Apne-Apne Karagruh - 18 in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | अपने-अपने कारागृह - 18

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अपने-अपने कारागृह - 18

अपने अपने कारागृह -18

उषा परंपरा से लौटी तो मन बेहद उदास था । अजय किसी काम से बाहर गए हुए थे अतः उसने उमा के घर जाने का निश्चय किया । वह उमा के घर गई । दरवाजा खुला देखकर उसने पहले बाहर से आवाज लगाई । कोई उत्तर न प्राप्त कर उसने अंदर प्रवेश किया । उमा को सोफे पर आंख बंद किए बैठे पाया । सदा प्रसन्न रहने वाली उमा का यह रूप देख कर उषा को आश्चर्य हुआ । उसने आगे बढ़ कर उन्हें आवाज लगाई । इस बार चौंककर उमा ने आँखें खोली । उनकी आंखों में आँसू देख कर उसने चिंतित स्वर में पूछा, ' क्या बात है उमा ? सब ठीक तो है ना । '

उमा को निःशब्द बैठा देखकर उषा ने पुनः पूछा , 'तुम्हारे हाथ में यह क्या है ?'

उषा ने अपने हाथ में पकड़ा फोटो उसके सामने कर दिया एक सुंदर सी लड़की का फोटो था । उसे देखकर उषा ने पूछा, उमा, यह किसका फोटो है यह मेरी बड़ी बेटी नीता का फोटो है ?'

' नीता का.. ।'

' पर उसके बारे में आपने कभी बताया नहीं ।'

' क्या बताती, नीता नहीं रही । आज उसकी पुण्यतिथि है ।'

' पर कैसे ?'

' बहुत लंबी कहानी है । नीता हमारे प्रेम की पहली निशानी थी । वह घर भर में सबकी दुलारी थी । किशोरावस्था में प्रवेश करते ही उसके दादा- दादी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी । नीता तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं थी । उसका बार-बार यही कहना था की उसे अभी और पढ़ना है पर सासू माँ का कहना था कि ज्यादा पढ़ लिख कर क्या करेगी ? हमें नौकरी तो करवानी नहीं है । यहां तक कि रमाकांत और मेरा विरोध भी काम नहीं आया । उन्होंने उसका विवाह तय कर दिया । अच्छा खाता पीता परिवार था । घर वर भी अच्छा था । पुश्तैनी बिजनेस था । मन मार कर हमने विवाह कर दिया । हफ्ते भर पश्चात जब नीता पगफेरे के लिए घर आई तो उसका बुझा चेहरा देखकर मन बैठ गया । पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा,' नीरज बहुत शराब पीते हैं ।'

' अरे यह तो बड़े घरों का शौक है । 'सुनकर सासू मां ने कहा था ।

' मैं सासू मां को कुछ नहीं कह पाई थी क्योंकि उनकी बात को काटना सांप के बिल में हाथ डालने जैसा था पर महीने भर पश्चात दोबारा आई बेटी को देखकर मन का बांध टूट गया । इस बार नीता को दहेज में कार न देने के विरोध में भेजा गया था । बेटी की खुशी के लिए रमाकांत में लोन लेकर कार का प्रबंध किया पर उसके पश्चात भी उसके दुखों का अंत नहीं हुआ । उसे किसी न किसी बात पर प्रताड़ित किया जाता रहा । उसे फोन करने की भी मनाही थी । एक बार उसने अपनी दर्द भरी दास्तां चिट्ठी में लिखकर चुपके से नौकरानी को देकर पोस्ट करा दी । चिट्ठी क्या थी मानो खून से लिखी इबारत हो । पढ़कर रमाकांत नीता से मिलने गए पर उसके ससुराल वालों ने उन्हें उससे मिलने के लिए मना कर दिया । तब रमाकांत ने दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए कानूनी कानूनी नोटिस भिजवाने की धमकी दी । तब वे लोग नर्म पड़े तथा नीता को उनके साथ भेजने को तैयार हो गए । नीता के चेहरे की चमक गायब हो गई थी । आँखें अंदर धंस गई थीं । हाथ जैसे पत्थर बन गए थे । वह उसे अंक में लेकर बहुत देर तक रोती रही थी पर नीता की आंखों के आँसू सूख गए थे । वह बार-बार बस एक ही वाक्य दोहरा रही थी... 'ममा अब मैं उस घर में वापस नहीं जाऊंगी ।'

