Janwar aur jarwaha in Hindi Animals by Shubham Rawat books and stories PDF | जानवर और चरवाहा

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जानवर और चरवाहा

गाँव से हट कर नदी के किनारे बसा एक छोटा सा घर। उस घर में 'मेर' परिवार रहता है; जिनकी आजीविका खेती-बाड़ी से होती है। खेती-बाड़ी से कमाई उतनी नहीं होती; जितनी की मेहनत। खेतो के चारो तरफ पत्थर की दिवाल बनाई हुई है। फिर भी रात को सूअर और दिन में बंदर और लंगूर नकुशान पहुजाते हैं। हवाई हमले तो होते ही रहते हैं; चिड़ियों का हमला तो आम ही हैं।
कहानी ये नहीं है; कहानी तो राजू की है। जो मेर परिवार का इकलौता जिराग है। राजू दसवीं में तीन बार फेल हो चुका है। और उसके दोस्त तो कॉलेज में दाखिला ले चुके हैं। और अब राजू ने पढ़ाई को अपना धोखेबाज साथी मान कर छोड़ दिया है।
राजू अपने खानदान का इकलौता जिराग जरुर है; पर उसका परिवार कोई माला-माल परिवार तो है नहीं। इसलिए उसके सिर अब गाय और बैल चराने का काम सौप दिया गया है। राजू भी अपनी काबिलियत को समझता है; इसलिए उसने भी ये काम को खुशी-खुशी ले लिया है।
***
राजू अपने जानवरों को हकाते हुऐ जंगल की तरफ़ को लेकर गया है। अभी मुश्किल से दस मिनट बिते ही है; कि राजू उबने लगा है।
"छी यार पढ़ाई-लिखाई कर ली होती तो ये बेकार में जानवरों का गवाला नहीं आना पड़ता।" राजू जानवरों की तरफ देखकर खुद से कहता है।
"हमारी तरफ देख कर क्या बोल रहा है, जैसे हमने इसे पढ़ने से रोका था।" लाल बैल ने काले बैल की तरफ देख कर बोला। फिर दोनों बैल हँस देते हैं।
"ऐ तुम लोग हँस क्याें रहे हो?" सबसे बूड़ी गाय ने पूछा।
"वो देख राजू महाराज को कितने परेशान हो गये है।" काले बैल ने जवाब दिया।
फिर सारे जानवर हँस देते हैं।
"ऐ तुम लोग रोज-रोज इसी जगह में चरके बौर नहीं हो जाते?" सबसे छोटी बछिया ने सवाल किया।
"तो तु बता कहां जाये?" भूरी गाय ने सवाल किया।
"नदी के पार चलते हैं।" बछिया ने जवाब दिया।
"ना-ना पागल है!" सब जानवर ने बछिया को एक साथ मना करते हुए कहा।
"क्याें?" बछिया ने निराश होते हुऐ पूछा।
"भूल गयी तु जब पिछले बार वहाँ गये थे, तेरी चाची को बाघ ने मार दिया था।" काले बैल ने बछिया को समझाया।
"तब से तो चार महीने बीत गये हैं। ये भी तो देखो नदी के पार कितना अच्छा घास होता हैं। एक दम हरा-भरा और तब से तो घास और भी लंबी हो गयी होगी। खाने में क्या मजा आयेगा। और प्यास लगेगी तो पानी ही पानी, नदी में पी भी लेंगे। यहां तो घास भी सूखी है एक दम और प्यास लगती है तो घर को जाना पड़ता है; ढंग से चर भी नहीं पाते।" बछिया ने और जानवरों को लालच दिया।
"बात तो सही कह रही है तू।" बूढ़ी गाय ने कहा।
"तो चले!"
