प्रकरण 5 : और मेरी ट्रेन छूट गई ...!!
ट्रेन हम जैसे हॉस्टल के छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण, आरामदायक और किफायती थी। जब भी मुझे छुट्टियों के दौरान हॉस्टल से घर जाना पड़ता था, मैं ज्यादातर ट्रेन से ही सफ़र किया करता था क्योंकि ट्रेन का टिकट बहुत ही किफायती था। लेकिन समस्या यह थी कि उस समय राजकोट से धोराजी के लिए केवल एक ही ट्रेन थी और वह भी सुबह 6:00 बजे। मैं शुरू से ही सुबह देर से उठता था। अगर आपको सुबह 6:00 बजे ट्रेन से जाना है, तो आपको सुबह 5:00 बजे उठना होगा, स्नान करना होगा, रेलवे स्टेशन तक चलके पहुचना होगा। हमारे हॉस्टल से रेलवे स्टेशन 2-3 किलोमीटर दूर था और मैं रिक्शा नहीं ले सकता था क्योकि वह बहुत महँगा पड़ता था। एक बार जब मैं ट्रेन से धोराजी जाने वाला था तब हमारे ग्रुप ने फैसला किया कि हम सभी पूरी रात गपशप करेंगे, फिर सुबह 5 बजे सभी लोग मुझे रेलवे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आएंगे। मेरे साथ चिको, प्रितलो, प्रियवदन, विनय, भाविन और हारिज थे। रात को हम सब लोग बात करते करते एक-एक करके सब सोने लगे। रात को दो या तीन बजे तक हम सब लोग सो गए। हमने सुबह 5 बजे का अलार्म लगाया था, अलार्म बजा लेकिन हम सभी लोग गहरी नींद में थे। हारिज के साथ उसके पिताजी रहते थे उसने हमें सुबह 5:30 बजे जगाया। हम सब लोग मेरा सामान लेकर रेल्वे स्टेशन की ओर भागे। सुबह 6 बजे तक रेलवे स्टेशन पहुंच गए लेकिन जब मैं टिकट लेने के लिए टिकट काउंटर पर गया, तब टिकट काउंटर पर मौजूद भाई ने मुझसे कहा, "ट्रेन छूटने के लिए तैयार है, आप ट्रेन नहीं पकड़ पाओगे।" हालांकि, मैंने एक मौका लेने का सोचा और उससे टिकट देने के लिए कहा। मैं टिकट लेकर प्लेटफ़ॉर्म पर भागा लेकिन तब तक ट्रेन रवाना हो चुकी थी और मैं इसके आखिरी डिब्बे का केवल X चिह्न ही देख सकता था।
उस समय, टिकट दर 15 रुपये था। हम टिकट रद्द करने के लिए टिकट काउंटर पर लौट आए। उसने मेरा टिकट रद्द कर दिया और 5 रुपये लौटा दिए। फिर हम सभी रेल्वे स्टेशन से धूली हुई सब्जी-मूली की तरह बाहर निकले और वापस हॉस्टल की तरफ चलने लगे।
प्रकरण 6 : एक चाय के लिए हारिज को गिरवे रखा...!!
जब हम वापस हॉस्टल की तरफ चलने लगे तो सबको चाय पीने की इच्छा हुई। हम सभी होटल गैलेक्सी के पास मोमाई चायवाले की दुकान पे चाय पीने बैठे। हमने दो चाय का ऑर्डर किया और सभी ने चाय को आपस में बाँट लिया। चाय पीने के बाद जब मैं पैसे देने गया तो मुझे याद आया कि मेरे पास केवल 5 रुपये थे और दो चाय के 10 रुपये होते थे। बाकी सब लोग सुबह उठकर मेरे साथ आए थे तो सभी ने नाईट ड्रेस पहनी हुई थी इसीलिए किसी के पास पैसे नहीं थे। अब समस्या हुई... क्या करें? हमें समझ में नहीं आ रहा था। हमने मोमाई चायवाले को परिस्थिति समझाने की कोशिश की कि हम सभी यहाँ पास के एक हॉस्टल में रहते हैं और आपको दिन के दौरान आपके पैसे दें जायेंगे लेकिन चायवाला हमारी बात सुनने के लिए तैयार नहीं था। उसने हमसे कहा कि आप में से कोई एक लड़का यहां पे रुको और दूसरे लोग हॉस्टल में जाकर पैसे लेके आओ। आखिर में, हमने हारिज को मोमाई चायवाले के पास 5 रु के लिए गिरवी रख दिया। आज भी जब हम लोग इस घटना को याद करते हैं तो हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
तब से हम रोज रात को चाय पीने के लिए मोमाई चायवाले के पास ही जाते थे और उसके मालिक से बात करके उससे दोस्ती बढ़ा ली थी ताकि हमें दूसरी बार किसी को गिरवी न रखना पड़े।
रात में हमारे चाय-पानी के लिए कोई समय तय नहीं था। कभी एक बजे, कभी दो बजे तो कभी तीन बजे भी, हम चाय पीने के लिए जाते थे और आधे घंटे तक वहीं बैठकर गपशप लड़ाते थे। हॉस्टल के सिक्योरिटी गार्ड नटू बापा के लिए हम लोग चाय ले जाया करते थे ताकि वह कभी हमारे कन्वीनर से हमारी शिकायत न करें।
चिका ने मोमाई चायवाले के मालिक से ऐसी दोस्ती कर ली थी की जैसे कि वह जन्मो जन्म से मित्र हो| फिर तो क्या था, उसके यहाँ काम करनेवाले सभी हमारे ग्रुप को पहचानने लगे थे। दरअसल, उस समय चाय पीने के साथ बात करने का जो आनंद था, वो अद्भुत था। "चाय पे चर्चा" शब्द का अर्थ का सही मायने हमने पालन किया था|
क्रमश: