Lahrata Chand - 38 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 38

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लहराता चाँद - 38

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

38

सुबह के आठ बजे का समय है। ठंडी की शीतल लहर अब भी चल रही थी। आकाश कोहरे की चादर में सिमटा हुआ था। सूरज की हल्की सी किरणों को उस कोहरे ने अपने अंदर छुपा लिया था। डाइनिंग हॉल में संजय शॉल ओढ़े बैठे हुए थे। अनन्या और अवंतिका गरम कपड़े पहने बैठे हुए थे। बाहर कुत्ता 'मौजी' भोंक रहा था। अनन्या चिंतित होकर कहा, "पता नहीं आज मौजी क्यों ऐसे भोंक रहा है।"

-"जाकर देख आओ महिआ ने उसे खाना दिया कि नहीं।" शॉल को अपने ऊपर खींचते अनमने संजय ने अनन्या से कहा।

- "पापा आपने कहा था महिआ अपना गाँव चला गया है। फिर महिआ कैसे खाना दे सकता है। मौजी को मैं खाना खिलाकर आती हूँ।" अनन्या मौजी के लिए खाना ले आई।

- "हम्म, महिआ के प्यार ने मौजी को बिगाड़ दिया है। उसके बिना न खाता है ना पीता है। वह मौजी का खूब ख्याल रखा करता था। लगता है मौजी को उसीकी आदत पड़ गई है। इसलिए उसे ढूँढ रहा है।"

- "हाँ पापा, महिआ का अचानक चले जाना मुझे भी अजीब लगा। कहीं उसके जाने के पीछे कोई अन्य कारण तो नहीं?"

- "क्या हो सकता है? वह तो मुझे बताया था कि उसके घर वाले मिल गए हैं और उसकी माँ बीमार है।"

- "फिर मुझे भी बिन बोले ... खैर जाने दीजिए, अगर उसके परिवार मिलने से वह खुश है तो यही सही।" अनन्या अपने मन को समझा लिया। नाश्ते के टेबल से चाय लेकर संजय ने अनन्या से कहा, "बेटा, बहुत दिनों से कुछ कहना चाहता था।

- कहिए ना पापा।

- बेटा! अब मुझमें पहले सी शक्ति नहीं रही फिर भी जब तक जिंदा हूँ तब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ। बेटा अब मैं कोई भी जिम्मेदारी लेने में असमर्थ पाता हूँ। मैं चाहता हूँ मेरे रहते तुम दोनों की शादी हो जाए। तुम्हारी जिम्मेदारी एक सही इंसान के हाथ सौंप कर मैं निश्चिन्त हो जाउँगा। अगर तुम्हारे मन में कोई भी है तो बता दो।"

- "पापा आप ऐसे क्यों कहते हो? आप को कुछ नहीं होगा और आप बिल्कुल तंदुरुस्त हैं। और आपको अकेले छोड़कर हम भला कैसे चले जाएँ? अनन्या ने कहा।

- "हाँ पापा मैं भी दीदी से सहमत हूँ। हम आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाले।" अवन्तिका ने कहा।

- ऐसा मत कहो मेरे बच्चों अब मेरी सेहत पर मुझे भरोसा नहीं। कब कैसा रहेगा, कब क्या होगा ये मैं भी नहीं जानता। आज जीवन है बस मेरे जाने से पहले तुम दोनों की शादी हो जाए और तुम दोनों को खुश देखकर मुझे तसल्ली हो जाएगी।"

- "लेकिन क्या हम आपको अकेले छोड़कर खुश रह सकेंगे? नहीं पापा आप लाख कहो हम आपको इस हालात में अकेले छोड़कर शादी नहीं कर सकते।"

- असहाय देखते हुए उसने पूछा, "तो फिर क्या करें? मैं ऐसे ही मेरे बच्चों को अकेले छोड़कर मर जाउँ? ऊपर जा कर तुम्हारी माँ को क्या मुँह दिखाऊँगा?"

