ऐर फ़्रांस 447 की गुत्थी को सुल्जाने की कोशिश 34 माह तक चलती रही. पर फिर भी कुछ भी हाथ नहीं लग रहा था. आखिर इस दुर्घटना के फ्रांसीसी जांचकर्ताओ ने इस अभियान को रोक देने का मन बनाया. पर इससे पहले की इस खोजी अभियान को पुर्णतः समाप्त कर दिया जाए, इसे खोजने की एक आखरी कोशिश कर लेना तै किया. अगर इस बार कुछ नहीं हाथ लगा तो फिर आगे इस कार्य को कभी भी नहीं किया जायेगा.
इसके लिए अप्रेल 2011 में एक खानगी संस्था वर्ल्ड होल ओस्योनोग्राफ़ी इन्स्तित्युत (डब्ल्यूएचओआई) को काम सोमपा गया. इसके पास ऐसी फुल्ली ओतोमैतेद रोबोटिक सबमरीन्स और साधन थे, जो समुद्र के पानी की गहराइयों में जाकर धरती की सतह की तोह ले सकते थे. अब तक फ्लाईट 447 के राज़ को उजागर करने के लिए ढाई करोड़ डॉलर खर्च किये जा चुके थे और इस अंतिम कोशिश के लिए और एक करोड़ बीस लाख डॉलर आरक्सित किये जा रहे थे. इस संस्था की टीम ने अपनी सबमरीन को, जो रिमोटली संचालित की जा सकती थी, समुद्र के गहरे पानी के निचे भेजा. इस सबमरीन ने अपने आधुनिक साधन की मदद से एत्लान्तिक समुद्र के निचे के भूमि क्सेत्र को स्केन करना शुरू कर दिया. यह स्केनिंग ओपरेशन लगातार कई हप्तों तक जारी रहा. और इस दौरान इसने पानी के निचे की भूमि की 15000 तस्वीरें खिंची. पर फिर भी कुछ महत्वपूर्ण हाथ नहीं लग रहा था. एक दिन इस अभियान के एक वैज्ञानिक ने कंप्यूटर के स्क्रीन पर अजीब सी चीज देखि. उसने अपने सह वैज्ञानिकों का ध्यान इस और खींचा. समुद्र के निचे यह आकृति बहुत लम्बी और सीधी थी और समुद्र की निचे की भूमि पर पायी जाने वाली अन्य आकृतियों से बिलकुल अलग दिख रही थी. इस के लिए और ज्यादा देता इकठ्ठा किया गया. इस बार इस अभियान के मुख्य वैज्ञानिक माइकल पुरसेल को पूरी उम्मीद थी की यह लम्बी और सीधी चीज वहीँ है. उसने अपने साथी वैज्ञानिकों को शिप की अपनी केबिन में साथ लिया. और केबिन के इर्द गिर्द पड़दे लगा दिए. जिससे की शिप के अन्य कृ मेम्बर्स अन्दर कंप्यूटर के स्क्रीन पर जो कुछ भी डिस्प्ले होने वाला था, देख न पाए और सुचना लीक होने की संभावना न रहे.
कंप्यूटर शुरू हुआ और स्क्रीन पर तस्वीरे धीरे धीरे सरकने लगी. साथ ही वहां उपस्थित सभी वैज्ञानिकों की उत्सुकता अब विस्वास में बदलने लगी. आखिर वो पल भी आया जब सभी वैज्ञानिकों के चहरे पर ख़ुशी छलक उठी. उनका अंदाजा विस्वास में बदल चूका था. अंततः फ्लाईट 447 का पता लग चूका था. जो अब तक नहीं हुआ था, वो कारनामा WHOI की टीम ने कर दिखाया था. जिनकी उम्मीद नहीं थी.
आखिर फ्लाईट 447 के मलबे को निकाला गया. जिसमे ब्लेक बॉक्स और कोक्पित वोईस रेकोर्डर भी थे. प्लेन के मलबे में 104 यात्रियों के देहावशेष भी पाए गए पर शेष 74 यात्रियों के अवशेषों का कोई पता न चला. फ्लाईट देता रेकोर्डर और कोक्पित वोईस रेकोर्डर को रिकवर कर डिक्रिप्ट करने के लिए भेज दिया गया. और इसने जो राज खोला इसने विमानन इतिहास की यह सबसे बड़ी रहस्मय करुनान्तिका के भेद से सारा पड़दा उठा दिया.
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फ्लाईट 447 के साथ हादसे की शुरुआत हवाई अड्डे से टेक ऑफ़ के करीब तीन घंटे बाद समुद्र के मध्य शुरू हुई. जब ATC के साथ फ्लाईट का संपर्क टूट गया तब किसी को यह अंदाजा नहीं था की फ्लाईट 447 एक बड़ी मुसीबत की और आगे बढ़ रहा है. वास्तव में फ्लाईट 447 के मार्ग को तूफ़ान रोके खड़ा था और प्लेन के रास्ते में घहरे बादल छा चुके थे. और प्लेन उसकी और तेजी से बढ़ रहा था. वैसे तो ऐसी परिस्थितियों का तकाजा लगाने के लिए प्लेन पर रडार सिस्टम लगी हुई होती है पर उसकी भी मर्यादा होती है. यह रडार 50 मील तक की दूरी से ही बादलों एवं उसमे मौजूद पानी के बिन्दुओं का पता लगा सकता था. और जब तक रडार ने आगे के मौसम की सुचना दी तब तक पाईलोटों के पास पर्याप्त वक्त नहीं रहा था. प्लेन तूफ़ान में 250 मिल चौड़े बादलों के बीच प्रवेश कर चूका था. पर थोड़ी दूरी तै करने के बाद प्लेन के साथ अजीब हादसों की शृंखला शुरू हो गई. अचानक एक बड़ी रौशनी के पुंज से प्लेन जगमगा उठा. तीसरे पाईलोट बोनिन को लगा की यह प्लेन के अन्दर हुआ है पर कप्तान ने उसे बताया की इस क्सेत्र में ऐसा होता रहता है.
कंप्यूटर की स्क्रीन पर बाहर के मौसम का टेम्प्रेचर -40 डिग्री शो कर रहा था. प्लेन के कप्तान ने टेक ऑफ़ से ही फ्लाईट का नियंत्रण अपने हाथों में रखा था. जिसे अब फ्लाईट उड़ाते हुए साढ़े तीन घंटे गुजर चुके थे. इसलिए वह करीब दो बजे आराम फरमाने के इरादे से बाहर निकल गया. अब फ्लाईट का सञ्चालन बोनिन, जो फ्लाईट 447 के तीनो पाईलोटों में सब से कम अनुभवी था, उसके हाथों में आ गया. अब तक प्लेन के साथ कोई दिक्कत वाली बात नहीं थी.
क्रमशः