Cleancheet - 12 in Hindi Fiction Stories by Vijay Raval books and stories PDF | क्लीनचिट - 12

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क्लीनचिट - 12

अंक - बारह/१२

अचानक से आलोक बोला,
'शर्त... शर्त... क्यूं फ़िर से शर्त.. तुम शर्त बोलती हो तब तुम मुझे.. छोड़कर.. नहीं कोर्इ शर्त नहीं।'
'क्यूं, क्या हुआ आलोक? मैंने तो अभी किसी शर्त के बारे में बात ही नहीं करी।'
'तुमने करी थी एकबार मेरे साथ औैर उसके बाद तुम'
'मैंने.. मैंने कौन सी शर्त रखी थी आलोक? कब बोलो तो?'
'कल... ना.. हा, एक दिन करी थी औैर बाद में तुम कहीं चली गई.. ना.. तुम शर्त बोलकर बाद में चली जाती हाे इसलिए कोई शर्त की बात नहीं करोगी, प्लीज़ अदिती।'
'अच्छा ठीक है, मैं कोई शर्त नही रखूंगी बाबा ओ. के. तुम कॉफी पी लो। हम बाहर चलेंगे। तुम आओगे मेरे साथ?'
' तुम ले जायेगी मुझे?'
'हां, चलो तुम चेंज करके गुड बॉय बन जाओ फटाफट।'
'तो क्या अभी मैं गुड बॉय नहीं हूं?'
धीरे से आलोक के गाल खींचते हुए बोली, 'यू आर नॉट ओन्ली गुड मेरे राजा यू आर माय गुडलक। चलो, मैं आऊ तब तक रेडी हो जाओ, ओ. के.'
तैयार होते होते अदिती, संजना के साथ कॉल पर बात करते हुए बोली, 'हेय.. बेबीडॉल क्या कर रही हो? कहां हाे अभी?'
'हाई स्वीटु, सुबह से ही तुम्हारे कॉल का वैट करते हुए घर पर बैठी हूं। बोलो क्या प्लान है?'
'सुनो, १५ मिनट में रेडी हो जाओ, मैं आ रही हूं तुम्हारे घर। बाद में तुम, मैं औैर आलोक साथमें निकलते हैं, ओ.के.'
'अरे.. अरे.. लिसन तुम मत आओ। मैं ही आ रही हूं तुम्हें पीक करने के लिए। मैं तैयार ही हूं। निकलू उतनी देर है। ५ से ७ मिनट में ओ. के.'
'अच्छा चलो वही ठीक रहेगा। वी आर वेटिंग फॉर यू।'
उसके बाद अदिती ने शेखर को कॉल करके कहा, 'हेल्लो.. शेखर मैं, आलोक औैर संजना बाहर जा रहे हैं। मैं ऐसा कह रही थी कि, तुम्हें कोई प्रॉब्लम न हो तो हम आलोक के फ्लैट पर जा सकते हैं?'
'ओह, श्योर, व्हाय नोट। धेट्स गुड। येे अच्छा आइडिया है, शायद वहां से कोई नया क्लू मिल सके। फ्लैट की चाबी मम्मी के पास है। मैं मम्मी के साथ बात कर लेता हूं। इसके सिवाय कोई काम है?'
'ना, औैर सुनो शेखर, फ्लैट नंबर के साथ लोकेशन भी सेंड कर देना। औैर आलोक की ऑफिस का लोकेशन भी, प्लीज़।'
'जी अभी कर देता हूं।'
'थैंक्स शेखर।'
'ओ.के. टेक केर अदिती।'

