Mission Sefer - 21 - last part in Hindi Moral Stories by Ramakant Sharma books and stories PDF | मिशन सिफर - 21 - अंतिम भाग

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मिशन सिफर - 21 - अंतिम भाग

21.

काम में व्यस्त नुसरत को अचानक याद आया कि राशिद को दवा देने का वक्त हो चला था। उसने हाथ का काम छोड़ा और तौलिए से हाथ पौंछते हुए वह राशिद के कमरे की तरफ चल दी। शाम कब की बीत चुकी थी। रात धीरे-धीरे अपने पर फैला रही थी। उसने सोचा दोपहर का सोया राशिद उठ चुका होगा।

दरवाजा खोल कर जब वह कमरे में पहुंची तो उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि राशिद अभी तक सोया हुआ था। नींद इतनी गहरी थी कि उसके एक-दो बार पुकारने पर भी वह उठा नहीं, बस कसमसाकर फिर से सो गया। वह सोचने लगी, राशिद की दवा का वक्त हो रहा था, उसे उठाए या नहीं। बेहतर रहेगा उसे आराम करने दे। दवा वह खाने के बाद दे देगी।

वह जाने के लिए मुड़ी ही थी कि उसने सुना राशिद नींद में कुछ बड़बड़ा रहा था। शायद वह कोई सपना देख रहा था। उसकी अस्फुट सी बुदबुदाहट को उत्सुकतावश नुसरत कान लगाकर सुनने का प्रयास करने लगी। उसकी तेज होती बुदबुदाहट कुछ ही प्रयास से नुसरत को समझ में आने लगी। वह जो कुछ सुन पा रही थी, उससे उसकी हैरत बढ़ती जा रही थी और परेशानी उसकी पेशानी पर उभरती आ रही थी। राशिद कह रहा था –

“या अल्लाह, मुझे सही रास्ता दिखा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि हिंदुस्तान में मुसलमानों के बदतरीन हालात के बारे में जो कुछ मुझे मेरे मुल्क में बताया-समझाया गया था, वह सही है या फिर यहां आकर मैं जो अपनी आंखों से देख रहा हूं, वह सच है। मेरे अल्लाह, मेरी नसों में काफिरों का खून बह रहा है, उन्होंने एक मुसलमान की जान बचाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। वे न होते तो शायद मैं आज जिंदा नहीं होता। मेरे मौला, अब्बू और नुसरत मुझे अपना समझते हैं और मुझे भरपूर प्यार देते हैं। अगर उन्हें इस बात की भनक भी लग गई कि एक पाकिस्तानी उनके घर में रह रहा है, जिसका मकसद उनके मुल्क में तबाही मचाना है तो पता नहीं, वे मेरे साथ कैसा सुलूक करेंगे। बस, कुछ ही दिनों की बात है जब सब जान जाएंगे कि मैं यहां क्यों आया था। मेरे मालिक, मुझे बता, अपने मज़हब और वतन के लिए हिंदुस्तान में तबाही फैलाना तेरे नजदीक गुनाह है या सवाब..............।

राशिद की बुदबुदाहट अचानक थम गई थी। नुसरत सकते की हालत में खड़ी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह चीखे, चिल्लाए, रोए या हंसे। उसे चक्कर सा आने लगा था। उसके पैर कांप रहे थे। वह सिर पकड़ कर वहीं पड़ी कुर्सी पर धम्म से बैठ गई। तभी राशिद हड़बड़ा कर उठ बैठा था। नुसरत को सिर पकड़े चुपचाप बैठे देखकर उसने पूछा था – “क्या हुआ नुसरत? तबीयत तो ठीक है?”

नुसरत खुद पर जब्त नहीं रख सकी थी और चिल्ला कर बोली थी – “आप इतने फरेबी और धोखेबाज हो सकते हैं, यह तो मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकती थी।“

राशिद का दिल दहलने लगा था, तो क्या उसका भेद खुल चुका है? पर कैसे?, उसने पूछा था – “हुआ क्या है, मुझे बताओगी नहीं तो मैं समझूंगा कैसे?”

