Ek Duniya Ajnabi - 26 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | एक दुनिया अजनबी - 26

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एक दुनिया अजनबी - 26

एक दुनिया अजनबी

26-

कॉलोनी में क्लब भी खुल चुका था और उसमें क्या-क्या सिखाया जा सकता था, इसका विचार भी किया जा रहा था |भाग्य से वहाँ के निवासियों द्वारा संगीत व नृत्य की कक्षाओं की ज़रूरत महसूस की गई और क्लब में संगीत व नृत्य के शिक्षकों को ठिकाना मिल गया |

विभा काफ़ी दिनों से क्लब में नृत्य व गायन की शिक्षा प्राप्त करने जा रही थी | एक दिन उसने किन्नर वेदकुमारी को नृत्य के गुरु हरिओम जी को साक्षात दंडवत करते हुए देख लिया |दंडवत प्रणाम करके वह बिना इधर-उधर देखे हॉल से बाहर निकल गई |वह श्वेत चूड़ीदार, कुर्ते व दुपट्टे में थी और पावन प्रतिमा सी लग रही थी जैसे माँ शारदे उसके स्वरूप में सुसज्जित हो गईं हों |

समय की बात है तभी विभा अपनी नृत्य की कक्षा में पहुँची | वेद कुमारी को दंडवत करते देख बच्ची विभा का दिमाग़ न जाने कहाँ दौड़ चला ? 'हाँ, वही तो है' इसको तो उसने पिछले सप्ताह ही अपने से चार कोठी दूर रहने वाले गुप्ता जी के पोते होने पर हीजड़ों के साथ नाचते हुए देखा था |

लगभग पंद्रह वर्ष की बच्ची के मन में उसको देखकर एक उत्सुकता जाग उठी |

प्रणाम करके विभा ने गुरु जी से पूछ ही तो लिया ;

"गुरु जी ! ये जो अभी गई हैं, वो कौन हैं ? "

हरिओम जी क्षण भर के लिए गुम हो गए |उस दिन उन्होंने वेदकुमारी को बिना कक्षा के भी नृत्य की प्रैक्टिस करने के लिए बुला लिया था | साज़िंदे भी उस दिन ख़ाली थे | वेदकुमारी को दिल्ली में किसी बड़े कार्यक्रम में मंच पर नृत्य करने का आमंत्रण मिला था |

गुरुजी सबसे छिपा कर उसे नृत्य सिखाते, इन लोगों को एक प्रकार से अछूत माना जाता लेकिन किसी भी सौभाग्य के कार्यक्रम में इनका शुभाशीष प्राप्त करने की शुभाकाँक्षा अवश्य की जाती | केवल उनके साज़िंदे व उनके मित्र संगीत के गुरु ही इस बात से परिचित थे |

संगीत व नृत्य के गुरुओं के लिए क्लब में ही हॉल के ऊपर एक-एक कमरा बनवा दिया गया था जिसमें आवश्यक सुविधाओं का ध्यान भी रखा गया था |दोनों कमरों के बीच एक दरवाज़ा था जिसे खोलने से घर बड़ा लगने लगता |

दोनों की किशोरावस्था की मित्रता थी, उनका साथ दैवयोग से बनकर आया था |दोनों ने काम पर लगते ही माँ व बहन को अपने पास बुला लिया | बहन काफ़ी छोटी थी, अभी उसे कॉलेज की पढ़ाई करनी थी, उसके बाद उसके भाईयों को उसके भविष्य की चिंता भी करनी थी | यह नौकरी दोनों के लिए परिवार की प्राणदायिनी बनकर मिली थी |

विभा की कौतुहल से भरी आँखें गुरु जी के चेहरे पर गड़ी थीं और उन्हें डर था कहीं यह लड़की ढिंढोरा न पीट दे, उन्हें क्लब से निष्कासित ही न कर दिया जाए |

"बताइए न गुरु जी, कौन थीं वो? "

"बेटा विभा। किसीसे कुछ कहना नहीं ----" गुरु जी सहमे हुए थे |
" मैं जानती हूँ इन्हें ---इनको बहुत बार देखा है मैंने ----ये वो ही हैं न ? "

"हाँ, बेटा ---वो ही हैं --पर जैसा मैंने कहा, किसीसे कुछ कहना नहीं --"

"नहीं, मैं कुछ नहीं कहूंगी ---किसी से भी ---" कुछ रुककर उसने बड़े भोलेपन से पूछा था

"लेकिन ---ये यहाँ क्यों आती हैं ? "

"तुम क्यों आती हो बेटा ? "

"जी, नृत्य सीखने ---"

" बस--वह भी तुम्हारी तरह नृत्य सीखने आती है ---"

"पर --आप ऐसा क्यों कह रहे हैं किसीको न बताऊँ ? "

"यहाँ के लोग इन्हें पसंद नहीं करते न --इसीलिए --- अगर इन्हें बता दोगी तो बेचारी का नृत्य बीच में ही रह जाएगा |कुछ ठहरकर वे फिर बोले ;

"कला किसी के बंधन में नहीं रहती, वह तो कलाकार के पास उसके श्रम व शिद्दत से पहुँच ही जाती है | लेकिन ---किसे समझाया जाए ? "