संजना कार लेकर पीक अप करने आए उससे पहले अदिती औैर आलोक प्रतीक्षा करते हुए लिविंग रूम में बैठे थे। अदिती ने ब्लैक कलर का स्किनी फीट मिड-राइस एंकल लेंथ जीन्स के उपर ऑफ व्हाइट एण्ड ब्लैक प्रिंटेड शर्ट पहना था, वहीं आलोक ने लाइट क्रीम कलर के ट्राउज़र के उपर डार्क मरून एण्ड ब्लैक प्रिंटेड टी-शर्ट के साथ ऑलिव ग्रीन कलर का डेनिम का जैकेट पहना था। अदिती आलोक की हेयर स्टाइल थोड़ी चेंज करके फोटोस क्लिक कर रही थी। वहीं थोड़ी देर में शेखर की मम्मी ने अदिती को फ्लैट की चाबी दी तब अदिती ने कहा, 'आंटीजी, हम डिनर करके ही आयेंगे। आपको कुछ चाहिए मार्केट से?'
'नहीं बेटा, लाना तो कुछ भी नहीं है, डिनर क्यूं बाहर, घर का खाना स्वादिष्ट नहीं है क्या?'
'अरे.. आपका बनाया खाना तो बिलकुल घर जैसा ही टेस्टी है आंटी, लेकिन बाहर जा ही रहे है तो सोचा कि चलो आज कुछ बाहर का टेस्ट करेेंगे।'
'अच्छा ठीक है। लेकिन, जाओगे कैसे?'
'आंटी वो मेरी फ्रेंड संजना, जाे कल यहां आई थी मेरे साथ, वाे आ रही है अपनी कार लेकर।'
'ठीक है बेटा, जरा संभलकर जाना शाम का टाइम है तो ट्राफिक होगा इसलिए। औैर खास तौर पर तुम्हारे हीरो को देखना किसी की नज़र न लगे।' बोलकर हंसने लगी..
'हा.. हा... हा... जी, आंटी हम निकलते हैं।'

अदिती फ्रंट सीट पर संजना के साथ बैठी औैर आलोक बेक सीट पर बैठा। अदिती ने पूछा, 'आलोक आर यू ओ.के.?'
'हां, लेकिन तुम यहां बैठो न मेरे साथ।'
'हा.. हा.. हा... अच्छा जी, जाे आपका हुकुम मेरे सरकार.. सॉरी संजना' ऐसा कहकर आलोक के साथ बेक सीट पर चली गई..
'अरे, अदिती इट्स ओ.के. यार। बोल कौनसी दिशा में जायेंगे। कुछ डिसाइड किया है क्या?' संजनाने पूछा।
'एक काम करते हैं संजना सब से पहले कोई फ्लावर शॉप की ओर कार ले लो। औैर राजा साहब की शाही सवारी के लिए म्यूजि़क सिस्टम स्लो औैर ए. सी. फूल ऑन करो।'
'जी, आपका हुकुम सर आंखों पर रानी साहिबा.. हा.. हा.. हा..'
थोड़ा आगे जाकर मैन रोड़ पर से लेफ्ट साइड के अंदर के रोड़ पर स्थित एक बड़ी सी फ्लॉवर शॉप के सामने संजना ने कार स्टॉप करते हुए कहा,
'अदिती तुम दोनों यहां खड़े रहो। मैं बेसमेंट में कार पार्क करके सिर्फ़ दस मिनट में आती हूं।'

पांच से सात मिनट में संजना आ गई तो तीनों शॉप में एंटर हुए तो अदिती ने आलोक से कहा,
'आलोक मेरा एक काम करो न। तुम मुझे मेरी चॉइस का एक अच्छा सा बुके ढूंढ के दो चलो।'
'लेकिन, मुझे उसमें कुछ समझ नहीं आता, हां।'
इसलिए एक मीठी सी डांट लगाते हुए अदिती बोली,
'अरे यार तो तुम्हें क्या समझ में आता है वाे बोलो तो? ऐसा नहीं चलेगा। बुके तो तुम्हें ही ढूंढकर देना पड़ेगा।'
थोड़ी देर तक तीनों ने एक दो चक्कर लगाए, येे देखकर एक सेल्सगर्ल ने अदिती के पास आकर पूछा,
'मॅडम, मे आई हेल्प यू?'
'नो थैंक्स।' अदिती ने जवाब देते हुए कहा।
अंत में आलोक खुद से अकेले शॉप में घूमकर अदिती को पसंद आए ऐसा कोई बुके ढूंढने की कोशिश करने लगा। शॉप के अंतिम छोर के कोने में रखा हुआ लेकर अदिती के पास आकर बोला,
'तुम्हें येे पसंद आयेगा?'
बुके देखकर अदिती ने पूछा,
'येे तुम्हें किसीने ढूंढकर दिया कि तुमने अपने आप ही पसंद किया?'
'नहीं, मैं खुद ही उस कॉर्नर से ढूंढकर लाया हूं।'
'तुम्हें यही बुके क्यूं पसंद आया आलोक?'
'मैने सब बुके देखें लेकिन येे मुझे ज्यादा पसंद आया इसलिए मुझे लगा कि तुम्हें भी पसंद आयेगा.... क्यूं तुम्हें पसंद नहीं आया?'
अदिती ने आलोक को एकटक बस देखती ही रही, बाद में आलोक के गाल खींचकर स्माइल के साथ बोली, 'अअअ.... ठीक है तुम्हें पसंद आया तो चलेगा।'
अदिती ने संजना को थम्प्स अप की मुद्रा दिखाकर इशारे से कहा..
'मिशन सक्सेसफुल।'
आलोक की चॉइस थी, मेरी गोल्ड फ्लावर का बुके।