“बोलो, आप पाकिस्तान से हमारे मुल्क में तबाही फैलाने आए हो ना?”

“............ये आप क्या कह रही हैं नुसरत?”

“मैंने खुद अपने कानों से सुना है। नींद में आपने कहा कि आप पाकिस्तानी हैं और आपका मकसद इस मुल्क में तबाही मचाना है।“

अवाक राशिद कुछ कहने की कोशिश करने लगा, पर उसके मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। बड़ी मुश्किल से उसने कहा था – “नींद में तो शख्स कुछ भी बड़बड़ाता है, वह सही होता है क्या? हम सपना देख कर उठते हैं तो क्या वह सब सच होता है।“

“आप तो बहुत अल्लाहवाले हैं ना, तो अल्लाह को हाजिर-नाजिर रख कर उसकी कसम खाकर बताओ कि आप पाकिस्तानी नहीं हैं और हिंदुस्तान में दहशतगर्दी के लिए नहीं आए हैं।“

राशिद से कुछ बोलते नहीं बन पड़ा था। उसने कहा था – “मेरी बात समझने की कोशिश करो नुसरत..........।“

“मुझे कुछ नहीं सुनना राशिद। आपने सोच भी कैसे लिया कि यह सब जानने के बाद मैं और अब्बू आपको बख्श देंगे। आप इस मुल्क के दुश्मन हो और भेष बदल कर दुश्मनी निभाने के लिए आए हो। धिक्कार है आपको।“

“मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, अपने वतन और मज़हब के लिए कर रहा हूं नुसरत।“

“मज़हब के लिए कर रहे हो? शर्म नहीं आती आपको यह कहते हुए? आप जैसे लोगों ने ही इस्लाम को बदनाम किया हुआ है। मुसलमान तो हम भी हैं, हमें तो कभी यह नहीं लगा कि इस्लाम के नाम पर दहशतगर्दी होनी चाहिए.... काफिरों ने तो अपने मज़हब के नाम पर दहशतगर्दी को सवाब का बुरका नहीं पहनाया।“

“मेरी बात तो सुनो नुसरत...।“

“मेरा नाम मत लो अपनी जुबान से। सबकुछ बर्दाश्त है, पर अपने मुल्क के साथ गद्दारी नहीं। आपको अपने घर में रखना अनजाने में अपने मुल्क से गद्दारी करना ही तो है। क्या समझते हैं आप कि अब भी इस घर में रह लेंगे। मैं आपसे गुजारिश करती हूं कि अपना सामान लेकर तुरंत यहां से निकल जाएं और अपने मुल्क चले जाएं। अब्बू को पता चलेगा तो वो सबसे पहले पुलिस को खबर करेंगे।“

राशिद चुपचाप खड़ा रहा तो नुसरत का पारा चढ़ गया – “चले क्यों नहीं जाते यहां से? मैंने बिना कुछ जाने-समझे तुमसे मोहब्बत की है। इसलिए कहती हूं, ना तो मैं आपको अपने मकसद में कामयाब होने दूंगी और ना ही आपको पुलिस के शिकंजे में देख सकूंगी। अल्लाह के वास्ते अपना मकसद भूल कर चले जाओ यहां से........।“

“राशिद ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि नुसरत रोने लगी थी और हिचकियां भरते हुए बोली थी – “राशिद, मैं आपसे भीख मांगती हूं, पुलिस आए उससे पहले ही यहां से चले जाइये। खुदा का वास्ता है आपको, इतने दिन इस मुल्क में रहे हैं, यहां का नमक खाया है और जिंदा रहने के लिए यहां के लोगों का खून अपने जिस्म में भरा है, भूल जाओ इस मुल्क में तबाही फैलाने की बात और अपने मुल्क वापस लौट जाओ।“

राशिद के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। उसे यकीन था कि अब्बू इस बात का पता चलते ही तुरंत पुलिस बुला लेंगे। फिर वह कहीं का भी नहीं रहेगा। वह यंत्रवत अपना सामान समेटने लगा। नुसरत मुंह में दुपट्टे का पल्लू दबाए हिचकियां भर कर रोए जा रही थी और राशिद को अपना सामान समेटते देख रही थी।

