Hostel Boyz (Hindi) - 8 in Hindi Comedy stories by Kamal Patadiya books and stories PDF | Hostel Boyz (Hindi) - 8

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Hostel Boyz (Hindi) - 8

प्रकरण 7 : हॉस्टल की रोटियां


वैसे तो, हमारे हॉस्टल में भोजन, दुसरे हॉस्टल में भोजन के समान ही था लेकिन हमारा ग्रुप ज्यादा खाने वालो मै से था। हॉस्टल में रात के खाने के बाद, बची हुई रोटियों को एक बड़े पतीले में रखा जाता था और रसोई को बाहर से बंद करके ताला लगा दिया जाता था। हम हर रात देर तक जगते थे, इसलिए हम सभी को रात में बहुत भूख लगती थी और हम हर दिन बाहर नाश्ता करने का जोखिम नहीं उठा सकते थे, इसलिए हम लोग रात में किचन में घूसणखोरी करते थे। चूंकि रसोई का मुख्य दरवाजा बंद था, इसलिए हम रसोई की खिड़की पे जाते थे। रसोई की खिड़की में लोहे की सलाखे थी इसलिए रसोई घर में जाने के लिए हमें किसी पतले आदमी की जरूरत थी। हमारे हॉस्टल में मोरबी का एक पतला लड़का था। हम उसे खिड़की के माध्यम से अंदर भेज देते थे। वह रसोई घर में से सब कुछ ले आता और हमें दे देता था, फिर उसे वापस बाहर निकाल लेते थे और हम सब नाश्ते के लिए अपने कमरे में बैठ जाते। हम नाश्ते के लिए रोटी पर प्रयोग करके नए नए व्यंजन बनाते थे। कभी-कभी रोटी पे तेल, मिर्च-नमक लगाते थे और कभी-कभी घी, गुड़ और चीनी मिलाकर रोटी को खाते थे। उस समय सारी चीजें खाने में बहुत ही मजा आता था। वास्तव में, रोटी हमारे रात की साथी बन गई थी। हम लोग कभी-कभी बाहर से चाय के पार्सल लाते थे और चाय के साथ रोटी खाते थे।

किचन के पतीले में रखी गई रोटीयों को, सुबह के नाश्ते के लिए रखा जाता था, लेकिन रोटीया सुबह में कड़क हो जाती थी। हालाँकि, हमारे हॉस्टल में रहने वाले लोग वो कड़क रोटी को भी खा जाते थे क्योंकि सुबह इतनी भूख लगती थी कि कठोर रोटी भी उसे नरम लगती थी।

हमारे ग्रुप में प्रियंवदन और भाविन सुबह को जल्दी उठ जाया करते थे। हम देर से उठते थे इसलिए प्रियवदन हमें बताता था कि सुबह जब हम किचन की रखी हुई रोटीया खाते हैं, तो रोटीया इतनी कड़क हो जाती हैं कि इसको तोड़ने के लिए दो लोग चाहिए होते थे। हालाँकि, प्रियवदन फिर भी 5-5 रोटीया खा जाता था उसके के लिए उसको बधाई दी जानी चाहिए।



प्रकरण 8 : कन्वीनर जयंतिबापा ने हमको पकड़ा


वैसे तो, हमारे हॉस्टल के कन्वीनर जयंती बापा बहूत ही दयालु और मायलु स्वभाव के थे। लेकिन जब भी उनको किसी के रूम में व्यसन की भनक होती थी तो वह हॉस्टल के मॉनिटर को साथ में रखकर हॉस्टल के कमरों में छापा मारा करते थे। वह दो प्रकार से छापा मारा करते थे। कभी-कभी वो बड़े से हॉल में सबको इकट्ठा करते थे और बारी-बारी सबकी तलाशी लेते हैं तो कभी-कभी अचानक हमारे कमरों में आ जाते थे और कमरो की और सामान की तलाशी लेते थे। जिसके पास से गुटखा, मावा, तंबाकू या सिगरेट मिलती थी उसको पहले वार्निंग देते थे, दूसरी बार हॉस्टल का कोई काम करवाते थे और तीसरी बार हॉस्टल से ही निकाल देते थे। जब भी वह कोई कमरे की तलाशी लेते थे तब दूसरे कमरेवाले सावधान हो जाते थे और व्यसनवाली चीजें गुटखा, मावा, तंबाकू, सिगरेट आदि फेंक देते थे या कहीं छुपा देते थे लेकिन जयंती बापा भी बहुत ही चतुर थे। वो एक बार में एक या दो ही कमरे की तलाशी लेते थे बाद में वह एक week के बाद दूसरे कमरो की तलाशी लेते थे। हमको भी गुटखा, मावा, तंबाकू, सिगरेट की आदतें थी। हम कमरे में ऐसी जगह सब चीजे छुपाते थे कि किसी को भी मिल ही नहीं सकती लेकिन एक दो बार मेरे पेंट की जेब में से गुटखा मिल गए थी, तभी उन्होने हमें वार्निंग देकर छोड़ दिया था। जब भी बड़े हॉल में तलाशी करते थे तो किसी ना किसी बहाने सबको इकट्ठा करके बाद में एक एक करके सबकी तलाशी लेते थे। जयंती बापा तलाशी लेने के लिए 2-4 ऐसे लोगों को चुनते थे जो निरव्यसनी और निष्पक्ष होते थे। वह सबकी बारी-बारी तलाशी लेते थे और ऐसे ही व्यसनी लोगों को पकड़ते थे। एक बार ऐसी तलाशी में मैं और एक और लड़का पकड़े गए। जयंती बापाने पहले तो उस लड़के को खूब डांट, फटकार लगाई और बाद में उसके पापा के नाम से उसको इतना डराया कि वह लड़का फूट-फूट कर रोने लगा, गिड़गिड़ाने लगा और माफी मांगने लगा। उसको ऐसा करते देख, मैं भी सोचने लगा कि आज मेरा हॉस्टल में आखिरी दिन है लेकिन जयंती बापा को उसको रोते और गिड़गिड़ाते देखकर उसपे दया आ गई और उसको कसम खिलाकर छोड़ दिया। जब तक मेरा नंबर आया तब तक सब नाटक खत्म हो चुका था इसलिए मुझको भी जयंतीबापा ने कसम खिला कर छोड़ दिया। इस घटना के बाद, हमें जब भी मावा, गुटखा खाने की तलब लगती थी तब हम लोग बाहर जाकर ही सब कुछ खाते थे।( हाल में हमने गुटखा व सिगरेट छोड़ दी है बस एक मावा का ही व्यसन है, ईतना सुधार हम में हुआ है)

हॉस्टल के लोगों को व्यसन मुक्त रखने के लिए जयंती बापा ने बहुत ही प्रयत्न किए थे लेकिन वह प्रयत्न सफल नहीं हो पा रहे थे। कभी-कभी उनके डर से हॉस्टल के लोग दो-तीन दिन तक व्यसन छोड़ देते थे लेकिन बाद में वह फिर शुरू हो जाते थे लेकिन जयंती बापा भी अपने अभियान पर अडग थे।

क्रमश: