Charlie Chaplin - Meri Aatmkatha - 16 in Hindi Biography by Suraj Prakash books and stories PDF | चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 16

Featured Books
Categories
Share

चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 16

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

16

शिकागो में हम वाबाश एवेन्यू में एक छोटे होटल में रहते थे। जीर्ण-शीर्ण और मनहूस होने के बावजूद इसमें एक रोमानी आकर्षण था क्योंकि बर्लेस्क की अधिकांश लड़कियां वहाँ रहती थीं। हर शहर में हम उस होटल के बाहर मधुमक्खियों की तरह लाइन लगा देते जहाँ शो वाली लड़कियाँ ठहरती थीं। पर जिस चक्कर में जाया करते थे उसमें कामयाब नहीं हुए। ऊँचाई पर चलने वाली ट्रेनें रात को तेज़ी से निकलतीं और रह-रह कर पुराने बाइस्कोप की तरह मेरे सोने के कमरे की दीवाल को झिलमिला जातीं। फिर भी, मुझे इस होटल से प्यार था, हालांकि कभी कुछ रोमानी घटित हुआ नहीं।

एक जवान लड़की, शांत और सुंदर, किसी कारण से हमेशा अकेली रहती थी, उसे चलते देखकर लगता, जैसे अपने प्रति बेहद सचेत है। होटल की लॉबी में आते-जाते उसके पास से होकर कई बार गुज़रा पर इतनी हिम्मत कभी जुटा नहीं पाया कि परिचय पाऊं। वैसे ये तो कहना ही पड़ेगा कि अपनी तरफ से उसने कभी पत्ता नहीं फेंका।

शिकागो से कोस्ट हम जिस ट्रेन में जा रहे थे, वो लड़की भी उसी में थी। वेस्ट जाने वाली बर्लेस्क कंपनियां आम तौर पर हमारे ही रास्ते होकर जातीं। और उनका कार्यक्रम भी एक ही शहर में पड़ता। गाड़ी में मैंने उसे अपनी कंपनी के एक सदस्य से बात करते देखा। बाद में वह मेरे पास आकर बैठा।

मैंने पूछा, "कैसी लड़की है वो?"

"बड़ी ही प्यारी। बेचारी, अफसोस होता है उसके लिए!"

"क्यों?"

वह झुककर और पास आ गया,"याद है, हवा उड़ी थी कि शो की किसी लड़की को सिफलिस है? बस, यही है।"

सीटल में उसे कंपनी छोड़ने दिया गया। वह अस्पताल में भर्ती हुई। हमने उसके लिए पैसे इकट्ठा किए जिसमें सारी घुमंतू कंपनियों ने योगदान दिया। बेचारी के बारे में सबको पता था। अलबत्ता, वो सबकी शुक्रगुजार थी और बाद में सैलवरसम की सुई, जो उस समय अभी नयी दवा थी, लेकर ठीक हुई। और फिर से अपनी कंपनी में वापस आ गयी।

उन दिनों पूरे अमेरिका में वेश्यावृत्ति बेरोक-टोक फैल रही थी। शिकागो का विशेष नाम हाउस ऑफ ऑल नेशन्स के चलते था जिसे दो अधेड़ उम्र की महिलाएं, ईवरली बहनें चलाती थीं। इसकी ख्याति इस बात में थी कि यहाँ हर देश की औरतें उपलब्ध थीं। कमरों के फर्नीचर भी हर स्टाइल के थे : तुर्की, जापानी, लूइ XVI, यहाँ तक की अरबी तंबू भी। ये दुनिया का सबसे खर्चीला रंडी बाज़ार था। बड़े-बड़े लखपति, उद्योगपति, कैबिनेट मंत्री, सीनेटर और जज, सभी इसके ग्राहक थे। आम तौर पर किसी एक परिपाटी के लोग पूरे रंडी बाज़ार को ही एक शाम के लिए अपने कब्जे में लेने का ठेका कर लेते करते थे। बताते हैं कि एक बहुत बड़े ऐय्याश ने वहाँ ऐसा डेरा जमाया कि तीन हफ्ते तक उसने दिन का उजाला भी नहीं देखा।