तभी खुली खिड़की की सलाखों के बीच से एक हाथ अंदर आया। उस हाथ में पकड़ा रिवाल्वर कमरे में जलते बल्व की रोशनी में चमक रहा था। जब तक वे कुछ समझ पाते उस शख्स ने यह कह कर अपने साइलेंसर लगे रिवाल्वर से राशिद पर गोली चला दी कि सारा राज बाहर आ गया है और अब उसका मर जाना ही बेहतर है। गोली मार कर वह बाहर के अंधेरे में तेजी से गायब हो गया था।

गोली लगते ही राशिद जमीन पर गिर पड़ा था। उसे गोली लगते और जमीन पर गिरते देख नुसरत जोर से चीखी थी। उसकी चीख सुनकर अब्बू भागते हुए वहां पहुंचे थे। उन्होंने घबराए स्वर में पूछा – “क्या हुआ नुसरत?”

“अब्बू देखो, किसी ने खिड़की के बाहर से राशिद पर गोली चला दी है और भाग गया है।“

“क्या कह रही हो तुम? मैंने तो गोली की आवाज नहीं सुनी।“

“मैंने खुद उस शख्स को गोली चलाते और भागते देखा है। मुझे नहीं पता अब्बू गोली चलने की आवाज क्यों नहीं आई? पर छोड़ो इस मसले को, पहले आप राशिद को देखो, वे जमीन पर गिरे पड़े हैं।“

अब्बू ने देखा राशिद वाकई जमीन पर गिरा पड़ा था। वे बुरी तरह घबरा गए। हिम्मत जुटाकर उन्होंने राशिद की नब्ज देखी, उसकी नब्ज चल रही थी और वह सांस ले रहा था। उन्होंने राशिद से पूछा – “ठीक तो हो राशिद?”

“हां, शायद गोली कमर को छीलती हुई निकल गई है। अल्लाह का फजल है, आप लोग चिंता न करें।“

“कैसे चिंता नहीं करें, मैं अभी डाक्टर मेहता को बुला कर लाता हूं और पुलिस को खबर करता हूं।“

“नहीं अब्बू, पुलिस को खबर न करें।“

“क्यों नहीं करें? कोई लुटेरा घर के अंदर आपको गोली मार कर भाग जाता है और पुलिस को इत्तला भी न दी जाए। ऐसा कैसे हो सकता है?

“जाने भी दो अब्बू कोई लुटेरा होगा, भाग गया। अभी तो हमें राशिद को संभालना है” – नुसरत ने कांपती आवाज में कहा।

“ठीक है, मैं डाक्टर मेहता को बुलाकर लाता हूं।“

अब्बू ने राशिद को उठकर बैठने में मदद की और उसे खाट पर लिटाकर डाक्टर मेहता को बुलाने चले गए। नुसरत ने देखा कि बांई तरफ कमर में पसलियों के नीचे एक घाव सा बन गया था, जिसमें से खून बाहर छलक रहा था। वह भाग कर गीली पट्टी ले आई। उसने गीली पट्टी राशिद के घाव पर बांध दी और कहा - “जब तक डाक्टर साहब आते हैं, आप चुपचाप लेटे रहें।“

उसके लेटते ही नुसरत ने सबसे पहला काम खिड़की बंद करने का किया। उसका पूरा शरीर अभी भी कांप रहा था और वह खुद पर काबू करने की कोशिश कर रही थी।

डाक्टर मेहता ने आते ही राशिद के घाव का मुआयना किया और इस बात पर खुशी जाहिर की कि घाव गहरा नहीं था, बस गोली कमर को छूती हुई निकल गई थी। उन्होंने पट्टी बांधते हुए कहा – “हमारे मोहल्ले में कभी किसी लुटेरे बदमाश की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वह किसी को गोली मार कर भाग जाए। वो तो भगवान की कृपा है कि ज्यादा कुछ नहीं हुआ, अगर गोली थोड़ी भी ऊपर-नीचे लगती तो कुछ भी हो सकता था। मैं समझता हूं पुलिस को तुरंत इसकी खबर कर देनी चाहिए ताकि आगे से ऐसी कोई वारदात न हो सके।“

