Suljhe Ansuljhe - 23 in Hindi Moral Stories by Pragati Gupta books and stories PDF | सुलझे...अनसुलझे - 23

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सुलझे...अनसुलझे - 23

सुलझे...अनसुलझे

समझदारी

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यही कोई सात-आठ साल पुरानी बात होगी| सुबह के समय जब मैं रिसेप्शन पर खड़ी होकर अपने स्टाफ को सेंटर के काम से संबंधित निर्देश दे रही थी कि तभी तीन महिलाएं व एक युवा-सी लड़की सेंटर की सीढ़ियां चढ़ती हुई दिखाई दी| उनमें से एक महिला जिसको अन्य दोनों महिलाये सुनीता भाभी कहकर संबोधित कर रही थी उसने स्टाफ़ से कहा,

‘मुझे निकिता की सभी जांचें यानी कंप्लीट हेल्थ चेकअप प्लस सोनोग्राफी करवानी है| लगभग कितना खर्चा आएगा बताये|’

‘आपके पास डॉक्टर की पर्ची है मैडम|’...अगर पता चल जाता किस डॉक्टर को आप दिखा रही हैं और क्या दिक्कत है| तो पर्ची बनाने में आसानी रहती|...’ स्टाफ ने पूछा...

‘नहीं किसी भी डॉक्टर की कोई पर्ची नहीं है.... सुनीता नाम की महिला ने जवाब दिया|

‘आपके यहां कोई डॉक्टर सुविधा हो तो उनसे पर्ची लिखवा दीजिए| हम उनका परामर्श-शुल्क दे देंगे|’..सुनीता नाम की महिला ने बहुत ही शालीनता से जवाब दिया|..

‘जी मैडम! आप बैठिए अभी डॉक्टर अग्रवाल जो कि हमारे सीनियर कंसलटेंट हैं आते ही होंगे| वह आपको जैसा कहेंगे और लिखेंगे हम कर देंगे| स्टाफ ने जवाब दिया|

अब सुनीता नाम की इस महिला ने जैसे ही मुझे पास ही खड़ा देखा| तो मुस्कुरा कर अभिवादन किया और मेरे से पूछा..

‘मैम! आप भी यहां पर डॉक्टर हैं|’..

‘नहीं मैं यहां पर डॉक्टर नहीं हूं.. यह सेंटर मेरा है| मैं यहां के सभी कामों को संभालती हूं, साथ ही मरीजों की काउंसलर भी हूँ|’... मैंने जवाब दिया

‘ओह! बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर| अब बाकी दूसरी दोनों महिलाओं ने भी मुझे अभिवादन कर अपने-अपने चेहरों पर मुस्कुराहटों का आवरण ओढ़ लिया| चूंकि तीनों महिलाएं उस बच्ची को निकिता नाम से संबोधित कर रही थी तो मुझे पता चल चुका था कि इस बच्ची का नाम निकिता है| जिसकी उम्र लगभग बीस-इक्कीस बरस की होगी|

तभी सुनीता ने मुझे अनायास ही कहा.. ‘मैम आप बहुत सुंदर है| आपके चेहरे की सौम्यता बहुत कुछ बोलती है| आप कहां से हैं| आप की पढ़ाई कहां की है| किसी भी औरत को देख कर अगर दूसरी औरत मुस्कुरा जाये| तो आपस में बातचीत स्वतः ही शब्दों का रूप लेकर बहने लगती है|

‘सुनीता जी! मैं आगरा की हूं और आगरा से ही मेरी संपूर्ण शिक्षा हुई है| आपको मेरे चेहरे पर सौम्यता नजर आई| उसके लिए आपका बहुत शुक्रिया| आप सभी लोग जोधपुर से ही हैं|’

‘हां हम जोधपुर से ही हैं| मेरी पूरी ग्रेजुएशन की पढ़ाई यहीं पर हुई है| मेरे साथ ही जो दोनों महिलाएं आई है उनमें से एक अनीता है| जो कि निकिता की मां है और दूसरी अलका है जो मेरी देवरानी है|’..

इस महिला की बातें सुनकर मुझे कुछ कंफ्यूजन-सा होने लगा था| चूँकि निकिता जब बेटी अनीता की थी तो उसकी जांच या सोनोग्राफी की बात उसकी मां को करनी चाहिए थी| अब इस महिला सुनीता की बात से यह तो क्लियर हो चुका था कि अलका और सुनीता एक परिवार की सदस्य हैं| और अनीता और निकिता मां-बेटी हैं| पर अभी भी कुछ था जो मैं समझना चाहती थी क्योंकि यह तीनों महिलाएं मेरे सेंटर पर निकिता की जांच के लिए आई थी| चूंकि हमारी बीच बातों का एक सिलसिला चल पड़ा था तो मैंने भी बहुत कुछ पूछने का मन में ठान लिया| सारी बातचीत सुनीता से ही चल रही थी तो मैंने उससे पूछ ही लिया...

‘आप निकिता की क्या लगती है सुनीता जी..’

‘अभी तो कुछ नहीं लगती हूं मैं इसकी मैडम| पर अगर इसकी सभी टेस्ट रिपोर्ट नॉर्मल आई तो मैं इसकी बहुत कुछ लगूंगी|.. बोलकर वह मुस्कुरा गई और पुनः बोली इसका मानी अभी मैं इसकी कुछ भी नहीं हूं| पर अगर टेस्ट रिपोर्ट सब नॉर्मल आई तो....यह मेरे घर की बहू बनेगी और मैं इसकी सास|’..

