Charlie Chaplin - Meri Aatmkatha - 14 in Hindi Biography by Suraj Prakash books and stories PDF | चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 14

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 14

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

14

1909 में मैं पेरिस गया। फोलीज़ बेरजेरे ने कार्नो कम्पनी को एक महीने की सीमित अवधि के लिए प्रदर्शन करने के लिए अनुबंधित किया था। मैं दूसरे देश में जाने के ख्याल से ही कितना उत्तेजित था। यात्रा शुरू करने से पहले हमने एक सप्ताह के लिए वूलविच में प्रदर्शन किये। ये एक वाहियात शहर में बिताया गया वाहियात और सड़न भरा सप्ताह था और मैं परिवर्तन की राह देख रहा था। हमें रविवार की सुबह निकलना था। मुझसे गाड़ी, बिल्कुल छूटने वाली ही थी। किसी तरह भाग कर मैंने प्लेटफार्म से छूटती गाड़ी पकड़ी। मैं सामान वाला आखिरी डिब्बा ही पकड़ पाया था। उन दिनों मुझे गाड़ियां मिस करने में महारत हासिल थी।

चैनल पर तेज धूंआधार बरसात होने लगी। लेकिन कोहरे में लिपटे फ्रांस को पहली नजर से देखना कभी न भूलने वाला रोमांचक अनुभव था। ...ये इंगलैंड नहीं है। मुझे अपने आपको बार-बार याद दिलाना पड़ रहा था। ये महाद्धीप है। फ्रांस। मैंने अपनी कल्पना में हमेशा इसे देखने की अपील की थी। मेरे पिता आधे फ्रेंच थे। दरअसल, चैप्लिन परिवार मूलत: फ्रांस से इंगलैंड में आया था। वे फ्रांसीसी प्रोटैस्टेंट इसाई ह्यूग नॉट्स के वक्त इंगलैंड की धरती पर उतरे थे। पिता के चाचा अक्सर गर्व से कहा करते कि एक फ्रांसीसी जनरल ने चैप्लिन परिवार की इंगलैंड शाखा की नींव रखी थी।

ये ढलती शरद ऋतु के दिन थे। और कैलाइस से पेरिस तक की यात्रा बेमज़ा थी। इसके बावजूद, जैसे-जैसे हम पेरिस के निकट पहुंचते गये, मेरी उत्तेजना बढ़ती चली गयी। हम अंधेरे, अकेले गांवों से गुज़र कर जा रहे थे। धीरे-धीरे धूसर आसमान में हमने रौशनी के दर्शन किये।... वो ही है पेरिस का प्रतिबिंब, गाड़ी में हमारे साथ यात्रा कर रहे एक फ्रेंच आदमी ने बताया।

पेरिस में वह सब कुछ था जिसकी मैं उम्मीद कर रहा था। गारे दू नोर्द से रू ज्योफ्रे मारी तक की यात्रा ने मुझे उत्तेजना और अधैर्य से भर दिया। मैं हर नुक्कड़ पर उतर कर पैदल चलना चाहता था। इस समय शाम के सात बज रहे थे। कैफ़े से आमंत्रित करती सी सुनहरी बत्तियां चमक रही थी। और उनके बाहर सजी मेज़ें जीवन के आनंद की बातें कर रही थीं। कुछेक कारों के नये आगमन के अलावा ये अभी भी मौने, पिसारो तथा रेनॉइर का ही पेरिस था। रविवार का दिन था और लग रहा था जैसे हर आदमी उत्सव के मूड में है। उत्सव और उल्लास वहां की फ़िजां में थे। यहां तक कि रूओ ज्योफ्रे मारी में मेरा पत्थर की दीवारों वाला कमरा जिसे मैं अपनी कारागार कहता था, मेरे उत्साह को दबा नहीं पाया क्योंकि सारा वक्त तो मैं बिस्त्राñ और कैफे के बाहर लगी मेज़ों पर ही बैठा रहता था।

रविवार की रात फ्री थी। इसलिए हम फोलिज़ बेरजेरे में शो देख पाये। हमें यहीं पर अगले सोमवार से अपना नाटक शुरू करना था। मैंने सोचा कि कोई भी थियेटर इतने अधिक ग्लैमर के साथ, अपनी चमक-दमक और ठाट-बाट के साथ अपने दर्पणों और बड़े बड़े स्फटिक के फानूसों के साथ चमका नहीं था। मोटे-मोटे कालीन बिछे फोयर में तथा ड्रेस सर्किल में सारी दुनिया मौजूद थी। बड़ी-बड़ी गुलाबी रत्न जड़ित पगड़ियां बांधे भारतीय युवराज, कलगी लगे टोपों में फ्रेंच और टर्की अधिकारी जो शराब घरों में कोनियाक की चुस्कियां लेते नज़र आ रहे थे। बाहर की ओर बड़े फोयर में संगीत की लहरियां बज रही थीं और महिलाएं अपनी पोशाकों को और अपने फर कोटों को सहेजती, संभालती घूम रही थीं और अपने संगमरमरी सफेद कंधों की झलक दिखा रही थीं। वे ऐसी महिलाओं का संसार था जिन्हें फोयर में बने रहने और ड्रेस सर्कल में मौजूद रहने की लत लगी हुई थी और वे चतुराई से वहां अपनी मौजूदगी दर्ज करातीं और चहकती फिरतीं। वे उन दिनों वाकई खूबसूरत और विनम्र हुआ करतीं।