“नहीं डाक्टर अंकल, हम पुलिस के पचड़े में नहीं पड़ेंगे। कौन बार-बार थाने और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटता रहेगा। राशिद को भी पुलिस खामख्वाह परेशान करती रहेगी। अल्लाताला का शुक्र है कि उसे कुछ भी नहीं हुआ है। आपसे भी इल्तिजा है कि इस बारे में किसी और से कोई जिक्र न करें, नहीं तो बेकार में ही लोगों में डर फैल जाएगा और हमारे यहां लोगों की भीड़ लग जाएगी। किस-किस को जवाब देते रहेंगे हम। प्लीज डाक्टर अंकल, हमें इन सब तकलीफों से बचा लीजिए, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूं।“

डाक्टर मेहता ने हैरानी से नुसरत की तरफ देखा था। अब्बू भी चुपचाप खड़े थे और नुसरत की बात से सहमत नजर आ रहे थे। वे थोड़ी देर कुछ सोचते रहे फिर उन्होंने अपने बैग से दवाई निकाल कर नुसरत को देते हुए कहा – “मेरी तो अभी भी राय है कि पुलिस को खबर कर देनी चाहिए। बाकी आप लोगों की मर्जी।“

अब्बू डाक्टर को बाहर छोड़कर लौटे तो नुसरत ने राशिद से कहा – “अब्बू को आप सबकुछ बताएंगे या फिर मैं बताऊं?”

“ हुआ क्या है, क्या बताना है मुझे “ – अब्बू ने उन दोनों की ओर देख कर कहा था।

राशिद कुछ क्षण चुप रहा फिर बोला – “अब्बू जिस शख्स ने मुझ पर गोली चलाई है वह आइएसआइ का एजेंट है।“

आइएसआइ? क्या मतलब? वो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ?आप कहना क्या चाहते हैं?

“नुसरत को सबकुछ पता चल गया है, इसलिए अब आपसे छुपाने का कोई मतलब नहीं है। मैं आपको भी सबकुछ सच-सच बता देना चाहता हूं।“

“जो कुछ भी है साफ-साफ कहो” – अब्बू के स्वर में चिंता और बेचैनी दोनों झलक रहे थे।

“हां, मैं कुछ भी नहीं छुपाऊंगा आपसे। छुपाना चाहूंगा भी तो अब उसका कोई मतलब नहीं है। मैं अपने मज़हब और वतन की खिदमत के लिए यहां आया था।“

“तो इस में बुराई क्या है?”

“सिर्फ यही कि मैं पाकिस्तान से यहां आया हूं और मेरा मकसद यहां तबाही फैलाना है।“

“तुम पाकिस्तान से आए हो, पाकिस्तानी दहशतगर्द हो तुम?” – अब्बू अपनी जगह से उछल कर खड़े हो गए थे।

“मेरी बात सुन लें अब्बू। उसके बाद आप मेरे साथ जो भी करना चाहें करें। मैं भागूंगा नहीं। पुलिस के सामने सरेंडर कर दूंगा।“

“अब्बू मत कहो मुझे। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे घर में रह कर यह ........।“

“पाकिस्तान में मुझे बताया गया था कि हिंदुस्तान में मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का सुलूक किया जाता है, उन्हें हर तरह से परेशान किया जाता है। दंगों-फसादों में सिर्फ मुसलमान मरता है। मस्जिदें तोड़ी जा रही हैं, उनमें ताले लगे हैं। मदरसों में तालिबान नहीं हैं। काफिर लोग इस्लामी इदारों को खत्म कर रहे हैं और उन पर सब तरह से जुल्म ढा रहे हैं। यहां तक कि उनकी मां, बहनें और बेटियां भी महफूज नहीं हैं। हिंदुस्तान में इस्लाम खतरे में है। यह सब सुनकर मेरा खून खौल उठा था और मैं आइएसआइ के इस मिशन मैं खुशी से शामिल हो गया। मुझे लगा था, मैं अपने मज़हब, कौम और वतन के काम आ रहा हूं। इस मिशन में कुर्बान भी हो जाऊं तो अल्लाहताला की नजर में यह सवाब का काम होगा।“

