360 degree love - 7 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 7

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360 डिग्री वाला प्रेम - 7

७.

पुराना लखनऊ… एक खोज

नक्खास बाजार… लखनऊ के रविवार के कबाड़ी बाज़ार का पता है. नक्खास से याहियागंज तक सडक के इर्द-गिर्द बेहतरीन बंद शटर के दुकानों के बाहर की जगह पर कब्जा कर फ़ैली हुई तथाकथित खुली दुकानों में सूई से लेकर हवाई जहाज के पुर्जे और विदेशी चिड़ियाओं से लेकर जहरीले सांप तक की संरक्षित प्रजातियाँ, या फिर किसी भी मोटर गाडी अथवा इलेक्ट्रिक बोट के इंजन को खोजना कोई मुश्किल काम नहीं है. बस एक तरह का जूनून हो आपके पास और पारखी नज़र. पर एक बात और समझने की है कि अगर इन पटरी दुकानदारों को यह लगा कि आपको बेहद जरूरत है इस सामान की, तो निश्चित रूप से फिर वह सामान इतना महंगा हो सकता है कि आपके बजट से बाहर ही हो जाए, नहीं तो उनको कौड़ियों के दाम में मिला हुआ है वह सामान.

तीनों लोग पहुँच चुके थे नक्खास. दो बाइक पर आये थे वह, आरव अकेले और देव-भूमि एक साथ हॉस्टल से. पुराने लखनऊ के इस कबाड़ी बाज़ार, और सवेरे से ही मांस-मछली की गंध, जगह-ैजगह सजी मीट की दुकानों से बचते-बचाते, नाक में टुंडे बिरयानी के लोकल वर्ज़न और मसालों की तैरती खुश्बूओं और कुछ पेट्रोल-डीजल की गंध के साथ मोटर साइकिल-स्कूटरों,साइकिल, रिक्शा, टेम्पो, मोटर-कार, हाथ-ठेला, और कुछ मीडियम टाइप के लोडर ट्रकों की भीड़, जाम से जूझते पैदल लोगों, ख़ास कर टोपी लगाए और दाढ़ी रखे, या फिर बुर्कानशीं महिलाओं से बचते हुए दो घंटे की खोजबीन के बाद उन लोगों ने सफलता के सोपान हासिल कर ही लिए.

मौलवी गंज का क्षेत्र आरव के घर से अपेक्षाकृत नज़दीक था, इसलिए यह सुविधाजनक भी था कि वह ही इसे क्रय कर अपने गैराज में रखे. मंगलवार से चारों को आरव के घर पर ही अस्थायी वर्कशॉप बनानी थी.

 

भूमि को जल्दी थी, और आसपास कोई बैठने की अच्छी जगह भी नहीं थी, इसलिए चाय-काफी का कार्यक्रम कैंसल ही रहा. वह लोग सीधे निकल लिए हॉस्टल के लिए. हालांकि तब तक लंच का समय हो चुका था, पर भूमि किसी हालत में इस माहौल में कुछ खाना तो दूर पानी पीने को भी तैयार नहीं थी.

 

“पर एक-प्लेट वेज कबाब और थोड़ी चाय तो ले सकती हो न तुम ?”,

 

बहुत जोर देकर कहा देव ने, लेकिन भूमि ने इस तरह से कानों को हाथ लगाया कि आरव जोर से हंस पडा. बोली,

 

“यहाँ कुछ भी वेज है क्या? लगता है पानी में भी नॉन-वेज घुल कर शामिल हो गया है!”,

 

देव भी धीमे से हंसा उसकी बात पर, पर भीतर से वह वाकई में उदास हो गया था. उसको यूँ भी भूख कुछ ज्यादा ही लगती थी.

 

आखिरकार एक ऑटो में सामान रखवाकर आरव उसके आगे-पीछे चला. वह लोग लिंब सेण्टर के सामनेे लाल पुल से वाया डालीगंज कॉलेज हॉस्टल के लिए निकल लिए.

०००००