अनन्या जिद्द करते कहा, "हम शादी करेंगे पापा मगर तब जब आप की देखभाल करने कोई होगा।"

- उसमें कौन सी बड़ी बात है ? महुआ चला गया लेकिन कोई दूसरा मिल जाएगा। चिंता मत कर। तू बस शादी के लिए हाँ कहदे।"

- नहीं पापा ऐसे नहीं। नौकर तो कुछ दिनों के लिए रहेंगे फिर महुआ की तरह वह भी चले जाएँगे। फिर कब तक नौकर ढूँढ़ते रहेंगे। हमें स्थायी समाधान चाहिए।

- मतलब?

- हमारी शादी से पहले आपकी शादी होगी, फिर मुझे भी शांति रहेगी कि आपकी देखभाल करने के लिए कोई है। नहीं तो मैं शादी नहीं करूँगी।" जिद्द करते कहा अनन्या।

- अनन्या ये कोई बात हुई? तुम्हारी शादी के लिए मुझे शादी करनी पड़ेगी? मेरी जिंदगी बस कुछ दिनों की है ऐसे में मेरी शादी करना शोभा नहीं देता। मैं कोई शादी वादी नहीं करूँगा।"

- पापा आज तक आपने हमारे लिए अपनी जिंदगी में बहुत सारे सपनें कुर्बान कर दिए। अब हम आपकी जिंदगी में खुशियाँ लाएँगे। हम चाहते हैं आप अपने जीवन में खुशियों का स्वागत करें। आप अब अकेले नहीं रहेंगे। हम आपकी शादी करेंगे। उसके बाद ही आपकी इच्छा पूरी होगी।

- अनन्या ये कैसा बचपना है? मैं हॄदय रोगी हूँ। इस उम्र में शादी करके किसी और की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं कर सकता। जरा सोचो मेरा खुद की जिंदगी का कोई भरोसा नहीं फिर किसी दूसरे की जिंदगी कैसे खराब कर सकता हूँ? ऐसा कुछ नहीं होगा।" कहकर वह अपने कमरे में चला गए।

सब सुन रही अवन्तिका अनन्या को आश्चर्य से देख रही थी। संजय के जाने के बाद उसने पूछा 'दीदी ऐसी कैसी शर्त रख दी आपने? अब क्या पापा को शादी करनी पड़ेगी?"

- हाँ हम कर वाएँगे शादी।

- हम?

- हाँ हम यानी तुम और मैं।

- क्या यह सम्भव हो पाएगा?

- क्यों नहीं मैंने तुम्हें इस बारे में पहले भी बताया था कि हम पापा को शादी के लिए मनाएँगे और अंजली आँटी को भी।

- दीदी मैं भी नहीं चाहूँगी कि ये शादी हो। मैं कभी अंजली आँटी को मेरे घर में माँ की जगह पर देख नहीं सकती। मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ।

- अवन्तिका ऐसे न बोल। पापा ने पूरी जिंदगी हमारे लिए कुर्बान करदी। कभी उन्होंने दूसरी शादी के लिए सोचा भी नहीं। उन्हें तिल-तिलकर माँ के याद में घुटते देखा है मैंने। अगर पापा की शादी नहीं होगी तो मैं भी यहीं इसी तरह पापा के खातिर रहने को तैयार हूँ। ये मेरा आखिरी फैसला है।"

अवन्तिका को कुछ कहने को नहीं रहा। वह बड़ी बड़ी आँखों से दीदी को घूरती रह गई। उसने अनन्या का यह रूप कभी नहीं देखा था। उसकी जिद्द कहाँ तक ले जाएगी यह सोचती रही।

अनन्या अवन्तिका को हिलाकर कहा, "हेल्लो मैडम कहाँ खो गई? ऑफिस नहीं जाना है?"

- हाँ जाती हूँ। कहकर वह तैयार होने चली गई।

जैसे ही अवन्तिका ऑफिस के लिए निकली अनन्या हैंडबैग उठाकर निकल पड़ी। वह सीधा अंजली के घर जा पहुँची। अंजली सोफे पर बैठे चाय पी रही थी। अनन्या को देख आश्चर्य से पूछा, " अनन्या तुम? आज इतने सुबह?"