कार में बैठने के बाद आलोक काफ़ी देर तक उस बुके को देखता ही रहा, येे देखकर अदिती ने पूछा, 'क्या देख रहे हो आलोक?'
'येे बुके तो मैंने..' इतना बोलकर अटक गया।
'येे बुके तो क्या आलोक?'
'पता नहीं।'
'ठीक है।'
संकरे रोड़ पर के भीड़ भरी ट्रैफिक में से धीरे धीरे कार संजना ने मैन रोड़ पर ले ली तभी अदिती के जीन्स के बेक पॉकेट में रखा हुआ आलोक का मोबाइल बज उठा। अदिती ने मोबाइल हाथ में लेकर देखा.. डिसप्ले पर पापा का नाम पढ़कर कुछ सेकंड्स सोचकर स्पीकर ऑन कर के आलोक को देकर बात करने को कहा.. औैर संजना को इशारे से थोड़ी थोड़ी देर में हॉर्न बजाते रहने को बोला,
'हेल्लो... आलोक'
'हेल्लो...' हॉर्न बजा।
'हां, बेटा कैसा है तू?'
'हेल्लो..'फिर से हॉर्न बजा।
'तू कहीं बाहर है?' अभी इन्द्रवदन आगे कुछ बोले उससे पहले ही अदिती ने आलोक के पास से मोबाइल लेकर बात की डोर अपने हाथ में लेते हुए बोली..
'हेल्लो.. अंकल नमस्ते, मैं अदिती बोल रही हूं। आलोक ड्राइविंग कर रहा है।'
'हेल्लो... कौन?'
'मैं अदिती, आलोक के साथ उसकी ऑफिस में ही जॉब करती हूं। मैंने अभी एक हफ्ते पहले ही जॉब ज्वॉइन की है इसलिए शायद आलोक ने मेरा परिचय आपको नहीं दिया होगा।'
'अच्छा अच्छा.. ठीक है मैं एक घण्टे बाद कॉल करूंगा।'
'जी, अंकल।'
कॉल का वार्तालाप पूरा होते ही कार की म्यूजि़क सिस्टम पर सॉन्ग प्ले हुआ।

"तु सफ़र मेरा.. है तु ही मेरी मंज़िल.. तेरे बिना गुज़ारा... एय दिल है मुश्किल"

सॉन्ग सुनते ही विन्डो का ग्लास नीचे कर के चेहरा बाहर निकालकर, 'उउउउउउ उउउउउउ......' की चिल्लाने की आवाज़ के कूदती हुई अदिती को देखकर आलोक के साथ साथ आसपास के ट्रैफिक मेें फंसे हुए लोग भी दंग रह गए।
ओओओओओओ... संजुउउउउ.... अरिजीत माय हार्ट बिट्स।