फोलिज़ बेरजेरे में व्यावसायिक दुभाषिये भी थे जो अपनी टोपी पर दुभाषिया का बिल्ला लगाये थियेटर के फोयर में घूमते रहते। मैंने उनमें से प्रमुख दुभाषिये से दोस्ती कर ली जो बहुत सारी भाषाएं धड़ल्ले से बोल सकता था।

शाम को अपने प्रदर्शन के बाद मैं अपनी स्टेज की शाम वाली पोशाक पहन लेता और मज़ा मारने वालों की भीड़ में शामिल हो जाता। उनमें से मुझे एक ऐसी हसीना मिली जिसने मेरा दिल ही छीन लिया। इस तन्वंगी हसीना की गर्दन हंसनुमा थी और उसकी रंगत सफेद थी। वो छोकरी छरहरी थी और बेहद खूबसूरत थी। उसकी सुतवां नाक और लम्बी गहरी बरौनियां थीं। उसने काली मखमली पोशाक पहनी हुई थी और हाथों में सफेद दस्ताने थे। जब वह ड्रेस सर्कल की सीढ़ियां चढ़ने लगी तो उसने अपना एक दस्ताना गिरा दिया। मैंने लपक कर उसका दस्ताना उठा लिया।

"..माफ करना "उसने कहा

"काश, आप इसे एक बार फिर गिरातीं!" मैंने बदमाशी से कहा।

"माफ करना?"

तब मैंने महसूस किया कि उसे अंग्रेजी नहीं आती और मुझे फ्रेंच बोलनी नहीं आती। इसलिए मैं भागा-भागा अपने दुभाषिए दोस्त के पास गया,"उधर एक बला की खूबसूरत लड़की खड़ी है जिसने मेरी कामुकता जागृत कर दी है। लेकिन वह खासी महंगी लग रही है।"

उसने कंधे उचकाये,"एक लुइस से ज्यादा नहीं,"

"तक तो ठीक है," मैंने कहा, हालांकि उन दिनों एक लुइस भी अच्छी खासी रकम हुआ करती थी। मैंने सोचा, और ये थी भी।

मैंने दुभाषिए से एक पोस्टकार्ड की दूसरी तरफ कई फ्रेंच अभिव्यक्तियां लिखवा कर रख ली थीं जैसे जब से मैंने आपको देखा है, मैं होश खो बैठा हूं। इत्यादि जिन्हें मैं ऐसे पवित्र मौकों पर इस्तेमाल करने का इरादा रखता था। मैंने दुभाषिए से कहा कि वह शुरुआती धंधेदारी की बातें करवा दे और उसने हमारे लिए दूत का काम किया। इधर से उधर संदेशों का अदान प्रदान करता रहा। आखिर वह वापिस आया और कहने लगा,"सब कुछ तय हो गया है। एक लुइस में। लेकिन तुम्हें उसके घर तक जाने और वापिस आने का टैक्सी का किराया देना होगा।"

मैं एक पल के लिए चकराया,"वह रहती कहां है?" मैंने पूछा।

"किराये में दस सेंट से ज्यादा नहीं लगेंगे।"

दस सेंट्स की रकम दिल दहला देने वाली थी क्योंकि मैंने इस अतिरिक्त खर्च की उम्मीद ही नहीं की थी। मैंने मजाक में पूछा,"क्या वो पैदल नहीं चल सकती?"

"सुनो, लड़की आला दर्जे की चीज़ है। सिर्फ किराये के लिए लफड़ा मत करो।" उसने बताया।

मैं आखिर तैयार हो गया।

जब सब कुछ तय कर लिया गया तो मैं ड्रेस सर्कल की सीढ़ियों पर उसे पास से गुजरा। वह मुस्कुरायी और मैंने मुड़ कर उसकी तरफ देखा।..."आज शाम!"

"अच्छी बात है महाशय"

चूंकि हमारे प्रदर्शन पूरा होने में टाइम था, मैंने उससे वायदा किया कि हम प्रदर्शन के बाद वहीं मिलते हैं। मेरे दोस्त ने कहा,"तुम टैक्सी मंगाना और मैं तब तक लड़की लेकर आऊंगा, इससे टाइम बरबाद नहीं होगा।"

"टाइम बरबाद?"

हमारी गाड़ी जब बोलेवियर दे इतालियंस के पास गुजरी तो उसके चेहरे पर रौशनी और छाया के चहबच्चे अठखेलियां कर रहे थे। मैंने अपने पोस्टकार्ड पर लिखी फ्रेंच पर उड़ती सी निगाह डाली और उससे कहा..."आप मुझे बहुत अच्छी लगी हैं!"

वह अपने सफेद चमकीले दांत झलकाती हुई हँसी,"आप बहुत अच्छी फ्रेंच बोल लेते हैं।"

मैं भावुक हो कर आगे बोलता रहा," जब से मैंने आपको देखा है, मैं होश खो बैठा हूं। "

वह फिर हँसी और उसने मेरी फ्रेंच सुधारी...और समझाया कि मैं अनौपचारिक जबान का इस्तेमाल करूं और उसे तू या तुम कहूं। उसने इसके बारे में सोचा और फिर हँसी। तब उसने अपनी घड़ी की तरफ देखा। लेकिन घड़ी बंद हो गयी थी। तब उसने इशारे से बताया कि वह समय जानना चाहती है। और बताया कि ठीक बारह बजे उसे एक बहुत ही जरूरी एपाइंटमेंट पर जाना है।

"आज शाम तो नहीं," मैंने झिझकते हुए जवाब दिया।

"हां आज शाम ही"

"लेकिन आप तो आज की पूरी शाम के लिए इंगेज हैं मोहतरमा? पूरी रात के लिए"

वह अचानक बदहवास दिखने लगी,"ओह, नहीं, नहीं, पूरी रात के लिए नहीं।"

इसके बाद वह जिद पा आ गयी,"फिलहाल के लिए बीस फ्रांक!"