जितना ही हम पश्चिम की तरफ बढ़ते गए, उतना ही मुझे यह पसंद आता गया। ट्रेन के बाहर जंगली ज़मीन के विशाल फैलाव को देखकर मेरे मन में आशा का संचार होता, भले ही जगह सुनसान और मटमैली हो। खुली जगह रूह के लिए अच्छी होती है। हृदय को विशाल बनाती है। मेरे देखने का नज़रिया बड़ा होता था।

क्वीवलैंड सेंट लुइ, मिन्निपोलिस, सेंट पॉल, कानसास सिटी, डेनवर, बट, बिलिग्स, जैसे शहरों में आने वाले कल की हलचल थी जो मेरी नस-नस को तड़का रही थी।

दूसरी रंगारंग कार्यक्रमों वाली कंपनियों से कई सदस्य हमारे दोस्त बने। हर शहर में रेड लाइट इलाकों में हम में से छ: या उस से अधिक लोग इकठठे् हो जाते। कभी-कभी किसी वेश्यालय की मैडम को हम लोग पटाने में कामयाब हो जाते। वो उस रात के लिए "अड्डा" बंद कर देती और फिर हमारा राज होता। यदा-कदा लड़कियां अभिनेताओं पर फ़िदा हो जातीं और अगले शहर तक उनका पीछा करतीं।

बट्ट, मोन्टाना के रेड-लाइट इलाके लम्बी सड़कों और उनसे लगे अगल-बगल के छोटे रास्तों वाले हुआ करते थे जिसमें सैकड़ों झोपड़ियां थीं, और खाटें लगी होती थीं। इनमें जो लड़कियां मिलती थीं उनकी उम्र सोलह साल से शुरू होती थी - एक डॉलर में उपलब्ध। बट्ट को किसी भी रेड लाइट इलाके के मुकाबले अपने यहाँ ज्यादा सुंदर लड़कियां होने का नाज़ था और ये सच था भी। जहाँ कोई सुंदर-सी लड़की आकर्षक कपड़ों में दिखी, देखने वाला समझ जाता था कि रेड लाइट वाली है, अपनी शॉपिंग कर रही है। धंधे का टाइम न हो तो वो दाएं-बाएं नहीं झाँकती थी और इज़्ज़तदार हो जाती थीं। कई बरस बाद मैं सॉमर सेट मॉम से उनके सेडी थामसन के चरित्र को लेकर उलझ पड़ा था। जहाँ तक मुझे याद है, जीन ईगल्स ने उसे स्प्रिंग साइड बूट वगैरह पहना कर पूरा ऊट-पटांग सा रूप दे दिया था। मैंने उन्हें बताया, जनाब ऐसे कपड़े बट्ट मोन्टाना में कोई भी धंधे वाली पहन ले तो एक अधेला नहीं कमा पाएगी।

1910 में बट्ट, मोन्टाना अभी भी "निक कार्टर" वाला शहर था। लम्बे-लम्बे बूट और दस गैलन वाली टोपियां और लाल गुलूबंद लगाए खान मजदूरों का शहर। बंदूक का खेल मैंने अपनी आँखों से सड़कों पे देखा, जिसमें एक बूढ़ा शैरिफ भगोड़े कैदी के पैरों पर निशाना लगा रहा था। तकदीर से वो बाद में एक बंद गली में फंस गया, और कुछ हुआ नहीं।

हम जैसे जैसे पश्चिम की तरफ बढ़ते जाते, मेरा दिल उतना ही खुश होता जाता। शहर ज्यादा साफ़ थे। रास्ते में विनिपेग, टेकोमा, सीटल, वैंकूवर और पोर्टलैंड पड़ते थे। विनिपेग और वैंकूवर में ज्यादातर दर्शक अंग्रेज थे और अपने अमेरिकी झुकाव के बावजूद उनके सामने अभिनय करने में आनंद आया।