“तुम तो इंजीनियर हो ना, फिर .....।“

“हां, मैं इंजीनियर हूं। जिस मिशन के लिए मुझे तैयार किया गया उसके लिए आला दर्जे के इंजीनियर की ही जरूरत थी। मैं हैरान हूं कि जिनके लिए मैं काम कर रहा हूं, उनकी नजर में मेरी इतनी ही कीमत है कि जब उनके किसी काम का न रहूं तो मुझे गोली मार कर खत्म कर दिया जाए। वे छोड़ेंगे नहीं मुझे......उन्हें पता लगा कि मैं जिंदा हूं तो वे कहीं भी, किसी भी समय मुझे खत्म करके ही दम लेंगे।“

“ओह, मतलब तुम्हारी जान अभी भी खतरे में है।“

“बिलकुल। पर सच कहूं अब मेरे दिल से सारा डर जाता रहा है। मरना तो एक दिन सबको है। मैं तो यतीम था। यहां आकर आप लोगों के साथ अल्लाहताला ने रहने का मौका दिया तो मुझे समझ में आया कि परिवार क्या होता है, प्यार-मोहब्बत क्या होती है। एक और बात कहनी है मुझे। हिंदुस्तान में मुसलमानों के हालात के बारे में पाकिस्तान में जो कुछ बताया-समझाया जाता है, वैसा मैंने यहां कुछ नहीं पाया है। मैं इस बात को समझ गया हूं कि आपस में लड़ाने वाले सब जगह मौजूद हैं। पाकिस्तान में तो अकलियत वाले हिंदुओं और ईसाइयों के साथ जो बर्ताव किया जाता है, वह किसी की भी रूह थर्रा सकता है। हिंदुओं और ईसाइयों की बात तो छोड़ो, काश पाकिस्तान में मुसलमानों के अलग-अलग फिरके ही इतनी मोहब्बत और सुकून से रह सकते जैसे यहां हिंदुस्तान में मुख़्तलिफ़ मज़हब के लोग रहते हैं।“

“ये सब बातें तो अपनी जगह हैं राशिद। पर तुम पाकिस्तानी हो, गलत इरादे से यहां आए हो, तुम्हें ......।“

राशिद ने अब्बू की बात बीच में काटते हुए कहा – “मैं सब समझता हूं अब्बू। आइएसआइ के एजेंट कोई और कदम उठाएं उससे पहले ही मैं पुलिस के सामने सरेंडर करना चाहता हूं। आप पुलिस को खबर कर दें।“

अब्बू सोच में पड़ गए थे। उन्होंने मन ही मन फैसला ले लिया था कि वे राशिद को पुलिस के हवाले कर देंगे। भारतीय होने और अच्छा शहरी होने के नाते यही ठीक भी था। वे पुलिस को खबर करने के लिए उठने ही वाले थे कि नुसरत बोल पड़ी थी – “रुको अब्बू। मैंने राशिद से कहा था कि मैं ना तो उसका मिशन पूरा होते देखना चाहती हूं और ना ही उसे पुलिस के शिकंजे में देखना चाहती हूं।“

“बेटा, भारतीय होने के नाते हमारा फर्ज बनता है कि.......”