"तो पहले कौन जायेगा?" भूरी गाय ने सवाल किया।
"मैं जाएगी सबसे आगे से, फिर तुम मेरे पीछे-पीछे आ जाना। फिर हम, एक साथ दौड़ लगा देंगे। क्या कहते हो?" बछिया के चहरे में एक मुस्कान थी।
"और ये राजू अगर इसने जाने से रोक दिया तो?" लाल बैल ने पूछा।
"अरे ये क्या रोकेगा, जब तक रोकेने आएगा तब तक तो हम फूर हो जाएंगे।" काले बैल ने फौरन जवाब दिया।
"तो भागे, एक, दो, तीन!" और बछिया समेत सब जानवर नदी के और दौड़ लगा देते हैं।
"ऐ...... दुष्ट जानवरों कहां को भाग गये!" राजू चिल्लाता है।
***
"आ गया क्या, देख।" भूरी गाय ने बूढ़ी गाय से पूछा।
"वो देख अब जाकर नदी में पहुँचा है।" बूढ़ी गाय ने जवाब दिया।
और उसके बाद सभी जानवर लंबी-लंबी हरी-भरी घास चरने लगते हैं।
राजू नदी के पार जाने के लिए जो ही कदम रखता है, गिले पत्थर से उसका पाँव फिसलता है और वह नदी में गिर जाता है। राजू के पूरे कपड़े गीले हो जाते हैं और उसका फोन भी भीग जाता है। बड़ी मेहनत के बाद राजू उस जगह पर पहुंचता है, जहां जानवर चरने के लिए भाग गये थे।
"ये बूढ़ी और वक्त फटाफट नहीं चलेगी, अभी कितने तेज दौड लगाके भागी।" राजू एक डंडा बूढ़ी गाय को मारते हुए कहता है।
"और ये बैल हल बाने वक्त तो बड़ा नखरा करते हैं, अभी कितने तेज दौड लगाके आए।" राजू दोनों बैलो को एक-एक डंडा मारते हुए कहता है।
"और ये गाय, दूध देने वक्त तो लात उठाती है। उस समय बड़ा नखरा करती है और अभी भागने के लिए देखो, स्पाइडर मैन बनी है।" राजू भूरी गाय के डंडा मारते हुए कहता है।
"और ये बाछी....." राजू के इतना कहते ही बाछी वापस से दौड लगा देती है, "कहां भागेगी घर को ले जाने वक्त मार खायेगी।"
"जब मैं तेरे हाथ लगूंगी तब।" बछिया ने कहा जैसे राजू उसकी बात को सुन रहा हो।
"दुष्ट जानवर मेरा फोन भी खराब कर दिया।"
"फोन खराब कर दिया तो ऐसे बोल रहा है, जैसे कितना जो मंहगा मोबाइल था। अपने बूबू का फोन रखा था खूद के पास।" लाल बैल ने राजू की बात सून कर कहा। और फिर सारे जानवर हँस देते हैं।
राजू धूप के सहारे वक्त का पता लगाने की कोशिश करता है, और जब वक्त का पता नहीं लगा पाता है तो फिर जानवरों को हका कर घर को ले जाने लगता है।
"चल, चल, हिट, चल।" राजू जानवरों को हकाने लग जाता है।
"चल तो रहे हैं, क्या चिल्ला रहा है। पागल कहीका।" काला बैल कहता है और फिर सारे जानवर हंसने लग जाते हैं।
"अबे दुष्ट राजू बाछी को तो हकाके ले आ।" बूढ़ी गाय ने कहा
राजू सारे जानवरों को हकाते हुए घर की ओर ले जाने लगा। ये देख बछिया खुद-ब-खुद पीछे से आने लगती है।
***
राजू सारे जानवरों को घर के गेट से अंदर को हकाता हैं; और जानवरों को गोशाला के अंदर बाध देता हैं। और फटाफट से वापस आकर गेट की आड़ में छीप जाता है। जैसे ही बछिया गेट के अंदर आती है उसे एक डंडा मारता है और कहता है, "दुष्ट बाछी तु ही सबको नदी के पार भगा के ले गयी।" और फिर उसे भी गौशाला में बाध आता है।
"इतु जल्दी किलै लै आये रे गौरु के, आई त बहुते टैम छी?" राजू की अम्मा ने अपने पहाड़ी बोली में पूछा।
"ऊ मयर फोन पाढ़ी मे गिर पडो, ई लीजी टैमक पत लै नी चलौ।" राजू ने जवाब दिया।
***
अगले दिन वापस राजू अपनी ड्यूटी के लिए तैयार हो गया। 9 बजे से दिन के 2 बजे तक राजू की ड्यूटी है, जानवरों को चराना।
"आज तो इनको मैं मटखानी की तरफ लेकर जाऊंगा, तब देखता हूँ, कैसे जाते है ये जानवर नदी के पार।" राजू जानवरों को हकाते हुए कहता है।
"एबे जा!" काले बैल ने कहा और फिर सारे जानवर हंसने लग जाते हैं।
रोज इस तरह से सिलसिला चलता रहा। राजू जानवरों का चराता और फिर घर लाता।
कहानी इसी तरह से रोज आगे को बढ़ती रहती है।