और अंत में केलिफोर्निया! खिली धूप, संतरे और अंगूर के बाग, और प्रशांत महासागर के तट पर हज़ारों मील तक फैले ताड़ के वृक्षों का स्वर्ग! पूर्व का प्रवेश द्वार सैन फ्रांसिस्को अच्छे व्यंजनों और सस्ते दामों का शहर, जिसने मुझे पहली बार मेंढ़क की टांग का जायका दिया। खालिस वहीं की च़ाज, स्ट्रॉबेरी शॉर्ट केक और एवोकेडो नाशपाती।

हम 1910 में पहुँचे जब शहर 1906 वाले भूकंप से, या उनके शब्दों में कहें तो आग से, उबर चुका था। पहाड़ी रास्तों में अभी एक या दो दरारें थीं लेकिन नुक्सान का कोई अवशेष नहीं। हर चीज़ नयी और चमचमाती हुई थी। मेरा छोटा होटल भी।

हमारा कार्यक्रम एम्प्रेस में था। इसके मालिक थे सिड ग्राउमैन और उनके पिता, बड़े ही मिलनसार और सामाजिक लोग। पहली बार पोस्टर पर मैं अकेला था और कार्नो का नाम तक नहीं था। दर्शक - क्या खूब! "वाऊ वाऊज़" नीरस था किर भी हर शो खचाखच भरा और ठहाकों से गूँजता हुआ होता। ग्राउमैन ने उत्साहित होकर कहा,"कार्नो साहब का काम जब भी निपट जाय, मेरे पास आना, हम लोग मिलकर शो करेंगे।" मेरे लिए यह उत्साह नयी बात थी। सैन फ्रांसिस्को में उम्मीद और मेहनत के ज़ज्बे को महसूस किया जा सकता था।

दूसरी ओर लॉस एंजेल्स, बदसूरत शहर था। गर्म और कष्टदायक। लोग मरियल और कांतिहीन लगते थे। जलवायु ज्यादा गर्म थी पर सैन फ्रांसिस्को वाली ताज़गी नहीं थी; प्रकृति ने उत्तरी कैलिफोर्निया को वो संपदाएं दी हैं जो विल्सायर बोलेवियर वाले प्रागैतिहासिक कोलतार के गड्ढों में हॉलीवुड के गायब हो जाने के बाद भी फलती-फूलती रहेंगी।

हमने अपना पहला दौरा मोरमोन्स के गृह नगर साल्ट लेक सिटी में समाप्त किया। मैं मोज़ेज और इज़राएल के बच्चों के बारे में सोचने लगा। शहर काफ़ी फैला और खुला हुआ है जो सूरज की गर्मी में मरीचिका की तरह थर्राता सा दिखता है। सड़कों की चौड़ाई का अंदाज वही लगा सकता है जिसने विशाल मैदानों को पार किया हो। मोरमोन्स की ही तरह शहर अकेला और कठोर है। देखने वाले भी वैसे ही थे।

सलिवान एंड कॉन्सीडाइन सर्किट में "वाउ वाउ'ज" के प्रदर्शन के बाद हम न्यू यार्क वापस आ गए जहाँ से सीधे इंगलैंड लौटने का इरादा था, लेकिन मिस्टर विलियम मॉरिस, जो दूसरे रंगारंग ट्रस्टों से लड़ रहे थे, ने हम लोगों के पूरे दल को न्यू यार्क शहर में फोर्टीथर्ड स्ट्रीट पर स्थित अपने थिएटर में छह हफ्ते के कार्यक्रम के लिए बुक किया। हमने ए नाइट इन एन इंग्लिश म्यूज़िक हॉल से शुरुआत की। इसमें भारी सफलता मिली।