माँ बाबूजी उसका हाल देखकर दुखी तो थे पर उनका यही कहना था हो सकता है कि अपनी नीता ही एडजस्ट कर पा रही हो । ऐसे ही कोई रिश्ता थोड़े ही टूट जाता है । समझौता तो करवाना ही होगा। पूरी जिंदगी लड़की को घर पर बिठा कर तो नहीं रखा जा सकता पर मेरा और रमाकांत का एक ही मत था कि अगर नीता नहीं जाना चाहती तो हम उसे नहीं भेजेंगे । एक दिन नीता का पति नीरज अपने मम्मी-पापा के साथ आया । रमाकांत तो उससे बात ही नहीं करना चाहते थे पर जब उन्होंने क्षमा मांगी तथा आगे किसी शिकायत का मौका न देने की बात कही तब रमाकांत ने कहा, ' मैं अपनी बेटी पर दबाव नहीं डालूंगा ,अगर वह जाना चाहेगी तभी उसे भेजूंगा ।'

तब नीरज ने नीता से बात करने की इजाजत चाही । हमने उसे इजाजत दे दी । हमारी नीता नीरज की भोली भाली बातों में आ गई तथा वह उसे एक मौका और देने के लिए तैयार हो गई है । हमने भरे मन से उसे विदा किया बस यही हमारी गलती थी ।' कहकर उमा फूट-फूटकर रोने लगी ।

' स्वयं को संभालिए उमा जी ।'

' संभाला ही तो नहीं जाता उषा… उसकी हर पुण्यतिथि पर उसकी याद मुझे बहुत बेचैन कर देती है । कैसी माँ हूँ मैं , जिसने अपने ही हाथों अपनी फूल सी बच्ची को उन कसाईयों के हवाले कर दिया । मैं नीरज की चिकनी चुपड़ी बातों में पता नहीं कैसे आ गई थी । शायद एक माँ के मन में इस रिश्ते को एक मौका और देने की आस जग गई थी पर ऐसा ना हो सका । महीना भर भी नहीं हुआ था कि हमें सूचना मिली की नीता ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली है ।'

' पर क्यों ?'

' यह आज भी हमारे लिए पहेली है क्योंकि इस घटना के दो दिन पूर्व उससे बात हुई थी तब वह सहज थी । शायद वह हमें अपनी परेशानी बताकर और परेशान नहीं करना चाहती थी लेकिन उसने सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें लिखा था कि मैं आत्महत्या कर रही हूँ । हमने एफ .आई .आर. दर्ज करवाई पर कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने सब मैनेज कर लिया था । सुसाइड नोट नीता के हाथ का ही था पर मेरा मन नहीं मानता कि मेरी बच्ची ने आत्महत्या की होगी … मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी बच्ची ऐसी कायराना हरकत नहीं कर सकती । वह जिंदगी से लड़ सकती थी पर पलायन हरगिज नहीं कर सकती थी । सुसाइड नोट उसे डरा धमका कर भी लिखवाया जा सकता था । कितनी तड़पी होगी मेरी नाजुक बच्ची उस समय ।' कहकर उमा सुबकने लगी थी ।

उषा समझ नहीं पा रही थी कि वह कैसे उमा को सांत्वना दे । अजीब विडंबना है हमारी समाज की... कभी-कभी हम बच्चों की भावनाओं की भी परवाह नहीं करते । सब कुछ जानते हुए भी हम रिश्तों को जोड़े रखने में बहुत कुछ इग्नोर करने का प्रयत्न करते हैं । हमारी यही चाह बच्चों का मनोबल तोड़ देती है और वे इस तरह के अतिवादी कदम उठा लेते हैं और माता पिता ताउम्र अपनी गलती पर पश्चाताप करने के लिए विवश हो जाते हैं ।

' उमा जो हो गया उसे लौटाया नहीं जा सकता पर कोशिश यह होनी चाहिए कि इंसान अपनी गलतियों से सबक ले ।' उषा ने उमा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।

'तुम ठीक कह रही हो उषा । इस घटना के पश्चात हमने एक निर्णय लिया था कि हम अपनी दूसरी बेटी श्रेया का विवाह उसके आर्थिक रूप से सक्षम होने पर ही करेंगे । सबसे बड़ी बात माँ बाबूजी भी हमारी इस बात से सहमत हो गए थे । 'उमा ने स्वयं को स्थिर करते हुए कहा ।

सच दुख की कोई सीमा नहीं है । हंसना बोलना कर्म करना हर इंसान की नियति है पर यह भी सच है कि संसार में आया हर किरदार अपने -अपने हिस्से के सुख- दुख झेल रहा है ।

सुधा आदेश

क्रमशः