“अब्बू मैं राशिद से मोहब्बत करती हूं, पुलिस तो उनके साथ वही सुलूक करेगी जो दहशतगर्द के साथ किया जाता है। उन्हें फांसी की सजा भी हो सकती है।“

बेशक, पर तुमने कभी जाहिर नहीं होने दिया कि तुम राशिद से मोहब्बत करती हो। अब बता रही हो जब कुछ नहीं हो सकता। मुझे अपना फर्ज निभाना ही होगा।“

“लेकिन अब्बू जिस मिशन पर उसे भेजा गया था, उसने उसे अंजाम तक तो नहीं पहुंचाया है ना? वह गुनहगार कैसे हुआ जब उसने कोई गुनाह किया ही नहीं” – नुसरत ने अपना तर्क दिया था।

“वह पाकिस्तानी है और हिंदुस्तान को बड़ा नुकसान पहुंचाने के इरादे से यहां आया है। कानून की नजर में यही बड़ा गुनाह है।“

“मैं नहीं मानती अब्बू। राशिद ने सच्चाई को खुद अपनी आंखों से देखा है और इन्हें पछतावा भी है। यहां नौकरी कर रहे हैं तो इनके पास हिंदुस्तानी पासपोर्ट भी है। इन्हें तो जान से मारने की कोशिश भी की गई है। अगर इनकी जान चली जाती तो? फिर गोली चलाने वाले जो भी लोग हैं, उन्होंने तो इन्हें मरा मान भी लिया है। मैं आप दोनों के हाथ जोड़ती हूं, ये जिस इरादे से यहां आए थे, उसे पूरा नहीं किया है इन्होंने। अल्लाहताला की नजर में ये गुनहगार नहीं हो सकते।“

“सुनो नुसरत, यह आप नहीं, आपकी मोहब्बत बोल रही है। आप मुझे बचाने की नाकाम कोशिश कर रही हैं। अब्बू को अपना फर्ज निभाने दो।“

“आप इस बात पर क्यों अड़े हैं राशिद? पछतावे के बाद बंदे का दिल पाक-साफ हो जाता है। आप चुपचाप निकल जाओ यहां से। मेरी इल्तिजा है कि किसी दूसरे देश में बस कर एक नई जिंदगी शुरू करो।“

अब्बू अजीब पशोपेश में थे। उन्हें नहीं पता था कि नुसरत राशिद को दिल से चाहने लगी है। वे खुद को समझा नहीं पा रहे थे कि ऐसी हालत में उन्हें क्या करना चाहिए।

तभी उन्होंने देखा नुसरत राशिद के सामने अपना दामन फैला कर खड़ी थी और उससे कह रही थी – “अपनी जान की भीख दे दो मुझे राशिद। इस बात को समझो कि जो गुनाह करने आए थे, वह आपने नहीं किया है। चले जाओ यहां से, कहीं भी जहां आपकी जान को खतरा न हो। एक नई जिंदगी की शुरूआत करो जिसमें मज़हब की सही समझ हो और दहशतगर्दी की कोई जगह न हो।“

राशिद ने नुसरत को चुप करने के इरादे से बेसाख्ता बोल दिया – “नई ज़िंदगी में आप देंगी मेरा साथ?”

नुसरत सकपका गई थी और उसने कहा था – “मैं...मैं। क्या कह रहे हो राशिद? आपको अकेले ही निकलना होगा। मैं साथ रहूंगी तो आप खुद को संभालोगे या मुझे। अभी आपको सबकी नजरों से बच कर हिफाजत से निकलना है। फिर कहां जाना है, कैसे जाना है, कहां रहना है, क्या करना है। इन सभी बातों का मुकाबला आप अकेले रह कर ही कर सकते हैं। मेरी बात को समझने की कोशिश कीजिए। ज्यादा मत सोचिए, वक्त नहीं है।“

“मेरी नई ज़िंदगी तो तभी शुरू हो सकती है जब आप साथ होंगी। दोनों मिलकर किसी भी चीज का आसानी से मुकाबला कर सकेंगे। बोलो क्या कहती हो?”