- हाँ आँटी।

- बैठो चाय लेकर आती हूँ।"

- नहीं आँटी आप बैठो मैं आप से बात करने आई हूँ।

"ठीक है, एक मिनट! कहकर राधारानी को बुलाई और अनन्या के लिए चाय बिस्कुट लाने के लिए कहा। "हाँ बोलो अनन्या सब ठीक तो है? पापा की तबियत कैसी है?"

- सब ठीक है। मैं आप से कुछ जरूरी काम से मिलने आई हूँ।

- हाँ कहो।

- क्या आप मेरे पापा से शादी करोगी?

अनन्या की इस सवाल से चाय पी रही अंजली के चाय हलक पर ही अटक गया और वह खाँसने लगी। कुछ देर में खुद को सँभाला और आश्चर्य से अनन्या की ओर देखा।

- मेरे प्रश्न का जवाब दीजिए आँटी। उसकी आवाज़ में जिद्द थी।

- अनन्या ये कैसा सवाल है? शादी और तुम्हारे पापा से ...

- हाँ मुझे पता है, आप कभी मेरे पापा से प्यार करते थे। और आज भी आप इसीलिए शादी नहीं की, ऐसे में मेरा ये सवाल करना वाजिब है।"

- थोड़ा शान्त हो जाओ अनन्या। ऐसी बातें यूँ ही नहीं होती। और तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि मैं शादी करने को तैयार हो जाऊँगी?

आँटी, आप मेरे पापा को बहुत अच्छी तरह जानती हैं, और उनकी तबियत के बारे में भी। हमारे घर की कोई भी बात आपसे छुपी नहीं है ऐसे में आपके लिए मेरे पापा को सँभालना बहुत आसान होगा। हमने मतलब हम नहीं मैं... मैं बहुत सोच समझ कर यह फैसला लिया है। क्या आप मेरे पापा से शादी करोगी?"

तभी अनन्या के लिए चाय लेकर पहुँची राधाराणी अनन्या की बात सुन कर चाय लेकर यूँ ही आश्चर्य से देखती रह गई। अंजली ने उसे देख उसकी हाथ से चाय लेकर, "राधारानी तुम अंदर जाओ।" कहकर चाय अनन्या की ओर बढ़ाई फिर कहा, "अनन्या पहले चाय पीओ। आराम से बात करते हैं।"

राधाराणी के जाने के बाद अंजली ने अनन्या की ओर मुड़कर कहा, "अनन्या तुम ऐसे कैसे सोच लिया कि मैं... ?"

- "पता है आँटी आपने कहा था कि आपकी जिंदगी में कोई था। लेकिन वह आप को नहीं किसी और को चाहता था। मैं उसी दिन ही समझ गई थी वह कोई और नहीं वह पापा ही हैं।"

- "अनन्या?" आश्चर्यजनक नज़र से उसे देख रही थी।

- "हाँ आँटी जब भी आप पापा के साथ होती हैं मैंने पापा के लिए आपकी आँखों मे चमक और निस्वार्थ प्रेम देखा है। इसलिए मैंने आप से यह बात कहने की हिम्मत की।"

- अनन्या अभी तुम बच्ची हो ऐसी बातों के लिए... " फिर कुछ सोचकर अंजली ने कहा, "ठीक है अब शान्ति से चाय पीओ हम इस बारे में बाद में बात करते हैं। लेकिन ये बताओ तुम्हारे दिल में क्या चल रहा है?"

अनन्या ने सुबह घर में जो बातेँ हुई और उसके मन में चल रही सारी बातें बिना छुपाए सब साफ साफ अंजली को बताया।

- "आप से बहुत उम्मीदें हैं आँटी मना मत कीजिए। आप ही हमारे पापा का ख्याल रख सकेंगी।" अनन्या ने अंजली का हाथ पकड़कर कहा।

- "मुझे सोचने दो अनन्या।"

अंजली ने उसे दिलासा दिलाया कि वह जल्दी इसका कोई हल निकालेगी। उसने अनन्या को समझाकर घर भेज दिया।