'ओ. ओ.. ओ.. अरिजीत दिवानी येे मेरे अननेसेसरी बज रहे हॉर्न औैर कार में बिना हॉर्न्स की भैंस को देखकर इस पब्लिक की हार्टबीट्स बढ़ गई है हां.. अब थोड़ी देर चुपचाप बैठ तो।' एसा ज़ोर ज़ोर से हंसते हंसते संजना बोली। मोबाइल में शेखर ने सेंड किया हुआ आलोक की ऑफिस का लोकेशन संजना को दिखाते हुए अदिती बोली, 'देखो अब इस दिशा में कार ले लो।'
आलोक की ऑफिस की बिल्डिंग से अब सिर्फ़ १० मिनट का अंतर बाकी रहा होगा तभी आलोक आश्चर्य से बाहर देखने लगा। कभी दाईं ओर तो कभी बाईं ओर औैर ऊंची ऊंची बहु मंजिला बिल्डिंग की ऊपर तक नज़र करने की आलोक की चेष्टा देखकर अदिती ने संजना को आंख मारकर आलोक को पूछा,
'आलोक, हम रास्ता भूल गए हैं अब क्या करेेंगे? तुम्हें कुछ समझ में आ रहा है हमें किस ओर जाना हैं?'
'एक मिनट देखो उधर.. उधर उस ओर सामने की साइड की रोड़ पर मैं कहूं ऐसे जाने दो।'
आलोक के इतना बोलते ही अदिती ने संजना को इशारा करके समझाया कि आलोक बोले उसका उल्टा करो। आलोक ने दी हुई दिशानिर्देश से रॉन्ग साइड में संजना ने कार टर्न की तो, आलोक ज़ोर से बोला, 'एएएएए.. उस ओर नहीं। क्या कर रहे हो? आप तो बिलकुल कुछ समझते ही नहीं हो तो, मैं क्या करूं अब?' बाद में अपने सिर पर हाथ दे मारा।
अदिती औैर संजना बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक पाई बाद में संजना ने पूछा,
'तो कौनसी ओर?'
'अरे वाे उस ओर जाना था, तुम दोनों एकदम मूर्ख जैसे हाे।'
'
हां, ओ. के. उस साइड लेकर जा रही हूं, बस। ऐसा बोलकर संजना ने कार आलोक ने बताई हुई दिशा की ओर मोड़ते हुए थोड़ी देर बाद पूछा,
'अब आगे किस ओर टर्न लू बोलो?'
मैप के अनुसार सर्च की हुई जगह अब सिर्फ़ दो मिनट की दूरी पर थी इसलिए संजना ने कार साइड में पार्क कर दी।
आलोक फिर से चारों ओर देखने के बाद सोच में पड़ गया इसलिए कार में से बाहर निकलकर कार की सामने की दिशा की ओर चलते चलते एक मल्टी स्टोरिड बिल्डिंग के मेईन गेट के सामने खड़े होकर अदिती औैर संजना दोनों को अपनी तरफ़ आने के लिए हाथ ऊंचा करके इशारा किया।
अदिती औैर संजना दोनों ने हाथ मिलायेे। अदिती बहुत खुश थी उसका प्लान सफ़ल होने जा रहा था।

समय था शाम के ७:५५
कार लॉक करके दोनो आलोक के पास आए तब आलोक में कहा, 'चलो।'
'कहां?' अदिती ने पूछा।
मैंने देखा है रास्ता हमें जहां जाना है वहां का।'
'तुम्हें पता है हमें कहां जाना है?'
'हां, मुझे याद है, अब चलो जल्दी मेरे पीछे पीछे नहीं तो तुम दोनों फिर से गुम हो गई तो मुझे मुश्किल हो जायेगी।'
'ओह... ऐसा है आलोक तो तो चलो चलो हमे फिर से गुम होना महंगा पड़ सकता है, तो जल्दी जल्दी चलो मेरे बाप।'
अदिती इतना बोली औैर बाद में दोनों खूब हंसे।

लिफ्ट में तीनों एंटर होने के बाद... संजना ने फ्लोर नंबर के लिए आलोक को पूछा तो आलोक थोड़ा उलझन में पड़ गया। याद करने के लिए बहुत देर तक सोचा लेकिन.. कुछ भी नहीं सूझा इसलिए अदिती ने ९ नंबर पर इशारा किया तो आलोक खुश होते हुए बोला, 'एएए... देखो मैंने कहा था न कि, हां, यही कि ९ नंबर।'
अदिती ने एंटर होते ही लिफ्ट के कॉर्नर पर फ्लोर लिस्ट पर नज़र डालकर नोट कर लिया था।

९ वें माले पर अभी तो लिफ्ट का डोर ओपन होते ही अदिती का हाथ पकड़कर एकदम से आलोक दोड़कर अपनी ऑफिस की ओर ले जाकर एंटरेंस के पास खड़ा रहा इतने में वहां ड्यूटी पर का सिक्योरिटी गार्ड बोला,
'सलाम आलोक साहब।'
बस.. इतना सुनते ही अदिती के आंखों में से आंसु गिर पड़े। अदिती अपने इमोशन्स पर काबू नहीं कर सकी। वाे एक तरफ़ चली गई।