सप्ताह के दौरान एक युवक और उसके दोस्त लड़कियों से मुलाकात होने तक का समय काटने के लिए इधर उधर डोलते हुए विलियम मॉरिस के अमेरिकन म्यूजिक हॉल में घुस गए। यहाँ, उन लोगों ने हमारा शो देखा। उनमें से एक ने कहा, "मैं कभी बड़ा बना तो एक आदमी है जिसे अपने लिए लूँगा।" वो "ए नाइट इन एन इंग्लिश म्यूलिक हॉल" की बात कर रहा था। उस समय वह जी डब्लू ग्ऱिफिथ के लिए प्रति दिन पाँच डॉलर पर बायोग्राफ कंपनी में फिल्म के एक्स्ट्रा के रूप में कार्य कर रहा था। वह व्यक्ति था, मैक सेनेट जिसने बाद में कीस्टोन कंपनी बनायी।

न्यू यार्क में विलियम मॉरिस के लिए छ: सप्ताह का सफल कार्यक्रम करने के बाद एक बार फिर सलिवान एंड कंसिडाइन सर्किट के लिए बीस हफ्तों के दौरे के लिए हमारी बुकिैग हो गयी।

दूसरा दौरा समाप्ति के करीब आने लगा तो मैं उदास हो उठा। तीन ही सप्ताह रह गए थे: सैन फ्रांसिस्को, सैन डिएगो, सॉल्ट लेक सिटी और उसके बाद वापिस इंगलैंड।

सैन फ्रांसिस्को से रवाना होने के एक दिन पहले मार्केट स्ट्रीट पर टहलते हुए मैंने एक छोटी सी दुकान देखी जिसमें पर्दे वाली खिड़कियां थीं। लिखा था, "हाथ और पत्ते देख कर आपकी तकदीर बतायी जाती है - एक डालर।" मैं अंदर गया, जरा झेंपता हुआ। मेरा सामना भीतर के कमरे से निकलती हुई लगभग बयालिस साल की एक सुंदर औरत से हुआ। वह भोजन के बीच में ही उठ कर आ गई थी। खाना चबाते हुए उसने लापरवाही से एक छोटी टेबल की ओर इशारा किया जिसमें दीवार की ओर पीठ और दरवाजे की ओर मुख पड़ता था। मेरी ओर देखे बिना उसने कहा,"बैठ जाइये," और दूसरी तरफ खुद बैठी। उसके तौर तरीके बड़े बेढंगे थे। "पत्तों को इधर उधर करो, और तीन बार मेरी तरफ काटो और टेबल पर अपनी खुली हथेली रखो।" उसने पत्ते उलटे, सामने फैलाया और उनका अध्ययन किया। फिर मेरे हाथ देखे। "लंबी यात्रा के बारे में सोच रहे हो, यानी स्टेट्स छोड़ दोगे। पर जल्द ही वापस लौटोगे और एक नया धंधा शुरू करोगे - जो अभी कर रहे हो उससे कुछ अलग।" इसके बाद वह कुछ हिचकिचाई और भ्रम में पड़ गयी, "लगभग वैसा ही, लेकिन अंतर है। इस नए कारोबार में मुझे भारी सफलता दिखाई दे रही है। तुम्हारे सामने जबर्दस्त कैरियर पड़ा हुआ है। पर मुझे नहीं पता क्या है?" पहली बार उसने नज़रें ऊपर कीं। फिर मेरा हाथ लिया, "अरे, हाँ, तीन शादियाँ हैं: पहली दोनों नहीं चलेंगी, लेकिन अंत में तीन बच्चों के साथ सुखी विवाहित जीवन बिताते हुए आपकी ज़िंदगी कटेगी।" (यहाँ वो गलत थी!)। इसके बाद फिर से उसने मेरा हाथ देखा,"हाँ, पैसा बहुत ज्यादा कमाओगे; कमाने वाला हाथ है।" फिर उसने मेरा चेहरा देखा,"श्वास नली के न्यूमोनिया से मरोगे, बयासी साल की उम्र में। एक डॉलर, प्लीज़। और कुछ पूछना चाहोगे?"