"ये क्या है?" उसने जोर दे कर जवाब दिया।

"आयम सौरी," मैंने कहा,"मेरा ख्याल है हम टैक्सी यहीं रुकवा दें।"

और तब टैक्सी को उसे फालिज़ बेरजेरे में वापिस छोड़ आने का भाड़ा दे कर मैं टैक्सी से उतर गया। उस समय मुझसे ज्यादा उदास, और मोहभंग आदमी कौन रहा होगा।

हमें फालिज़ बेरजेरे में दस हफ्ते तक प्रदर्शन करने थे क्योंकि हम बहुत अधिक सफल जा रहे थे लेकिन कार्नो साहब की दूसरी बुकिंग थी। मेरा वेतन छ: पाउंड प्रति सप्ताह था और मैं इसकी पाई पाई खर्च कर रहा था। मेरे भाई सिडनी का एक कज़िन, जो उसके पिता की ओर से उसका कोई लगता था, मेरे परिचय में आया। वह अमीरजादा था और तथाकथित उच्च वर्ग से नाता रखता था। जिन दिनों वह पेरिस में था, उसने मुझे खूब समय भी दिया और घुमाया भी। उसे भी स्टेज के कीड़े ने काटा था और वह स्टेज का इस हद तक दीवाना था कि उसने अपनी मूंछें तक मुंड़वा डालीं ताकि वह हमारी ही मंडली के किसी सदस्य जैसा लग सके और उसे बैक स्टेज में आने दिया जाये।

दुर्भाग्य से उसे इंगलैंड लौट जाना पड़ा, जहां मेरा ख्याल है कि उसके मां बाप ने उसकी अच्छी खासी सिकाई की गयी और उसे उसके महान माता पिता ने दक्षिण अफ्रीका भेज दिया।

पेरिस में जाने से पहले मैंने सुना था कि हैट्टी की मंडली भी फालिज़ बेरजेरे में ही प्रदर्शन कर रही है, इसलिए मुझे पूरा यकीन था कि उससे वहां पर मुलाकात हो जायेगी। जिस रात मैं वहां पहुंचा तो मैं बैक स्टेज में गया और उसके बारे में पूछताछ की। लेकिन वहाँ पर एक बैले लड़की से मुझे पता चला कि उनकी मंडली एक हफ्ता पहले ही मास्को के लिए रवाना हो चुकी है। जिस वक्त मैं उस लड़की से बातें कर रहा था, सीढ़ियों से एक बहुत ही रूखी आवाज सुनायी दी,"तुरंत इधर आओ, अजनबियों से बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?" ये लड़की की मां थी। मैंने समझाने की कोशिश की कि मैं तो सिर्फ अपनी एक मित्र के बारे में जानकारी लेना चाह रहा था लेकिन मां ने मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया,"उस आदमी से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं है। चलो एकदम अंदर आ जाओ।"

मैं उसकी इस बदतमीजी पर खासा खफा हुआ। अलबत्ता, बाद में मैं उसका अच्छा परिचित बन गया। वह भी उसी होटल में ही रहती थी जिसमें मैं रुका हुआ था। उसकी दो लड़कियां थीं जो फालीज़ बेरजेरे बैले की सदस्याएं थीं। उनमें से छोटी वाली तेरह बरस की थी और मुख्य अदाकारा थी। वह सुंदर और विदुशी थी जबकि पंद्रह बरस की बड़ी वाली न तो सुंदर थी और न ही उसमें अक्कल ही थी। मां फ्रेंच थीं भरे पूरे शरीर की मालकिन थीं। उनकी उम्र चालीस बरस के आस पास थी। उन्होंने एक स्कॉटमैन से शादी रचाई थी और वह इंगलैंड में रहता था। जब हमने फालीज़ बेरजेरे में अपने प्रदर्शन शुरू किये तो वे मेरे पास आयीं और माफी मांगने लगीं कि वे इतने बेहूदे तरीके से पेश आयी थीं। ये एक बहुत ही शानदार दोस्ताना संबंध की शुरुआत थी। मुझे अक्सर उनके कमरे में चाय के लिए बुला लिया जाता। चाय वे लोग बेडरूम में ही बनाया करती थीं।

मैं अब जब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो मैं बेहद मासूम था। एक दोपहर को जब बच्चियां बाहर गयी हुई थीं और मामा और मैं अकेले थे उनका व्यवहार बदल गया और जब वे चाय छान रही थीं तो उनका बदन कांपने लगा। मैं उस वक्त अपने सपनों और अपनी उम्मीदों की बात कर रहा था, अपने प्यार और अपनी निराशाओं की बात कर रहा था, और वे बेहद भावुक हो गयीं। जब मैं मेज पर अपनी चाय का प्याला रखने के लिए उठा तो वे मेरे पास आयीं ... तुम कितने अच्छे हो। उन्होंने कहा और अपने हाथों में मेरा चेहरा भरते हुए मेरी आंखों में गहरे देखते हुए कहा...तुम इतने प्यारे बच्चे हो कि तुम्हारा दिल नहीं तोड़ा जाना चाहिये। उनकी निगाहें झुकती होती चलीं गयीं। अजीब तरह से और मंत्रबिद्ध हो गयीं और उनकी आवाज़ कांपने लगी...तुम्हें पता है, मैं तुम्हें अपने बच्चे की तरह प्यार करती हूँ। उन्होंने कहा और अब भी अपने हाथों में मेरा चेहरा भरे हुए थीं। तब हौले से उनका चेहरा मेरे चेहरे के पास आया और उन्होंने मुझे चूम लिया।