'साब जी आप कैसे हैं? काफ़ी दिनों से ऑफिस भी नहीं आ रहे हैं? औैर अभी तो ऑफिस क्लोज़ हो गया। कुछ काम था क्या? मगर अभी तो कोई नहीं है ऑफिस में? बहुत दिनों बाद आलोक को देखकर खुश होते हुए सिक्योरिटी गार्ड ने पूछा।
आलोक जवाब देने के लिए कुछ सोच रहा था लेकिन उससे पहले संजना ने जवाब देते हुए कहा,
'वाे हमें ऑफिस दिखाने लाए हैं। बस ऐसे ही। ठीक है। हम चलते हैं शुक्रिया।'
सिक्योरिटी गार्ड को कुछ ठीक नहीं लगा तो मन ही मन में बोला.. 'कुछ समझ में नहीं आया।'
संजना ने अदिती को सांत्वना देते हुए कहा, 'अदिती प्लीज़ कंट्रोल योरसेल्फ। चल हम नीचे कार में बैठते हैं। संजना ने अदिती को आग्रह करते हुए पानी पिलाया और आलोक को भी पानी के लिए पूछा लेकिन आलोक ने कॉफी पीने की इच्छा जताई इसलिए किसी अच्छे कॉफी शॉप में जाकर शांति से बैठने का सोचते हुए संजना ने कार आगे बढ़ाई तब अदिती बोली, 'संजना हम पहले एक काम करते हैं, सब से पहले मैं तुम्हें आलोक के फ्लैट का जाे लोकेशन भेजू उस ओर कार ड्राइव करो। औैर अभी हमने किया ऐसे ही सेम सिचुएशन के माफिक, ओ.के.'

फासला करीब १२ से १५ मिनिट्स का था, लेकिन ट्रैफिक की वजह से फ्लैट पर पहुंचते करीब मिनिमम २० मिनिट्स का समय निकल जाए ऐसा था इसलिए अदिती ने आलोक से पूछा,
'आलोक वो भाईसाहब कौन थे?'
'वाे मुझे पहचानता है। ले, आप लोगों ने सुना नहीं उसने मुझे बोला कि, 'सलाम आलोक साब।'
'हां, लेकिन वो कौन था?'
'वाे मुझे नहीं पता।'
'हम कौन सी जगह पर गए थे अभी पता है?'
'हां, वहां तो मैं एक बार गया था इसलिए मुझे पता ही होगा न, लो आप तो एकदम कैसी बात कर रहे हो।'
कब तक तो अदिती आलोक को देखती ही रही और तभी म्यूजि़क सिस्टम पर सॉन्ग प्ले हुआ....

"अपनी मर्ज़ी से कहां अपने सफ़र के हम है..
रुख हवाओं का जिधर का..."
सॉन्ग बजते ही अदिती ने आलोक के कंधे पर सिर रखकर आंखें बंद कर ली।

दस मिनट बाद..
'अदिती.... नाउ जस्ट फाइव मिनट्स लेफ्ट।'
संजना बोली
'प्लीज़, स्पीड थोड़ी स्लो करो।'
'आलोक, तुम्हें कॉफी पीनी है न तो हम कहां जायेंगे कॉफी पीने के लिए?'
८:२५ रात का समय था टू अदिती को लगा कि आलोक को दिशा समझ में नहीं आ रही इसलिए उसने संजना को कार थोड़ी आगे ले जाने के लिए कहा।
आलोक ने कहा, 'खड़े रहो। कार पीछे ले लो।'
कार को मैप की दिशा निर्देश से उल्टी दिशा की ओर ले जाने को कहा, संजना ने सोचा कि शायद कोई शॉर्ट कट होगा एसा मानकर उसने आलोक की दिशा निर्देश अनुसार कार ड्राइव की औैर दो ही मिनट्स में उसके फ्लैट के बिल्डिंग की बेक साइड पर पहुंच गए।
अदिती आलोक के गले लगते हुए बोली, 'आज तो कॉफी पिलानी नहीं है लेकिन कॉफी से नहलाना ही पड़ेगा।'

सोसायटी के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित कॉमर्शियल शॉप्स की लाइन में कॉर्नर आई हुई एक फास्ट फूड ज़ोन में तीनों बैठे औैर कॉफी का ऑर्डर देने के बाद अदिती को संजना ने पूछा कि, 'एनी टाइम आलोक के डैड का कॉल आ गया तो?'
अदिती सोचने लगी। फिर बोली, 'हहहहहहममममम.... एक काम करो फटाफट काउन्टर पर जाकर काग़ज़ औैर पेन लेकर आ जाओ।'

आलोक को समझाते हुए कहा कि, 'काग़ज़ में जिस लाइन पर उंगली रखु वो लाइन तुम्हें बोलने की ओ. के. समझ गया मेला बाबू।

जल्दी से काग़ज़ पर एक के बाद एक मुद्दे अदिती ने लिखने के बाद आलोक के पास से ठीक से पढ़वा लिए औैर जांच करने के बाद फोन का स्पीकर ऑन करके इन्द्रवदन को कॉल लगाया।

'हेल्लो.. पापा कैसे हैं? पापा अभी ऑफिस में बहुत काम रहता है इसलिए कभी कभी कॉल नहीं कर पाता। कहां पहुंचे आप?'

