360 degree love - 6 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 6

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360 डिग्री वाला प्रेम - 6

६.

कुछ और भी काम

दो दिन कॉलेज बंद था, परसों २६ जनवरी की औपचारिक उपस्थिति जरूर लगनी थी, और उससे अगले दिन यानि २७ जनवरी को नक्खास मार्किट जाना बहुत जरूरी था. कल का दिन महत्वपूर्ण बन गया था. कल सबसे सलाह के बाद जरूरी सामान की लिस्ट फाइनल करनी थी. चंद्रन सर द्वारा सुझाये गये परिवर्तन के बाद अब काम का स्कोप और सामान की वैरायटी के साथ लागत बढ़ने का भी खतरा था. पर, उनसे हुए विमर्श को अनदेखा नहीं किया जा सकता था.

तो, तय हुआ कल, यानि शनिवार को पूर्वाह्न ११.३० बजे, कॉलेज कैंटीन. तब तक के लिए गुडबाय! और हाँ, यह भी तय हुआ कि सब पांच-पांच हज़ार रूपये से फण्ड बनायेंगे जिसका हिसाब भूमि और देव रखेंगे. यूँ तो लागत लगभग १५ हज़ार रूपये के आसपास ही थी पर इमरजेंसी और अनचाहे खर्चों के लिए पांच हज़ार रुपये और मौजूद होना जरूरी था. आरव और आरिणी को राइट-अप, प्रेजेंटेशन और क्रिएटिव काम के लिए अपनी एनर्जी रखनी थी, इसलिए उन्हें बाज़ार और इन्वेंटरी के काम से मुक्त रखा गया था पर शनिवार को इन्वेंट्री पर अंतिम निर्णय होने के बाद उस सूची के अनुसार स्थानीय मार्किट का चयन करना था. इसमें आरव और आरिणी को भी आवश्यक मदद करनी थी.

काफी देर तक चली चर्चा के बाद सब सेटल हो गया था. इन्वेंटरी की सूची सौंप दी गई देव को. पर देव को तो आरव को साथ लेकर चलने की रिक्वेस्ट करनी जरूरी थी. सो, वह अड़ गया कि आरव भाई के बिना मेरा तो मार्किट में घूमना संभव ही नहीं.

“हाँ, हाँ, हम सब साथ चलेंगे एक दिन मार्किट तभी ठीक रहेगा ",

 

भूमि ने भी ज़ोर दिया.

 

“पर, मुझे तो आप लोग काउंट न ही कीजिये...और कोई फायदा भी नहीं, आप तीनों ही बहुत हैं, मार्किट सर्वे के लिए…”,

 

यह आरिणी थी.

 

ठीक है, समय तय करो कल का. मैं सीधे पहुँच जाऊंगा किसी सेण्टर प्लेस पर”,

 

बोला आरव.

 

“तो ठीक है, के जी एम सी चौराहे पर ही मिलते हैं...१२ बजे. जहाँ सन्डे को रंग-बिरंगी चिड़ियाओं का बाज़ार लगता है…”,

 

आरव ने फैसला सुनाया !

 

“अरे, वह तो बहुत भीड़-भाड का इलाका है. क्यों नहीं हजरतगंज मिलें.. सीसीडी!”,

 

देव ने इच्छा जाहिर की.


“लो, सन्डे की कॉफ़ी-सैंडविच का इंतज़ाम हो गया देव साहब का…”,

 

अपने पेपर्स समेटती हुई बोली आरिणी.

 

“नहीं, तुम दोनों मेरे घर आ जाना ब्रेकफास्ट करके चलेंगे… मेडिकल कॉलेज चौराहे से नक्खास का मार्किट जहाँ से सामान ढूंढना है ज्यादा दूर नहीं ",

 

आरव ने देव को गम्भीरता से सुझाया, और सब साथ-साथ बाहर निकल आये.

 

“सन्डे होगा, तो ड्राइवर भी खाली ही होगा…!”,

 

आरव ने जोड़ा.

 

“नहीं, इट्स ओके आरव...वहीं मिलते हैं. यह तो आदत है देव की फ़ालतू की बातें करने की...”,

 

भूमि ने हंस कर कहा और ११.३० से १२ के बीच मेडिकल चौराहे पर मिलना तय हो गया कल, यानि सन्डे को.

००००००