"थैंक यू," मैंने विनम्रता पूर्वक कहा और भोलेपन से उन्हें चूम लिया। वे अपनी बेधती आंखों से मुझे बांधे रहीं और उनके होंठ कांपते रहे। और उनकी आंखों में पनीली चमक आ गयी। तभी अचानक अपने आपको संभालते हुए वे एक कप चाय और ढालने के लिए चली गयीं और पल भर में उनका बात करने का तरीका बदल गया और मधुर हंसी से और हास्य बोध से उनका चेहरा दमकने लगा," तुम बहुत ही प्यारे लड़के हो...मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ।"

उन्होंने अपनी लड़कियों के बारे में मुझे कई रहस्य बताये,"छोटी वाली बहुत अच्छी लड़की है।" उन्होंने बताया,"लेकिन बड़ी वाली पर निगाह रखने की जरूरत होती है। वह समस्या बनती जा रही है।"

शो के बाद वे मुझे अपने बड़े वाले बेडरूम में खाने के लिए आमंत्रित करतीं। इस बेडरूम में वे और उनकी छोटी वाली लड़की सोया करते थे। अपने कमरे में लौटने से पहले मैं उन्हें और छोटी वाली को गुड नाइट किस करता। उसके बाद मुझे एक छोटे वाले कमरे से गुज़र कर जाना पड़ता जहाँ पर बड़ी वाली सोती थी। एक रात जब मैं उस कमरे से हो कर गुज़र रहा था तो वह एकदम मेरे पास आ गयी और फुसफुसा कर बोली,"रात को अपने कमरे का दरवाजा खुला रखना। जब परिवार सो जायेगा तो मैं तुम्हारे कमरे में आऊंगी।" मेरा यकीन करें या न करें, मैंने उसे हिकारत से उसके बिस्तर पर धकेला और लपक कर कमरे से बाहर आया। फालिस बेरजेरे में उनके अंतिम प्रदर्शन के बाद मैंने सुना था कि उनकी बड़ी वाली लड़की, जो मुश्किल से पन्द्रह बरस की हुई थी, साठ बरस के एक मोटे से जर्मन डॉग ट्रेनर के साथ भाग गयी थी।

लेकिन मैं उतना भोला नहीं था जितना दिखता था। अपनी मंडली के साथियों के साथ रातों में अक्सर मैं वेश्यालयों के चक्कर काटता और वहां वे सब हरकतें करता जो जवान लोग करते हैं। एक रात, कई पैग चढ़ा लेने के बाद, मैं एनी स्टोन नाम के एक भूतपूर्व लाइट हैवी वेट ईनामी फाइटर के साथ भिड़ गया। ये लफड़ा रेस्तरां में शुरू हुआ। और जब वेटरों ने तथा पुलिस ने हमें अलग किया तो वह बोला,"मैं तुम्हें होटल में देख लूंगा।" हम दोनों एक ही होटल में ठहरे हुए थे। उसका कमरा मेरे कमरे के ऊपर था। सुबह चार बजे मैं जब अपने होटल में लौटा तो मैंने उसका दरवाजा खटखटाया।

"आ जाओ," वह जल्दी से बोला," और अपने जूते उतार दो ताकि कोई शोर शराबा न हो।"

जल्दी ही हम छाती तक नंगे हो गये और एक दूसरे के सामने आ गये। हम काफी देर तक एक दूसरे को हिट करते रहे और एक दूसरे के वार भी बचाते रहे। इसी में मानो सदियां लग गयीं। कई बार उसने सीधे ही मेरी ठुड्डी पर वार किया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। "मैंने सोचा, तुम पंच मारोगे," मैं ताना मारा। उसने एक छलांग लगाई लेकिन उसका वार खाली गया। और उसका सिर दीवार से जा टकराया। वह अपने आप ही पस्त हो चला था। मैंने उसे खत्म करने की सोची, लेकिन मेरे पंच कमजोर थे। उसे खतरनाक ढंग से हिट कर सकता था, लेकिन मेरे पंच के पीछे जोर नहीं था। अचानक उसने जोर से मेरे मुंह पर एक ज़ोर का घूंसा मारा, जिससे मेरे आगे के दांत हिल गये, और इससे मेरा तन बदन गुस्से के मारे जलने लगा।"...बहुत हो गया," मैंने कहा,"मैं अपने दांत नहीं गंवाना चाहता।" वह मेरे ऊपर आया और मुझसे लिपट गया। और तब शीशे में देखने लगा। मैंने उसका चेहरा कुतर कर छलनी कर दिया था। मेरे हाथ इतने सूज गये थे मानों दस्ताने पहन रखे हों। छत पर, दीवारों पर और परदों पर खून के दाग नज़र आ रहे थे। मैं नहीं जानता, खून सब जगह कैसे पहुंच गया था।

रात को खून मेरे मुंह के पास से सरकता हुआ मेरे गरदन तक आ पहुँचा था। सुबह के वक्त जो नन्हा छोकरा जो मेरे लिए चाय का प्याला ले कर आता था, ये देख कर चिल्लाया। उसने सोचा कि मैंने आत्महत्या कर ली है। और उसके बाद मैंने किसी से झगड़ा नहीं किया।

एक रात दुभाषिया मेरे पास आया और बोला कि एक प्रसिद्ध संगीतकार मुझसे मिलना चाहता है, और क्या मैं उससे बॉक्स में जाना चाहूँगा?