'हम ठीक है। हम दिल्ली पहुंच गए हैं।'
इन्द्र वदन ने जवाब में कहा।
'पापा अपने दोनों का खयाल रखना। मेरी चिंता मत कीजिएगा।'
'मम्मी को फोन दीजिए।'
'हां, आलोक कैसा है तू?'
'मैं ठीक हूं। मेरी चिंता मत करना। आराम से जात्रा करके वापस आओ बाद में मैं घर आऊंगा। अभी सब साथ में हैं औैर बाहर हैं इसलिए सही से बात नहीं हो पायेगी। मैं कल आराम से कॉल करूंगा तब शांति से बात करेंगे। ओ. के. रख रहा हूं।'

इन्द्रवदन ने सरोज से पूछा, 'येे आलोक क्यूं इतना जल्दी बात कर रहा था?'
सरोज बहन बोले, 'होगा कोई काम। बोला तो कल शांति से कॉल करेगा।'

कॉफी पीने के बाद फ्लैट पर जाकर आलोक का थोड़ा जरूरी सामान लेकर शहर की वेल नोन चाइनीज रेस्टोरेंट में आराम से डिनर खतम करने के बाद ९:४० बजे संजना दोनों को ड्रॉप करके घर जाने के लिए रवाना हो गई।

१०:१० बजे शेखर ने आलोक के रूम में आकर देखा तो बेड पर पांव पसार कर अधलेटे आलोक से पूछा,
'बोलो राजकुमार, कहां सवारी कर के आए आज आप?'
'मैंने आज अदिती के लिए वाे फूल लिए'ऐसा बोलकर टिपोई पर रखे हुए बुके की ओर शेखर का ध्यान खींचा।
'येे तुने सिलेक्ट किया?'
'हां, बाद में अदिती रास्ता भूल गई थी, दो बार। वाे तो बाद में मैंने रास्ता दिखाया औैर पापा के साथ साथ बात भी करी और कॉफी भी...' आगे बोले उससे पहले ही अदिती ने रूम में प्रवेश किया।
शेखर बोला, 'अदिती आज तो येे राजकुमार काफ़ी फॉर्म में है। ऐसा तो क्या जादू किया ज़रा मैं भी तो जानू।'
घर से निकलकर वापस आने तक का पूरा घटनाक्रम अदिती ने विस्तार से शेखर को कह सुनाया।
शेखर कुछ पूछने ही जा रहा था कि तभी.. विक्रम मजुमदार, अदिती के डैडी का कॉल आ गया तो अदिती ने शेखर से कहा, 'प्लीज़ मैं बात कर लू बाद में हम आराम से बात करते हैं।'

'हेल्लो.. पापा..'
'हाय.. माय स्वीट गर्ल। हाऊ आर यू डियर?'
'डिनर डन?'
'यस पापा, हाऊ आर यू एण्ड मॉम?'
'वी बोथ आर टोटली फीट एण्ड फाइन। एवरीथिंग इज़ ऑल राईट?'
'यस पापा।'
'हाऊ इज़ इम्प्रूवमेंट?'
'पापा मच बैटर थेन एक्सपेक्टेशन।'
'व्हाट इज़ धी प्रिज़मशन? व्हाट डू यू थिंक? हाऊ लॉन्ग विल इट स्टिल बी?'
'पापा, धी ऑल इंडीकेशन इन अवर फेवर। आई थिंक धी रिज़ल्ट मे बी कम ऑलमोस्ट विधिन ए वीक। लेकिन पापा वाे अब...'
इतना बोलते ही अदिती का गला भर आया इसलिए...
'सॉरी पापा आई विल कॉल यू बेक आफ्टर १० मिनट्स।' इतना बोलकर हथेली में मुंह दबाकर रोने की आवाज़ को दबाने की कोशिश करते हुए बाल्कनी में चली गई।

आगे अगले अंक में....


© विजय रावल
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