"नहीं," मै हँसा, "मुझे लगता है, मैं अकेला अच्छा खासा जाऊँगा।"

साल्ट लेक सिटी में समाचार पत्र अपहरण और बैंक डकैतियों से भरे रहते थे। नाइट क्लबों और कैफे के ग्राहकों को कतार में दीवार की तरक मुँह किए हुए खड़ा करवा कर नकाबपोश लुटेरे लूट लेते थे। एक ही रात में डकैती की तीन घटनाएं हो गयी थीं और पूरे शहर में आतंक फैल गया था।

शो के बाद हम पीने के लिए पास के किसी सैलून में चले जाते थे, और यदा-कदा ग्राहकों से परिचय हो जाया करता था। एक शाम एक मोटा, खुश-मिजाज़, गोल चेहरे वाला आदमी दो और लोगों के साथ आया। उनमें से उम्र में सबसे बड़ा, वो मोटा आदमी आगे आया, "उस अंग्रेज़ी नाटक में तुम्हीं लोग साम्राज्ञी की भूमिका कर रहे हो?"

हम लोगों ने मुस्करा कर सिर हिलाया,"तभी तो कहूँ मैंने तुम लोगों को पहचान लिया! अरे! आओ आओ!" उसने अपने साथ आए उन लोगों को बुलाया और उनसे परिचय करा कर हमें ड्रिंक ऑकर किये।

मोटा अंग्रेज़ था - वैसे वो उच्चारण अब नाम मात्र को रह गया था - लगभग पचास का, अच्छे स्वभाव का, छोटी चमकती आँखों और लाल सुर्ख चेहरे वाला आदमी।

रात जैसे-जैसे बीतती गयी, उसके दोनों दोस्त और मेरे साथ के लोग बार की ओर चले गए। मैं "मोटू" के साथ अकेला रह गया। उसके दोस्त उसे यही कहकर पुकारते थे।

वह हमराज़ हो गया। "उस पुराने देश में तीन साल पहले मैं गया था।" उसने कहा,"लेकिन ये वैसा नहीं है - यही तो जगह है। यहाँ तीस साल पहले आया। कुछ नहीं था। बस, एक अनाड़ी मोन्टाना कॉपर में स्सालों मेहनत करते-करते चूतड़ घिस जाती थी। फिर दिमाग लगाया। मैं कहता हूं यही तो खेल है, अब अपने पास मुस्टण्डे हैं। काम करने को। उसने नोटों की मोटी गड्डी बाहर निकाली।"

"चलो एक और ड्ऱिंक लेते हैं," "बच के!" मैंने मज़ाक में कहा, "पकड़े जा सकते हो!"

उसने मुझे बड़ी शैतानी, और जानकार मुस्कुराहट से देखा फिर आँख मार कर कहा, "ये नहीं बच्चू!"

जिस ढंग से उसने आँख मारी, मैं अंदर तक सहम गया। इसका मतलब बहुत बड़ा था। वैसे ही मुस्कराते हुए और मुझ पर अपनी नज़रें उसी तरह टिकाए वह बोलता गया,"समझ रहे हो?" उसने कहा। मैंने समझदारी से सिर हिलाया।

इसके बाद गूढ़ भाव से अपना चेहरा मेरे कान के पास लाकर उसने बात शुरू की,"उन दो पट्ठों को देख रहे हो?" वह अपने मित्रों के बारे में फुसफुसाया,"वही अपना लश्कर है, दो उल्लू के पठ्ठे, दिमाग़ जरा भी नहीं, लेकिन जिगर फौलाद का।"

मैंने सावधानी से अपने होठों पर उंगली रखी कि लोग सुन लेंगे, वो आहिस्ता बोले।

"ठीक है, भाईजान, हम लोग आज रात जहाज से निकल रहे हैं।" उसने आगे कहा, "सुनो, हम तो पुराने जहाजी ठहरे, है न? तुम्हें कई बार इलिंगटन एम्पायर में देखा है जाते आते।" मुँह बनाकर उसने कहा,"मुश्किल काम है मेरे भाई।"

मैं हँस पड़ा।

और गहरा राज़दार बनने के बाद उसने मुझसे ताउम्र दोस्ती करनी चाही और मेरा न्यू यार्क का पता माँगा।

"बीते दिनों की खातिर कभी दो-एक लाइन तुम्हें लिखूंगा।"

शुक्र है फिर उसने कभी संपर्क नहीं किया।