आमंत्रण रोचक था क्योंकि उनके साथ वहाँ पर एक बहुत ही खूबसूरत, भव्य महिला बैठी हुई थीं जो रूसी बैले की सदस्या थी। दुभाषिये ने मेरा परिचय कराया। उन महानुभाव ने कहा कि वे मेरा काम देख कर बहुत खुश हुए हैं और जानना चाहते हैं कि मेरी उम्र क्या है। इन तारीफ भरे शब्दों को सुन कर मैं सम्मानपूर्वक झुका और बीच-बीच में मैं चोर निगाहों से उनकी मित्र को भी कनखियों से देख लेता था,"आप जन्मजात एक संगीतकार और नर्तक हैं।"

यह महसूस करते हुए कि इस तारीफ के बदले शब्द कोई मायने नहीं रखते और जवाब में सिर्फ मुस्कुराया ही जा सकता है, मैंने दुभाषिये की तरफ देखा और झुका। संगीतकार महोदय उठे और मुझसे हाथ मिलाया, तब मैं भी खड़ा हो गया," हां," उन्होंने मेरा हाथ हिलाते हुए कहा,"आप एक सच्चे कलाकार हैं।"

जब वे लोग चले गये तो मैं दुभाषिये से पूछा,"उनके साथ वह महिला कौन थी?"

"वे एक रूसी बैले डांसर है मिस...।" यह एक बहुत ही लम्बा और मुश्किल नाम था। "और इस महाशय का क्या नाम था?" मैंने पूछा।

"डेबुसी," उसने जवाब दिया,"वे एक विख्यात कम्पोजर हैं।"

"मैंने तो उनका नाम कभी नहीं सुना," मैंने टिप्पणी की।

ये बरस मैडम स्टेनहैल के कुख्यात स्कैंडल और मुकदमेबाजी का बरस था। उनपर मुकदमा चला था और उन्हें अपने पति की हत्या को दोषी नहीं पाया गया था। ये बरस सनसनीखेज "पॉम पॉम डांस" का था जिसमें जोड़े कामुकता का प्रदर्शन करते हुए अशोभनीय तरीके से गोल गोल घूम कर नृत्य करते थे। ये बरस व्यक्तिगत आय पर प्रति पाउंड पर लगाये कये छ: पेंस के अविश्वसनीय दिमाग खराब करने वाले का था। इसी बरस डेबुसी ने इंगलैंड में अपना फ्रेंच नाटक प्रस्तुत किया जिसे जनता ने नकार दिया और दर्शक हॉल से बाहर निकल गये।

भारी मन के साथ मैं इंगलैंड लौटा और प्रदेशों के दौरे पर निकल गया। ये पेरिस के कितना विपरीत था। उत्तरी शहरों में वे मनहूसयित भरी रविवार की शामें। सब कुछ बंद, और सब कुछ याद दिलासी वह उदासी भी जो कामातुर युवकों और पतुरियें के साथ-साथ चलती। ये अंधियारी हाई स्ट्रीट में और पिछवाड़े की गलियों में गश्त लगाते घूमते रहते। रविवारों की शामों को यही उनका टाइम पास होता था।

इंगलैंड में मुझे वापिस आये छ: माह बीत चुके थे और मैं अपने सामान्य रूटीन का आदी हो चला था। और तभी लंदन कार्यालय से एक ऐसी खबर आयी जिसने मुझे रोमांच से भर दिया। मिस्टर कार्नो ने खबर दी कि द' फुटबाल मैच के दूसरे दौर में मुझे मिस्टर हेरी वैल्डन की जगह लेनी है। अब मुझे महसूस हुआ कि अब मेरे सितारे बुलंदी पर हैं। अब पत्ते मेरे हाथ में थे। हालांकि मैं अपनी रिपेटरी में ममिंग बर्डस् और दूसरे नाटकों में सफलता के झंडे गाड़ चुका था, वे सारी चीजें द फुटबाल मैच में मुख्य भूमिका निभाने के सामने कुछ भी नहीं थीं। और सबसे बड़ी बात तो ये थी कि हमें ऑक्सफोर्ड से शुरुआत करनी थी। ये लंदन का सबसे महत्त्वपूर्ण संगीत हॉल था। हम सबसे बड़ा आकर्षण होने जा रहे थे। और ये पहली बार होने जा रहा था कि पोस्टरों में और विज्ञापनों आदि में मेरा नाम सबसे ऊपर जाता। ये बहुत ऊंची छलांग थी। अगर मैं ऑक्सफोर्ड में सफल हो जाता तो इससे मैं एक नया नाम बनता और मैं तब इस स्थिति में होता कि और अधिक पगार की मांग कर सकता था और एक दिन ऐसा भी आ सकता था कि मैं अपने खुद के स्कैच लिखता। दरअसल, इससे हर तरह की शानदार योजनाओं के द्वार खुलते थे। चूंकि कमोबेश उसी कास्ट को ही द' फुटबाल मैच के लिए रखा जा रहा था, इसलिए हमें सिर्फ एक ही हफ्ते की रिहर्सल की ज़रूरत थी। मैंने इस बारे में बहुत ज्यादा सोचा कि मैं नाटक में अपनी भूमिका कैसे निभाऊंगा। हैरी वेल्डन लंकाशायर उच्चारण में बोलते थे, मैंने तय किया कि मैं इसे कॉकने शैली में करूंगा।

