीं कब भोर में आँख लग गयी । वैसे भी ग्यारह बजे से पहले तो कोई पुलिसवाला भी चौकी में नहीं मिलेगा । फिर जल्दी जाकर क्या मतलब है ? ”
” ठीक है ! ठीक है ! अब जल्दी से तैयार हो जा । मैं भी चलुंगा तेरे साथ । ” बाबूजी ने अपना आदेश सुना दिया था ।
इंकार करने का तो सवाल ही नहीं था फिर भी विनोद ने कहा ” बाबूजी ! आप यहीं घर पर आराम कीजिये । कहाँ परेशान होने जायेंगे । मैं हूँ न ? आकर आपको बताता हुं क्या कहा पुलिसवालों ने ! ”
” मैंने कह दिया न एक बार तो बात तेरे समझ में नहीं आती ? पता नहीं तूूने कैसे शिकायत दर्ज करायी है और पता नहीं पुलीस क्या तफ्तीश कर रही है । हो सकता है मुझ बुजुर्ग की हालत पे उनको तरस आ जाये और वो लोग ध्यान से मुन्ने की तलाश में लग जाएँ । ” बाबूजी ने विनोद को समझाया था जिसे मानने के अलावा उसके पास दुसरा कोई विकल्प भी नहीं था ।
थोड़ी ही देर में विनोद तैयार होकर बाबूजी के साथ ऑटो में बैठा पुलीस चौकी की तरफ जा रहा था ।

इधर राहुल खुद को नियति के भरोसे छोड़ कर उन बेहद ही गंदे और मासूम से दिखनेवाले बच्चों के बीच काफी देर तक बैठा रहा । उसने स्पष्ट देखा था , अब्दुल को देखकर उन बच्चों के चेहरे पर वही भाव थे मानो वो कोई बकरे हों और अब्दुल के रूप में उन्होंने कोई कसाई को देख लिया हो ।
अब्दुल जा चुका था लेकिन बच्चों के चेहरों पर भय की परछाई स्पष्ट दिख रही थी । राहुल ने सभी बच्चों को ध्यान से देखा । सभी बच्चे डरे सहमे से दुबके हुए पड़े थे सिवाय एक के । वह छह साल का एक मासूम सा बच्चा था और लगातार सिसक रहा था । शायद बड़ी देर से रोता रहा होगा । राहुल उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया और हाथ हिलाकर उसे ‘ हाय ‘ कहा । अचानक वह सिसकना भूल गया और आशा भरी नज़रों से राहुल की तरफ देखने लगा । राहुल ने दरवाजे की तरफ देखा । दरवाजा बंद था । निश्चिन्त राहुल उठा और उस लडके के समीप जा बैठा । उससे हाथ मिलाते हुए बोला ” हाय ! मेरा नाम राहुल है और तुम्हारा ? ”
“मेरा नाम बंटी है । ”
” अच्छा ! तो तुम्हारा घर कहाँ है ? ”
” मैं राजनगर के साउथ एक्स में बंगला नंबर 23 में रहता हूँ । डॉ. राजीव मेरे पापा हैं । ”
” ओह ! तो तुम डॉक्टर अंकल के बेटे हो ? मैं भी राजनगर का ही रहनेवाला हुं । साउथ एक्स के ही बगल में चिराग नगर में मेरा घर है । ” राहुल ने अपना परिचय दिया था ।
राहुल को अपने ही शहर का पाकर बंटी के चेहरे पर ख़ुशी छलक पड़ी । अब राहुल ने दूसरे बच्चों से भी परिचय कर उनसे बातचीत शुरू कर दिया । इतने दिनों से साथ रहते हुए भी सभी बच्चे एक दूसरे से अनजान थे लेकिन राहुल द्वारा बंटी का परिचय पुछने और अपना परिचय बताने के बाद वहां का माहौल एक दम से बदल गया । सभी एक दूसरे के नाम से परिचित हो गए थे । बंटी ने बताया कि ‘ वह मैदान में खेल रहा था । गेंद मैदान से बाहर चली गयी थी । उसे लेने अकेले ही बाहर गया था कि तभी तेजी से आती एक कार बगल में रुकी और उसमें से दो लोगों ने पलक झपकते ही उसे उठाकर गाड़ी में पिछली सीट पर पटक दिया था । गाड़ी चल पड़ी थी । पिछली सीट पर लेटे हुए बंटी को दोनों बदमाशों ने दबोच रखा था । कुछ देर प्रतिरोध करने और रोने के बाद बंटी को होश नहीं कि वह यहाँ कब और कैसे पहुंचा । ‘
बंटी की कहानी सुनकर राहुल समझ गया कि इन लोगों ने बंटी का अपहरण कर लिया था और उसे यहाँ रखा हुआ था । लेकिन वह तो स्वयं ही इनके चंगुल में फंस गया था । अब उसे ही इनके चंगुल से निकलने का कोई उपाय करना होगा ।
राहुल ने सभी बच्चों को समझाया कि जब भी कोई बदमाश आएगा कोई एक दुसरे से बात नहीं करेगा । अब तक जैसे डरे हुए रहते थे वैसे ही रहना है । जल्द ही सबके बाहर निकलने का कोई उपाय किया जायेगा । सभी बच्चे उसकी यह बात सुनकर खुश हो गए । और उनकी नजर में अब राहुल उनका नेता बन चुका था ।
लगभग एक घंटे बाद दरवाजा खुला । इस बार अब्दुल नहीं था । दुसरे दो आदमी थे जिनमें से एक के हाथ में एक बड़ा सा बर्तन था जबकि दुसरे के हाथ में पानी से भरी एक बाल्टी थी ।
दोनों ने सभी बच्चों के सामने पहले ही फटे हुए अखबार के टुकडे बीछा दिए और उन्हीं अखबार पर उन्हें खाने के लिए सूखे भात और उसपर दाल का पानी छिड़क दिया ।
पहले से मौजुद बच्चे भोजन देखते ही उस पर टूट पड़े ।

