360 degree love - 8 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 8

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360 डिग्री वाला प्रेम - 8

८.

घर पर काम… कुछ आराम

वह मंगलवार का दिन था. आरव के घर ग्रुप को मिलना था. ठीक बारह बजे दोपहर. आरव ने गैराज का एक हिस्सा अच्छे से साफ़ करवा दिया था. यूँ भी गैराज भले ही था वह, पर उनकी गाड़ी कभी खड़ी नहीं होती थी उसमें. हमेशा पोर्टिको ही इस्तेमाल होता था. कुछ पुराना सामान और गाड़ी के टायर एवं टूल्स आदि ही रखे थे वहां. वैसे वह काफी बड़े स्पेस में था जहाँ गाड़ी खड़ी करने के बाद भी खूब जगह बचती थी. हवादार भी थी वह जगह. वहां बैठकर काम करने में कोई विशेष असुविधा नहीं होनी थी. दो बड़ी टेबल और चार कुर्सियों की भी व्यवस्था हो गई थी. जरूरत पड़ने पर लॉन की खुली जगह का भी उपयोग किया जा सकता था, जो गैराज से ही सटा था.

 

आरव की मम्मी ने सबके लिए स्नैक्स और लंच की तैयारी कर ली थी. उसकी बहन वर्तिका कॉलेज में थी, लेकिन वह भी १.३० बजे तक वापिस आने वाली थी. आरिणी और भूमि से मिलने को लेकर बहुत उत्साहित थी वह. खासतौर से इस बात से कि वह सब तीन-चार दिन अधिकतर उनके घर पर ही डेरा जमायेंगे.

 

बारह बज चुके थे. देव अपनी मोटरसाइकिल से पहुँच गया था. वह एक बार पहले भी आ चुका था उसके घर. भूमि और आरिणी दोनों को कॉलेज चौराहे से शेयर्ड ऑटो में हजरतगंज चौराहे तक पहुँचना था, और वहां से फिर रिक्शा से.

 

अभी लॉन में ही बैठे धूप सेंक रहे थे आरव और देव, जब आरिणी और भूमि रिक्शे से उतरती दिखाई दी. आरव उठकर दोनों को रिसीव करने गेट तक गया और साथ ले आया. एक सर्वेंट दो कुर्सियां और रख गया लॉन में.

 

“अच्छी जगह है तुम्हारा घर, आरव”,

 

एक निगाह से जायजा लेते हुए कहा आरिणी ने.

 

“अरे, हमारा नहीं, सरकारी घर कहो",

 

आरव ने उसको सुधारते हुए कहा तो दोनों ही हंस पड़े.

 

तभी घर के मुख्य द्वार से उर्मिला जी, यानि आरव की मम्मी आती हुई दिखाई दी. सबसे पहले देव ने बढ़कर उनके चरण स्पर्श किये, फिर आरिणी और भूमि को उन्होंने गले लगा लिया.

 

सबको आशीर्वाद दिया उन्होंने. बोली,

 

“मैं नाश्ता बना रही हूँ तुम सबके लिए, बस १५ मिनट और, तब तक एक-एक कप चाय पियो तुम लोग!”.

 

डाइनिंग टेबल पर नाश्ता सजा था, नाश्ता क्या था मिनी मील-सा दिखता था. तीन डोंगों में व्यंजन और स्वीट डिश के नाम पर गुलाब जामुन, इडली और पोहा भी. तीन प्रकार की चटनी और एक कॉफ़ी का पॉट अलग से था. आरिणी ने सब देखकर भूमि को इशारा किया..जैसे कह रही हो कि तुम भी तो सवेरे हॉस्टल से खाकर चली हो. कुछ बोला क्यों नहीं तुमने. क्या सब जिम्मेदारी उसी की है. और देव ! उसकी तो बात ही अलग थी. उसने तो डाइनिंग टेबल के पास पहुंचकर ऐसी अंगडाई ली, कि बस पूछो मत, कहीं एक-आध हड्डी न चटख गई हो उसकी!

 

“हॉस्टल का खाना खाकर तो बोर हो जाते होगे न तुम लोग...जब मन करे तो चले आया करो. अपना ही घर समझना!”,

 

कहा उर्मिला ने.

 

“सच आंटी, घर का खाना बहुत याद आता है”,

 

देव बोला. वह लगातार नाश्ते की तारीफ़ किये जा रहा था. प्रशंसात्मक शब्दों के प्रवाह में वह बिलकुल कृपण नहीं था.

 

“जब मर्जी तुम लोग आ जाया करो, आरव भी साथ-साथ कुछ अच्छे से खा लिया करेगा”,

 

उर्मिला जी ने हंस कर कहा तो आरिणी से नहीं रहा गया, बोली,

 

“आंटी फिर आपके किचिन का बजट बिगड़ जाएगा. अभी तो मेस वाले ही परेशान हैं इससे, फिर आप और आरव भी…”.

 

“अब देखिये आंटी.., इन्हें मेरा खाना भी नहीं भा रहा. खुद तो देखो जैसे स्लिम होने का रिकॉर्ड इन्हें ही बनाना है”,

 

देव ने कहा तो सब खिलखिलाकर हंस पड़े.

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