लेकिन पहली ही रिहर्सल में मुझे स्वर यंत्र की गड़बड़ी का दौरा पड़ गया। मैंने अपनी आवाज़ को बचाने के लिए सब कुछ करके देख डाला, फुसफुसा कर बात की, भाप को अपने भीतर लिया, गले पर स्प्रे किया, और तब तक लगा रहा जब तक चिंता ने मुझसे मेरी कोमलता और सारी कॉमेडी छीन ली।

नाटक की पहली रात मेरे गले की नस-नस तनी हुई रस्सी की माफिक खिंची हुई थी। लेकिन मेरी आवाज़ सुनी नहीं जा सकी। कार्नो बाद में मेरे आस-पास मंडराते रहे। उनके चेहरे पर निराशा और हिकारत के मिले जुले भाव थे,"कोई भी तो तुम्हारी आवाज़ नहीं सुन सका।" वे झिड़कते हुए बोले, लेकिन मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि अगली रात मेरी आवाज़ ज़रूर बेहतर हो जायेगी। लेकिन अगली रात भी वही हाल रहा। सच तो ये है कि अगली रात वह और खराब हो चुकी थी। इसका कारण ये था कि मैंने आवाज़ के साथ इतनी जोर आजमाइश कर ली थी कि मुझे खतरा लगने लगा कि कहीं मेरी आवाज़ पूरी तरह से चली ही न जाये। अगली रात मेरी भी मेरा यही हाल रहा। नतीजा यह हुआ कि पहले हफ्ते के बाद ही प्रदर्शनों का पर्दा गिर गया। ऑक्सफोर्ड में प्रदर्शन के मेरे सारे सपने चूर चूर हो चुके थे और मेरी निराशा का यह आलम था कि मैं एन्फ्लूंजा का मरीज हो कर बिस्तर पर पड़ गया।

हैट्टी से मिले मुझे एक बरस से ज्यादा हो गया था। फ्लू के प्रकोप के बाद कमज़ोरी और उदासी के आलम में मुझे एक बार फिर उसका ख्याल आया और मैं एक रात देर को कैम्बरवैल में उसके घर की तरफ घूमता-घामता पहुँच गया। लेकिन घर खाली था और दरवाजे पर `किराये के लिए खाली' का बोर्ड लटका हुआ था। मैं बिना किसी खास मकसद के गलियों में भटकता रहा। अचानक रात के अंधेरे में से एक आकृति उभरी, सड़क पार करते हुए और मेरी तरफ आते हुए।

"चार्ली, आधी रात को तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" ये हैट्टी थी। उसने काला सील की खाल वाला कोट पहना हुआ था और सील की खाल का ही गोल हैट पहना हुआ था।

"मैं तुमसे मिलने आया था,' मैंने मज़ाक में कहा।

वह मुस्कुरायी,"बहुत कमज़ोर हो गये हो तुम?"

मैंने उसे बताया कि मैं अभी ही फ्लू से उठा हूँ। वह अब सत्रह बरस की हो रही थी और खासी सुंदर नज़र आ रही थी और उसने कपड़े भी काफी सलीके से पहने हुए थे।

"लेकिन सवाल ये है कि तुम इस वक्त यहाँ क्या कर रही हो?" पूछा मैंने।

"मैं अपनी एक सहेली से मिलने आयी थी और अब अपने भाई के घर जा रही हूं। आना चाहोगे तुम मेरे साथ?" उसने जवाब दिया।

रास्ते में उसने बताया कि उसकी बहन ने एक अमरीकी करोड़पति फ्रैंक से शादी कर ली है और वे नाइस में रह रहे हैं। वह सुबह लंदन छोड़ कर उनसे मिलने के लिए जा रही है।

उस रात में उसे ठगा-सा खड़ा देखता और वह अपने भाई के साथ इठला-इठलाकर नाचती रही। वह अपने भाई के साथ मूर्खतापूर्ण और ठगिनी की तरह एक्टिंग कर रही थी। और मैं, अपने आप के बावजूद, इस भावना से अपने आपको मुक्त नहीं कर पा रहा था कि मेरी जुस्तजू उसके लिए ज़रा सी भी कम नहीं हुई थी। अगर वह किसी साधारण जगह से ताल्लुक रखती होती? किसी भी और सामान्य लड़की की तरह? इस ख्याल ने मुझे उदास कर दिया और मैं उसकी तरफ वस्तुपरक निगाहों से देखता रह गया।

उसके शरीर में भराव आ गया था और मैंने उसकी छातियों के उभारों की तरफ देखा और पाया कि उनकी गोलाइयां छोटी थीं और बहुत ज्यादा आकर्षक नहीं थी। अगर मेरी हैसियत हुई तो क्या मैं उससे शादी कर पाऊंगा? नहीं, मैं किसी से भी शादी नहीं करना चाहता था।