लेकिन राहुल की हालत उनसे अलग थी । भोजन को देखते ही राहुल की भूख ही ख़तम हो गयी थी । सुखे से चिपके हुए भात देखकर उसे एक वाकया याद आ गया । उस दिन खाने की मेज पर प्लेट में रखे चावल को देखकर राहुल अपनी माँ पर चील्ला पड़ा था । दरअसल चावल नया होने की वजह से थोडा गीला होकर चिपक गए थे । बस राहुल ने आसमान सीर पर उठा लीया था । विवश होकर उसकी माँ को दूसरा भोजन उसके लिए बनाना पड़ा था । इतना ही नहीं माँ के काफी मान मनौव्वल के बाद ही राहुल ने उस दिन खाना खाया था ।
सामने रखे भोजन पर अब मक्खियाँ भिनभिनाने लगी थीं । राहुल परिस्थिति से अच्छी तरह वाकिफ था लेकिन उस भोजन को देखते ही उसके मन में एक घिन्न पैदा हो गयी थी । अब वह चाहकर भी इस घिन्न को कम नहीं कर पा रहा था ।
जब तक वह भोजन को देखते रहा और कुछ सोचता रहा सभी बच्चे अपना अपना भोजन ख़त्म कर चुके थे । अखबार के टुकडे वहीँ पड़े डब्बे में फेंकने के बाद सभी बच्चे हाथ धोकर अपनी कमीज से हाथ पोंछते हुए पुनः आकर अपनी अपनी जगह बैठ गए । किसी ने राहुल को भोजन कर लेने के लिए नहीं कहा । न उन आदमियों ने और न ही राहुल के साथी लड़कों ने । हालांकि राहुल को यह उम्मीद भी नहीं थी कि उसके माँ की तरह कोई उसे मनायेगा और खा लेने का आग्रह करेगा । फिर भी वह ऐसा भोजन नहीं कर सकता था । थोड़ी ही देर में दोनों ही आदमी जैसे आये थे वैसे ही चले गए । एक बार फिर दरवाजा पहले की तरह बाहर से बंद कर दिया गया था । उनके जाने के बाद उन लड़कों में से एक जो उम्र में राहुल के समकक्ष था राहुल की तरफ देखकर हंसा और बोला ” राहुल ! तुम्हें भोजन कर लेना चाहिए था । यहाँ यही मिलेगा और ऐसे ही मिलेगा । आखिर कब तक भोजन नहीं करोगे ? मैं तुम्हारी मनोदशा समझ सकता हूँ क्योंकि हम लोग भी शुरू में ऐसा ही कर चुके हैं लेकिन कब तक भूखे रहते ? आखीर समझौता करना ही पड़ता है । ” वह लड़का जिसका नाम मोहन था उसके नजदीक आकर बैठ गया था ।
राहुल ने मोहन की बात सुनी और अंदाजा लगाया कि शायद ये लोग ज्यादा दिनों से यहीं पर हों । उसने पूछ ही लिया ” तुम्हारी बात से लगता है तुम लोग यहाँ काफी दिनों से हो । ”
” हाँ ! हम सभी लोग यहाँ पिछले पांच दिन से बंद हैं । ये क्या करना चाहते हैं कुछ पता नहीं चल रहा । ” मोहन ने ही जवाब दिया था ।
मोहन का जवाब सुनकर राहुल कुछ सोचने लगा ।

क्रमशः