Yadon ke Jharokhe Se - 13 - Meri Najar Men in Hindi Biography by S Sinha books and stories PDF | यादों के झरोखे से - 13 - मेरी नजर में

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यादों के झरोखे से - 13 - मेरी नजर में

यादों के झरोखे से - मेरी नजर में


अपने पति की पुरानी डायरी पढ़ने के बाद विवाह के पूर्व इनके जीवन की कुछ रोचक बातें और अन्य पहलुओं की जानकारी मिली . इस डायरी को मैंने आज भी संभाल कर रखा है . हालांकि इन्होंने शादी के बाद डायरी लिखनी बंद कर दी पर आज भी फिल्मों और देश विदेश घूमने की इनकी रूचि बरकरार है . अभी भी शहर के सिनेमा हॉल्स में जब कोई फिल्म लगती है तो इनका प्रयास होता है कि फिल्म को पहली शो में देखें या यथाशीघ्र जरूर देखें .


बॉलीवुड से प्रेम की इन की एक और दिलचस्प मिसाल जो इन्होंने मुझे बताया था -


एक बार ये ऑफिसियल टूर पर मुंबई गए थे . उस समय वहां गणेश चतुर्थी का उत्सव चल रहा था . उस दिन दफ्तर बंद थे तो इन्हें ख्याल आया कि किसी स्टार से मुलाकात की जाए .20 साल पूर्व जब ये कॉलेज में पढ़ते थे शत्रुघ्न सिन्हा भी पढ़ रहे थे . जान पहचान कोई ख़ास नहीं थी . उस दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी फिर भी भीगते भागते ये जुहू स्थित उनके घर “ रामायण “ जा पहुंचे . इनका जूता बुरी तरह भीग गया था . मेरा छोटा भाई भी इनके साथ था .


विशाल लोहे के गेट पर दस्तक दी . साइड वाले छोटे वाला गेट से एक आदमी मिला उसने आने का मकसद पूछा . इन्होंने कहा “ सिन्हा साहब हैं क्या , उनसे मिलना है . मैं पटना में उनके साथ पढ़ता था . “


“ सिन्हा साहब तो नहीं हैं , मैं उनका मेक अप आर्टिस्ट विल्सन या विलियम ( शायद यही नाम बताया था ) . अगर आप श्योर हैं कि वे आप से मिलेंगे तो आप होटल होराइजन जाएँ , सिन्हा साहब वहीँ पार्टी में होंगे . मैं भी वहीँ जा रहा हूँ . “

ये भीगे कपड़ों और जूतों में फाइव स्टार होटल नहीं जाना चाहते थे पर मेरा भाई भी शत्रुघ्न सिन्हा से मिलने को मचल रहा था . इन्होंने विल्सन से पूछा “ क्या आप बता सकते हैं घर कब तक लौटेंगे . “


“ घर तो शायद ही दो बजे रात के पहले लौटें . शाम को फिल्म सिटी में उनकी फिल्म “ बिल्लू बादशाह “ का मुहूर्त है , वहां आप मिल सकते हैं . “


ये दोनों लोकल से गोरेगांव गए . बरसात थम गयी थी . वहां से ऑटो पकड़ फिल्म सिटी गए . वहां पता चला कि दूर पहाड़ी पर एक मंदिर बना है वहीँ पर उनकी शूटिंग होगी . फिर ऑटो से वे मंदिर पहुंचे . शहर काफी पीछे छूट गया था . दूर वीराने में एक मंदिर था . पता चला कि सिन्हा साहब एक घंटे बाद आएंगे . इन्होंने ऑटो छोड़ तो दिया पर दूर तक कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं मिलने वाला था .


करीब एक घंटे बाद शत्रुघ्न खुद फ़िएट कार चलाते हुए आये और मंदिर प्रांगण में कुर्सी पर बैठ गए . उनके पहचानने का सवाल ही नहीं था . वे सुपर स्टार थे , उनके आस पास कुछ जूनियर आर्टिस्ट घड़े थे उनमें एक विलेन और रामायण सीरियल के भरत संजय लाहिरी भी थे . ये हिम्मत कर के गए और अपना परिचय देते हुए कहा कि हम दोनों एक ही साथ कॉलेज में 1962 में थे . उन्होंने इज्जत के साथ इन्हें और मेरे भाई को बिठाया और कुछ देर बात करने के बाद वे मंदिर में चले गए .


मेरे पति और मेरे भाई दोनों ने मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने के पहले अपने जूते खोले . कुछ लोग हास्यास्पद मुद्रा में इन्हें देखने लगे . इन्होंने देखा कि वहां काफी लोग थे सभी जूते पहने थे . मंदिर में सीताराम की मूर्ति थी . सिन्हा ने कहा “ अरे भाई , जा कर जूते पहन लो . यह मंदिर सिर्फ शूटिंग के काम आता है . फिल्म की जरूरत के अनुसार मूर्तियां बदल दी जाती हैं . “


मेरा भाई इनसे सिन्हा के साथ फोटो खिंचवाने की जिद कर रहा था पर इन्हें संकोच हो रहा था . शायद सिन्हा ने भाप लिया और दोनों को पास बुलाया . एक एक हाथ दोनों के कंधों पर रख कर फोटोग्राफर को पास बुला कर फोटो लेने को कहा . फोटोग्राफर ने तीन चार शॉट लिए . सिन्हा साहब ने उसे कहा “ इनका पता नोट कर लो बड़े साइज के फोटो इन्हें मेल कर देना . “


शत्रुघ्न सिन्हा के व्यवहार से इन्हें बहुत ख़ुशी हुई . कुछ फोटो शूट हो रहा था . रात काफी हो गयी थी . अब इन्हें अपने दादर होटल में जाने का कोई साधन नहीं दिख रहा था . आश्चर्य हुआ जब खुद शत्रुघ्न सिन्हा ने इन्हें बुला कर कहा “ यहाँ कैसे आये हैं ? “ इन्होंने कहा ऑटो से तब उनहोंने कहा “ यहाँ कोई सवारी नहीं मिलती है . “

फिर अपने ड्राइवर मुस्तफा ( शायद यही नाम था ) को बुला कर कहा “ बच्चों और इन्हें इनके होटल छोड़ दो . पहले इन्हें ड्राप कर देना . “


फिर इनसे कहा “ एकाध घंटे में गोबिंदा , नीलम , अनीता राज आदि आएंगे . पर प्रोग्राम देर रात तक चलेगा . अगर रुकना चाहते हैं तो रुक सकते हैं . “


इन्होंने लौट जाना ही बेहतर समझा और सिन्हा साहब की नीली मारुती में लौट गए . साथ में दो लड़के और एक लड़की भी थी , शायद उन्हीं के बेटे लव कुछ और बेटी सोनाक्षी थी .


इनके बोकारो लौटने के दो सप्ताह के अंदर ही एक बड़े लिफाफे में बड़े साइज के दो फोटो थे जिन्हें आज तक ये संभाल कर रखा हुआ है .


आज भी जब कभी मुंबई फिल्म सिटी का वह मंदिर फिल्मों और टीवी सीरियल्स में देखने को मिलता है ये बोल उठते हैं “ देखो , यह वही मंदिर हैं . “