उस ठंडी और चमकीली रात को मैं जब उसके साथ घर की तरफ आ रहा था तो मैं ज़रूर ही बहुत अधिक उदास तरीके से तटस्थ रहा होऊंगा क्योंकि मैंने उससे इस बात की आशा व्यक्त की कि उसका जीवन बहुत सुखी और शानदार होगा।

"तुम इतने उदास और टूटे लग रहे थे कि मैं एकदम रोने रोने को थी।" उसने कहा था।

उस रात मैं एक विजेता की तरह घर लौटा क्योंकि मैंने उसे अपनी उदासी से छू लिया था और अपने व्यक्तित्व को महसूस करा दिया था।

कार्नो ने मुझे फिर से ममिंग बर्डस् में रख लिया था और विडंबना ये कि मेरी आवाज़ को पूरी तरह से ठीक होने में एक महीना लग गया था। द' फुटबाल मैच के बारे में मेरी जो निराशा थी, मैंने तय किया कि अब उसे हावी नहीं होने दूंगा। लेकिन एक ख्याल भी मुझे सताये जा रहा था कि शायद मैं वैल्डन की बराबरी करने या उनकी जगह लेने के काबिल नहीं था। और इससे सबके पीछे फोरेस्टर थियेटर में मेरी असफलता ही काम कर रही थी। अब तक चूंकि मेरा आत्म विश्वास पूरी तरह से लौटा नहीं था, जिस भी नये नाटक में मैंने मुख्य भूमिका निभायी, वह डर का एक ट्रायल था। और अब सबसे अधिक चौंकाने वाला और अत्यधिक निर्णायक दिन आ गया जब मैंने मिस्टर कार्नो को बताया कि मेरा करार खत्म होने को है और मुझे वेतन में बढ़ोतरी चाहिये।

कार्नो जिसे भी पसंद नहीं करते थे उसके प्रति क्रूर और सनकी हो सकते थे। चूंकि वे मुझे पसंद करते थे इसलिए मैंने उनके व्यक्तित्व के इस पक्ष के दर्शन नहीं किये थे लेकिन वे सचमुच बहुत ही बदतमीज़ी भरे तरीके से चूर-चूर कर सकते थे। अपने किसी कामेडियन के प्रदर्शन के दौरान अगर उन्हें वह कामेडियन पसंद नहीं आता था तो वे विंग्स में खड़े हो कर इतने ज़ोर से नाम सिनकने का नाटक करते थे कि सबको सुनायी दे जाये। वे अक्सर ऐसा करने लगते थे कि कामेडियन मंच छोड़ कर ही आ जाता था और उसके साथ हाथा-पाई करने लगता था। वह आखिरी बार थी जब उन्होंने इस तरह की हरकत की थी और अब मैं उनके पास वेतन में बढ़ोतरी के लिए भिड़ने जा रहा था।

"ठीक है," उन्होंने रूखेपन के साथ मुस्कुराते हुए कहा, "तुम वेतन में वृद्धि चाहते हो और थियेटर सर्किट उसमें कटौती करना चाहता है।" उन्होंने कंधे उचकाये,"ऑक्सफोर्ड म्यूज़िक हाल के हंगामे के बाद हमारे पास सिर्फ शिकायतें ही शिकायतें हैं। उनका कहना है कि कम्पनी उस लायक नहीं है... दो कौड़ी का क्रैच क्राउड

कार्नो की मंडली में हमें कम से कम से छ: महीने लगते थे कि हम परफैक्ट टैम्पो विकसित कर पाते और तब तक उसे क्रैच क्राउड के नाम से पुकारा जाता था।

"लेकिन उसके लिए मुझे ही तो दोषी नहीं ठहरा सकते," मैंने जवाब दिया।

"लेकिन वे तो दोषी ठहराते हैं।" उनका जवाब था। वे चुभती निगाहों से मेरी तरफ घूर रहे थे।

"उन्हें क्या शिकायत है?" पूछा मैंने।

उन्होंने अपना गला खखारा और फर्श पर देखने लगे,"उनका कहना है कि तुम सक्षम नहीं हो।"

हालांकि उनकी यह टिप्पणी सीधे मेरे पेट में जा कर शूल की तरह चुभी, इससे मुझे गुस्सा भी आया, लेकिन मैंने शांत स्वर में जवाब दिया,"ठीक है, दूसरे लोग ऐसा नहीं सोचते। और वे मुझे उससे ज्यादा देने को तैयार हैं जितना मुझे यहाँ मिल रहा है।" ये सच नहीं था। मेरे सामने कोई प्रस्ताव नहीं था।

"उनका कहना है कि शो फालतू है और कामेडियन दो कौड़ी का है। देखो," उन्होंने फोन उठाते हुए कहा,"मैं एक स्टार को फोन करूंगा, बेरमाँडसे को, और तुम उनसे अपने आप सुन लेना।... मेरा ख्याल है पिछले हफ्ते तुम्हारा शो बहुत ही खराब रहा था।" उन्होंने फोन पर बात की।

"वाहियात..." फोन पर आवाज आयी।

कार्नो ने खींसें निपोरी,"आप इसे किस श्रेणी में डालेंगे?"

"दो कौड़ा का...शो"

"और चैप्लिन के बारे में क्या ख्याल है? हमारे प्रधान कामेडियन? क्या उसका काम भी ठीक नहीं?"

"वह तो बू मारता हैं।"

कार्नो साहब ने फोन मुझे थमा दिया,"अपने आप ही सुन लो..."