नुसरत कुछ नहीं बोल पा रही थी। उन दोनों की बात ध्यान से सुन रहे अब्बू के भीतर एक नई सोच जन्म ले रही थी। राशिद को उन्होंने हमेशा अपने बेटे की तरह माना था। उसने भी उन्हें अब्बू कहा था और वैसा ही सम्मान दिया था। उसे मज़हब और वतन-परस्ती के नाम पर बरगलाया गया था। वरना वह एक बहुत अच्छा इंसान था। नुसरत सही कह रही थी, राशिद ने अभी तक कोई गुनाह किया ही नहीं था। उसे नई ज़िंदगी शुरू करने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए। गुनाह मान लेने और पछतावा करने के बाद अल्लाहताला भी बंदे को सुधरने का एक मौका तो जरूर देता है।

राशिद खुद को पुलिस के हवाले करने के लिए तैयार हो रहा था। नुसरत उसे बेबस नजरों से देख रही थी और उसकी दोनों आंखों से आंसू बेतहाशा टपक रहे थे। तभी अब्बू उसके पास पहुंचे थे और अपनी उंगलियों से उसके आंसू पौंछते हुए कहा था – “नुसरत मैंने सबकुछ समझ और देख लिया है। एक बरगलाया नौजवान जो दहशतगर्द बन कर आया था, अच्छा इंसान बन कर तुम्हारे साथ अपनी नई जिंदगी की शुरू करना चाहता है तो इसमें बुरा क्या है? एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं मेरी बच्ची। तुम इसके साथ रहोगी तो यह अपनी जिम्मेदारी महसूस करेगा, इसकी सोच को सही दिशा मिलती रहेगी, यह महफूज रहेगा और अपनी ज़िंदगी को बेहतरी की तरफ ले जाएगा। इसके साथियों को इसके जिंदा रहने का पता लगने से पहले ही तुम दोनों यहां से निकल जाओ।“

नुसरत और राशिद दोंनों ने एकसाथ कहा था – “अब्बू आपको अकेला छोड़कर हम कहीं नहीं जाएंगे। आप आइएसआइ के एजेंटों को नहीं जानते, हमारे जाने के बाद वे आपका जीना हराम कर देंगे।“

“तुम लोगों को इसकी चिंता करने की जरा भी जरूरत नहीं है। मैं सबसे कह दूंगा कि हमारे घर में रहने वाले राशिद ने मुझे धोखा दिया है, वह मेरी बेटी को अपनी मोहब्बत के जाल में फंसा कर भगा ले गया है। कहां ले गया है, मुझे कुछ नहीं पता।“

“लेकिन अब्बू....?”

“मेरे बच्चों ज्यादा समय नहीं है हमारे पास। खुद ऊपर वाले की मर्जी है यह। उसके बीच मैं कैसे रुकावट बन सकता हूं? रात आधी से ज्यादा बीत रही है। तुम दोनों अल्लाहताला को हाजिर-नाजिर मानकर अभी और इसी समय एक-दूसरे को कुबूल करो और अपनी ज़िंदगी में शामिल कर लो। मैं गवाह रहूंगा इसका। मैं नुसरत की अम्मी के गहने और इसके निकाह के लिए बचाकर रखे रुपये लेकर आता हूं।“

“इसकी जरूरत नहीं है अब्बू, मेरे पास काफी रुपये हैं” – राशिद ने कहा था।

“पैसों की जरूरत हर समय पड़ेगी। फिर मैं अकेला इनका करूंगा क्या।“

थोड़ी ही देर में अब्बू एक पोटली साथ लेकर आए और नुसरत के हाथ पर रखते हुए बोले – “मेरी सलाह मानो, तुम दोनों बुरका पहन कर यहां से निकल जाओ। अल्लाह ने चाहा तो हम फिर मिलेंगे। तुम दोनों एक अंधी सुरंग से गुजरने के लिए निकल रहे हो, पर मेरा यकीन मानो, इंशाअल्लाह उस पार रोशनी तुम्हारा इंतजार कर रही होगी।“

“किसी ऐसी जगह, ऐसे देश में चले जाओ जहां हिफाजत और सुकून की जिंदगी जी सको। राशिद के हाथ में हुनर है, उसे कहीं भी नौकरी मिलते देर नहीं लगेगी। मेरी दुआएं तुम्हारे साथ हैं। अल्लाह हाफिज।“

बुरके से ढके वे दोनों नई मंजिल और नई ज़िंदगी की तलाश में अल-सुबह शहर छोड़ रहे हैं। नेपथ्य में मंदिरों के घंटों और मस्जिदों की अजानों की मिलीजुली आवाजें गूंज रही है।