न जाने क्यों अब मुझे सारी पिक्चर क्लियर हो चुकी थी कि माजरा क्या है| पर साथ ही अफसोस भी हुआ कि लड़की और उसकी मां चुपचाप इन सब बातों के लिए सहमति दे रही थी| या तो लड़का भी साथ होता और उसके भी सारे के सारे टेस्ट होते| फिर विवाह की बात होती तो मुझे समझ आता| पर अब मुझे किसी भी तरह बहुत कुछ सोचना और अपनी बात को उनके सामने रखना था..

‘कहां तक पढ़ी हो निकिता बेटा’...मैंने पूछा..

‘जी आंटी मेरा ग्रेजुएशन हो चुका है’..

‘आगे नहीं पढना चाहोगी बेटा..’

‘पढ़ना तो चाहती हूं आंटी| पर घर की परिस्थितियां कुछ ऐसी है कि मां चाहती है....मेरी शादी समय से हो जाए क्योंकि पापा नहीं है मेरे’...

अब मुझे दोनों परिवार की स्थितियां-परिस्थितियां काफ़ी कुछ स्पष्ट हो चली थी| एक ओर मजबूरियां किस तरह चुप्पियों का रूप ले लेती हैं और दूसरी ओर अच्छे परिवार के दावे करने वाले लोग कभी-कभी इतनी छोटी व तुच्छ बातें कर देते हैं, जिनका भविष्य में क्या असर होगा...कोई नहीं सोच पाता|

इतना सब कुछ बोलने में निकिता को कोई हिचकिचाहट नहीं आई| उसके व्यवहार से वह मुझे बहुत बोल्ड लगी| अब मेरी बारी थी सुनीता जी से कुछ पूछने की बगैर उनको चोट पहुंचाए..

‘सुनीता जी आपका बेटा भी आया है साथ में| आपका बेटा क्या करता है?’

‘जी मेरा इकलौता बेटा इंजीनियर है और काफी बड़ी कंपनी में काम करता है| वही हम सबको यहाँ छोड़ कर गया था|’

‘अच्छा अब समझ आया क्योंकि वह आपका इकलौती संतान है तो आपको लग रहा होगा कि अगर निकिता पूर्ण रूप से स्वस्थ हुई तभी वो आपके बेटे का वंश बढ़ा पाएगी या घर को वारिस दे पाएगी...यही ना|’

‘जी मैडम आपने सही पहचाना...परिवार को बढ़ाने वाली बहु भी तो जरूरी है न|’...बोलकर सुनीता चुप हो गई|

कई बार लोग स्वयं को इतना होशियार मान लेते हैं कि दूसरे पक्ष की ओर सोचना ही नहीं चाहते| हर इंसान जो वह सोच रहा होता है वही पूर्णतः सही लगता है|

‘सुनीता जी आपने अपने बेटे का चेकअप तो पूरे करवा ही लिए होंगे न| तभी आप निकिता और उसके भविष्य को सुरक्षित करने की सोच रही हैं| अगर नहीं करवाए हैं तो आप उसको भी बुला लीजिए| दोनों बच्चों के ही टेस्ट हो जाएंगे| आपको और अनीता जी को तसल्ली हो जाएगी’..मैंने कहा

‘पर मैडम मेरा बेटा तो हमेशा से ही बहुत स्वस्थ व हष्ट पुष्ट रहा है| उसको क्या जरूरत है टेस्ट करवाने के आप ही बताएं|... अब शायद सुनीता जी मेरे से थोड़ा इरिटेट हो रही थी क्योंकि मैंने बात उनके बेटे से जुड़ी की थी| तभी मैंने बात को संभाला..

‘दरअसल सुनीता जी निकिता हो या आपका बेटा किसी के भी हष्ट पुष्ट होने से उनके स्वस्थ होने की पुष्टि हो यह जरूरी नहीं| शरीर के अंदर क्या सही है क्या गलत उस सिर्फ चेक करने के बाद ही पता चलता है| मेरी बातें सुनकर सुनीता जी अब कुछ दबाव में आ गई थी| उनको कहीं अपने ग्रेजुएट होने पर भी बहुत नाज था| साथ ही भविष्य में लड़के वाला होने का दंभ भी उनको बहुत ऊंचा महसूस करवा रहा था| पर मेरे इस प्रश्न से अब उनको समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोलें और क्या न बोले|

तभी डॉक्टर अग्रवाल ने प्रवेश किया तो मैंने सुनीता जी को नार्मल करने के उद्देश्य से बोला..

‘सुनीता जी! अब हम सबसे ज्यादा समझदार डॉ.अग्रवाल आ चुके हैं| वही मेडिकली आपको सबसे सही सलाह दे सकते है| अब आप उन्हीं से बात करिएगा वह जैसा कहें दोनों बच्चों के सुखमय भविष्य के लिए....वही करियेगा|

फिर धीरे से मैंने डॉ अग्रवाल को सुनीता की मानसिकता का ब्रीफिंग भी कर दिया| ताकि वह अपने दृष्टिकोण से उसको समझा सकें| डॉ.अग्रवाल ने सभी बिन्दुओं पर गौर करके सुनीता को खूब अच्छे से कन्विंस किया|

तब निकिता और सुनीता जी के बेटे के पूरे चेकअप हुए| जो की पूर्णता सही थे| तब दोनों ही परिवारों ने डॉक्टर अग्रवाल और मुझे खूब मुस्कुराते हुए अभिवादन किया और सेंटर से विदा ली|

अब मैं बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गई थी| कि सिर्फ़ पढ़ाई करना, इंसान के लिए काफी नहीं होता| सबसे जरूरी है उसकी मानसिकताओं का, पढ़ाई के साथ-साथ बदलना| लड़का हो या लड़की उसकी समझदारी ही भविष्य में उनके जीवन को सुख में बना सकते हैं और उनको मजबूती दे सकतें हैं|

प्रगति गुप्ता