मैं फोन लिया। "...हो सकता है वह बू मारता हो लेकिन उससे आधा भी नहीं जितना आपका सड़ांध भरा थियटर बू मारता है।" मैंने जवाब दिया।

कार्नो साहब की मुझे औकात दिखाने की तरकीब काम नहीं आयी। मैंने उनसे कहा कि अगर वे भी मेरे बारे में यही राय रखते हैं तो करार का नवीकरण करने का कोई मतलब नहीं है। कई मायनों में कार्नो बहुत ही काइयां आदमी थे। लेकिन वे मनोवैज्ञानिक नहीं थे। बेशक मैं बू मारता था तो भी ये कार्नो साहब को शोभा नहीं देता था कि फोन की दूसरी तरफ से किसी और से ये कहलवायें मुझे पांच पाउंड मिल रहे थे और हालांकि मेरा आत्म विश्वास डगमाया हुआ था, फिर भी मैं छ: की मांग कर रहा था। मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा जब कार्नो साहब ने मुझे छ: पाउंड देना स्वीकार कर लिया और मैं एक बार उनकी निगाहों में राज दुलारा बन गया।

आल्फ रीव्ज़, जो कार्नो साहब की अमेरिकी कम्पनी में मैनेजर थे, इंगलैंड वापिस आये और उन्होंने ये अफवाह फैला दी कि वे अपने साथ अमेरिका ले जाने के लिए किसी प्रधान कामेडियन की तलाश में हैं।

ऑक्सफोर्ड म्यूजिक हॉल के उस बड़े हादसे के बाद से मैं अमेरिका जाने के ख्यालों से भरा हुआ था। अकेले जा कर थ्रिल और रोमांच के लिए नहीं, बल्कि वहाँ जाने का मतलब हमेशा नयी आशाएंं और नयी दुनिया में एक नयी शुरुआत। सौभाग्य से, मैं जिस नये नाटक स्केटिंग में प्रमुख भूमिका निभा रहा था, बरमिंघम में सफलता के झंडे गाड़ रहा था, और जब मिस्टर रीव्ज़ वहाँ आ कर कम्पनी में शामिल हुए तो मैंने अपनी भूमिका को बेहतर बनाने में जान लड़ा दी और इसका नतीजा ये हुआ कि रीव्ज़ साहब ने कार्नो साहब को तार भेजा कि उन्हें अमेरिका के लिए अपना कामेडियन मिल गया है। लेकिन कार्नो साहब ने मेरे लिए और ही मंसूबे बांधे हुए थे। इस वाहियात खबर ने मुझे हफ्तों तक पेसोपेश में डाले रखा जब तक कि वे वॉव वॉव नाम के नाटक में दिलचस्पी नहीं लेने लग गये। ये नाटक सीक्रेट सोसाइटी में किसी सदस्य को लिये जाने के बारे में प्रहसन था। मुझे और रीव्ज़ साहब को ये नाटक वाहियात लगा, बिना सिर पैर का, बिना किसी खासियत के लगा, लेकिन कार्नो साहब पर इसका नशा सवार था और वे अड़ गये कि अमेरिका सीक्रेट सोसाइटियों से भरा पड़ा है। और उन पर इस तरह का कटाक्ष करने वाला नाटक ज़रूर सफल होगा। मेरी खुशी और राहत का ठिकाना न रहा जब कार्नो साहब ने मुझे ही इसकी प्रधान भूमिका के लिए चुना। अमेरिका के लिए वॉव वॉव।

मुझे अमेरिका जाने के लिए इसी तरह के किसी मौके की जरूरत थी। इंगलैंड में मुझे लग रहा था कि मैं अपनी संभावनाओं के शिखर पर पहुँच चुका हूँ और इसके अलावा, वहाँ पर मेरे अवसर अब बंधे बंधाये रह गये थे। आधी-अधूरी पढ़ाई के चलते अगर मैं म्यूजिक हॉल के कामेडियन के रूप में फेल हो जाता तो मेरे पास मजदूरी के काम करने के भी बहुत ही सीमित आसार होते।

अमेरिका में संभावनाओं का अंनत आकाश था।

यात्रा शुरू करने से पहले की रात मैं लंदन के वेस्ट एंड में घूमता रहा, लीसेटर स्क्वायर, कोवेन्टरी स्ट्रीट, द माल, और पिकाडिल्ली में रुका। उस समय मेरे मन में उदासी भरी भावना थी कि ये आखिरी बार होगा कि मैं लंदन घूम रहा हूँ क्योंकि मैं मन ही मन तय कर चुका था कि मुझे स्थायी रूप से अमेरिका जाकर ही बसना है। मैं आधी रात तक दो बजे तक भटकता रहा, सुनसान गलियों और मेरी खुद की उदासी की कविता में डूबता उतराता।

मैं विदा के दो शब्द कहने से बच रहा था। अपने नातेदारों से और दोस्तों से बिछुड़ते समय आदमी जो कुछ भी महसूस करता है, उनके द्वारा विदाई दिये जाने के बारे में, उसमें और धंसता ही है। मैं सुबह छ: बजे ही उठ गया था। इसलिए मैंने इस बात की ज़रूरत नहीं समझी कि सिडनी को जगाऊं। लेकिन मैंने मेज पर एक पर्ची छोड़ दी,"अमेरिका जा रहा हूँ। तुम्हें लिखता रहूँगा। प्यार। चार्ली।"